प्रत्यावर्ती धारा एवं धारा के चुम्बकीय प्रभाव

प्रत्यावर्ती धारा एवं धारा के चुम्बकीय प्रभाव

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प्रत्यावर्ती धारा एवं धारा के चुम्बकीय प्रभाव

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

                प्रत्यावर्ती धारा परिपथ ऐसे अभिलक्षण प्रदर्शित करता है, जिनका उपयोग दैनिक जीवन में काम आने वाली अनेक युक्तियों में किया जाता है। उनके अनेक प्रयोगों से हम लाभ उठाते हैं, उनका हम इस अध्याय में अध्ययन करेंगे। विद्युत धारा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है जिसको जेन्स क्लार्क मैक्सवेल (1831-1879) ने समीकरणों द्वारा समझाया है जिससे विद्युत चुम्बकत्व के आधार को समझाया जा सकता है।

 

            18वीं शताब्दी के प्रारंभ में इटली के दो वैज्ञानिकों डोमीनोको एवं रोमोग्नासी ने यह पाया कि जब किसी चालक तार में धारा प्रवाहित की जाती है तो तार के पास रखी चुम्बकीय सुई विक्षेपित होती है, लेकिन इस घटना पर तत्काल कोई कार्य नहीं हुआ। सन 1820 में Danish वैज्ञानिक ऑरस्टेड ने प्रयोग किए तथा यह बताया कि जब किसी चालक तार में से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो चालक तार के चारों और चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है और इसी कारण चुम्बकीय सुई विक्षेपित होती है।

           

                चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field) किसी धारावाही चालक अथवा चुम्बक के चारों ओर वह क्षेत्र जिसमें चुम्बकीय प्रभाव अनुभव किया जा सकता है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है।

            चुम्बकीय क्षेत्र \[\left( {\vec{B}} \right)=\frac{F}{q.v}\]       जहां B = चुम्बकीय क्षेत्र,

                                                                F = चुम्बकीय बल,

                                                q = आवेश, v = वेग

           

            [1 टेसला = \[{{10}^{4}}\] गॉस = 1 वेबर/मीटर]

            B का मात्रक- कि.ग्रा.-सेकेंड2 एम्पियर-1 भी होता है।

            B का विमीय सूत्र = \[\left[ {{M}^{1}}{{L}^{0}}{{T}^{-2}}{{A}^{-1}} \right]\] होता है।

 

                बीओ-सावर्त नियम (Biot-Savart's Law):- फ्रांस के वैज्ञानिकों बीओ तथा सावर्त ने 1820 . में धारामापी चालक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का मान ज्ञात करने के लिए एक व्यंजक प्रदान किया।

                        \[\]

                इसे लाप्लास का नियम भी कहते हैं।

            \[{{\mu }_{0}}\]चुम्बकीय शीलता या पारगम्यता कहते हैं।

            \[{{\mu }_{0}}\] का मात्रक- हेनरी/मीटर तथा

            \[{{\mu }_{0}}=4\pi \times {{10}^{-7}}\] होता है।

Km = \[{{10}^{-7}}\]वेबर/एम्पियर-मीटर होता है। पारगम्यता का विमीय सूत्र \[\left[ {{M}^{1}}{{L}^{1}}{{T}^{-2}}{{A}^{-2}} \right]\] होता है।

 

परिनालिका (Solenoid)

जब किसी बेलनाकार कुचालक नालिका (चीनी मिट्टी या कार्ड बोर्ड) पर, उसकी लम्बाई के अनुदिश एक समान रूप से विद्युत रुड तांबे के तार कुण्डलिनी (Helix) के रूप में लपेटें जायें तब यह व्यवस्था परिनालिका या सोलेनाइड कहलाती है। परिनालिका में प्रत्येक फेरे का तल परिनालिका की अक्ष के लगभग लंबवत माना जा सकता है। परिनालिका के भीतर चुम्बकीय बल रेखायें समान्तर तथा इनकी दिशाएं लम्बाई के अनुदिश होती है। अतः परिनालिका के बाहर चुम्बकीय क्षेत्र का मान नगण्य होता है।

 

प्राकृतिक चुम्बक (Natural Magnet)- प्राचीन काल में एशिया माइनर के मैग्नेशिया नामक स्थान (अब यह पश्चिमी टर्की का भाग है और इसका नाम अब मनीसा है) पर एक ऐसा अयस्क प्राप्त किया गया जो लोहे, निकिल कोबाल्ट इत्यादि के टुकड़ो को आकर्षित करने का गुण रखता था। इस अयस्क को, खोज के स्थान के नाम पर मैग्नेटाइट \[\left( F{{e}_{3}}{{O}_{4}} \right)\] कहा गया। इसे प्राकृतिक चुम्बक कहते हैं। चीन ने इसे लोड स्टोन कहा। इसे स्वतंत्रापूर्वक लटकाया जाये तो यह सदैव उत्तर दक्षिण दिशा में ठहरता है।

 

कृत्रिम चुम्बक (Artifical Magnet)- कृत्रिम ढंग से मानव निर्मित चुम्बक कृत्रिम चुम्बक कहलाता है। यह अधिकांशतः लोहे, इस्पात निकील की सहायता से बनाया जाता है।

 

स्थाई चुम्बकत्व (Permanent Magnet)- जब चुम्बक कठोर स्टील तथा कुछ चुम्बकीय मिश्र-धातुओं जैसे कि एलनिको (AI+, Ni+, CO) कोबाल्ट स्टील, टंगस्टन से बनाते हैं तो ये अनिश्चित काल तक चुम्बकीय गुण प्रदर्शित करते हैं। ऐसे चुम्बक स्थाई चुम्बक कहलाते हैं। जैसे- ऐल्कोमास या टाइकोनाल की सहायता से स्थाई चुम्बक बनाते हैं।

 

अस्थाई चुम्बक (Temporary Magnet)- ये नरम स्टील या लोहे के बने होते हैं। जब तक इन पर चुम्बकीय बल कार्य करता है ये चुम्बक की तरह कार्य करते हैं। ये म्यूधातु या स्टेलोड की सहायता से बनाये जाते हैं।

चुम्बकीय धुओं के मध्य कार्यरत बल (कूलाम का नियम) -

            \[F=\frac{K.{{m}_{1}}.{{m}_{1}}}{{{r}^{2}}}\]        जहां [K = चुम्बकीय बल नियतांक है।]

            \[{{m}_{1}}{{m}_{2}}\]= दो चुम्बकीय धुर्वो की दूरी प्रबलताएं तथा उनके मध्य की दूरी ज्ञात है।

            SI पद्धति में \[K=\frac{{{\mu }_{0}}}{4\pi }\] होता है। अत: K= \[{{10}^{-7}}\] न्यूटन/एम्पियर भी होता है। \[{{\mu }_{0}}\]= निर्वात में चुम्बकीय पारगम्यता

                \[F=\left( \frac{{{\mu }_{0}}}{\mu .\pi } \right)\times \frac{{{m}_{1}}.{{m}_{2}}}{{{r}^{2}}}\]

            (यह कूलॉम का चुम्बकीय बल का नियम भी कहलाता है।)

 

             चुम्बकीय द्विध्रुव (Magnetic Dipole) - चुम्बकीय द्विध्रुव में दो विजातीय ध्रुव होते हैं। जिनकी ध्रुव प्रबलता समान होती है तथा एक सीमित दूरी पर स्थित होते हैं। छड़ चुम्बक, धारा लूप, चुम्बकीय सुई आदि चुम्बकीय द्विध्रुव के उदाहरण हैं।

 

            विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction)

                परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा विद्युत वाहक बल अथवा विद्युत धारा उत्पन्न होने की घटना को विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं। तथा इस प्रकार उत्पन्न विद्युत वाहक बल को प्रेरित विद्युत वाहक बल कहते हैं। यदि कुण्डली का परिपथ बंद होता है। तो कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल के कारण धारा प्रवाहित होती है, जिसे प्रेरित धारा कहते हैं। विद्युत जनित्र, प्रेरण कुण्डली, ट्रांसफार्मर आदि इसी सिद्धांत पर कार्य करते हैं।

            चुम्बकीय फ्लक्स (Magnetic Flux)- किसी चुम्बकीय क्षेत्र में रखे पृष्ठ के अभिलंबवत् गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं की संख्या को पृष्ठ से संबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं। इसे \[\phi \] से प्रदर्शित करते है।

\[\theta =B.\text{ }A.\,cos\,\theta \]

            (i) प्रथम स्थिति \[\theta =0{}^\circ \],\[\phi \]max =B.A, (घनात्मक फ्लक्स होगा)

            (ii) द्वितीय स्थिति\[\theta =90{}^\circ \], \[\phi \]max = 0 (फ्लक्स का मान शून्य)

            (iii) तृतीय स्थिति \[\theta =180{}^\circ \]\[\phi =-B.A\](फ्लक्स का मान ऋणात्मक)

            MKS पद्धति में चुम्बकीय फ्लक्स का मात्रक वेबर (Wb) तथा CGS में मक्सवेल (\[{{M}_{x}}\]) होता है। 1 वेबर = 1 टेसला \[\times \] 1 मीटर, 1 मैक्सवेल = 1 गाउस \[\times \] 1 सेमी2 होता है। तथा 1 वेबर = \[{{10}^{8}}\] मैक्सवेल होता है।

            फ्लक्स की विमा = \[\phi =\left[ {{M}^{1}}{{L}^{2}}{{T}^{-2}}{{A}^{-1}} \right]\]

 

            फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण का नियम (Faraday*s laws of Electromagnetic Induction)

                फैराडे का प्रथम नियम- जब किसी कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के मान में परिवर्तन होता है तो कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा उत्पन्न होती है।

                फैराडे का द्वितीय नियम- कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल फ्लक्स में परिवर्तन की दर के समानुपाती होता है। यदि \[\Delta t\] समयान्तराल में चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन \[\Delta \phi \] हो तो प्रेरित विद्युत वाहक बल \[\propto \] फ्लक्स में परिवर्तन की दर

            \[\]                    K = समानुपाती नियंताक

                भेवर धाराएं (Eddy Currents)- जब किसी बड़ी चालक प्लेट के तल के लंबवत् लग रहे चुम्बकीय क्षेत्र में समय के साथ परिवर्तन होता है तब प्रेरित विद्युत क्षेत्र के कारण प्लेट में बंद पथों में स्थानीय विद्युत धाराएं प्रवाहित होने लगती है। इन प्रेरित धाराओं को भंवर धाराएं (Eddu Currents) कहते हैं। सन 1895 में फोको (Focault) नामक वैज्ञानिक ने प्रेक्षित किया। इस कारण इन्हें फोको धाराएं भी कहते हैं।

                दिष्ट धारा (Direct Current - DC)- वह धारा जिसका मान समय के साथ परिवर्तित हो और साथ ही एक निश्चित दिशा में ही प्रवाहित होती हो, दिष्ट धारा कहलाती है। सेल बैटरी द्वारा दिष्ट धारा प्राप्त होती है।

                प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current - AC)- वह धारा जिसका मान तथा दिशा लगातार आवर्त रूप से परिवर्तित होता हो, प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है। प्रत्यावर्ती धारा ऐसे वोल्टता स्रोत से उत्पन्न होती है जिसके टर्मिनलों की ध्रुवता समय के साथ आवर्ती रूप से परिवर्तित होती है।

                भारत में घरेलू उपयोग के लिए विद्युत शक्ति सामान्यत: 220 वोल्ट तथा 50 हर्ट्ज की ज्यावक्रीय प्रत्यावर्ती धारा के रूप में पूर्ति की जाती है। अमेरिका, रूस, जापान आदि में विद्युत शक्ति 110 वोल्ट तथा 60 हर्ट्ज की ज्यावक्रीय प्रत्यावर्ती धारा के रूप में पूर्ति की जाती है।

                ताक्षणिक मान (Instantaneous Value)- प्रत्यावर्ती धारा के किसी समय t पर मान प्रत्यावर्ती धारा के तात्क्षणिक मान कहलाता है। प्रत्यावर्ती धारा \[I={{I}_{0}}z\sin \left( \omega t+\phi  \right)\], जहां \[\phi \] = प्रारम्भिक कला कोण प्रत्यावर्ती वोल्टता का मान \[\]

               

                प्रत्यावर्ती धारा का वर्गमाध्य मूल मान (Root Mean Square (RMS) Value of AC)- एक पूर्ण चक्र के लिए तात्क्षणिक प्रत्यावर्ती धारा के वर्ग के माध्य मान का वर्गमूल, प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल, (rms) कहलाता है।

            \[\left( {{I}_{rms}}=0.707{{I}_{0}} \right)\]जहां- प्रत्यावर्ती धारा के अधिकतम मान \[\left( {{V}_{rms}}=0.707\,{{V}_{0}} \right)\]\[\left( {{I}_{0}} \right)\] को धारा का आयाम या शिखर धारा

                                                कहते हैं। \[{{V}_{0}}\] = वोल्टता का शिखर

 

                चालकत्व K (Conductance)- प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालकत्व - कहते हैं। इसका मात्रक ओम-1 होता है। चालकता \[\left( K \right)=\frac{1}{R}\]

 

            प्रेरणित अधिकल्पित प्रवेश्यता (Inductive Reactance-\[{{\mathbf{X}}_{\mathbf{L}}}\])

                \[{{I}_{0}}=\frac{{{E}_{0}}}{w.L}\] से स्पष्ट है कि प्रेरकत्व के कारण धारा के मार्ग में  रुकावट w.L के बराबर होती है। इसलिए w.L को प्रेरण प्रतिरोध या प्रेरणिक प्रतिघात कहते हैं। प्रेरणिक प्रतिघात \[{{X}_{L}}=w.L\], मात्रक- ओम

 

            प्रेरणिक अधिकल्पित प्रवेश्यता (Inductive Susceptance)- प्रेरणिक प्रतिघात के व्युत्क्रम को प्रेरणिक अधिकल्पिता प्रवेश्यता या प्रेरण चालकत्व कहते हैं। \[{{S}_{L}}=\frac{1}{{{X}_{L}}}\]

            \[\] मात्रक = ओम-1

 

                धारिता प्रतिघात (Capacitive Reactance-Xc)

\[{{X}_{C}}=\frac{1}{W.C}\]

 

                विद्युत चुम्बकीय तरंगो की उत्पत्ति

                एक गतिमान आवेश के चारों ओर विद्युत क्षेत्र तथा चुम्बकीय क्षेत्र दोनों होते हैं। सन 1831 में वैज्ञानिक फैराडे ने प्रतिपादित किया कि परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र से विद्युत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। सन 1864 में वैज्ञानिक मैक्सवेल ने कल्पना की कि परिवर्ती विद्युत क्षेत्र से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

 

            विस्थापना धारा (Displacement Current)

            \[\oint{\vec{B}.\,\,\overrightarrow{dl}}={{\mu }_{0}}.I\] जहां \[{{\mu }_{0}}\] = निर्वात की चुम्बकशीलता तथा धारा का मान है। इसे एम्पियर का परिपथीय नियम कहते हैं अतः विस्थापन धारा वह धारा है जो किसी क्षेत्र में विद्युत क्षेत्र अर्थात विद्युत फ्लक्स में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है।

·         प्रकाश के वेग को निर्वात \[C=\frac{1}{\sqrt{{{\mu }_{0}}.{{\varepsilon }_{0}}}}\]से व्यक्त करते हैं।

·         माध्यम में प्रकाश के वेग को \[V=\frac{1}{\sqrt{\mu E}}\] से व्यक्त करते हैं।

 

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