संघ और उसका राज्य क्षेत्र

संघ और उसका राज्य क्षेत्र

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विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

स्वतंत्रता के समय ब्रिटिश शासन ने घोषणा की थी कि भारत के ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ-साथ भारतीय प्रान्त एवं अन्य देशी रिसायतों को भी ब्रिटिश अधीनता से मुक्त किया जाए। देशी रियासतों के विलय के साथ भारत में राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई किन्तु भाषायी आधार पर विभिन्न राज्यों के गठन की मांग उठने लगी। राज्य पुनर्गठन की सिफारिशों के आधार पर भारतीय संघ के अन्तर्गत विभिन्न राज्यों का गठन किया गया है

 

भारत राज्यों का संघ है (अनुच्छेद-1) संविधान के भाग-1 में (अनुच्छेद 1-4 तक) भारतीय संघ और उसके राज्य क्षेत्र के बारे में वर्णन किया गया है। • 

  • अनुच्छेद (1):
  1. भारत अर्थात् इंडिया राज्यों का संघ होगा।
  2. राज्य और उनके राज्य क्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट है।
  3. भारत के राज्यक्षेत्र में अर्जित किये गये अन्य राज्य क्षेत्र समाविष्ट होंगे।
  • अनुच्छेद ( 2 ):
       भारत की संसद को विधि द्वारा स्थापित ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नये राज्य का प्रवेश या उनकी स्थापना की शक्ति प्रदान की गयी।
  • अनुच्छेद (3): नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों,सीमाओंया नामों में परिवर्तन संसद विधि द्वारा कर सकती हैः
       क. किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी।
       ख. किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी।
       ग. किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी।
       घ. किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी। 
  • अनुच्छेद (4): संविधान के अनुच्छेद-4 में यह स्पष्ट किया गया है कि अनुच्छेद-2 अथवा अनुच्छेद-3 के अंतर्गत नये राज्यों की स्थापना या उनका प्रवेश और विद्यमान राज्यों का नामों, क्षेत्रों और उनकी सीमा आदि में परिवर्तन के लिए संसद यदि संविधान की पहली या चौंथी अनुसूची में कोई बदलाव करती है तो ऐसी विधि अनुच्छेद-368 के प्रयोजनों के लिये संविधान में संशोधन करने वाली विधि नहीं समझी जाएगी। अतः नये राज्यों की स्थापना एवं उनका प्रवेश से संबंधित कोई प्रावधान अन्य साधारण विधानों की तरह साधारण बहुमत की तरह पारित किया जाएगा।
          टिप्पणीः राज्यों के नाम, सीमा, क्षेत्र आदि में परिवर्तन हेतु राष्ट्रपति की सिफारिश के पूर्व संसद के किसी भी सदन में कोई विधेयक पेश नहीं किया जा सकता है।
  • बेरूबाड़ी संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह विचार व्यक्त किया कि संविधान संशोधन के पश्चात् ही कोई राज्य क्षेत्र किसी अन्य राष्ट्र को सौंपा जा सकता है।
  • 9वें संविधान (संशोधन), 1960 द्वारा बेरूबाड़ी राज्यक्षेत्र पाकिस्तान को सौंप दिया गया तथा 100वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2015 द्वारा कुछ भारतीय क्षेत्र बांग्लादेश को सौंप दिये गये। 
स्वतंत्रता के उपरान्त ब्रिटिश प्रान्तों व देशी रियासतों का एकीकरण
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भारतीय राज्यक्षेत्र दो वर्गों में विभक्त था- ब्रिटिश भारत एवं देशी रियासतें। ब्रिटिश भारत में 9 प्रान्त थे, जबकि देशी रियासतों की संख्या लगभग 600 थी, जिनमें से 565 को छोड़कर शेष पाकिस्तान में शामिल हो गईं। 565 रियासतों में से 3 रियासतों-जूनागढ़, हैदराबाद तथा जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय कराने में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा।
  • जूनागढ़ रियासत को जनमत संग्रह के आधार पर भारत में मिलाया गया। हैदराबाद रियासत को सैन्य कार्यवाही (ऑपरेशन-पोलो) द्वारा मिलाया गया तथा जम्मू-कश्मीर रियासत के शासक ने पाकिस्तानी कबायलियों के आक्रमण के कारण भारत के साथ विलय-पत्र पर हस्ताक्षर करके कश्मीर को भारत में सम्मिलित कर दिया। देशी रियासतों का भारत में विलय तत्कालीन गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल की दूरदर्शी नीति और साहसिक कूटनीतिक प्रयासों का परिणाम था।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् ब्रिटिश प्रान्तों एवं देशी रियासतों को एकीकृत करके भारत में राज्यों को चार श्रेणियों क, ख, ग और घ में बाँटा गया था। ये सभी संख्या में 29 थे।
राज्यों के पुनर्गठन संबंधी प्रमुख आयोग एवं समितियाँ
  • धर आयोगः स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग के मद्देनजर संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 27 नवम्बर, 1947 को न्यायमूर्ति एस. के. धर की अध्यक्षता में भाषाई प्रांत आयोग का गठन किया। भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के प्रश्न पर एस. के.धर आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा कि राज्योंका पुनर्गठन भाषायी आधार पर न होकर, प्रशासनिक सुविधा के आधार पर होना चाहिए।
  • जे. वी. पी. समितिः धर आयोग की सिफारिशों के पश्चात् भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का आंदोलन और अधिक तीव्र हो गया, जिसके समाधान के लिए कांग्रेस ने जे. वी. पी. समिति का गठन दिसंबर 1948 ई. में किया। जे. वी. पी. समिति ने अपनी सिफारिशें अप्रैल 1949 में सरकार के समक्ष पेश की थीं। इसमें जवाहर लाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल एवं पट्टाभि सीतारमैय्या सम्मिलित थे। इस समिति ने अपनी सिफारिश में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को तत्कालीन समय में अव्यवहारिक बताया। भाषाई राज्य पुनर्गठन आंदोलन के दौरान ही 56 दिनों की भूख हड़ताल के बाद पोट्टी श्रीरामुलु (कांग्रेसी) का निधन हो गया, जिसके बाद अक्टूबर 1953 में भारत सरकार को मजबूर होकर भाषाई आधार पर राज्य के गठन की माँग को स्वीकार करना पड़ा और मद्रास से तेलग भाषी क्षेत्रों को अलग करके एक नए राज्य आंध्र प्रदेश का गठन किया गया। इसके पश्चात् मद्रास प्रांत के बचे हुए क्षेत्र को तमिल भाषी राज्य के रूप में रखा गया। सन् 1969 में इसका नाम तमिलनाडु कर दिया गया।
  • राज्य पुनर्गठन आयोग, 1953: तेलुगू भाषियों के लिये पृथक् आन्ध्र प्रदेश राज्य के गठन के पश्चात् अन्य भाषियों द्वारा अलग राज्य की मांग भी तेज हो गई, जिस पर विचार के लिये वर्ष 1953 में न्यायमूर्ति फजल अली की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय (अन्य दो सदस्यों में के. एम. पणिक्कर और एच. एन. कुंजरू) राज्य पुनर्गठन आयोग गठित किया गया। इस आयोग ने 30 दिसंबर, 1955 को अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी।
वर्ष 1950 के बाद नव गठित राज्य  

राज्य

गठन वर्ष

राज्य गठन

वर्ष

आन्ध्र प्रदेश

1 अक्टूबर, 1953

महाराष्ट्र

1 मई, 1960

गुजरात

1 मई, 1960

नागालैण्ड

1 दिसम्बर, 1963

हरियाणा

1 नवम्बर, 1966

हिमाचल प्रदेश

25 जनवरी, 1971

 मेघालय

21 जनवरी, 1972

मणिपुर

21 जनवरी, 1972

त्रिपुरा

21 जनवरी, 1972

सिक्किम

26 अप्रैल, 1975

मिजोरम

20 फरवरी, 1987

अरुणाचल प्रदेश

20 फरवरी, 1987

गोवा (25वाँ)

30 मई, 1987

छत्तीसगढ़ (26वाँ)

1 नवम्बर, 2000

उत्तराखंड (27वाँ)

9 नवम्बर, 2000

झारखंड (28वाँ)

15 नवम्बर, 2000

तेलंगाना (29वाँ)

2 जून, 2014

 

 

                            

भारत के विशेष दर्जा प्राप्त विभिन्न राज्य
  • संविधान में गरीब तथा पिछडे राज्यों को विकास के समान अवसर प्रदान करने के लिए विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
  • राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिलने के पश्चात् उसे केन्द्र की ओर से विशेष वित्तीय सहायता दी जाती है। राज्यों के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव गाडगिल फार्मूला के आधार पर प्रारंभ किया गया।
  • किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने के कुछ प्रावधान हैं जैसे-सामरिक दृष्टि से राज्य का महत्व, राज्य के पर्वतीय तथा दुर्गम अवस्थिति, न्यूनतम जनसंख्या घनत्व, आर्थिक तथा बुनियादी सुविधाओं की दृष्टि से राज्य का पिछड़ापन।

  विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों की सूची

राज्य

वर्ष

राज्य

वर्ष

असम

1969

नागालैण्ड

1969

जम्मू-कश्मीर

1969

हिमाचल प्रदेश

1969

मणिपुर

1972

मेघालय

1972

त्रिपुरा

1972

सिक्किम

1975-76

मिजोरम

1986-87

अरुणाचल प्रदेश

1986-87

उत्तराखण्ड

2001

 

 

 

केन्द्रशासित प्रदेशों का गठन •
  • ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1874 में कुछ अनुसूचित जिले बनाए गए। जिन्हें बाद में मुख्य आयुक्त के क्षेत्र कहा जाने लगा। भारतीय स्वतंत्रता के बाद इन्हें भाग-ग तथा घ राज्यों की श्रेणी में रखा गया। 7वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 1956 व राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत इन्हें केन्द्रशासित प्रदेशों के रूप में पुर्नगठित किया गया तथा बाद में कुछ केन्द्रशासित प्रदेशों को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया। हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश व गोवा प्रारम्भ में केन्द्र शासित प्रदेश थे लेकिन वर्तमान में ये सभी पूर्ण राज्य हैं। गोवा, दमन एवं दीव और दादरा नगर हवेली पर पुर्तगालियों का शासन था। इन सभी क्षेत्रों को पुर्तगालियों से वापस लेकर तथा पुडुचेरी के क्षेत्र को फ्रांसीसियों से वापस लेकर इन्हें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया।
जम्मू-कश्मीर (पुनर्गठन) अधिनियम, 2019
  • जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन से संबंधित विधेयक को 5 अगस्त, 2019 को गृह मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया गया जो अनुच्छेद 370 के संबंध में 1954 के आदेश को निरस्त करने से संबंधित था, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर के दो नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख का निर्माण किया गया। इस विधेयक को 9 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही इस विधेयक ने अधिनियम का रूप ले लिया। दोनों नए केंद्र शासित प्रदेश 31 अक्टूबर, 2019 से अस्तित्व में आ गए।
  • इसके साथ ही कश्मीर के लिए अलग से नागरिकता निर्धारित करने वाला अनुच्छेद-35(क) भी निष्प्रभावी हो गया। गृह मंत्री ने स्पष्ट किया की भविष्य में स्थिति सामान्य होते ही जम्मू-कश्मीर को पुनः पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा।
  • जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के उप-राज्यपालों के रूप में 31 अक्टूबर, 2019 को गिरीश चंद्र मुर्मू (जम्मू-कश्मीर) तथा रामकृष्ण मथुर (लद्दाख) ने शपथ ग्रहण की।
दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव का विलय
  • 9 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित किये जाने के बाद दादरा एवं नगर हवेली और दमन व दीव (केंद्र शासित प्रदेश का विलय) विधेयक, 2019 ने अधिनियम का रूप ले लिया। राज्य सभा द्वारा इसे 3 दिसंबर, 2019 को तथा लोकसभा द्वारा इसे 27 नवंबर, 2019 को पारित किया गया था। यह विधेयक अधिकारियों एवं कर्मचारियों के सार्थक उपयोग, प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने, कम व्यय करने, बेहतर सेवाएं मुहैया कराने एवं योजनाओं की बेहतर निगरानी सुनिश्चित करने की आवश्यकता के मद्देनजर दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों के विलय के उद्देश्य से लाया गया था।
मुख्य बिंदु
  • इस नवीन अधिनियम की धारा 2 के खंड (ए) द्वारा प्रदत्त शक्तियों इस के तहत ‘दमन एवं दीव‘ तथा ‘दादरा एवं नगर हवेली‘ नामक 2 केंद्र शासित प्रदेश 26 जनवरी, 2020 को एकल केंद्र शासित प्रदेश बन गए। इस केंद्रशासित प्रदेश के लिए लोकसभा में दो सीटें आवंटित हो जाएंगी।
  • इस नये केन्द्र शासित प्रदेश का नाम ‘दादरा एवं नगर हवेली और दमन व दीव‘ होगा और यह बॉम्बे हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में शासित होगा। उल्लेखनीय है कि, ‘दमन एवं दीव‘ तथा ‘दादरा एवं नगर हवेली‘ के विलय के बाद संघशासित राज्यों की संख्या घटकर 8 हो गई है।
  • क्षेत्रीय परिषदः क्षेत्रीय परिषदों के सम्बन्ध में मूल संविधान में कोई प्रावधान नहीं था। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा-15 में इसके सम्बन्ध में प्रावधान किए गए। वर्तमान में भारत में कुल 5 क्षेत्रीय परिषदें हैं। इनका गठन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। भारत के गृह मंत्री या राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत केन्द्रीय मंत्री परिषद का अध्यक्ष तथा सम्बंधित राज्यों के मुख्य मंत्री उपाध्यक्ष होते हैं, जो प्रतिवर्ष परिवर्तित होते रहते हैं। क्षेत्रीय परिषदें एवं राज्य व संघ राज्य क्षेत्र इस प्रकार हैं।

 क्षेत्रीय परिषदें

परिषद का नाम

मुख्यालय

शामिल राज्य एवं संघ राज्य क्षेत्र

उत्तर क्षेत्रीय परिषद

नई दिल्ली

हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, चण्डीगढ़ तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली।

मध्य क्षेत्रीय परिषद

इलाहाबाद

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड एवं छत्तीसगढ़

दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद

चेन्नई

आन्ध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु राज्य एवं पुडुचेरी संघ राज्य क्षेत्र

पूर्वी क्षेत्रीय परिषद

केलकाता

बिहार, झारखण्ड, पष्चिम-बंगाल, ओडिशा, असम, सिक्किम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नगालैण्ड तथा मिजोरम राज्य ।

 


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