जीव जगत

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जीव जगत

विश्लषणात्मक अवधारणा

 

जीव जगत में विस्तृत विविधताएं दिखार्इ देती हैं। असंख्य पादप तथा प्राणियों की पहचान तथा उनका वर्णन किया गया हैय परंतु अब भी इनकी बहुत बड़ी संख्या अज्ञात है। जीवों के एक विशाल परिसर को आकार, रंग, आवास, शरीर क्रियात्मक तथा आकारकीय लक्षणों के कारण हमें जीवों की व्याख्या करने के लिए इनका इस प्रकार वर्गीकरण किया जाता है जो इनके अध्ययन में सहायक हो।

 

 

बायोलॉजी (Biology) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के दो शब्दों - से हुर्इ है- बायोस (Bios) अर्थात जीवन तथा लोगोस (logos) अर्थात अध्ययन। इस प्रकार जीवविज्ञान का शाब्दिक अर्थ- ‘जीवन का विज्ञान’ या जीवविज्ञान ‘जीवन का अध्ययन’ है। जीव, जीवन तथा जीवन की विविध क्रियाओं से विज्ञान की यह शाखा संबंधित है, जिसमें जीवन की शुरुआत, उत्पत्ति एव विकास, जीवों की संरचना, उनके वर्गीकरण, आनुवंशिकी आदि का अध्ययन किया जाता है।

बायोलॉजी (Biology) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1801 र्इ. में वैज्ञानिक जीन बेपटिस्ट लैमार्क तथा जी.आर. ट्रेविरेनस के द्वारा किया गया था।

अध्ययन की –ष्टि से जीव विज्ञान को प्रमुख दो शाखाओं में विभाजित किया जाता है

जन्तु विज्ञान → जन्तुओं का अध्ययन → जनक : अरस्तू वनस्पति विज्ञान → पेड़-पौधो का अध्ययन → जनक : थियोफ्रेस्टस

(i)    जन्तु विज्ञान (Zoology)- इसके अंतर्गत जन्तु जगत

( Animal kingdom) का अध्ययन किया जाता है, जिसमें जीव जन्तुओं (मानव, सरीसृप, पक्षी, कीट आदि) की शारीरिक संरचना, उद्विकास (Evolution), वर्गीकरण (Classification), उनके व्यवहार तथा वैश्विक वितरण व आपसी तालमेल आदि का अध्ययन शामिल है।

(ii)   वनस्पति विज्ञान (Botony)- इसके अंतर्गत वनस्पतियों के उद्भव, विकास, आकारिकी, नर्इ वनस्पतियों का पैदा होना, उनके पर्यावरण अनुकूलन के साथ भौगोलिक वितरण आदि का अध्ययन किया जाता है।

 

सजीवों के गुण (Characteristics of living beings) - वृद्धि (Growth), प्रजनन (Reproduction) पर्यावरण के प्रति संवेदन क्षमता तथा बाह्य उद्दीपन पर प्रतिक्रियाशीलता, यह जीवित वस्तुओं में यह लाक्षणिक गुण विद्यमान रहते हैं। इनके अलावा उपापचय (Metabolism), स्व-द्विगुणन (Self -replication), स्व-संगठन (Self -organization) आदि सजीवों के गुण हैं।

 

वृद्धि - सभी सजीवों में (एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय) वृद्धि का गुण होता हैं। यह जीवों में कोशिका संख्या तथा आकार में बढ़ने के कारण होती है। वृद्धि में कोशिका विभाजन (Cell division) होता है। मृत जीवों में वृद्धि नहीं होती है। कुछ निर्जीव वस्तुओं जैसे पत्थर, पर्वत तथा रेत के टीले में वृद्धि सतह पर एकत्रित होने पदाथोर्ं के कारण दिखती है लेकिन सजीवों में, वृद्धि आन्तरिक होती है। अत: वृद्धि कभी समावेशी नहीं होती लेकिन सजीवों की पारिभाषिक गुणवत्ता जरूर होती है।

प्रजनन - जीवों की अपने समान, संतान उत्पत्ति की क्षमता को प्रजनन कहते है। कुछ जीव जैसे ऊसर कार्यरत मधुमक्खी, बांझ मनुष्य दम्पति आदि प्रजनन करने में असमर्थ होते हैं। अत: प्रजनन सजीवों का एक विशेष गुण है।

 

 

उपापचय - सभी प्रकार की रासायनिक अभिक्रियाएं अथवा परिवर्तन जो सजीवों के शरीर में पूर्ण होती हैं उपापचय कहलाती हैं। उपापचय के दो भाग है- (i) अपचय, (ii) उपचय। कोशिका में दोनों प्रक्रिया अपचय (Catabolism) तथा उपचय (Anabolism) अभिक्रियाएं सम्पन्न होती हैं। इन क्रियाओं सम्मिलित रूप को उपापचय कहते हैं।

संगठन - सजीवों की प्रत्येक कोशिका में विभिन्न कोशिकांग उपस्थित रहते हैं जिनके विशेष एवं अलग अलग कार्य होते हैं। कोशिका एक संगठित संरचना होती है। एककोशिकीय जीव अपनी सम्पूर्ण जैविक  क्रियाएं एक ही कोशिका में सम्पन्न करते हैं परन्तु बहुकोशिकीय सजीवों में विभिन्न कायोर्ं को सम्पन्न करने के लिए विशेष प्रकार की कोशिकाएं तथा ऊतक उपस्थित होते हैं।

                चेतना - सभी जीव संवेदनशील होते हैं तथा विभिन्न उद्दीपनों के प्रति संवेदनशीलता प्रकट करते हैं। पर्यावरणीय कारकों जैसे- प्रकाश, जल, तापमान, अन्य जीव, प्रदूषक इत्यादि के प्रति पेड़ पौधे प्रतिक्रिया करते हैं। प्रकृति में विद्यमान असंख्य सजीवों विविधता को जैव विविधता कह सकते हैं।

नामकरण - सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित सामान्य एवं क्षेत्रीय जन्तुओं और वनस्पतियों के नाम एक समरूपता में सूचीबद्ध नही किया जा सकता है। अत: जीवविज्ञान के वैज्ञानिकों ने सभी सजीवों को वैज्ञानिक नाम दिया जो विश्व में मान्य है। अत: इस प्रक्रम को नामकरण पद्धति कहते हैं। प्रत्येक वैज्ञानिक नाम में दो घटक होते हैं। एक वंश (Generic) तथा दूसरा जाति (Species). है। यह प्रक्रिया नामकरण का द्विनाम (Binomial) पद्धति है जा करालस लानियस द्वारा बना दी गर्इ थी।

वर्गीकरण - पृथ्वी पर उपस्थित सम्पूर्ण जीव जंतुओं और वनस्पतियों का अध्ययन उनके वर्गीकरण पर होता है। वैज्ञानिकों ने सभी सजीवों को समूहों एवं कुलों में वर्गीकृत उन जीवों के आधारीय लक्षणों द्वारा किया गया है। यह प्रक्रिया वर्गीकरण (Classification) कहलाती हैं।  वर्गीकरण जीवों की पहचान, जैवविकास का मार्ग एवं जीवाश्मोंकी जानकारी करने में सहायता करता है। यह समूह (Group) के गुणों को बताता है तथा कोर्इ भी जीव जिस समूह का होता है उसी का गुण दर्शाता है।

वर्गिकी - विभिन्न जीवों को विभिन्न वगोर्ं में वर्गीकृत करने की प्रक्रिया वर्गिकी (Taxonomy) कहलाती है। वर्गिकी का मुख्य आधार उसके परिचय, लक्षणों, नामकरण तथा वर्गीकरण पर होता है।

पद्धतिबद्ध (Systematics) - इसमें जातियों के विभिन्न लक्षण, विविधता आदि में सम्बन्ध स्थापित होते हैं। यह पहचान, नामकरण, वर्गीकरण तथा उद्विकास (Evolution) सम्बन्ध जातियों के साथ दर्शाता है। 


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