साम्यावस्था, अम्ल, क्षार एवं लवण

साम्यावस्था, अम्ल, क्षार एवं लवण

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साम्यावस्था, अम्ल, क्षार एवं लवण

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

जब किसी बंद पात्र में एक द्रव वाष्पित होता है, तो उच्च गतिज ऊर्जा वाले अणु द्रव की सतह से वाष्प प्रावस्था में चले जाते हैं तथा अनेक जल के अणु द्रव की सतह से टकराकर वाष्प प्रावस्था से द्रव प्रावस्था में समाहित हो जाते हैं। इस प्रकार द्रव एवं वाम के मध्य एक गतिज साम्य स्थापित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप द्रव की सतह पर एक निश्चित वाष्प-दाब उत्पन्न होता है। जब जल का वाष्पन प्रारंभ हो जाता है, तब जल का वाष्प-दाब बढ़ने लगता है और अंत में स्थिर हो जाता है। ऐसी स्थिति में हम कहाँ हैं कि निकाय (System) में साम्यावस्था स्थापित हो गर्इ है। अम्ल-क्षारक सूचकं रंजक या रंजकों के मिश्रण होते हैं जिनका उपयोग अम्ल एवं क्षारक की उपस्थिति को सूचित करने के लिए किया जाता है। विलयन में \[{{H}^{+}}_{(aq)}\]आयन के निर्माण के कारण ही पदार्थ को प्रकृति अम्लीय होती है। विलयन में \[O{{H}^{-}}_{(aq)}\]आयन के निर्माण से पदार्थ की प्रकृति क्षारकीय होती है।

 

साम्यावस्था (Equlibrium)

वह अवस्था जिस पर उत्क्रमणीय अभिक्रियाओं की अग्र अभिक्रिया एवं पश्च अभिक्रिया की वेग (गति) के बराबर हो जाती है, उस अवस्था को साम्यावस्था कहते है। साम्यावस्था पर क्रियाकारको तथा उत्पादों की सान्द्रताएं स्थिर हो जाती हैं तथा समय के साथ बदलती नहीं हैं।

 

ठोस - द्रव साम्यावस्था- किसी पदार्थ के गलनांक बिंदु पर उसकी ठोस तथा द्रव प्रावस्थाओं के आपस मे बदते रहने की अवस्था है।

 

द्रव-गैस साम्यावस्था- किसी बन्द पात्र में किसी द्रव के वाष्पीकरण के दौरान उसकी वाष्प एवं द्रव प्रावस्थाओं के आपस मे बदलते रहने की अवस्था है।

 

रासायनिक साम्य - वह अवस्था जिसमे किसी उत्क्रमणीय अभिक्रिया की जिसमें अग्र एवं पश्च दोनों अभिक्रियाएं समान वेग से चलती रहती हैं। साम्यावस्था अभिक्रियाओं के प्रकार - समांगी साम्यावस्था अभिक्रियाएं एवं विषमांगी साम्यावस्था अभिक्रियाएं

 

साम्य स्थिरांक \[({{K}_{c}}):\,{{K}_{c}}=\frac{f\O ;kQy }{vfHkdkjd}\]

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रासायनिक अभिक्रिया के समीकरण को लिखने के तरीके पर साम्य स्थिरांक का मान निर्भर करता है। साम्य स्थिरांक का मान इस बात पर भी निर्भर करता है कि साम्यावस्था पर अभिकारकों क्रियाकला का सान्द्रण मोलध्लिटर में दर्शाया गया है या (गैसीय अभिक्रिया में आंशिक दाब के रूप में दर्शाया गया है।

 

द्रव्य-अनुपाती क्रिया का नियम- “स्थिर ताप पर, किसी का (पदार्थ) की क्रिया की दर (गति) उसके सक्रिय द्रव्यमान (active mass) के समानुपाती होती है और किसी रासायनिक अभिक्रिया की दर (गति), उसके क्रियाकारकों के सक्रिय द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती होती है” 

 

ली-शातेलिए का नियम - “यदि साम्यावस्था में रखे किसी निकाय (System) की ताप, सान्द्रता एवं दाब में परिवर्तन कर दिया जाए। साम्य इस प्रकार परिवर्तित होता है कि वह परिवर्तन से उत्पन्न हन वाले प्रभाव को समाप्त कर सके।

 

आयनिक साम्य (Ionic Equlibrium)

विद्युत-अपघटî - वे द्रव्य जो विलयन अवस्था अथवा या अवस्था में विद्युतधारा का प्रवाह कर सकते है, विद्युत अपच्या (Electrolyte) कहलाते हैं। प्रबल विद्युत-अपघटî- वे द्रव्य जो जलीय विलयन में पूर्णत (लगभग 100 प्रतिशत) आयनित हो जाते हैं, प्रबल विद्युत-अपच्या (Strong Electrolyte) कहलाते हैं। इनके जलीय विलयन चालकता उच्च रहती है।

उदाहरण - हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl), सलफ्यूरिक अम्ल (\[{{H}_{2}}S{{O}_{4}}\]), नाइट्रिक अम्ल (\[HN{{O}_{3}}\]), सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH), पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड (KOH), सोडियम क्लोराइड (NaCl) आदि।

 

दुर्बल विद्युत-अपघटî -वे द्रव्य जिनकी वियोजन की मात्रा (degree of Disociation) कम होती है, दुर्बल विद्युत अपघटî (Weak Electrolyte) कहलाते हैं। इनके जलीय विलयन की चालकता बहुत . ही कम होती है।

उदाहरण- ऐसेटिक अम्ल (\[C{{H}_{3}}COOH\]), फॉस्फोरिक अम्ल

(\[{{H}_{3}}P{{O}_{4}}\]), अमोनियम हाइड्रॉक्साइड (\[N{{H}_{4}}OH\]), अमोनियम कार्बोनेट \[\left[ {{\left( N{{H}_{4}} \right)}_{2}}C{{O}_{3}} \right]\]  आदि।

आयनन - किसी विद्युत अपघटî को जल या अन्य ध्रुवीय विलायक

(Polar Solvent) में विलेय करने पर वह स्वत: धनायनों एवं ऋणायनों ¾ वियोजित होने का गुण रखता है, यह प्रक्रिया आयनन (Ionisation) कहलाती हैं।

वियोजन की मात्रा (Degree of Disociation) - किसी द्रव्य (पदार्थ) की वियोजन की मात्रा (\[\alpha \]) उस द्रव्य के कुल अणुओं का वह भाग होता है, जो वियोजित होते हैं इसे वियोजन की मात्रा या विद्युत अपघटî के वियोजन की मात्रा कहते है।

\[\alpha =\frac{fo;ksftr v.kqvkas dh la[;k}{dqy v.kqvksa dh la[;k ;k fo;kstu ls iqoZ v.kqvksa dh la[;k}\]

\[=\frac{fo;ksftr eksyks dh la[;k}{eksyks dh la[;k}\]

ओस्टवाल्ड का तनुता नियम - दुर्बल विद्युत-अपघटî के वियोजन की मात्रा उसकी सान्द्रता के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है। इसे ओस्टवाल्ड का तनुता नियम कहते है।

अल्फा (\[\alpha \]) ¾ \[\sqrt{\frac{{{K}_{a}}}{C}}\]

साम्य स्थिरांक \[{{K}_{a}}\] अम्ल का आयनन स्थिरांक (Ionization Constant) या अम्ल का वियोजन स्थिरांक (Dissociation Constant) कहलाता हैं।

“स्थिर ताप पर, किसी दुर्बल विद्यत-अपघटî (AB) के वियोजन की मात्रा (\[\alpha \]) उसकी मोलर सान्द्रता के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात सान्द्रता के घटाने (तनुता बढ़ाने) पर बढ़ता है।”

 

\[\alpha =\sqrt{\frac{K}{C}=}\sqrt{K\times V}\] (जहां, K ¾ विद्युत अपघटî का वियोजन स्थिरांक, V ¾ वह आयतन है, जिसमें दुर्बल विद्युत अपघटî का एक मोल विलेय हो)

ओस्टवाल्ड के तनुता नियम की सीमाएं -ओस्टवाल्ड का तनुता नियम केवल दुर्बल विद्युत अपघटîों के वियोजन साम्य पर ही लागू होता है, क्योंकि प्रबल विद्युत-अपघटî विलेय होने पर आयनित होते हैं तथा आयनिक साम्य प्रदर्शित नहीं करते है।

 

सम-आयन प्रभाव - किसी दुर्बल विद्युत-अपघटî के विलयन में सम-आयन उपस्थित होने पर, दुर्बल विद्युत-अपघटî के वियोजन की मात्रा कम हो जाती है। इस प्रकार सम-आयन के कारण दुर्बल विद्युत अपघटî के वियोजन की मात्रा को कम करने वाले प्रभाव को सम-आयन प्रभाव (Combination Effect) कहते है।

उदाहरण - अमोनियम क्लोराइड (\[N{{H}_{4}}Cl\]) की उपस्थिति में अमोनियम हाइड्रॉक्साइड (\[N{{H}_{4}}OH\]) के वियोजन की मात्रा कम हो जाती है, क्योंकि \[N{{H}_{4}}OH\]एक दुर्बल विद्युत अपघटî है और \[N{{H}_{4}}^{+}\] सम-आयन है। विलेयता- सामान्यत: किसी द्रव्य को किसी ताप पर 100 ग्राम विलायक में विलेय अधिकतम मात्रा को विलेयता (Solubility) कहते है।

 

विलेयता गुणनफल (Solubility Product) “नियत ताप पर, किसी अल्प विलेय विद्युत-अपघटî के संतृप्त विलयन में उपस्थित आयनों की सान्द्रताओं का गुणनफल नियत (Constant) रहता है, जिसको विद्युत-अपघटî का विलेयता गुणनफल (\[{{K}_{sp}}\]) कहते हैं। “विलेयता गुणनफल का मान किसी विद्युत अपघटî के संतृप्त विलयन में उपस्थित आयनों की सान्द्रताओं के उचित घातांकों के गुणनफल के बराबर होता है।

 

अम्ल - ‘एसिड’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘Acidius’ से हुर्इ है, जिसका अर्थ है ‘खट्टा’ अम्ल (Acid) वे पदार्थ हैं, जो स्वाद में खट्टे होते हैं और यह नीले लिटमस पेपर का लाल रंग के पेपर को परिवर्तन कर देते हैं।

 

क्षार -ऐसे पदार्थ, जिनका स्वाद कड़वा होता है और जो स्पर्श करने पर साबुन जैसे लगते हैं, क्षार क्षारक (Base) कहलाते हैं। इन पदाथोर्ं की प्रकृति क्षारकीय कहलाती है। क्षारक लाल लिटमस पेपर का रंग नीला कर देते है।

 

अम्ल एवं क्षार की अभिक्रिया - अम्ल एवं क्षार की अभिक्रिया से लवण (Salt) तथा जल बनता है। इस प्रकार की अभिक्रिया को उदासीनीकरण अभिक्रिया कहते हैं। यह एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है। अम्ल \[+\] क्षारक \[\to \] लवण

 

जल लवण - उदासीनीकरण अभिक्रिया में बनने वाले आयनिक यौगिक को लवण (Salt) कहते हैं। लवण अम्लीय, क्षारीय अथवा उदासीन प्रकृति का हो सकता है।

प्रबल अम्ल \[+\] प्रबल क्षारक \[\to \] उदासीन लवण (PH मान 7) दुर्बल अम्ल \[+\] प्रबल क्षारक \[\to \] क्षारीय लवणं (PH मान 7 से अधिक)

प्रबल अम्ल \[+\] दुर्बल क्षारक \[\to \] अम्लीय लवण (PH मान 7 से कम)

 

तनुकरण - जल में अम्ल अथवा क्षार को मिलाने पर आयन

(\[{{H}^{+}}\] अथवा \[O{{H}^{-}}\]) की सांद्रता में, प्रति इकार्इ आयतन में कमी होने प्रक्रिया को तनुकरण (Dilution) कहते हैं।

 

अम्ल एवं क्षार का जलीय विलयन - अम्ल, जल की उपस्थिति में ही हाइड्रोजन आयन (\[{{H}^{+}}\]) प्रदान करते हैं, जो अम्लीयगुण दर्शाने के ,लिये आवश्यक है। अम्ल, जल की अनुपस्थिति में \[{{H}^{+}}\] आयन प्रदान नहीं करते है। हाइड्रोजन आयन मुक्त रूप से नहीं रह सकते, परन्तु ये जल के अणुओं के साथ मिलकर उपस्थित रह सकते हैं।

हाइड्रोक्लोरिक अम्ल \[+\] जल \[\to \] हाइड्रोनियम आयन \[+\] क्लोराइड आय

 \[HCl+{{H}_{2}}O\to {{H}_{3}}{{O}^{+}}+C{{l}^{-}}\]

·         क्षार, जल में हाइड्रॉक्साइड आयन (\[O{{H}^{-}}\]) प्रदान करते हैं।

\[NaO{{H}_{(g)}}\xrightarrow{tyh; ek/;e}N{{a}^{+}}_{(aq)}+O{{H}^{-}}_{(aq)}\]

सभी क्षार जल में विलेय नहीं होते है। जल में क्षार विलेय होने बनने वाले विलयन को क्षारीय विलयन कहते हैं। क्षार का स्पर्श साबुन की तरह, स्वाद कड़वा तथा प्रकृति संक्षारक होती है।

 

लवणों का जल-अपघटन - लवण के धनायन या ऋणायन या दोन जल के अणुओं के साथ अभिक्रिया करके विलयन को अम्लीय क्षारीय प्रकृति का बना देते हैं, इस प्रक्रिया, लवण का जल-अपघटन कहलाती है।

PH स्केल

हाइड्रोनियम आयन (\[{{H}_{3}}{{O}^{+}}\]) की मोलरता में सांद्रता को एक (लघुगुणकीय) मापक्रम (Logarithmic Scale) में सरलता से प्रदर्शित किया जाता है, जिसे चभ् स्केल कहा जाता है। “हाइड्रोजन आयन की सक्रियता \[{{H}^{+}}\]के ऋणात्मक 10 आधारीय लघुगुणकीय मान को चभ् कहते है”

किसी विलयन की अम्लता या क्षारीयता दर्शाने के लिए सन् 1909 में सोरेन्सन (Sorensen) ने एक नया पैमाना (Scale) विकसित किया जिसे PH पैमाना (PH Scale) कहते हैं।

 

शुद्ध जल का वियोजन बहुत ही कम होता है। लगभग 550 मिलियन (million) अणुओं में से 1 अणु ही वियोजित होता है।

 

pH, pOH तथा  pKw में संम्बंध-

\[PKw=pH+pOH=14,\,pH=pOH=7\,rFkk\, \left[ {{H}^{+}} \right]=\left[ O{{H}^{-}} \right]\]

 

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