रेडॉक्स अभिक्रियाएं एवं विद्युत रसायन

रेडॉक्स अभिक्रियाएं एवं विद्युत रसायन

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रेडॉक्स अभिक्रियाएं एवं विद्युत रसायन

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

“रासायनिक अभिक्रियाएं विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए प्रयुक्त की जा सकती हैं। विलोमत: विद्युत ऊर्जा का प्रयोग उन रासायनिक अभिक्रियाओं को क्रियान्वित करने के लिए किया जा सकता है जो स्वत: अग्रसारित नहीं होतीं।” विद्युत रसायन स्वत: प्रवर्तित रासायनिक अभिक्रियाओं में निर्गमित ऊर्जा से विद्युत उत्पादन एवं विद्युतीय ऊर्जा के स्वत: अप्रवर्तित रासायनिक परिवर्तनों में उपयोग का अध्ययन है। यह विषय सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक दोनों ही विचारों से उपयोगी है। विद्युत रसायन के लिए उपयोगी अभिक्रियाओं का एक महत्वपूर्ण वर्ग रेडॉक्स अभिक्रिया है, जिसमें ऑक्सीकरण तथा अपचयन साथ-साथ होते हैं। इसमें तीन प्रकार की संकल्पनाएं समाहित हैंक्लासिकल, इलेक्ट्रॉनिक तथा ऑक्सीकरण-संख्या। इन संकल्पनाओं के आधार पर ऑक्सीकरण, अपचयन, ऑक्सीकारक तथा अपचायक को समझाया गया है। संगत नियमों के अंतर्गत ऑक्सीकरण-संख्या का निर्धारण किया गया है।

 

क्सीकरण एवं अपचयन

प्राचीन अवधारणा (Classical Concept) के अनुसार,

ऑक्सीकरण- ‘‘किसी पदार्थ द्वारा ऑक्सीजन या ऋण-विद्युती तत्व ग्रहण करने अथवा हाइड्रोजन या धन-विद्युती तत्व त्याग करने को ऑक्सीकरण/उपचयन (Oxidation) कहते हैं।’’ ऑक्सीकरण में तत्व की संयोजकता में वृद्धि होती है।

उदाहरण- S +\[{{O}_{2}}\to S{{O}_{2}}\] (सल्फर का ऑक्सीकरण),

4HI +\[{{O}_{2}}\to 2{{I}_{2}}+2{{H}_{2}}O\] (HI का ऑक्सीकरण),

\[2FeCl+C{{l}_{2}}\to 2FeC{{l}_{3}}\] (फेरस क्लोराइड का ऑक्सीकरण)

 

अपचयन- “किसी पदार्थ द्वारा हाइड्रोजन या धन-विद्युती तत्व ग्रहण करने अथवा ऑक्सीजन या ऋण-विद्युती तत्व त्याग करने को अपचयन/अवकरण (Reduction) कहते हैं।” अपचयन से तत्व की संयोजकता में कमी होती है।

उदाहरण- \[C{{l}_{2}}+{{H}_{2}}\to 2HCl\] (क्लोरीन का अपचयन),

\[CuO+{{H}_{2}}\to Cu+{{H}_{2}}O\] (क्यूप्रिक ऑक्साइड का अपचयन),

\[2HgC{{l}_{2}}+SnC{{l}_{2}}\to HgC{{l}_{2}}+SnC{{l}_{4}}\] (\[HgC{{l}_{2}}\]का अपचयन)

 

इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त के आधार पर

क्सीकरण- ऑक्सीकरण में इलेक्ट्रॉनों की संख्या में कमी होती है या ऑक्सीकरण संख्या (धनात्मक संयोजकता) बढ़ती है। ऑक्सीकरण को डी-इलेक्ट्रोनेशन (De - electronation) भी कहते हैं।

\[X+{{e}^{-}}\to \]ऑक्सीकरण

 

अपचयन- अपचयन में इलेक्ट्रॉनों की संख्या में बढ़ती है या ऑक्सीकरण संख्या (धनात्मक संयोजकता) घटती है, अपचयन को इलेक्ट्रोनेशन (Electronation) भी कहते हैं।

\[X+{{e}^{-}}\to \]अपचयन

 

रेडॉक्स अभिक्रियाएं - ऑक्सीकरण एवं अपचयन प्रक्रम साथ-साथ होते है। अपचयन और ऑक्सीकरण की अभिक्रियाएं साथ-साथ पूर्ण होने वाली अभिक्रियाओं को रेडॉक्स अभिक्रियाएं (Redox Reaction) अथवा अपचयन-ऑक्सीकरण अभिक्रियाएं कहते हैं। इसमें इलेक्ट्रॉनों का स्थानान्तरण एक क्रियाकारक से दूसरे क्रियाकारक तक होता है।

 

जलीय विलयनों में रेडॉक्स अभिक्रियाएं दो प्रकार की होती हैं

(i) प्रत्यक्ष रेडॉक्स अभिक्रिया,          (ii) परोक्ष रेडॉक्स अभिक्रिया

 

क्सीकरण संख्या- “किसी यौगिक या आयन पर स्थित किसी परमाणु का ऑक्सीकरण अंक वह आवेश है जो उस परमाणु को कुछ काल्पनिक नियमों के आधार पर दिया जाता है।”

ऑक्सीकरण अंक यह दर्शाता है कि अणु या आयन में उपस्थित किसी परमाणु द्वारा कितने इलेक्ट्रॉन ग्रहण किये या कितने इलेक्ट्रॉन बाहर निकाले गये।

“ऑक्सीकरण में, ऑक्सीकरण अंक में वृद्धि तथा अपचयन में, ऑक्सीकरण अंक में कमी होती है।”

 

क्सीकारक

अपचायक

§  वह पदार्थ जो ऑक्सीजन या ऋण- विद्युती तत्व उपलब्ध कराये या धन-विद्युती तत्व हाइड्रोजन अलग करता है, ऑक्सीकारक या उपचाय (Oxidizing Agents or oxidants) कहलाता है। ऊपर लिखे उदाहरण में ऑक्सीजन, क्लोरीन ऑक्सीकारक की तरह व्यवहार करते हैं।

§  ऑक्सीकारक - वह  अभिकारक (reagent) जो दूसरे अभिकारक से  इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके उसे ऑक्सीकृत करता है और स्वयं अपचयित होता है, ऑक्सीकारक (Oxidiser) या ऑक्सीकारक अभिकर्मक (oxidizing agent) कहलाता है।

§  वह पदार्थ जो हाइड्रोजन या धन-विद्युती तत्व उपलब्ध कराये या ऋण-विद्युती तत्व या ऑक्सीजन अलग करता है, अपचायक/अवकारक(Reagent Agents /Reductants) कहलाता है। ऊपर दर्शाए गए उदाहरण में \[{{H}_{2}}\]अपचायक हैं।

§  अपचायक- वह अभिकारक जो दूसरे अभिकारक को अपचयित करता है तथा स्वयं ऑक्सीकृत हो जाता है, अपचायक (Reductor) या अपचायक अभिकर्मक 

(Redsucing agent) कहलाता है।

उदाहरण- \[2FeCl+SnC{{l}_{2}}\to 2FeC{{l}_{2}}+SnC{{l}_{4}}\]

इस अभिक्रिया में \[FeC{{l}_{3}}\] एक ऑक्सीकारक है और \[SnC{{l}_{2}}\] एक अपचायक है।

 

संयोजकता

ऑक्सीकरण अंक

§ संयोजकताइलेक्ट्रॉनों की वह संख्या है जो कोर्इ परमाणु प्रदान कर सकता है या ग्रहण कर सकता है अथवा उसका साझा कर सकता है।

§ संयोजकता एक पूर्णाक संख्या है

§ ऑक्सीकरण अंक वह आवेश होता है जो किसी परमाणु पर इलेक्ट्रॉनों की गणना से ज्ञात होता है।

§ ऑक्सीकरण अंकध नात्मक, ऋणात्मक, भिन्नांक (Fraction) भी हो सकता है।

 

विद्युत रसायन- विद्युत ऊर्जा और रासायनिक ऊर्जा का एक-दूसरे में परिवर्तन तथा उनके सम्बंध का अध्ययन किया जाता है, विद्युत्रसायन (Electrochemistry) कहलाती है।

 

विद्युतीय सेल - यह वह व्यवस्था या उपकरण है, जिसमें बाह्य स्रोत से विद्युत प्रवाहित करके रासायनिक अभिक्रिया पूर्ण करवार्इ जाती है या उपकरण में रासायनिक क्रिया होने से विद्युत उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा से बाहरी कायोर्ं में उपयोग किया जाता हैं। इनमें दो इलेक्ट्रोड या तो एक ही विद्युत-अपघटî (विलयन या पिघला हुआ पदार्थ) में या किसी प्रकार जुड़े हुए दो भिन्न भिन्न विद्युत अपघटकों में रखे होते हैं। इनके मुख्यत: दो प्रकार हैं- विद्युत अपघटनीय सेल विद्युत रासायनिक सेल।

 

डेनियल सेल- ऐसा विद्युत-रासायनिक सेल जिसमें जिंक धातु का इलेक्ट्रोड, जिंक आयनों में ऐनोड के रूप में तथा कॉपर धातु का इलेक्ट्रोड, कॉपर आयनों में कैथोड के रूप में कार्यरत हो।

 

इलेक्ट्रोड विभव- एक इलेक्ट्रोड इलेक्ट्रॉनों को मुक्त करता है

और दूसरा इलेक्ट्रोड उन्हें ग्रहण करता है। इलेक्ट्रॉनों को मुक्त करने अथवा ग्रहण करने की इस प्रवृत्ति को इलेक्ट्रोड विभव (Electrode Potential) कहा जाता है। उत्पन्न विभव का मान आयन के सान्द्रण पर भी निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में- विद्युत-रासायनिक सेल में ऑक्सीकरण एक इलेक्ट्रोड पर होता है तथा अपचयन दूसरे इलेक्ट्रोड पर।

 

(i) इलेक्ट्रोड का अपचयन विभव \[\propto \]आयनों का सान्द्रण

(ii) इलेक्ट्रोड का ऑक्सीकरण विभव \[\propto \] \[\frac{1}{vk;uksa dk lkUnz.k}\]

 

विद्युत-वाहक बल (E.M.F) सेल के दोनों इलेक्ट्रोडों का विभवान्तर जिसके कारण सेल में विद्युत-धारा बहती है। इसे सेल विभव (Cell Voltage) भी कहते हैं।

 

विद्युतीय चालक - ऐसे पदार्थ जिनमें से विद्युत धारा प्रवाहित हो सकती है, चालक (Conductor) अथवा विद्युतीय चालक कहलाते हैंय उदाहरण- धातुएं। जबकि ऐसे पदार्थ जिनमें से विद्युत धारा प्रवाहित नहीं हो सकती है, कुचालक (Non- Conductor) अथवा विद्युत रोधी (Electrical insulator) कहलाते हैं। उदाहरण- अधातुएं (कार्बन को छोड़कर), लकड़ी, कागज आदि। चालकों को पुन: दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

(a) विद्युत-अपघटनी चालक (b) धात्विक चालक,

 

विद्युत अपघटन- किसी विद्युत-अपघटî के जलीय विलयन या गलित अवस्था में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर, उसका विघटन होना विद्युत-अपघटन कहलाता है।

 

विद्युत-अपघटन के नियम - इन नियमों को फैराडे के विद्युत-अपघटन (laws of Electrolysis) के नियम भी कहते हैं।

(a) फैराडे का प्रथम नियम (Farzaday's First law)

“विद्युत-अपघटन के प्रक्रिया में किसी आयन का मुक्त द्रव्यमान, प्रवाहित विद्युत की मात्रा के समानुपाती होता है।”

अत: \[W\propto Q\] [ जहां, W ¾ मुक्त आयनों का द्रव्यमान, ¾ प्रवाहित विद्युत की मात्रा (कूलॉम में),

परन्तु \[Q=i\times t\]जहां, i ¾ ऐम्पियर में धारा, t ¾ समय (सेकण्ड),  

\[W\propto i\times t\] अथवा \[W=Z\times i\times t\] जहां, Z ¾ नियतांक, जिसे विद्युत रासायनिक तुल्यांक (ECE) कहते हैं।

\[\frac{W}{E}=\frac{it}{96,500}=\frac{Q}{96,500}=\frac{Q}{F},\] (1F ¾ 96,500 C)

 

(b) फैराडे का द्वितीय नियम- “जब विद्युत की समान मात्रा अलग अलग विद्युत-अपघटकों में से प्रवाहित की जाती है, तो इलेक्ट्रोडों पर मुक्त विभिन्न आयनों के द्रव्यमान अपने रासायनिक तुल्यांकों (तुल्यांकी भारों) के समानुपाती होते हैं।” यदि \[{{W}_{1}}\], \[{{W}_{2}}\], विभिन्न तत्वों के लवणीय विलयनों में से प्रवाहित विद्युत की निश्चित मात्रा द्वारा एकत्रित तत्वों के भार तथा \[{{E}_{1}}\]एवं \[{{E}_{2}}\]उनके तुल्यांकी भार हैं, तो

\[\frac{{{W}_{1}}}{{{W}_{2}}}=\frac{{{E}_{1}}}{{{E}_{2}}}=\frac{{{Z}_{1}}it}{{{Z}_{2}}it}(W=Z\,i\,t)\] \[\Rightarrow \frac{{{Z}_{1}}}{{{Z}_{2}}}=\frac{{{E}_{1}}}{{{E}_{2}}}\]

इस प्रकार, किसी तत्व का विद्युत रासायनिक तुल्यांक (Z), इसके तुल्यांक भार (E) के समानुपाती होता है। अर्थात् \[E\propto Z\] अथवा E ¾ F Z [ जहां, F ¾ फैराडे स्थिरांक (1F ¾ 96500 C)]

E ¾ 96500\[\times \]Z अर्थात विद्युतधारा की वह मात्रा, जो प्रत्येक तत्व का एक ग्राम तुल्यांक मुक्त करती है, एक फैराडे कहलाती है।

कूलॉम (C) - जब एक एम्पियर शक्ति की धारा 1 सेकण्ड के लिए प्रवाहित होती है, तो विद्युत-अपघटî द्वारा प्रवाहित विद्युत की मात्रा एक कूलॉम होगी। यह विद्युत की सबसे छोटी इकार्इ है।

कूलॉम ¾ एम्पियर \[\times \]सेकण्ड

96500 कूलॉम ¾ \[6.023\times {{10}^{23}}\] इलेक्ट्रॉन

1 कलॉम ¾ \[\,\frac{\,6.023\times {{10}^{23}}}{96,500}\]=\[6.28\times {{10}^{18}}\] इलेक्ट्रॉन •

अथवा 1 इलेक्ट्रॉनिक आवेश ¾ \[1.6\times {{10}^{-19}}\] कूलॉम

 

विशेष- 1 मोल इलेक्ट्रॉन (1 फैराडे अथवा 96500 C) के गुजारने से उत्पन्न होने वाले पदार्थ की मात्रा एक ग्राम तुल्यांक के बराबर होती है।

1 मोल इलेक्ट्रॉनों पर उपस्थित आवेश को एक फैराडे (96500 C) कहते हैं।

अर्थात् 96500 कूलॉम ¾ \[6.023\times {{10}^{23}}\] इलेक्ट्रॉन

अत: फैराडे की संख्या ¾ गुजारे गए इलेक्ट्रॉनों की संख्या \[6.023\times {{10}^{23}}\]

किसी पदार्थ के एक ग्राम परमाणु भार को कैथोड पर उत्पन्न करने के लिए आवश्यक फैराडे की संख्या, उसके धनायन पर आवेश के बराबर होती है। उदाहरण - कैथोड पर \[{{M}^{+}}_{(aq)}\]आयनों को उत्पन्न करने के लिए आवश्यक फैराडे की संख्या n है।

बैटरियां- कोर्इ भी बैटरी (वास्तव में इसमें एक या एक से अधिक सेल श्रेणीबद्ध रहते हैं) या सेल जिसे हम विद्युत के स्रोत के रूप में प्रयोग में लाते हैं, मूलत: एक गैल्वेनी सेल है जो रेडॉक्स अभिक्रिया की रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल देती है। किंतु बैटरी के प्रायोगिक उपयोग के लिए इसे हल्की तथा सुसंबद्ध होना चाहिए एवं प्रयोग में लाते समय इसकी वोल्टता में अधिक परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

बैटरियां मुख्यत: दो प्रकार की होती हैं -

1. प्राथमिक बैटरियां- इस सेल में जब रेडॉक्स अभिक्रिया होती रहती है तब तक सक्रिय रुप से कार्य करते है। इनमें अभिक्रिया केवल एक ही दिशा में सम्पन्न होती है। इन्हें पुन: आवेशित नहीं किया जा सकता। उदाहरण- शुष्क सेल, मर्करी सेल।

2. संचायक बैटरियां- इन्हें उत्क्रमणीय सेलध्संग्राहक सेल भी कहते है। द्वितीयक सेल में बाहरी विद्युत ऊर्जा स्त्रोत द्वारा सेल अभिक्रिया की दिशा परिवर्तित की जा सकती है एवं इन्हें पुन: आवेशित करते उपयोग में ला सकते है। उदाहरण - निकिल केडमियम संचायक सेल।

संक्षारण - यह एक विद्युत रासायनिक घटना है, जिसमें धातुएं वायुमण्डल की वाष्प (नमी) एवं ऑक्सीजन से क्रिया करके धीरे-धीरे अवांछनीय यौगिक में परिवर्तित हो जाती है। धातुओं के इस प्रकार से नष्ट होने की प्रक्रिया संक्षारण (Corrosion) कहलाती है। जैसे चांदी की सतह का मलीन होना, लोहे पर जंग लगना, कांसे एवं तांबे के बर्तनों पर हरे रंग की परत का बनना आदि।

 

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