गाँधी युग

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गाँधी युग

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

अप्रासंगिकता के इस दौर में, पल-पल बदलने वाली दुनिया में, अगर वाकर्इ कुछ प्रासंगिक है, तो वह सिर्फ और सिर्फ गांधी के विचार हैं। दक्षिण अफ्रीका में जिस आजादी की नींव उन्होंने रखी, उसको उन्होंने भारत में सींचा और आंखों के सामने फलीभूत भी किया। जब यह सब हो रहा था, तब दुनिया दूसरे विश्व युद्ध के दंश झेल रही थी। जरा फर्क देखिए. उस दूसरे विश्व युद्ध में हथियारों द्वारा मची भीषण तबाही का और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में अहिंसा के हथियार का। बापू ने कहा था- एक व्यक्ति को परिवार की भलार्इ के लिए, एक परिवार को समाज की भलार्इ के लिए, एक समाज को नगर की भलार्इ के लिए, एक नगर को राज्य की भलार्इ के लिए और एक राज्य को देश की भलार्इ के लिए उत्सर्ग हो जाना चाहिए। अगर जरूरत पड़े, तो एक देश को दुनिया की भलार्इ के लिए उत्सर्ग हो जाना चाहिए। ये थे महात्मा गांधी के विचार। समय के साथ नर्इ-नर्इ विचारधाराएं पनपी और उन सबने समाज की सोच-समझ को नए मतलब भी दिए। इनसे देश और दुनिया में कर्इ बड़े बदलाव हुए. सार्थक और निरर्थक, दोनों। आइए, गांधी के विचारों से सीख लेकर विश्व शांति के मार्ग में हम सब दीये की तरह झिलमिलाएं और उजाला करें

 

 

गांधी युग

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। गांधी जी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह - व्यापक सविनय अवज्ञा के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव संपूर्ण अहिंसा पर रखी गर्इ थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता के प्रति आंदोलन के लिए प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है।

  • महात्मा- महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है जिसे सबसे पहले रवीन्द्रनाथ टेगौर ने प्रयोग किया था और भारत में उन्हें बापू के नाम से भी याद किया जाता है ।
  • दक्षिण अफ्रीका जाना- 1893 र्इ. में दक्षिण अफ्रीका जा कर गांधी ने रोजगार, अहिंसक, सविनय अवज्ञा, प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका, में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष हेतु प्रयुक्त किया। 9 जनवरी 1915 में उनकी वापसी के बाद उन्होंने भारत में किसानों, कृषि मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्याधिक भूमि कर और भेदभाव के विरूद्ध आवाज उठाने के लिए एकजुट किया।

 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए संघर्ष

  • सत्याग्रह- सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य के लिये आग्रह करना होता है। सत्याग्रह, उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों के अधिकारों की रक्षा हेतु प्रारम्भ किया गया था। इसका कारण केवल काले-श्वेत के बीच भेदभाव था।
  • चंपारण सत्याग्रह- गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में 1917 र्इ. में चंपारण सत्याग्रह हुआ। राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। अंग्रेज बागान मालिकों ने चम्पारण के किसानों से एक अनुबन्ध करा लिया था, जिसमें नील की खेती करना अनिवार्य था। नील के बाजार में गिरावट आने से कारखाने बन्द होने लगे। अंग्रेजों ने किसानों की मजबूरी का लाभ उठाकर लगान बढ़ा दिया। इसी के फलस्वरूप विद्रोह प्रारम्भ हो गया। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के इस अत्याचार से चम्पारण के किसानों का उद्धार कराया। इसका परिणाम यह हुआ कि बिहार वालों के लिए वे देव तुल्य बन गये। यहां उनके साथ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह नारायण सिन्हा, जनकधारी प्रसाद और ब्रजकिशोर प्रसाद आन्दोलन के प्रमुख नेता थे।

 

  • खेड़ा सत्याग्रह
  • महात्मा गांधी द्वारा 1918 र्इ. में खेड़ा सत्याग्रह प्रारम्भ किया गया था। ‘चम्पारण सत्याग्रह’ के बाद गांधीजी ने 1918 र्इ. में खेड़ा (गुजरात) के किसानों की समस्याओं को लेकर आन्दोलन शुरू किया।
  • खेड़ा में गांधीजी ने अपने प्रथम वास्तविक ‘किसान सत्याग्रह’ की शुरुआत की थी। खेड़ा सत्याग्रह गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह (आन्दोलन) था।
  • यह आंदोलन महात्मा गांधी की प्रेरणा से इंदुलाल याज्ञनिक वल्लभ भार्इ पटेल एवं अन्य नेताओं के नेतृत्व में हुआ था।

 

  • अहमदाबाद मिल हड़ताल-
  • अहमदाबाद मिल सत्याग्रह गांधी जी का प्रथम भूख हड़ताल था जो कि 1918 र्इ. में हुआ था।
  • अहमदाबाद में प्लेग फैला हुआ था, मजदूर शहर छोड़ कर जा रहे थे, मिल का काम प्रभावित हो रहा था तब मिल मालिकों ने प्रोत्साहन हेतु प्लेग बोनस का प्रावधान किया परंतु जब प्लेग की महामारी समाप्त हो गयी तो मिल मालिकों ने प्लेग बोनस भी वापस ले लिया। मजदूर बोनस की मांग कर रहे थे।
  • गांधी जी ने मजदूरों की बात सुनी और उन्हें 50% बोनस की जगह 35% बोनस की मांग करने को कहा, गांधी जी ने भी भूख हड़ताल की। अंतत: हड़ताल समाप्त कर मामला ट्रिब्यूनल को सौप दिया गया। ट्रिब्यूनल ने फैसला मजदूरों के पक्ष में सुनाया।

 

  • रौलेट ऐक्ट (1919 र्इ.)
  • प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार को डर था कि क्रांतिकारी नेताओं से प्रभावित होकर भारतीय क्रांतिकारी भी सरकार के तख्ते को उखाड फेंकने का प्रयास करेंगे। 1917 र्इ. में जस्टिस रौलेट की अध्यक्षता में सरकार ने रौलेट ऐक्ट बनाया। ऐक्ट की व्यवस्थाएं बहुत कठोर थीं। इसके अंतर्गत सरकार किसी भी संदेहात्मक व्यक्ति को मुकदमा चलाए बिना नजरबंद कर सकती थी। साथ ही उस पर गुप्त रूप से मुकदमा चलाकर उसे दंडित कर सकती थी। किसी भी व्यक्ति के निवास तथा उसकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जा सकता था।
  • फरवरी, 1919 में जब रौलेट ऐक्ट पास हुआ, पूरे भारत ने एक स्वर से इस विधेयक का विरोध किया। उदारवादियों ने भी इसका विरोध किया।
  • गांधीजी ने कहा कि यदि रौलेट एक्ट की सिफारिशों को व्यावहारिक रूप दिया गया तो मैं सत्याग्रह शुरू कर दूंगा।

किंतु सरकार ने गांधीजी की उपेक्षा करते हुए 21 मार्च 1919 को रौलेट ऐक्ट को लागू कर दिया। गांधीजी ने इसे काले कानून की संज्ञा दी, साथ ही एक्ट का विरोध करने के लिए 6 अप्रैल 1919 की तिथि निश्चित की। निश्चित तिथि को देश में हड़तालें और जन सभाएं हुर्इं।

 

जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड

  • रौलेट एक्ट के विरुद्ध 6 अप्रैल 1919 को देशव्यापी हड़ताले हुर्इ। दिल्ली में यह हड़ताल 30 मार्च को आयोजित की गर्इ, जिससे पुलिस और हड़तालियों के बीच मुठभेड़ हो गर्इ। मुठभेड़ में आठ व्यक्ति मारे गए। गांधी जी को दिल्ली पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें मुम्बर्इ भेज दिया गया।
  • अमृतसर में डॉ. किचलू तथा डॉ. सत्यपाल को गिरफ्तार कर किसी अज्ञात स्थान पर भेज दिया गया। इस खबर ने अमृतसर के लोगों में गहरी उत्तेजना पैदा कर दी।
  • 13 अप्रैल 1919 को राजनैतिक नेताओं ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया। हजारों की संख्या में लोग एकत्र होने लगे। सेना के अधिकारियों ने उन्हें रोकने की कोर्इ कोशिश नहीं की। शांतिपूर्वक सभा चल रही थी कि जनरल डायर 200 भारतीय और 50 अंग्रेज सिपाहियों को लेकर बाग में घुस आया। उसने बिना किसी प्रकार की चेतावनी दिए निहत्थी जनता पर गोलियां बरसानी शुरु कर दीं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मृतकों की कुल संख्या 397 और घायलों की मात्र 1200 थी। किंतु वास्तविक रूप से इसमें कुल 1000 लोगों की मृत्यु हो गर्इ।

 

हंटर कमेटी की रिपोर्ट से उत्पन्न असंतोष  

  • पंजाब सरकार के अत्याचारों की चारों तरफ घोर निंदा की गर्इ तथा देश के कोने-कोने से इसकी जांच की मांग की गर्इ। फलस्वरूप सरकार ने विवश होकर लार्ड हंटर की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की।
  • हंटर समिति ने अपने प्रतिवेदन में सरकार के अत्याचारों पर पर्दा डालने की चेष्टा की। रिपोर्ट में कहा गया कि जनरल डायर ने बिल्कुल उचित से कार्य किया, किन्तु उसने जिन साधनों का प्रयोग किया, वे अनुचित थे। फलस्वरूप सरकार ने जनरल डायर को भारत सरकार की नौकरी से अलग कर दिया। इन सब बातों का गांधी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और उनकी विचारधारा ने एक क्रांतिकारी मोड़ लिया।

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