तरंग एवं प्रकाशिकी

तरंग एवं प्रकाशिकी

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तरंग एवं प्रकाशिकी

विश्लेषणात्मक अवधारणा

                वायु में उत्पन्न हुए विक्षोभ हमें स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते, हमारे कानों अथवा माइक्रोफोनों द्वारा हम इनको जान पाते हैं। इस प्रकार के विक्षोभों के प्रतिरूप या पैटर्न जो द्रव्य के वास्तविक भौतिकं स्थानांतरण अथवा समूचे द्रव्य के प्रवाह के बिना ही माध्यम के एक स्थान से दूसरे स्थान तक गति करते हैं तरंग कहलाते हैं। सन् 1678 में डच भौतिक विद् क्रिस्टिआन हाइगेन्स ने प्रकाश के तरंग सिद्धांत "को प्रस्तुत किया और सन् 1850 में फूको द्वारा दर्शाया गया की जल में प्रकाश की चाल वायु में प्रकाश चाल से कम होती है। सन् "1801 में टॉमस यंग ने व्यतिकरण तथा विवर्तन के प्रयोग किया। इन सब प्रयोगों का अध्ययन हम इस अध्याय में करेंगे।

 

                तरंग

                किसी माध्यम में उत्पन्न एक प्रकार का विक्षोभ (Disturbance) जो अपना रूप नहीं बदलता है तथा एक निश्चित वेग से आगे बढ़ता जाता है, तरंग कहलाता है।

            तरंग सचरण के लिए माध्यम में आवश्यक गुण-

·         माध्यम में अवस्था परिवर्तन का विरोध करने वाला अर्थात जड़त्व का गुण होना चाहिए।

·         माध्यम में बलं लगाते ही विस्थापित होने तथा बल को हटाने पर प्रारम्भिक अवस्था में जाने का अर्थात प्रत्यास्थता का गुण होना चाहिए।

·         माध्यम का प्रतिरोध कम से कम होना चाहिए।

 

            तरंगो के प्रकार (Types of Waves)

                माध्यम के आधार पर दो प्रकार की तरंगे होती है

                1. यांत्रिक या प्रत्यास्थ तरंगे (Mechanical or Elastic Wave)’

            2. विद्युत चुम्बकीय तरंगे (Electromagnetic Wave)

 

            यांत्रिक या प्रत्यास्थ तरंगे (Mechanical or Elastic Waves): वे तरंगे जिन्हे एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर संचरण करने के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है, यांत्रिक या प्रत्यास्था तरंगे कहलाती है। यांत्रिक तरंगो का संचरण माध्यम के प्रत्यास्थता गुणों पर निर्भर करता है। उदाहरण- ध्वनि तरंगे, तनी हुई डोरी में उत्पन्न तरंगे, जल तरंगे, भूकम्पी तरंगे इत्यादि।

                ये तरंगे न्यूटन के गति के नियमों द्वारा संनियमित होती है तथा ये केवल द्रव्यात्मक माध्यमों, जैसे- जल, वायु तथा चट्टानों में ही पाई जाती है। यांत्रिक तरंगे के दो प्रकार की होती है

 

                अनुदैर्ध्य तरंगे (Longitudinal waves): इन तरंगो में माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा में कम्पन्न करते है तथा संचरण संपीड़न तथा विरलन के रूप में होता है। माध्यम के संपीडन के स्थान पर माध्यम का घनत्व तथा दाब अधिक विरलन पर माध्यम का घनत्व तथा दाब कम होता है। उदाहरण- वायु में संचरित ध्वनि तरंगे, जल के भीतर संचरित तरंगे आदि।

 

                अनुप्रस्थ तरंगे (Transverse waves): इन तरंगो में माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा के लंबवत कम्पन्न करते हैं। अनुप्रस्थ तरंग में ऊपर की ओर अधिकतम विस्थापन की स्थिति को श्रृंग (crest) तथा नीचे की ओर अधिकतम विस्थापन को गर्त (Trough) कहते हैं। उदाहरण- तनी हुई डोरी में संचरित तरंगे, जल के पृष्ठ पर संचरित तरंगे आदि।

 

                विद्युत चुम्बकीय तरंगे (Electromagnetic waves): इनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। इन तरंगो निर्वात में भी संचरण संभव है। जैसे- प्रकाश तरंगे, रेडियो तरंगे आदि।

 

                ध्वनि तरंगे (Sound Waves): जिन तरंगो के कंपनो के द्वारा हमारा कर्ण पटल (Ear-drum) कंपित होता है तथा कंपन संकेत मस्तिष्क में संचरित होकर हमें ध्वनि का आभास कराते हैं ध्वनि तरंगे कहलाती हैं।

                ध्वनि की तीव्रता तरंग की आवृत्ति पर निर्भर करती है।

                आवृत्ति सीमा के आधार पर यांत्रिक तरंगो को तीन भामो में बांटा गया है

                श्रव्य तरंगे (Audible Sound waves): मनुष्य के कान एक निश्चित आवृत्ति परास के लिए संवेदनशील होते हैं। इस आवृत्ति परास में प्राप्त तरंगो को हम सुन सकते हैं। इस आवृत्ति परास को श्रव्य आवृत्ति परास कहते हैं। इनका मान 20 हर्ट्ज से 2000 हर्ट्ज के बीच होता है। उदाहरण- तनी हुई डोरी, तबले की झिल्ली तथा मानव स्वर से उत्पन्न श्रव्य तरंगें।

          श्रव्य आवृत्ति से अधिक आवृत्ति की तरंगो को पराश्रव्य तरंगे (Ultrasonic Waves) कहते हैं। मच्छर, कुता एवं चमगादड़ इन तरंगो को पहचान सकते हैं। इनकी आवृत्ति 20,000 हर्ट्ज से ऊपर होती है। और तरंगदैर्ध्य का मान 1.6 से.मी. से कम होता है।

 

                अपश्रव्य तरंगे (Infrasonic waves): आवृत्ति 20 हर्ट्ज से कम होती है। इनको हम सुन नहीं सकते। इनकी तरंगदैर्ध्य \[\lambda \] > 16.6 m होती है। भूकंप से उत्पन्न होने वाली अथवा समुद्र में उत्पन्न तरंग अपश्रव्य तरंगे होती हैं।

 

                कला तथा कलान्तर (Phase and Phase difference) x-अक्ष के अनुदिश गतिमान प्रगामी तरंग का समीकरण

            \[y\text{ }=\text{ }a\text{ }sin\left( K.x-\omega t \right)\]

               

                तरंगो के अध्यारोपण का सिद्धांत (Principal of Waves Superposition): जब दो या दो से अधिक तरंगे माध्यम में संचरित होती हुई अध्यारोपित होती हैं तब माध्यम के किसी बिन्दु पर कण का परिणामी विस्थापन भिन्न-भिन्न तरंगो के कारण उत्पन्न विस्थापनों के सदिश योग के बराबर होता है।

                यदि सभी कणों के विस्थापन एक ही दिशा में हो तो परिणामी विस्थापन

            \[y={{y}_{1}}+{{y}_{2}}+{{y}_{3}}+{{y}_{4}}+...{{y}_{n}}\]

            परिणामी तरंग के विस्थापन y का मान निम्न कारकों पर निर्भर करता है।

            (i) तरंगो के आयाम पर

            (ii) तरंगो के संचरण की दिशा पर

            (iii) तरंगो की आवृत्ति पर

            (iv) तरंगो के मध्य कलान्तर पर

 

                व्यतिकरण (Interference): दो एक समान तरंगे जिनकी आवृत्ति बराबर हो जो माध्यम में एक ही दिशा में चल रही है, अध्यारोपण से व्यतिकरण प्रतिरूप देती है।

 

            विस्पंद (Beats): जब दो असमान (लगभग बराबर) आवृत्ति की तरंगे एक ही दिशा में चल रही हैं तो इनके अध्यारोपण से विस्पंद उत्पन्न होता है।

 

                अप्रगामी तरंग (Stationary wave): दो समान तरंगे जिनकी आवृत्ति बराबर है परन्तु माध्यम में एक सीध में विपरीत दिशा में चलती है तो इनके अध्यारोपण से अप्रगामी तरंग का निर्माण होता है।

 

                अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंग- जब किसी पाइप के वायु स्तंभ में संचरित अनुदैर्ध्य प्रगामी तरंग पाइप के सिरों से परावर्तित होती है तब परावर्तित तथा आपतित तरंगो के अध्यारोपण से वायु स्तंभ में अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंग बनती है। जैसे - बांसुरी, बिगुल, बीन

 

            अनुप्रस्थ अप्रगामी तरंग- जब तने हुए तार या डोरी में संचरित तरंगे डोरी के दूसरे सिरे पर परावर्तित हो जाती है तब परावर्तित आपतित तरंगो के अध्यारोपण से अनुप्रस्थ अप्रगामी तरंग का निर्माण होता है। जैसे- स्वरमापी, सितार, गिटार, इकतारा, वायलिन इत्यादि।

 

                अनुदैर्ध्य तरंगो का परावर्तन- यदि परावर्तन पूर्णतः दृढ माध्यम से हो तो दृढ माध्यम के कण स्थिर रहेंगे और इसके लिए यह आवश्यक है कि आपाती तरंग परावर्तित तरंग सघन दृढ़ माध्यम की सीमा पर विपरीत कला में हो। इस प्रकार सघन माध्यम से अनुदैर्ध्य तरंगे बिना प्रारूपी परिवर्तन के परावर्तित होती है।

 

                डाप्लर का प्रभाव (Doppler's Effect)

                ध्वनि तरंगो में- जब ध्वनि स्रोत तथा श्रोता की आपेक्षिक गति के कारण स्रोत की आवृत्ति में श्रोता द्वारा प्रेक्षित आभासी- परिवर्तन को "डॉप्लर प्रभाव" कहते हैं। सन् 1842 में आस्ट्रियन वैज्ञानिक जौहोन डॉप्लर ने इसे दिया, जिसके कारण इस प्रभाव को डॉप्लर प्रभाव कहते हैं।

                उदाहरणं- समुद्र में पनडुब्बी का वेग ज्ञात करने में।

            प्रकाश में- स्रोत तथा प्रेक्षक के मध्य आपेक्षित गति के कारण प्रकाश की आवृत्ति में आभासी परिवर्तन या तरंगदैर्ध्य में विस्थापन को प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव या डॉप्लर विस्थापन कहते हैं। प्रकाश में डॉप्लर विस्थापन ज्ञात करने के लिए आइन्स्टीन के सांपेक्षिकता के सिद्धांत को प्रयुक्त करते है।

                विद्युत चुम्बकीय तरंगो में डॉप्लर प्रभाव के उपयोग

            1. तारों तथा गलैक्सियों की गति का अनुमान लगाने में

            2. विमान का वेग ज्ञात करने

            3. सूर्य की घूर्णन चाल ज्ञात करना

            4. स्पेक्ट्रमी रेखाओं की मोटाई ज्ञात करना।

 

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