संघ राज्य क्षेत्र, कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान

संघ राज्य क्षेत्र, कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान

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विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

भारत के राजनैतिक मानचित्र (1947-2020) में कई परिवर्तन दिखाई देते हैं। राज्यों की सीमाओं व नाम बदल गए है। राज्यों की संख्या में अंतर भी आ गया है। इसी के तहत से भारत में प्रशासनिक दृष्टिकोण से पूर्व में केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया द्य गया परन्तु कुछ समय पश्चात् उन्हें पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया, जैसे- हिमाचल प्रदेश और उत्तर-पूर्व के राज्य। परन्तु वर्तमान में भी केन्द्र सरकार के द्वारा प्रशासनिक दृष्टिकोण से कई राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेश की सीमाओं में परिवर्तन कर उन्हें संघ शासित प्रदेश में परिवर्तित कर दिया गया है। उन राज्यों के लिए कुछ विशेष प्रावधानों का भी संविधान में वर्णन किया गया है, जिससे उन राज्यों की जाति एवं जनजातीय समुदाय का विकास सुनिश्चित हो। इसी कारण कई प्रकार के विशेष प्रावधानों के तहत उन राज्यों में अन्य राज्यों के नागरिकों के निवास एवं आवागमन पर भी रोक लगाई गई है। इस प्रकार वर्तमान में प्रशासनिक दृष्टिकोण से भारत में 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं।

 

      संविधान के अनुच्छेद 1(3) में भारत के राज्य क्षेत्र को तीन श्रेणियों में बाँटा गया हैः
  1. राज्यों का क्षेत्र
  2. संघ राज्य क्षेत्र
  3. ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र, जो भारत सरकार द्वारा किसी भी समय अर्जित किए जाएँ।
       वर्तमान समय में भारत में कुल 28 राज्य व 8 केन्द्रशासित प्रदेश हैं, किन्तु कोई अर्जित राज्य क्षेत्र नहीं है। सभी राज्य भारत के संघात्मक ढाँचे के अंग हैं तथा उनके और केन्द्र में मध्य शक्तियों का वितरण प्रायः वैसा ही है जैसा सांघात्मक शासन प्रणाली में होती है। दूसरी ओर, केन्द्र शासित प्रदेश वे क्षेत्र हैं, जो केन्द्र सरकार के सीधे नियंत्रण में होते हैं इसलिए, ऐसे प्रदेशों को केन्द्र शासित क्षेत्र भी कहते हैं।
  1. संघ राज्य क्षेत्रों का गठनः सन् 1956 में 7वें संविधान संशोधन अधिनियम व राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत इन्हें केन्द्र शासित प्रदेशों के रूप में गठित किया गया था। बाद में, कुछ केन्द्र शासित प्रदेशों को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया। जम्मू-कश्मीर पूनर्गठन अधिनियम, 2019 एवं दादरा नगर हवेली एवं दमन दीव पुनर्गठन विधेयक, 2019 के उपरान्त वर्तमान में केन्द्र शासित प्रदेशों की संख्या 8 है।
        विशेषः
  1. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019
  2. दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव का विलय
  1. जम्मू-कश्मीर (पुनर्गठन) अधिनियम, 2019: जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन से संबंधित विधेयक को 5 अगस्त, 2019 को गृह मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया गया, जो अनुच्छेद-370 के संबंध में 1954 के आदेश को निरस्त करने से संबंधित था, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर के दो नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख का निर्माण किया गया। इस विधेयक को 9 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही इस विधेयक ने अधिनियम का रूप ले लिया। दोनों नए केंद्र शासित प्रदेश 31 अक्टूबर, 2019 से अस्तित्व में आ गए।
  • इसके साथ ही कश्मीर के लिए अलग से नागरिकता निर्धारित करने वाला अनुच्छेद-35(A) भी निष्प्रभावी हो गया। गृह मंत्री ने स्पष्ट किया की भविष्य में स्थिति सामान्य होते ही जम्मू-कश्मीर को पुनः पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा।
  • जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के उप-राज्यपाल के रूप में 31 अक्टूबर, 2019 को क्रमशः गिरीश चंद्र मुर्मू (जम्मू-कश्मीर) तथा रामकृष्ण माथुर (लद्दाख) ने शपथ ग्रहण की।
  1. दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव का विलयः 9 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित किये जाने के बाद दादरा एवं नगर हवेली और दमन व दीव (केंद्र शासित प्रदेश का विलय) विधेयक, 2019 ने अधिनियम का रूप ले लिया। राज्य सभा द्वारा इसे 3 दिसंबर, 2019 को तथा लोकसभा द्वारा इसे 27 नवंबर, 2019 को पारित किया गया था। यह विधेयक अधिकारियों एवं कर्मचारियों के सार्थक उपयोग, प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने, कम व्यय करने, बेहतर सेवाएं मुहैया कराने एवं योजनाओं की बेहतर निगरानी सुनिश्चित करने की आवश्यकता के मद्देनजर दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों के विलय के उद्देश्य से लाया गया था।
मुख्य बिंदुः
  • इस नवीन अधिनियम की धारा 2 के खंड (ए) द्वारा प्रदत्त शक्तियों इस के तहत ’दमन एवं दीव’ तथा ’दादरा एवं नगर हवेली’ नामक 2 केंद्र शासित प्रदेश 26 जनवरी, 2020 को एकल केंद्र शासित प्रदेश बन गए। इस केंद्र शासित प्रदेश के लिए लोकसभा में दो सीटें आवंटित हो जाएंगी।
  • इस नये केन्द्र शासित प्रदेश का नाम ’दादरा एवं नगर हवेली और दमन व दीव’ होगा और यह बॉम्बे हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में शासित होगा। उल्लेखनीय है कि, दमन एवं दीव’ तथा दादरा एवं नगर हवेली’ के विलय के बाद संघ शासित क्षेत्रों की संख्या घटकर 8 हो जाएगी। वर्ष 1973 तक लक्षद्वीप को लकादीव, मिनीकॉय एवं अमिनदिवी द्वीप के नाम से जाना जाता था।
  • वर्ष 1992 में दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र. दिल्ली के रूप में जाना जाने लगा। 2006 तक पुडुचेरी को पांडिचेरी के नाम से जाना जाता था।
केन्द्रशासित प्रदेशों का प्रशासनः संविधान के भाग-VIII के अंतर्गत अनुच्छेद-239 से 241 तक केन्द्र शासित प्रदेशों के सम्बंध में उपबंध किए गए हैं। यद्यपि सभी केन्द्र शासित प्रदेश एक ही श्रेणी के हैं लेकिन उनकी प्रशासनिक पद्धति में समानता नहीं है। सामान्यतः संघ राज्य क्षेत्र केन्द्र शासित होते हैं किंतु दो मामलों में इसका अपवाद दिखाई पड़ता है-दिल्ली और पुडुचेरी। ये दोनों संघ राज्य क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ का शासन अंशतः वहाँ के विधानमंडल एवं सरकार द्वारा चलता है और अंशतः इसमें केन्द्र सरकार की भूमिका रहती है। शेष पाँच केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक चलाते हैं। केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासक राष्ट्रपति के अभिकर्ता होते हैं, न कि राज्यपाल की तरह राज्य प्रमुख। राष्ट्रपति प्रशासक को कोई पदनाम दे सकता है। वर्तमान में यह पदनाम उप-राज्यपाल अथवा मुख्य आयुक्त अथवा प्रशासक हो सकता है। इस समय उप-राज्यपाल दिल्ली, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और पुडुचेरी में तथा प्रशासक चंडीगढ़, दमन और दीव तथा लक्षद्वीप में है।
  • राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल को राज्य के निकटवर्ती केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रशासक नियुक्त कर सकता है। इस उत्तरदायित्व के सम्बंध में वह अपनी मंत्रिपरिषद् के सलाह से नहीं बल्कि स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
  • संसद ने वर्ष 1962 में 14वें संविधान संशोधन के आधार पर संविधान के अनुच्छेद-239(क) के तहत पुडुचेरी में विधानमंडल का प्रावधान किया गया था। इसी प्रकार 69 संविधान संशोधन, 1991 के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 239-क-(क) तथा क (ख) को शामिल किया गया, जिसके अंतर्गत दिल्ली में विधानसभा और मंत्रिमंडल का प्रावधान किया गया। अन्य 6 केंद्र शासित प्रदेशों में इस तरह की राजनीतिक संस्था नहीं है।
  • दिल्ली के लिए विशेष उपबंधः वर्ष 1991 में 69वें संविधान संशोधन विधेयक में केन्द्रशासित प्रदेश दिल्ली को विशेष स्थिति प्रदान की गई और इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का नाम दिया गया और उप-राज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर) को दिल्ली का प्रशासक नामित किया गया।
  • कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान
  • संविधान के भाग 21 में अनुच्छेद-371 से 371-श्र तक 12 अनुच्छेद राज्यों के सम्बंध में विशेष प्रावधान किए गए हैं। इन राज्यों के नाम हैं- महाराष्ट्र, गुजरात, नागालैण्ड, असम, मणिपुर,आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक एवं गोवा।
  • इसका उद्देश्य इन राज्यों के पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करना या इन राज्यों के जनजातियों के आर्थिक एवं सांस्कृतिक हितों की रक्षा करना या इन राज्यों के स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा करना है।

महाराष्ट्र एवं गुजरात के लिए प्रावधानः संविधान का अनुच्छेद-371 राष्ट्रपति को प्राधिकृत करता है कि वह महाराष्ट्र एवं गुजरात के राज्यपालों को कुछ विशेष शक्तियाँ दे, जो इस प्रकार हैं:
  1. विदर्भ, मराठवाड़ा एवं शेष महाराष्ट्र,
  2. सौराष्ट्र, कच्छ एवं शेष गुजरात के लिए पृथक् विकास बोर्डों की स्थापना।
  • यह प्रावधान करना कि इन बोर्डों के कार्यों का वार्षिक प्रतिवेदन राज्य विधानसभा में पेश किया जाएगा।
नागालैण्ड के लिए प्रावधानः संविधान के अनुच्छेद-371क (371-A) के अन्तर्गत, नागालैण्ड राज्य के लिए निम्न प्रावधान किए गए हैं
  • संसद द्वारा निम्न विषयों के संबंध में बनाया गया अधिनियम तब तक नागालैण्ड पर लागू नहीं होगा, जब तक राज्य विधानसभा इसका अनुमोदन न कर दें
  1. नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथाएँ,
  2. नागा रूढ़िजन्य विधि और प्रक्रिया,
  3. सिविल और दांडिक न्याय प्रशासन, जहाँ विनिश्चय नागा रूढिजन्य विधि के अनुसार होते हैं,
  4. भूमि और उसके संपत्ति स्रोतों का स्वामित्व और अंतरण।
  • नागालैण्ड में जब तक स्थानीय नागाओं का विद्रोह समाप्त नहीं हो जाता, तब तक राज्य में कानून एवं शान्ति व्यवस्था बनाए रखने का उत्तरदायित्व राज्यपाल पर है।
  • राज्यपाल का यह दायित्व है कि वह केन्द्र सरकार द्वारा राज्य के विकास हेतु आवंटित किये गये धन का उचित बँटवारा एवं व्यय सुनिश्चित करे, जिसमें इस कार्य से संबंधित अनुदान माँगें भी शामिल होंगी।
  • राज्य के त्वेनसांग जिले के लिए 35 सदस्यीय एक क्षेत्रीय परिषद् की स्थापना की जाएगी।
असम एवं मणिपुर के लिए प्रावधान
  1. असमः संविधान के अनुच्छेद-371ख (371-B) के अंतर्गत, असम का राज्यपाल राज्य विधानसभा के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों में से ऐसे सदस्यों की, जिन्हें वह उचित समझता है, एक समिति का गठन कर सकता है।
  2. मणिपुरः संविधान का अनुच्छेद-371 ग (371-C) मणिपुर के संबंध में निम्न विशेष प्रकार के प्रावधान करता हैः
  • राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित मणिपुर विधानसभा सदस्यों में से एक समिति का गठन कर सकता है।
  • राष्ट्रपति, इस समिति का उचित कार्य संचालन सुनिश्चित करने हेतु राज्यपाल को विशेष उत्तरदायित्व भी सौंप सकता है। राज्यपाल, राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को प्रतिवेदन भेजेगा। राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में केंद्र सरकार, राज्य सरकार को आवश्यक दिशा-निर्देश दे सकती है।
आन्ध्र प्रदेश अथवा तेलंगाना के लिए प्रावधानः संविधान के अनुच्छेद-3711 (371-D) के अंतर्गत आंध्रप्रदेश के संबंध में विशेष प्रकार के प्रावधान किये गये है। वर्ष 2014 में, आंध्रप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 द्वारा संविधान के अनुच्छेद-371(घ) (371-D) को विस्तृत करके तेलंगाना राज्य की स्थापना की गई। संविधान के अनुच्छेद-371(घ) (371-D) में निम्नलिखित प्रावधान हैं:
  • राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के लिए शिक्षा एवं लोक नियोजन के अवसरों में समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए उचित व्यवस्था कर सकता है।
  • उक्त उद्देश्य के लिए राष्ट्रपति को राज्य सरकार के सहयोग की आवश्यकता होती है, जिससे कि राज्य के विभिन्न भागों में स्थानीय कैडर के लिए लोक सेवाओं को संगठित किया जा सके तथा किसी भी स्थानीय कैडर में आवश्यकतानुसार सीधी भर्ती की जा सके।
  • राष्ट्रपति, राज्य में सिविल सेवा के पदों पर कार्यरत अधिकारियों की शिकायतों एवं विवादों के निपटारे हेतु विशेष प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना कर सकता है।
मिजोरम के लिए प्रावधानः संविधान का अनुच्छेद-371-छ ( 371-G) मिजोरम के लिए निम्न विशेष प्रावधान करता हैः
  • संसद द्वारा बनाया गया कोई अधिनियम मिजोरम राज्य पर तब तक लागू नहीं होगा, जब तक की राज्य की विधानसभा ऐसा करने का निर्णय न करेः
  1. मिजो लोगों की सामाजिक एवं धार्मिक प्रधाएँ,
  2. मिजो रूढ़िजन्य विधि न्याय और प्रक्रिया,
  3. सिविल और दांडिक न्याय प्रशासन, जहाँ विनिश्चय मिजो रूढ़िजन्य विधि के अनुसार हो,
  4. भूमि का स्वामित्व और अंतरण।
  • मिजोरम की विधानसभा में कम-से-कम 40 सदस्य होंगे।
सिक्किम के लिए प्रावधानः 36वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 के द्वारा सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। इस संशोधन के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद-371च (371-F) जोड़ा गया, जिसमें उल्लिखित है किः
  • सिक्किम विधानसभा का गठन कम-से-कम 30 सदस्यों से होगा, वर्तमान में सिक्किम विधानसभा के सदस्यों की संख्या 32 है।
  • लोकसभा में सिक्किम को एक सीट दी जाएगी तथा पूरे सिक्किम को एक संसदीय क्षेत्र माना जाएगा।
  • सिक्किम जनसंख्या के विभिन्न अनुभागों के अधिकार एवं हितों की रक्षा के लिए संसद को यह अधिकार दिया गया है किः
  1. सिक्किम विधानसभा की अधिकांश सीटें इन समुदाय के सदस्यों द्वारा भरी जायेंगी,
  2. विधानसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण में यदि इस समुदाय की किसी सीट में बदलाव होता है तो भी वह अकेला इस सीट से चुनाव लड़ सकता है,
  • राज्य के राज्यपाल का यह विशेष दायित्व है कि वे सिक्किम में शांति स्थापित करने की व्यवस्था करें तथा राज्य की जनसंख्या के समान सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए संसाधनों एवं अवसरों का उचित आवंटन सुनिश्चित करें।
अरुणाचल प्रदेश एवं गोवा के लिए प्रावधानः
  1. अरुणाचल प्रदेशः संविधान के अनुच्छेद-371ज (371-H): में अरुणाचल प्रदेश के लिए निम्न विशेष प्रावधान किए गए हैं:
  • अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल पर राज्य में कानून एवं व्यवस्था की स्थापना करने का विशेष दायित्व है। अपने इस दायित्व का निवर्हन करने में राज्यपाल, राज्य मंत्रिपरिषद् से परामर्श करके व्यक्तिगत निर्णय ले सकता है तथा उसका निर्णय ही अंतिम निर्णय माना जाएगा। यदि राष्ट्रपति चाहे तो राज्य के राज्यपाल के इस विशेषाधिकार पर रोक लगा सकते हैं।
  • अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में कम-से-कम 30 सदस्य होंगे।
  1. गोवाः संविधान के अनुच्छेद-371झ (371-I) में गोवा के लिए यह विशेष प्रावधान किया गया है कि इस राज्य की विधानसभा में कम-से-कम 30 सदस्य होंगे। वर्तमान में गोवा विधानसभा में 40 सदस्य है।
कर्नाटक लिए प्रावधानः संविधान के अनुच्छेद-371 ञ (371-J) के अन्तर्गत इस बात के लिए अधिकृत है कि वह कर्नाटक के राज्यपाल के लिए विशेष दायित्व निश्चित करें किः
  • हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए पृथक् विकास बोर्डों की स्थापना। इस बात का प्रावधान करना कि बोर्ड के संचालन से संबंधी प्रतिवेदन प्रतिवर्ष राज्य विधानसभा के समक्ष रखा जाएगा।

 

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