अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्र

अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्र

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विश्‍लेषणात्मक अवधारणा

 

संविधान में ऐसे कई सिद्धान्त सूत्रबद्ध किये गए है, जो हमारे समाज और राज्यव्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाते हैं। इन सिद्धान्तों को मौलिक अधिकारों के माध्यम से परिभाषित किया गया है। यह हमारे संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह अधिकार सभी भारतीयों को समान रूप से उपलब्ध होते है जहाँ पर हशियाई तत्वों की बात है उन्होंने इन अधिकारों को 2 तरह से इस्तेमाल किया है- पहला अपनी मौलिक अधिकारों पर जोर देकर सरकार को अपने साथ हुए अन्याय पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया । और दूसरा, उन्होंने इस बात के लिए दबाव डाला कि सरकार इन कानूनों को लागू करें। आज हमारे देश के आदिवासी, दलित मुसलमान, महिलाएँ एवं अन्य हाशियाई समूह यह मांग कर रहे है कि एक लोकतांत्रिक देश का नागरिक होने के नाते उन्हें भी बराबर अधिकार मिलने चाहिए। उनके अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। इन सभी पर विचार करने के लिए सरकार की ओर से कई तरह के नीतिगत प्रयास किए गए है और संविधान में उनके अधिकारों व क्षेत्रों के लिए विशेष अनुच्छेदों का वर्णन किया गया है, जिनसे उनके क्षेत्र व समुदाय के अधिकार सुनिश्चित होते है।

संविधान के भाग-10 में अनुच्छेद-244 में कुछ ऐसे क्षेत्रों में जिन्हें अनुसूचित क्षेत्र और जनजातीय क्षेत्र नामित किया गया है, प्रशासन की विशेष व्यवस्था की परिकल्पना की गई है। संविधान की पाँचवीं अनुसूची में राज्यों के अनुसूचित क्षेत्र व अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन व नियंत्रण के बारे में चर्चा की गई है (असम, मेघालय, त्रिपुरा व मिजोरम राज्यों को छोड़कर) (अनुच्छेद-244(1)

संविधान की छठी अनुसूची मे चार उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा व मिजोरम के जनजातीय क्षेत्र के प्रशासन के सम्बंध में प्रावधान हैं। (अनुच्छेद-244(2)

अनसचित क्षेत्रों का प्रशासनः अन्य राज्यों की तुलना में अनुसूचित क्षेत्रों के साथ भिन्न रूप में व्यवहार किया जाता है क्योंकि वहाँ निवासी आदिम अवस्था में रहते हैं। वे सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े होते हैं और उनके उत्थान व विकास के लिए विशेष प्रयास की आवश्यकता होती है। अतः राज्यों में चलने वाली सामान्य प्रशासनिक व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में लागू नहीं होती और केन्द्र सरकार की इन क्षेत्रों के प्रति अधिक जिम्मेदारी होती है।
पाँचवीं अनुसूची में वर्णित प्रशासन की कुछ विशेषताएँ
  1. अनुसूचित क्षेत्र की घोषणाः राष्ट्रपति को किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का अधिकार प्राप्त है। राष्ट्रपति को सम्बंधित राज्य के राज्यपाल के साथ परामर्श कर किसी अनुसूचित क्षेत्र के क्षेत्रफल को बढ़ाने, घटाने या सीमाओं को परिवर्तन और इस प्रकार से नामों में भी बदलाव का अधिकार प्राप्त है।
  2. केन्द्र व राज्य की कार्यकारी शक्तिः राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होता है। केन्द्र की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य को उक्त क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में निर्देशित और जरूरत पड़ने पर राज्य सरकार को इन क्षेत्रों में समुचित ढंग से प्रशासन चलाने के लिए बाध्य करता है, अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्य के लिए राज्यपाल पर विशेष जिम्मेदारी हाती है।
  3. जनजातीय सलाहकार परिषदः ऐसे राज्य, जिनके अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र है, वहाँ जनजाति सलाहकार परिषद् का गठन अनिवार्य रूप से किया जाता है, यह परिषद अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उत्थान से संबधित ऐसे विषयों पर सलाह देगी, जो राज्यपाल द्वारा निर्देशित किए गए।
  • राज्यपाल को परिषद के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया एवं संख्या को निर्धारित करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • जनजातीय सलाहकार परिषद में अधिकतम 20 सदस्य हो सकते हैं इनमें से तीन-चौथाई सदस्य राज्य की विधानसभा में शामिल अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों में से लिये जाएंगे।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में लागू विधिः राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह संसद या राज्य विधानमण्डल के किसी विशेष अधिनियम को अनुसूचित क्षेत्रों में लागू न करें या कुछ परिवर्तन व अपवादस्वरूप उसे लागू करें।
  1. राज्यपाल, अनुसूचित क्षेत्रों में शांति व सुशासन हेतु सरकार के लिए जनजाति सलाहकार परिषद् से विचार-विमर्श का नियम बना सकता है।
  2. वह संसद के या राज्य विधानमंडल के किसी अधिनियम में संशोधन या निरसन कर सकेगा जो क्षेत्र पर लागू होने वाले हो।
  3. राज्यपाल कोई भी नियम या विनियम तब तक नहीं बना सकता है, जब तक वह जनजातीय सलाहकार परिषद से विचार व परामर्श नहीं कर लेता हो।
  • जनजातीय क्षेत्रों में प्रशासन-संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत प्रशासन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:
  1. असम, मेघालय, त्रिपुरा व मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों में स्वशासी जिलों का गठन किया गया है।
  2. राज्यपाल को स्वशासी जिलों को स्थापित या पुनस्थापित करने का अधिकार हैं।
  3. अगर स्वशासी जिले में विभिन्न जनजातियाँ हैं तो राज्यपाल, जिले को विभिन्न स्वशासी प्रदेशों में विभाजित कर सकते हैं।
  4. प्रत्येक स्वशासी जिले के लिए एक जिला परिषद् होगी, जो 30 सदस्यों से मिलकर बनेगी, जिनमें राज्यपाल द्वारा 4 सदस्य नामित किए जाएंगे और शेष 26 सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित किए जाएंगे।
  5. जिला व प्रादेशिक परिषद् को अपने अधीन क्षेत्रों के लिए विधि बनाने की शक्ति है। वे भूमि, वन, नहर या जलसरणी, परिवर्ती खेतों, गाँव प्रशासन, संपत्ति की विरासत, विवाह व विवाह-विच्छेद (तलाक) सामाजिक रूढ़ियाँ आदि विषयों पर विधि बना सकते हैं। जिला व प्रादेशिक परिषद् अपने अधीन क्षेत्रों में जनजातियों के आपसी मामलों के निपटारे के लिए ग्राम परिषद् या न्यायालयों का गठन कर सकती है।
  6. जिला परिषद्, अपने जिले में प्राथमिक विद्यालयों, औषधालय, बाजारों, फेरी, मत्स्य क्षेत्रों, सड़कों आदि को स्थापित कर सकती है या निर्माण कर सकती है।
  7. जिला व प्रादेशिक परिषद् को भू-राजस्व का आकलन व संग्रहण करने का अधिकार है। वह कुछ विनिर्दिष्ट कर भी लगा सकता है।
पाँचवीं अनुसूची के राज्य व सम्मिलित क्षेत्र

राज्य

पाँचवीं अनुसूची के राज्य व सम्मिलित क्षेत्र,

आंध्र प्रदेश

विशाखापट्टनम, पूर्वी गोदावरी, पश्चिमी गोदावरी, आदिलाबाद, श्रीकाकुलम, विजयनगरम्, महबूबनगर, प्रकाशम् (कुछ मंडल ही अनुसूचित क्षेत्र है)।

झारखण्ड

दुमका, गोढा, देवगढ़, साहेबगंज, पाकुड़, राँची, सिंहभूम (पूर्वी एवं पश्चिमी) गुमला, सिमडेगा, लोहारदगा, पलामू, गढ़वा (कुछ जिले आंशिक रूप से जनजातिय क्षेत्र हैं)।

छत्तीसगढ़

सरगुजा, बस्तर, रायगढ़, रायपुर, जसपुर, राजनांदगाँव, दुर्ग, बिलासपुर, दंतेवाड़ा कोरबा जिला, काँकेर।

हिमाचल प्रदेश

लाहौल और स्पीति जिले, किन्नौर, चंबा जिले में पंगी तहसील और भरमौर उप-तहसील।

मध्य प्रदेश

झाबआ, मंडला, खरगौन, पूर्वी निमाड़ (खंडवा), रतलाम जिले में सैलाना तहसील, बैतूल, सिवनी, बालाघाट, मुरैना, छिंदवाड़ा, शहडोल।

गुजरात

सूरत, भरूच, डाँग, वलसाड, पंचमहल, बड़ोदरा, साबरकांठा (इन जिलों के केवल कुछ भाग)।

ओडिशा

मयूरभंज, सुंदरगढ़, कोरापुट (ये तीन जिले पूर्णतः अनुसूचित क्षेत्र हैं), रायगढ़, क्योंझर, संबलपुर, बौध, कंधामाल, कालाहांडी, बोलांगीर, बालासोर।

महाराष्ट्र

ठाणे, नासिक, धुले, अहमदनगर, पुणे, नादेंड, अमरावती, यवतमाल, गढ़चिरौली चंद्रपुर (इन जिलों के कुछ भाग)।

राजस्थान

बाँसवाड़ा, डुंगरपुर (पूर्णतया जनजातीय जिले), उदयपुर, चित्तौड़गढ़, सिरोही (अशतः जनजातीय क्षेत्र)

तेलंगाना

 

 

                     टिप्पणी-आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत तेलंगाना राज्य का गठन आंध्र प्रदेश राज्य को पृथक करके 2 जून, 2014 को किया गया। 5वीं अनुसूची में सम्मिलित क्षेत्र आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना संयुक्त रूप से शामिल हैं।

छठी अनुसूची के जनजातीय क्षेत्र

राज्य

जनजातीय क्षेत्र

असम

1. दीमा हसाव स्वायत्त जिला (उत्तरी कछार पहाड़ी जिला), 2. कार्बी आंगलांग जिला, 3. बोडोलैंड प्रदेश क्षेत्र जिला

मेघालय

1. खासी पहाड़ी जिला, 2. जयंतिया पहाडी जिला, 3. गारो पहाड़ी जिला।

त्रिपुरा

त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र।

मिजोरम

1. चमका जिला, 2. मारा जिला, 3. लाई जिला।

 

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