भारत में निर्वाचन प्रणाली, राजनीतिक दल और दबाव समूह

भारत में निर्वाचन प्रणाली, राजनीतिक दल और दबाव समूह

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विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

भारत में चुनाव की प्रक्रिया लोकतांत्रिक है। भारत में चुनाव के लिए एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग है। उसके पास स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की शक्ति है। राजनीतिक दल को लोगों के एक ऐसे संगठित समूह के रूप में समझा जा सकता है जो चुनाव लड़ने और सरकार में राजनीतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करता है। समाज के सामूहिक हित को ध्यान में रखकर यह समूह कुछ नीतियाँ और कार्यक्रम तय करता है। सामूहिकहित एक विवादास्पद विचार है। इसे लेकर सबकी राय अलग-अलग होती है। इसी आधार पर दल लोगों को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि उनकी नीतियाँ औरों से बेहतर हैं। वे लोगों का समर्थन पाकर चुनाव जीतने के बाद उन नीतियों को लागू करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार दल किसी समाज के बुनियादी राजनीतिक विभाजन को भी दर्शाते हैं।

 

 संवैधानिक उपबंध
  • भारतीय संविधान के भाग-XV में अनुच्छेद-324 से 329 तक निर्वाचन से संबंधित उपबंधों का उल्लेख किया गया है।
  • संविधान के अनुच्छेद-324 में, देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिये निर्वाचन आयोग नामक संस्था का उल्लेख किया गया है।
  • भारत में निर्वाचन प्रणाली वयस्क मताधिकार पर आधारित है, जिसमें भारत का प्रत्येक नागरिक, जिसकी आयु 18 वर्ष से कम न हो तथा जिसे संविधान या विधायिका द्वारा निर्मित किसी कानून/विधि के अधीन निरहित नहीं किया गया, मतदान का अधिकार होता है। निरहित करने के आधार अनिवास, चित्तविकृति, अपराध, भ्रष्ट या अवैध आचरण आदि हो सकते हैं।
  • संविधान के अनुच्छेद-325 में यह प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने के लिये धर्म, मूल वंश, जाति अथवा लिंग के आधार पर अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता अथवा इन्ंहीं आधारों पर वह व्यक्ति शामिल होने का दावा भी नहीं कर सकता।
  • संविधान के अनुच्छेद-327 संसद को विधायी शक्ति प्रदान करता है। उसके अनुसार वह संसद के प्रत्येक सदन या किसी राज्य विधानमंडल के सदन या उसके प्रत्येक सदन के निर्वाचनों से संबंधित सभी मामलों के बारे में कानून बना सकेगी। इनमें निर्वाचक-नामावलियों की तैयारी, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन तथा ’ऐसे सदन या सदनों का सम्यक गठन सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक’ सभी अन्य मामले भी शामिल है।
  • संविधान के अनुच्छेद 326 के अंतर्गत केंद्र की लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं के लिए निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाएगा।
भारत में निर्वाचन प्रणाली के प्रकार
  • भारत में निर्वाचन के सम्बंध में मुख्यतः दो प्रकार की पद्धतियाँ अपनायी गयी हैं:
  1. लोकसभा एवं राज्यों में विधानसभा चुनाव हेतु बहुलवादी व्यवस्था अथवा फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली अपनायी गयी है।
  2. राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, राज्यसभा एवं राज्य विधान परिषद् के निर्वाचन हेतु एकल-संक्रमणी आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली अपनायी गयी है।
  • फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टमः भारतीय राजव्यवस्था में लोकसभा व राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव के लिये यह प्रणाली अपनाई जाती है, जिसके अंतर्गत पूरे देश को जनसंख्या के आधार पर चुनाव क्षेत्रों में बाँटकर उन क्षेत्रों के मतदाताओं द्वारा उम्मीदवार का चयन किया जाता है। जो उम्मीदवार सर्वाधिक मत प्राप्त करता है, भले ही वो डाले गए कुल मतों के आधे से कम ही क्यों न हों, विजयी घोषित होता है। इस व्यवस्था में सत्ता में वही दल आता है, जिसे बहुमत का जनादेश मिला हो। इस व्यवस्था की सबसे बड़ी सीमा यह है कि, इसमें केवल तुलनात्मक बहुमत का ध्यान रखा जाता है। अतः कई बार किसी चुनाव क्षेत्र में पड़े मतों का 35 प्रतिशत से 40 प्रतिशत मत पाने वाला प्रत्याशी भी विजेता घोषित कर दिया जाता है।
  • एकल संक्रमणीय आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणालीः इस प्रकार की व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, राज्यसभा व राज्य विधानपरिषद् के सदस्यों के चुनाव के लिये प्रयोग किया जाता है। यह निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है। इस व्यवस्था में सदस्यों के मत का मूल्य एक विधि द्वारा निर्धारित किया जाता है और साथ ही प्रत्येक मतदाता को एक ही मत-पत्र पर उतनी ही वरीयताएँ निर्धारित या करने की छूट दी जाती हैं, जितनी प्रत्याशियों की संख्या होती है। उन प्रत्याशियों के दूसरे व उत्तरवर्ती वरीयता मतों को शेष प्रत्याशियों में वितरित कर दिया जाता है, जिन्होंने न्यूनतम प्रथम वरीयता के मत पाए हों।
  • चुनाव के प्रकारः सामान्य रूप से चुनाव निम्न 3 प्रकार के होते हैं:
  1. आम चुनावः लोकसभा व राज्य विधान सभाओं के लिए प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात् होने वाले चुनावों को आम चुनाव कहा जाता है।
  2. मध्यावधि चुनावः लोकसभा तथा राज्य विधान सभाओं के निर्धारित अवधि से पूर्व भंग होने के पश्चात् होने वाले चुनावों को मध्यावधि चुनाव कहा जाता है।
  3. उप-चुनावः किसी भी संसद सदस्य तथा राज्य विधानमण्डल सदस्य की मृत्यु, त्याग-पत्र या अयोग्य घोषित होने के कारण रिक्त होने वाले पद को भरने के लिए कराए गए चुनाव को उप-चुनाव कहते हैं।
  • राजनीतिक दलः राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों की भूमिका महत्वपूर्ण होती हैं। सभी देशों में चाहे वहाँ साम्यवादी व्यवस्था हो, उदारवादी व्यवस्था हो या लोकतांत्रिक व्यवस्था हो, राजनीतिक दल को प्रत्येक व्यवस्था का अनिवार्य अंग माना जाता है। वर्तमान समय में विश्व के लगभग सभी राज्यों में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था प्रचलित है। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है, क्योंकि लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था लोकमत पर आधारित होती है और राजनीतिक दल लोकमत के निर्माण एवं अभिव्यक्ति में महत्वपर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दल ही लोकमत के आधार पर सरकार का निर्माण करते हैं। राजनीतिक दल चाहे वह सत्तारूढ़ हो अथवा विरोधी दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। बर्क का कहना है कि, “दल प्रणाली लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था के लिए अपरिहार्य है।“ लीकॉक राजनीतिक दलों की आवश्यकता स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि ’प्रजातंत्रीय सरकार के सिद्धांत के साथ इसकी भिन्नता होने के बावजूद यही एक ऐसी व्यवस्था है जो प्रजातंत्रीय सरकार को व्यावहारिक बनाती है, क्योंकि अकेले रहकर व्यक्तियों के लिए शासन करना कठिन है। आधुनिक लोकतंत्र इस कृत्रिम तथापि आवश्यक यंत्र के बिना व्यक्तिगत मतों का समूह बन जायेगा।’ लोकतांत्रिक देशों में जनता को राजनीतिक प्रक्रिया में सहभागिता तथा प्रतिनिधित्व राजनीतिक दलों के माध्यम से ही प्राप्त होता है।
  • राजनीतिक दल का अर्थः राजनीतिक दल को लोगों के एक ऐसे संगठित समूह के रूप में समझा जा सकता है जो चुनाव लड़ने और सरकार में राजनीतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करता है। समाज के सामूहिक हित को ध्यान में रखकर यह समूह कुछ नीतियाँ और कार्यक्रम तय करता है। सामूहिक हित एक विवादास्पद विचार है। इसे लेकर सबकी राय अलग-अलग होती है। इसी आधार पर दल लोगों को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि उनकी नीतियाँ औरों से बेहतर हैं। वे लोगों का समर्थन पाकर चुनाव जीतने के बाद उन नीतियों को लागू करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार दल किसी समाज के बुनियादी राजनीतिक विभाजन को भी दर्शाते हैं। पार्टी समाज के किसी एक हिस्से से संबंधित होती है इसलिए उसका नजरिया समाज के उस वर्ग/समुदाय विशेष की तरफ झुका होता है। किसी दल की पहचान उसकी नीतियों और उसके सामाजिक आधार से तय होती है। राजनीतिक दल के तीन प्रमुख हिस्से हैं:
  1. नेता
  2. सक्रिय सदस्य, और;
  3. अनुयायी या समर्थक।
  • दलीय व्यवस्थाः इस प्रकार के स्वैच्छिक संगठन या लोगों का संगठित समूह, जो एक समान दृष्टिकोण एवं मूल भावना रखते हैं एवं संविधान के प्रावधानों के अनुरूप राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिये और राष्ट्र की एकता, अखंडता बनाये रखने के लिए राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने की कोशिश करते हैं, राजनीतिक दल कहलाते हैं।
  • आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य में चार प्रकार के राजनैतिक दल होते हैं-1. प्रतिक्रियावादी राजनीतिक दल, 2. रूढ़िवादी राजनीतिक दल, 3. उदारवादी राजनीतिक दल एवं 4. सुधारवादी राजनीतिक दल।
  • विश्व में प्रायः तीन तरह की दलीय व्यवस्था पाई जाती है-एक दलीय व्यवस्था, द्वि-दलीय व्यवस्था एवं बहुदलीय व्यवस्था।
  • भारत में दलीय व्यवस्थाः भारत के संदर्भ में दलीय व्यवस्था को निम्नलिखित प्रकार में देखा जा सकता हैः-
  1. बहुदलीय व्यवस्थाः भारत संभवतः विश्व का सर्वाधिक राजनीतिक दलों वाला देश है। देश में 8 राष्ट्रीय दल, लगभग 52 मान्यता प्राप्त राज्य स्तरीय दल एवं लगभग 2354 गैर-मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल हैं। भारत में प्रायः सभी प्रकार के राजनैतिक दलों की उपस्थिति पाई जाती है, जैसेवामपंथी दल, केंद्रीय दल, दक्षिणपंथी दल, सांप्रदायिक दल तथा गैर-सांप्रदायिक दल इत्यादि। भारत में गठबंधन की सरकार का गठन एक सामान्य बात है।
  1. एकदलीय व्यवस्थाः इस प्रणाली के अंतर्गत सत्ता पर एक दल का एकाधिकार स्थापित हो जाता है एवं अन्य दलों की भूमिका नगण्य हो जाती है।
  1. श्रेष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रजनी कोठारी ने भारत में एकदलीय व्यवस्था को एक दलीय शासन व्यवस्था या कांग्रेस व्यवस्था कहा, क्योंकि भारत में एक लंबे समय तक कांग्रेस का शासन रहा।
  1. द्वि-दलीय व्यवस्थाः ऐसी प्रणाली के अंतर्गत अनेक दलों की उपस्थिति के बावजूद सत्ता संघर्ष में वर्चस्व मुख्यतः दो दलों का ही होता है अर्थात् सरकार सिर्फ उसी की बनती है, जो दल बहुमत प्राप्त करता है और मुख्य विरोधी दल प्रतिपक्ष के रूप में कार्य करता है।
  • राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को मान्यताः निर्वाचन आयोग, निर्वाचन के लिये राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है और उनके चुनाव प्रदर्शन के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दलों के रूप में मान्यता प्रदान करता है एवं अन्य दलों को केवल पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल घोषित करता है।
  1. आयोग द्वारा दलों को प्रदान की गई मान्यता दलों के लिये कुछ विशेषाधिकारों का निर्धारण करती है, जैसे-चुनाव चिन्ह का आवंटन, राज्य नियंत्रित टेलीविजन और रेडियो स्टेशनों पर प्रसारण हेतु समय का उपबंध और निर्वाचन सूचियों को प्राप्त करने की सुविधा।
  2. आयोग कुछ चिन्हों को ’आरक्षित’ चिन्हों के रूप में रखता है जो मान्यता प्राप्त दलों के लिये होते हैं एवं शेष चिन्ह अन्य दलों हेतु होते हैं।
राष्ट्रीय दलों के रूप में मान्यता के लिये दशाएँ: वर्तमान में किसी दल को राष्ट्रीय दल के रूप में तभी मान्यता दी जा सकती है जब वह-
  1. लोक सभा अथवा विधान सभा के आम चुनावों में चार अथवा अधिक राज्यों में वैध मतों का छह प्रतिशत मत प्राप्त करता है एवं इसके साथ ही किसी राज्य या राज्यों से लोकसभा में 4 सीटें प्राप्त करता है, अथवा
  2. यदि वह लोकसभा में दो प्रतिशत स्थान जीतता है एवं ये सदस्य तीन विभिन्न राज्यों से चुने जाते हैं, अथवा
  3. यदि कोई दल कम-से-कम चार राज्यों में राज्यस्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो।
                        वर्तमान में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय दलों की सूची-

क्रमांक

दल का नाम

चुनाव चिन्ह

गठन

1.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)

कमल

वर्ष 1980

2.

बहुजन समाज पार्टी (भाजपा)

हाथी

वर्ष 1984

3.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

हंसिया बाली

वर्ष 1925

4.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)

हथौड़ा, हंसिया एवं तारा

वर्ष 1964

5.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

हाथ का पंजा

वर्ष 1885

6.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी

घड़ी

वर्ष 1999

7.

ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस AITC

फूल एवं घास

वर्ष 1998

8.

नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP)

पुस्तक

वर्ष 2013

 

  • राज्य स्तरीय दलों की मान्यता के लिये दशाएँ: वर्तमान में किसी दल को राज्य स्तरीय दल के रूप में तभी मान्यता दी जाती है, जब वहः
  1. राज्य की विधानसभा के आम चुनाव में उस राज्य से हुए कुल वैध मतों का छह प्रतिशत प्राप्त किया हो एवं इसके अतिरिक्त उसने संबंधित राज्य में 2 स्थान प्राप्त किये हों, अथवा राज्य में लोकसभा हेतु हुए आम चुनावों में डाले गए कुल वैध मतों का छह प्रतिशत प्राप्त किया हो एवं संबंधित राज्य में लोकसभा की कम-से-कम एक सीट जीती हो, अथवा राज्य के विधानसभा के कुल स्थानों का तीन प्रतिशत या तीन सीटें, जो भी ज्यादा हो प्राप्त किये हों, अथवा
  2. प्रत्येक 25 सीटों में से उस दल ने लोकसभा की कम-से-कम 1 सीट जीती हो या लोकसभा के चुनाव में संबंधित राज्य में है उसने विभाजन से कम-से-कम इतनी सीटें प्राप्त हों, अथवा
  3. लोकसभा के लिये हुए आम चुनाव में अथवा विधानसभा चुनाव कि में कुल वैध मतों का 8 प्रतिशत प्राप्त करना होता है। यह शर्त है वर्ष 2011 में जोड़ी गई थी।
                      मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दल प्रथम चुनाव से लेकर सत्रहवें आम चुनाव तक

 

आम चुनाव

राष्ट्रीय दल

राज्य स्तरीय दल

आम चुनाव (वर्ष)

राष्ट्रीय दल

राज्य स्तरीय दल

प्रथम (1952)

14

39

दसवाँ (1991)

9

28

द्वितीय (1957)

4

11

ग्यारहवाँ (1996)

8

30

तृतीय (1962)

6

11

बारहवाँ (1998)

7

30

चौथा (1969)

7

14

तेरहवाँ (1999)

7

40

पांचवाँ (1971)

8

17

चौदहवाँ (2004)

6

36

छठा (1977)

5

15

पन्द्रहवाँ (2009)

7

40

सातवाँ (1980)

6

19

सोलहवाँ (2014)

6

47

आठवाँ (1984)

7

19

सत्रहवाँ (2019)

7

52

नौवाँ (1989)

8

20

 

 

 

 

        स्त्रोतः सामाजिक विज्ञानः लोकतांत्रिक राजनीति-2 NCERT- कक्षा 10वीं।
  • दल-बदल कानूनः 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 द्वारा सांसदों और विधायकों द्वारा एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में, दल परिवर्तन के आधार पर अयोग्यता के बारे में प्रावधान किया गया है। इस हेतु संविधान के 4 अनुच्छेदों में परिवर्तन कर 10वीं अनुसूची जोड़ी गई। 91वें संविधान संशोधन

 

         अधिनियम, 2003 द्वारा दसवीं अनुसूची में पुनः परिवर्तन किया गया और दल-बदल अधिनियम को और अधिक कठोर बनाया गया अर्थात् अब दल के विभाजन के मामले में दल-बदल के आधार पर अयोग्यता नहीं मानी जाएगी। इस संशोधन के द्वारा मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या को 15 प्रतिशत निश्चित कर दिया गया।
  • 10वीं अनुसूची में दल परिवर्तन के आधार पर सांसदों और विधायकों के निरर्हता सम्बंधी निम्न प्रावधान है।
  • राजनीतिक दलों के सदस्यों हेतुः किसी राजनीतिक दल का सदस्य, जो किसी सदन का सदस्य है, उस सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य माना जाएगा।
  1. यदि वह स्वेच्छा से उस राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है अथवा
  2. यदि वह सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मतदान करता है या अनुपस्थित रहता है तथा राजनीतिक दल से उसने 15 दिनों के अन्दर क्षमादान न पाया हो। अतः स्पष्ट है कि, जो सदस्य जिस दल के टिकट पर निर्वाचित हुआ हो, उस दल का सदस्य बने रहना चाहिए तथा दल के निर्देशों का पालन करना चाहिए।
  • निर्दलीय सदस्यः निर्दलीय सदस्य चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण कर लेता है तो वह किसी सदन की सदस्यता के अयोग्य हो जाएगा।
  • नामांकित सदस्यः किसी सदन का नामांकित सदस्य, सदस्यता के लिए अयोग्य हो जाएगा यदि वह उस सदन में अपना स्थान ग्रहण करने के छह माह पश्चात् किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण कर लेता है।
  • दल परिवर्तन के अपवादः दल परिवर्तन के आधार पर अयोग्यता निम्न विषयों में लागू नहीं होगीः
  1. जब किसी राजनीतिक दल के 1/3 सदस्य एक साथ उस दल से अलग होकर एक नये दल का गठन कर लें या किसी अन्य दल में सम्मिलित हो जाएँ।
  2. यदि कोई सदस्य पीठासीन अधिकारी निर्वाचित होने पर अपने दल की सदस्यता से स्वैच्छिक रूप से बाहर चला जाता है। यह छूट पद की मर्यादा और निष्पक्षता के लिए दी गयी है।
  • दबाव समूहः व्यक्तियों का वह समूह है जिसका कुछ मामलों में सामान्य हित निहित होता है तथा यह अपने हितों की पूर्ति के लिए सरकार पर दबाव डालकर उनकी नीतियों को प्रभावित करते हैं दबाव समूह शब्द की उत्पत्ति अमेरिका में हुई है
  • सामान्यतः इसका प्रयोग सामूहिक हित अथवा किसी व्यवसाय के संबंधित लोगों की रक्षा या प्रगति के लिये संगठित रूप से किया जाता है, जैसे- वकीलों, शिक्षकों, व्यापारियों, कृषकों, डॉक्टरों के हितों के समूह की लॉबी आदि।
  • अमेरिका में हित समूह नीति-निर्धारण करने वालों से मिलने, उनको प्रभावित करने व दबाव डालने का कार्य करते हैं, जिसे लॉबिंग कहा जाता है।
  • भारत में मुख्यतः चार प्रकार के हित समूह पाए जाते हैं।
  1. सामाजिक समूह अथवा पहचान आधारित समूह
  2. संस्थागत समूह
  3. सामुदायिक अथवा व्यवसायिक समूह
  4. तदर्थ समूह

 

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