सर्वोच्चय न्यायालय

सर्वोच्चय न्यायालय

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 विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

आमतौर पर न्यायालय को विभिन्न व्यक्तियों या निजी संस्थाओं के आपसी विवादों को सुलझाने वाले पंच के रूप में देखा जाता है। लेकिन न्यायपालिका कुछ महत्वपूर्ण राजनैतिक कामों को भी अंजाम देती है। न्यायपालिका सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय वास्तव में विश्व के सबसे शक्तिशाली न्यायालयों में से एक है। 1950 से ही न्यायपालिका ने संविधान की व्याख्या और सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मौलिक अधिकारों वाले अध्याय में हम देख ही चुके हैं कि अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायपालिका बहुत महत्वपूर्ण है। इस अध्याय को पढ़ कर आप निम्नलिखित बातों को जान सकेंगेः  

·         न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ,

·         अधिकारों की सुरक्षा में भारतीय न्यायपालिका की भूमिकाः

·         संविधान की व्याख्या में न्यायपालिका की भूमिका, और;

·         भारत की संसद और न्यायपालिका के आपसी संबंध।

 

संविधान के भाग-5 में अनुच्छेद-124 से 147 तक उच्चतम न्यायालय की शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन है। भारत में न्यायपालिका का एकीकृत रूप है। संघ और राज्यों दोनों के लिए एक ही न्यायपालिका है, जबकि अमेरिका में संघ एवं राज्यों के लिए अलग-अलग न्यायालय है। भारत में उच्चतम न्यायालय, मूल अधिकारों का रक्षक और संविधान का संरक्षक भी है। भारतीय संविधान में स्वतंत्र एवं स्वायत्त न्यायपालिका का प्रावधान किया गया है।

        न्यायपालिका की संरचना निम्नलिखित हैः
  • उच्चतम न्यायालय का स्थापना एवं गठनः संविधान के अनुच्छेद 124 (1) में उच्चतम न्यायालय की स्थापना से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं। प्रारंभ में मूल संविधान में मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त 7 अन्य न्यायाधीशों का प्रावधान किया गया था। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के (न्यायाधीशों की संख्या) संशोधन अधिनियम, 2019 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 33 अन्य न्यायाधीश का प्रावधान किया गया है। इस प्रकार वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 34 न्यायाधीश है।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की योग्यताएं: संविधान के अनुच्छेद 124 (3) के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश की नियुक्त संबंधी निम्नलिखित योग्यताएं निर्धारित की गई हैं:
  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह लगातार कम-से-कम 5 वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का न्यायाधीश रहा हो, या
  3. वह लगातार कम-से-कम 10 वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का अधिवक्ता रहा हो, या
  4. राष्ट्रपति की राय में विख्यात या कुशल विधिवेत्ता हो।
  • मुख्य न्यायाधीश की नियुक्तिः मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के एवं राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करेंगे, जिनसे आवश्यक समझें। सामान्यतः यह परंपरा रही है कि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम् न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है। परंतु इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान पहली बार एक कनिष्ठ न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया। वर्ष 1973 में ए. एन. रे को मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया तथा न्यायमूर्ति ए. एन. ग्रोवर, जे. एम. शेलात एवं के. एस. हेगड़े की वरिष्ठता का उल्लंघन किया गया।
  • वर्ष 1977 में मिर्जा अहमदुल्लाह बेग को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया तथा न्यायमूर्ति बी. आर. कृष्ण अय्यर की वरिष्ठता का उल्लंघन किया गया। उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह से की जाएगी।
  • कोलिजियम प्रणालीः इस व्यवस्था को उत्पत्ति उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों के आधार पर हुई, जिसे ’थ्री जजेज केसेज’ भी कहा जाता है। 6 अक्टूबर, 1993 को उच्चतम न्यायालय के नौ जजों की एक खंडपीठ ने एक निर्णय दिया, जिससे कोलिजियम प्रणाली की उत्पत्ति हुई। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली कोलिजियम व्यवस्था में मुख्य न्यायाधीश के अलावा चार 4 वरिष्ठ जज होते हैं, जिनसे सलाह करने के बाद ही मुख्य न्यायाधीश सरकार को सिफारिश भेजते हैं, जिसे मानने के लिए सरकार बाध्य है।
       कॉलेजियम प्रणाली की कमियों को देखते हुए मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए न्यायिक नियुक्ति आयोग के निर्माण का प्रस्ताव किया गया है।
  • न्यायिक नियुक्ति आयोगः न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके विरुद्ध कदाचार की जांच के लिए एक राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के निर्माण का प्रस्ताव किया गया है। यह आयोग न्यायाधीशों के असंगत आचरण के विषय राष्ट्रपति को सलाह देगा। इस आयोग का परामर्श राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी माना जाए।
  • उद्देश्यः इस विधेयक का उद्देश्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका तथा विधायिका को बराबर का अधिकार देना है। वर्ष 1993 से अब तक प्रचलित ’कोलेजियम सिस्टम’ के तहत न्यायपालिका स्वयं ही उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति करती है तथा इसमें कार्यपालिका की कोई भूमिका नहीं है। संभवतः भारत, विश्व का पहला ऐसा देश है, जहां न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की कोई भूमिका नहीं होती है। अतः इसी कमी को दूर करने हेतु यह विधेयक लाया गया है साथ ही इस विधेयक को लाने का उद्देश्य न्यायाधीशों की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की संरचनाः
  1. इस आयोग में कुल छह (6) सदस्य होंगे।
  2. भारत के मुख्य न्यायाधीश ’राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ के अध्यक्ष होंगे।
  3. सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम् न्यायाधीश सदस्य होंगे।
  4. भारत के कानून मंत्री इसके पदेन सदस्य होंगे।
  5. दो प्रबुद्ध नागरिक इसके सदस्य होंगे, जिनका चयन प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता वाली 3 सदस्यीय समिति करेगी। ऐसे सदस्यों की नियुक्ति का सुझाव लोकपाल सर्च कमेटी देगी।
  6. दो प्रबुद्ध व्यक्तियों में से एक सदस्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक या महिला वर्ग से होगा।
  7. आयोग सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद हेतु उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करेगा जिसके नाम पर किन्हीं दो सदस्यों ने आपत्ति जताई हो।
  8. इस आयोग के किसी कार्य अथवा सिफारिश पर इस आधार पर सवाल नहीं उठाया जाएगा कि आयोग का कोई पद रिक्त था। उल्लेखनीय है कि, कानून में संशोधन करके विपक्ष के नेता शब्द की जगह लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को कर दिया गया है क्योंकि 16वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद रिक्त था।
  • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग असंवैधानिकः अक्टूबर 2015 में उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए 99वें संविधान संशोधन अधिनियम 2014 को असंवैधानिक घोषित कर दिया और उच्चतम न्यायालय के अनुसार न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम व्यवस्था को बेहतर बताया।
  • न्यायाधीशों की शपथ या प्रतिज्ञानः संविधान के अनुच्छेद 124(6) में शपथ संबंधी प्रावधान है। इस प्रावधान के तहत सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने से पहले वह व्यक्ति भारत के राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस प्रयोजन के लिये नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष शपथ लेगा। मुख्य न्यायाधीश द्वारा भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने की शपथ ली जाती है एवं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने का वचन भी लिया जाता है।
  • न्यायाधीशों का कार्यकालः सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपना पद धारण कर सकते हैं (संविधान में कोई निश्चित कार्यकाल तय नहीं)। वह राष्ट्रपति को लिखित त्याग-पत्र दे सकता है।
        नोटः 15वेंसंविधान संशोधन अधिनियम, 1963 द्वारा संविधान के अनुच्छेद 124(2)(क) जोड़ा गया, जिसमें प्रावधान है कि “सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की आयु प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से अवधारित की जाएगी, जिसका संसद विधि द्वारा उपबंध करे।“
  • न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रियाः संविधन के अनुच्छेद 124(4) में न्यायाधीशों को हटाए जाने (’महाभियोग’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है) की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 124(5) के तहत संसद विधि द्वारा न्यायाधीशों को हटाए जाने से संबंधित प्रक्रिया का उपबंध कर सकती है। न्यायाधीशों को हटाए जाने की प्रक्रिया की शुरुआत संसद के किसी भी सदन से की जा सकती है। यदि लोकसभा से शुरुआत होती है तो 100 सदस्यों और यदि राज्यसभा से तो 50 सदस्यों हस्ताक्षर, अध्यक्ष या सभापति को देने के बाद ही प्रस्ताव पेश हो सकता है। अध्यक्ष या सभापति द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किये जाने पर 3 व्यक्तियों की समिति गठित होती है, जिसमें
  1. सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या अन्य न्यायाधीश।
  2. किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होगा।
  3. एक पारंगत विधिवेत्ता होता है।
  • यदि समिति न्यायाधीश को कदाचार का दोषी नहीं पाती है तो यह प्रक्रिया यहीं समाप्त हो जाती है। यदि दोषी पाती है तो मूल प्रस्ताव के साथ समिति की रिपोर्ट को सदन में पेश किया जाता है।
  • यदि प्रस्ताव दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित व मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से पारित हो जाए तो उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। तत्पश्चात् राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाए जाने का आदेश जारी करता है। नोटः संविधान के अनुच्छेद 124(4) में यह प्रावधान है कि यह प्रक्रिया संसद के एक ही सत्र में पूरी होनी चाहिये, परंतु ’वी. रामास्वामी’ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया कि यदि न्यायाधीश के महाभियोग की प्रक्रिया के दौरान लोकसभा भंग हो जाए तो भी संकल्प व्यपगत नहीं होगा। अभी तक केवल सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश (वी. रामास्वामी) के मामले में महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया, परंतु लोकसभा में यह प्रस्ताव अपेक्षित बहुमत के अभाव में पारित नहीं हो पाया।
  • न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्तेः संविधान के अनुच्छेद 125 एक में प्रावधान है कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को वह वेतन दिया जाएगा जो संसद विधि द्वारा निर्धारित करे जब तक संसद निर्धारित नहीं करती तब तक संविधान की दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट वेतन दिया जाएगा। 
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीश के वेतन एवं भत्ते में उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय (वेतन एवं सेवा शर्ते) संशोधन कानून, 2018 के द्वारा वृद्धि की गई है। वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश का वेतन 80 लाख प्रतिमाह है। अन्य न्यायाधीशों का वेतन 2.50 लाख हैं।
  • उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार एवं शक्तियाँ:     
  1. प्रारंभिक क्षेत्राधिकारः
      (i) भारत संघ तथा एक या एक से अधिक राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों में
      (ii) भारत संघ तथा कोई एक राज्य या अनेक राज्यों और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवादों में।
      (iii) दो या दो से अधिक राज्यों के बीच ऐसे विवाद में, जिसमें उनके वैधानिक अधिकारों का प्रश्न निहित है। प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय उसी विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगा, जिसमें किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल है।
  1. अपीलीय क्षेत्राधिकारः देश का सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय है। इसे भारत के सभी उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनने का अधिकार है। इसके अन्तर्गत तीन प्रकार के प्रकरण आते हैं-
    (i) सांविधानिक, (ii) दीवानी और (iii) फौजदारी।
  2. परामर्शदात्री क्षेत्राधिकारः राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक महत्व के विवादों पर सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श माँग सकता है (अनुच्छेद-143)। न्यायालय के परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है।
  3. पुनर्विचार संबंधी क्षेत्राधिकारः संविधान के अनुच्छेद-137 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह स्वयं द्वारा दिये गये आदेश या निर्णय पर पुनर्विचार कर सके तथा यदि उचित समझे तो उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है।
  4. अभिलेख न्यायालयः संविधान का अनुच्छेद-129 में सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्रदान करता है। इसका आशय यह है कि इस न्यायालय के निर्णय सब जगह साक्षी के रूप में स्वीकार किये जायेंगे और इसकी प्रामाणिकता के विषय में प्रश्न नहीं किया जायेगा।
  5. मौलिक अधिकारों का रक्षकः भारत का सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का रक्षक है। संविधान के अनुच्छेद-32 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष रूप से उत्तरदायी ठहराता है कि वह मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे । न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा-लेख और उत्प्रेषण नामक रीट जारी कर सकता
        नोट-संविधान के अनुच्छेद-145 (3) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में संविधान के निर्वचन से संबंधित मामले की सुनवाई करने के लिए न्यायाधीशों की संख्या कम-से-कम पाँच होनी चाहिए।

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