द्रव्य की अवस्थाएं, विलयन व सतह रसायन

द्रव्य की अवस्थाएं, विलयन व सतह रसायन

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द्रव्य की अवस्थाएं, विलयन सतह रसायन

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

द्रव्य के कणों के मध्य अंतराणुक बल होते हैं। ये बल दो विपरीत आवेशित आयनों के मध्य उत्पन्न होने वाले स्थिर विद्युत बलों से। भिन्न होते हैं। साथ ही ये उन बलों को भी समाहित नहीं करते हैं, जो सहसंयोजक बंध में दो परमाणुओं को जोड़े रखता है। उष्मीय ऊर्जा तथा अंतराणुक अन्योन्य क्रिया के मध्य प्रतिद्वंदिता द्रव्य की अवस्था को निर्धारित करती है। द्रव्य के स्थूल गुण (जैसे- गैसों का व्यवहार, द्रवों तथा ठोसों के गुण और उनकी अवस्था में परिवर्तन, अवयवी कणों तथा उनके मध्य अन्योन्य क्रिया पर निर्भर करते हैं। पदार्थ के रासायनिक गुण उसकी अवस्था के परिवर्तन से प्रभावित नहीं होते हैं, परंतु उनकी क्रियाशीलता भौतिक अवस्था पर निर्भर करती है। सामान्य जीवन में हम बहुत कम शुद्ध पदाथोर्ं से परिचित होते हैं। अधिकांशत: ये दो या अधिक शुद्ध पदाथोर्ं के मिश्रण होते हैं। उनका जीवन में उपयोग तथा महत्व उनके संगठन पर निर्भर करता है।

 

किसी पदार्थ के रासायनिक गुणधर्म उसकी भौतिक अवस्था परिवर्तित होने से परिवर्तित नहीं होते हैं, परंतु रासायनिक अभिक्रिया की दर भौतिक अवस्था पर निर्भर करती है। कभी-कभी प्रयोगों के आंकड़ों की गणना करते समय द्रव्य की अवस्था के ज्ञान की आवश्यकता होती है। अत: पदार्थ की विभिन्न अवस्थाओं को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों को जानना एक रसायनज्ञ के लिए आवश्यक होता है। अंतरा आण्विक बलों की प्रकृति, आण्विक अन्योन्य क्रिया और कणों की गति पर ऊष्मीय ऊर्जा के प्रभाव को प्रारंभ में समझना आवश्यक है, क्योंकि इनके बीच संतुलन ही पदार्थ की अवस्था निर्धारित करता है।

 

(अंतराण्विक) बल - अन्नोन्य क्रियाकारी कणों (परमाणुओं तथा अणुओं) के मध्य आकर्षण और प्रतिकर्षण बलों को अंतराण्विक बल कहते हैं।

 

ठोस प्रावस्था (Solid State) - ठोस पदाथोर्ं में कठोर होने का एक विशिष्ट अतुलनीय गुण होता है, इनके अवयवी कणों का क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित रहने का एक नियमित क्रम होता है और उनमें द्रव गैस की तरह स्थानान्तरीय गति करने (Translatory Motion) का गुण नहीं होता है।

ठोसों के प्रकार - क्रिस्टलीय ठोस अक्रिस्टलीय ठोस

 

क्रिस्टलीय ठोसों का वर्गीकरण - बंध की प्रकृति (Nature of bond) के आधार पर इन्हें चार वगोर्ं में विभाजित किया गया है - (a) आयनिक क्रिस्टल, (b) आण्विक क्रिस्टल, (c) सहसंयोजी क्रस्टल (d) धात्विक क्रिस्टल।

 

क्रिस्टल जालक (Crystal Lattice) - त्रिविम आकाश (Three dimension space) में किसी क्रिस्टल के एककों (Units) की नियमित व्यवस्था को त्रिविम जालक (Space Lattice) या क्रिस्टल जालक (Crystal Lattice) कहते हैं।

 

जालक-बिन्दु: (Lattice Point) -किसी इकार्इ सेल में परमाणुओं, अणुओ या आयनों को व्यक्त करने वाले बिन्दुओं को जालक बिन्दु कहते हैं।

 

इकार्इ सेल - किसी क्रिस्टल जालक की सरलतम इकार्इ है। इकार्इ सेल की बार-बार त्रिविमीय पुनरावृत्ति होने से क्रिस्टल संरचना प्राप्त हो जाती है।

 

क्रिस्टल के दोष (Defect in Crystal) - यदि क्रिस्टल को बनाने वाले कण (परमाणु, अणु या आयन) एक क्रम में व्यवस्थित होते हैं, तो यह रचना एक आदर्श या सम्पूर्ण रचना कहलाती है, परन्तु कोर्इ भी क्रिस्टल रचना आदर्श नहीं होती, अत: प्रत्येक क्रिस्टल रचना में कुछ विचलन या अपूर्णता होती है, जिसे क्रिस्टल का दोष (Defect or imperfection in crystal) कहते हैं।

क्रिस्टल के दोष निम्न प्रकार के होते हैं- (1) रससमीकरणमितीय) दोष, (a) शॉटकी दोष (b) फ्रैंकल दोष, (2) अरस-समीकरणमितीय दोष, (3) अशुद्धि दोष

 

अशुद्धि दोष (Impurity Defect) - ठोसों के विद्युतीय गुण- चालकत्व अथवा सुचालक, अर्द्धचालक, विद्युतरोधी, लौह-चुम्बकीय पदार्थ, विपक्ष लौह-चुम्बकीय पदार्थ।

द्रव अवस्था (Liquid State)

द्रवों में अणु, गैस की तुलना में समीप होते हैं तथा उनके बीच परस्पर आकर्षण बल भी कार्य करता है। इसे नगण्य नहीं माना जा

 

सकता ठोसों की तुलना में द्रव में अणुओं का स्थान निश्चित नहीं होता तथा ही वे नियमित पैटर्न दिखाते हैं। अत: द्रव तो गैसो के समान पूर्णत: अव्यवस्थित हैं और ही ठोसों के समान पूर्ण नियमित हैं। द्रवों का व्यवहार गैसों तथा ठोसों के व्यवहार मध्यवर्ती है।

 

क्रिस्टलन ऊष्मा अथवा हिमन ऊष्मा (Heat of crystallisation or Heat of freezing)- एक मोल द्रव के उसी ताप पर एक मोल ठोस में परिवर्तित होने पर जितने कैलोरी ऊष्मा उत्सर्जित होती है वह उस द्रव की क्रिस्टलन ऊष्मा कहलाती है। गलन ऊष्मा तथा हिमन ऊष्मा के मानों में केवल चिन्ह का अन्तर होता है। आंकिक मान समान होते हैं।

 

गैसीय अवस्था (Gaseous State)

द्रव्य (पदार्थ) की तीनों अवस्थाओं में से गैसीय अवस्था का व्यवहार सरल तथा समरूप (Uniform) होता है। सभी गैसों का व्यवहार लगभग एक समान ही होता है तथा उनकी रासायनिक प्रकृति पर निर्भर नहीं होता।

गैसीय अवस्था को निम्नलिखित भौतिक गुणों द्वारा चारित्रित किया जा सकता है

§     गैसें अत्यधिक संपीडî होती हैं।

§     गैसें सभी दिशाओं में समान दाब प्रेषित करती हैं।

§     ठोसों तथा द्रवों की तुलना में गैसों का घनत्व अत्यंत कम होता है।

§     गैसों का आयतन तथा आकृति अनिश्चित होती है। ये

पात्र का आयतन तथा आकृति अपना लेती हैं। गैस किसी यांत्रिक सहायता के बिना प्रत्येक अनुपात में पूर्ण मिश्रित होती है।

 

गैसो के नियम

1.बॉयल का नियम (दाब-आयतन संबंध), 2 चार्ल्स का नियम (ताप-आयतन संबंध), 3. गै-लुसैक नियम (दाब-ताप संबंध), 4. डाल्टन का नियम

 

विलयन (Solution)

दो या दो से अधिक पदार्थो का संगामी मिश्रण वास्तविक विलयन या साधारणतया विलयन कहलाता है।

विलयन दो या दो से अधिक अक्रियाशील पदाथोर्ं का समांगी मिश्रण हाता है, जिसके संघटन को परिवर्तित किया जा सकता है।

 

विलेयता (Solubility)- स्थिर ताप पर विलेय की वह अधिकतम मात्रा जो 100 ग्राम विलायक (Solvent) में घुल सकती है

 

ठोस विलयन- दो या दो से अधिक धातुओं से बनी मिश्र धातुएं ठोस का ठोस में विलयन के अच्छे उदाहरण है।

 

सान्द्रता (सान्द्रण)- किसी विलयन की शक्ति विलयन के एक लीटर (1000 मिली.) में उपस्थित विलेय की ग्रामों में मात्रा होती है।

 

सान्द्रता के आधार पर विलयनों के प्रकार- 1. तनु विलयन 2 सान्द्र विलयन 3. संतृप्त विलयन 4. असंतृप्त विलयन 5. अतिसंप्तृत विलयन।

विलयन की शक्ति की इकार्इ ग्राम प्रति लीटर (\[g{{l}^{-1}}\]) होती है।

मानक विलयन (Standard Solution) वह विलयन है, जिसका सान्द्रण या शक्ति ज्ञात हो।

 

1. द्रव्यमान प्रतिशत (Mass percentage)- किसी विलयन का द्रव्यमान प्रतिशत द्रव्यमान के अनुसार विलेय के भागों की वह संख्या है, जो द्रव्यमान के अनसार विलयन के 100 भागों में विलेय रहती है। (साधारणतया विलेय का ग्रामों में वह द्रव्यमान जो 100 ग्राम विलयन में उपस्थित हो), इसे w/w से व्यक्त किया जाता है।

2. आयतन प्रतिशत (Volume percentage)- किसी विलयन का आयतन प्रतिशत आयतन के अनुसार विलेय के भागों की वह संख्या है, जो आयतन के अनुसार विलयन के 100 भागों में विलेय रहती है। (साधारणतया विलेय का उस में वह आयतना जो 100 उस विलयन में घुलित हो।) इसे v/v से व्यक्त किया जाता है।

विलयनों की सान्द्रता (सान्द्रण) को व्यक्त करने की विधियां-

1. नॉर्मलता, 2. मोलरता, 3. मोललता, 4. मोल प्रभाज, 5. फॉर्मलाता

 

अणुसंख्यक गुण - वे गुण जो विलेय की प्रकृति पर निर्भर होकर केवल विलेय कणों की संख्या पर निर्भर होते हैं, अणुसंख्यक गुण (Colligative properties) कहलाते हैं।

कुछ अणुसंख्यक गुण- (i) वाष्प दाब में अवनमन, (ii) क्वथनांक का उन्नयन, (iii) हिमांक का अवनमन, (iv) परासरण दाब।

 

विलयन का वाष्पदाब-

वाष्प दाब-किसी बन्द पात्र में द्रव के वाष्पीकरण से उत्पन्न दाब उसका वाष्प दाब कहलाता है।

1. वाष्पशील द्रवों के द्विअंगी विलयन के लिए राउल्ट का नियम- किसी निश्चित ताप पर, दो या अधिक वाष्पशील एवं मिश्रणीय द्रवों के विलयन में प्रत्येक घटक का वाष्पदाब उस घटक के मोल प्रभाज के समानुतापी होता है।

2. अवाष्पशील विलेय वाले विलयन के लिए राउल्ट का नियम-’अवाष्पशील विलेय वाले विलयन का वाष्पदाब विलायक के मोल प्रभाज के सीधे समानुपाती होता है

 

आदर्श तथा अनादर्श विलयर्न-

1. आदर्श विलयन (Ideal solution) - वे विलयन, जो सान्द्रण एका ताप के सम्पूर्ण परास (Range) में राउल्ट के नियम का पालन करते हैं तथा जिनके बनने पर एन्थैल्पी अथवा आयतन में कोर्इ परिवर्तन नहीं होता, आदर्श विलयन कहलाते है।

2. अनादर्श विलयन (Non&ideal solution) - वे विलयन, जो राउल्ट के नियम का पालन नहीं करते तथा जिनके बनने पर एन्थैल्पी और आयतन, दोनों में परिवर्तन होता है, अनादर्श विलयन (Non&ideal solutions) कहलाते हैं।

 

स्थिर क्वाथी मिश्रण अथवा एजियोट्रोप

द्रवों का ऐसा मिश्रण जो शुद्ध द्रव के समान एक स्थिर (निश्चित) ताप पर उबलता है, इसकी वाष्प एवं द्रव दोनों प्रावस्थाओं का संघटन समान होता है, स्थिर क्वथनांकी मिश्रण कहलाते हैं।

क्वथनांक में उन्नयन- विलयन एवं विलायक के क्वथनांको का अंतर क्वथनांक का उन्नयन कहलाता है। हिमांक का अवनमन- विलयन के लिए ठोस एवं द्रव अवस्था में साम्यावस्था का मान शुद्ध विलायक की तुलना में निम्न ताप पर प्राप्त होता है। परिणामस्वरूप विलयन के हिमांक में कमी आती है जिसे हिमांक का अवनमन कहते हैं।

परासरण- शुद्ध विलायक या तनु विलयन से सान्द्र विलयन की ओर अर्द्धपारगम्य झिल्ली में से होकर, विलायक के अणुओं का स्वत: प्रवाह, परासरण (Osmosis) कहलाता है। रासरण दाब ‘‘परासरण की क्रिया से उत्पन्न वह अतिरिक्त द्रव चौतिक दाब जो विलायक का विलयन में प्रवेश रोक दे, परासरण दव कहलाता है।’’ pi=hdg

अतिपरासरी विलयन- वह विलयन जिसका परासरण दाब किसी देये गये अन्य विलयन के परासरण दाब से अधिक होता है, जतेपरासरी (Hypertonic) विलयन कहलाता है।

 

वाण्ट हॉफ गुणांक या कारक - किसी पदार्थ के विलयन में किसी अणुसंख्यक गुण के प्रेक्षित मान (या असामान्य मान) एवं सामान्य -- (परिकलित) के अनुपात को वाण्ट हॉफ गुणांक कहते हैं।)

\[i  =\frac{lkekU; eksyj nzO;eku}{vlkekU;eksyj\,nzO;eku}\]

पृष्ठ रसायन (Surface Chemistry)

पृष्ठ रसायन- इसके अन्तर्गत ठोसों के पृष्ठ सतह के स्वभाव एवं इनके पृष्ठ सतह पर होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है।

अधिशोषण- अधिशोषण वह घटना है, जिसमें किसी ठोस की सतह या अन्तरापृष्ठ पर द्रव या गैस का सान्द्रण बढ़ जाता है जबकि ठोस के भीतर सान्द्रण नहीं बढ़ता है।

अधिशोषक (Adorbent) अधिशोष्य (Adsorbate) -

वह पदार्थ जिसकी सतह पर अधिशोषण की घटना होती है, वह अधिशोषक कहलाता है तथा वह पदार्थ जो कि अधिशोषित किया जाता है, अधिशोष्य कहलाता है।

उत्प्रेरक- वे बाहरी पदार्थ जो किसी रासायनिक क्रिया के वेग के परिवर्तित कर देते हैं, परन्तु स्वयं क्रिया के अन्त में भार तथा उनावट (रासायनिक रूप) में अपरिवर्तित रहते हैं, उत्प्रेरक (Catalyst) कहलाते हैं। उत्प्रेरक की सहायता से रासायनिक क्रियाओं के वेग में वर्तन होने की घटना को उत्प्रेरण (Catalysis) कहते हैं।

कोलॉइड एक विषमांगी तन्त्र (Heterogenous System) होते हैं जिनमें से एक परिक्षिप्त प्रावस्था (dispersed Please) होती। है जिनमें बारीक कण दूसरे पदार्थ में रहते हैं जिन्हें परिक्षेपण माध्यम (Dispersion Medium) कहते हैं।

कोलॉइडी विलयन ¾ परिक्षिप्त प्रावस्था - परिक्षेपण माध्यम कोलॉइडी अवस्था (ColloidalState) - यह निलम्बन (Suspension) कणों एवं विलेय कणों के आकार के बीच की अवस्था है जो विलयन में उपस्थित होते हैं।

कोलॉइडी कणों का आकार होता है- 1 nm  से 1000 nm, 10 Å से 100 Å, \[{{10}^{3}}\]pm \[{{10}^{5}}\]Pm,

कोलॉइडी विलयन एवं कोलॉइडों की प्रावस्थाएं- कोलॉइडी विलयन एक द्विप्रावस्था एवं विषमांगी तंत्र (Biphasic and heterogeneous system) है। जिनमें दो प्रावस्थाएं होती हैं। कोलॉइडी विलयन ¾ परिक्षिप्त प्रावस्था + परिक्षेपण माध्यम

परिक्षिप्त प्रावस्था (Dispersed phase) में \[{{10}^{-7}}\] से \[{{10}^{-4}}\]आकार के कोलॉइडी कण होते हैं, जबकि परिक्षेपण माध्यम में \[{{10}^{-7}}\]cm से छोटे आकार के विलायक के अणु होते हैं। परिक्षिप्त प्रावस्था को आंतरिक या असतत् प्रावस्था कहते हैं तथा परिक्षेपण माध्यम को बाह्य या सतत् प्रावस्था कहते हैं। ये परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम अलग-अलग भौतिक अवस्था जैसे- ठोस, द्रव या गैस के हो सकते हैं।

संगुणित कोलॉइड या मिसेल (Associated colloids or Micelles)- वे यौगिक जो कम सान्द्रता पर सामान्य प्रबल विद्युत-अपघटî की भांति व्यवहार करते हैं किन्तु उच्चतर सान्द्रताओं पर अनेक कणों के आपस में जुड़ने के कारण कोलॉइड अवस्थाके गुण प्रदर्शित करते हैं। ऐसे कणों के समूह को मिसेल कहते हैं तथा ऐसे पदाथोर्ं को संगुणित कोलॉइड (Associated colloids) कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, द्रव-स्नेही तथा द्रव-विरोधी भाग युक्त अनेक अणुओं या आयनों के समूह से बने कोलॉइडी आकार के कणों को मिसेल कहते हैं। उदाहरणार्थ-साबुन, डिटरजेन्ट आदि। मिसेल सामान्यत: उन अणुओं द्वारा बनते हैं जिनमें द्रव-स्नेही एवं द्रव-विरोधी दोनों भाग होते हैं। ऐसे अणुओं की पृष्ठ सक्रिय अणु (Surface active molecules or surfactant) कहते हैं।

कोलॉइडी विलयन बनाने की विधियां - कोलॉइड परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के बीच अन्त: क्रिया से बनते हैं, अत: इसके आधार पर कोलॉइड दो प्रकार के होते हैं- द्रव-स्नेही कोलॉइड के बनाने की विधि (Method of preparation of lyophilic colloid) - ऐसे पदार्थ जो परिक्षेपण माध्यम के सम्पर्क में आने पर शीघ्रता से कोलॉइडी विलयन बनाते हैं, द्रव-स्नेही कोलॉइड कहलाते हैं। ऐसे पदाथोर्ं को उपयुक्त परिक्षेपण माध्यम के साथ हिलाकर आसानी से बनाए जा सकते हैं। ये कोलॉइडी विलयन स्थायी होते हैं। उदाहरण- स्टार्च, प्रोटीन, गोंद, जिलेटिन, हीमोग्लोबिन आदि।

द्रव-विरोधी कोलॉइड के बनाने की विधियां (Methods of preparation of lyophobic colloid)- ऐसे पदार्थ जो परिक्षपण माध्यम के सम्पर्क में आने पर या हिलाने से कोलॉइडी विलयन नहीं बनाते, द्रव-विरोधी कोलॉइड कहलाते हैं। इन पदाथोर्ं के कोलॉइडी विलयन बनाने के लिए विशेष विधियां प्रयुक्त की जाती हैं जो निम्न हैं-

कोलॉइडी विलयनों का शोधन- अशुद्धियों को आवश्यक सीमा तक कम करने के लिए प्रयुक्त प्रक्रम को कोलॉइडी विलियनों का शुद्धिकरण कहते हैं। कोलॉइडी विलयनों का शुद्धिकरण निम्नलिखित विधियों द्वारा किया जाता है। (I) इलेक्ट्रोडायलिसिस, (II) डायलिसिस (III) अतिसूक्ष्म छनन।

 

विद्युत कण संचलन- कोलॉइडी कणों पर आवेश की उपस्थिति विद्युत कण संचलन प्रयोग से संपुष्ट होती है। जब एक कोलॉइडी विलयन में डूबे हुये दो प्लैटिनम इलैक्ट्रोडों पर विद्युत विभव लगाया जाता है तो कोलॉइडी कण एक अथवा दूसरे इलैक्ट्रोड की ओर गमन करते हैं। विद्युत विभव के प्रभाव में कोलॉइडी कणों का संचलन विद्युत कण संचलन कहलाता है। धनात्मक आवेशित कण कैथोड की ओर जबकि ऋणात्मक आवेशित कण ऐनोड की ओर गति करते हैं।

विद्युतकण संचलन का महत्व-

(i) विद्युत कण संचलन का उपयोग किसी कोलॉइडी विलयन को स्कन्दित करने में किया जा सकता है

(ii) कोलॉइडी कणों पर आवेश के पहचान के लिये भी इसका उपयोग होता है।

(iii) किसी कोलॉइडी मिश्रण में विभिन्न कोलॉइडी कणों की गतिशीलता भिन्न-भिन्न होने के कारण इसका उपयोग इनके पृथक्करण में भी किया जा सकता है। जैसे-प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट न्यूक्लिक अम्लों का पृथक्करण इसके द्वारा किया जा सकता है।

 

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