रासायनिक आबंधन एवं आण्विक संरचना

रासायनिक आबंधन एवं आण्विक संरचना

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रासायनिक आबन्धन एवं आणविक संरचना

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

वैज्ञानिक निरंतर नए यौगिकों की खोज कर रहे हैं, उनके तथ्यों को क्रम में व्यवस्थित कर रहे हैं, विद्यमान जानकारी के आधार पर उनकी व्याख्या की कोशिश कर रहे हैं, नए तथ्यों की व्याख्या करने के लिए प्रचलित धारणाओं को संशोधित कर रहे हैं या नए सिद्धांतों को विकसित कर रहे हैं। इलेक्ट्रोधनायनों तथा इलेक्ट्रोऋणायनों के विरचन की क्रियाविधि को सर्वप्रथम कॉसेल ने संबंधित आयन द्वारा उत्कृष्ट गैस विन्यास की प्राप्ति के साथ संबंधित किया। आयनों के बीच विद्युत आकर्षण के कारण स्थायित्व उत्पन्न होता है, जो विद्युत संयोजकता का आधार है।

 

सामान्य परिचय

द्रव्य एक या विभिन्न प्रकार के तत्वों से मिलकर बना होता है। सामान्य स्थितियों में उत्कृष्ट गैसों के अलावा कोर्इ अन्य तत्व एक मुक्त परमाणु के रूप में विद्यमान नहीं होता हैं। परमाणुओं के समूह विशिष्ट गुणों वाली स्पीशीज के रूप में विद्यमान होते हैं। परमाणुओं के ऐसे समूह को ‘अणु’ कहते हैं। प्रत्यक्ष रूप में कोर्इ बल अणुओं के घटक परमाणुओं को आपस में बांधे रखता है। विभिन्न रासायनिक स्पीशीज में उनके अनेक घटकों (परमाणुओं, आयनों इत्यादि) को जोड़े रखने वाले आकर्षण बल को रासायनिक आबंध (Chemical bond) कहते हैं।

 

रासायनिक आबन्धन (Chemical bonding)- प्रकृति में विद्यमान परमाणु जिस बल द्वारा आपस में जुड़कर अणु बनाते हैं, उस बल को रासायनिक आबन्ध या बंध (chemical bond) तथा इस प्रक्रिया को रासायनिक आबन्धन कहते हैं। परमाणु स्थायित्व प्राप्त करने के लिए रासायनिक संयोजन करते हैं।

 

रासायनिक आबंधन की कॉसेल-लूइस अवधारणा

कोसेल (Kossel) तथा लुइस (Lewis) के अनुसार, “प्रत्येक तत्व के परमाणु अपने निकटतम अक्रियध्उत्कृष्ट गैस के समान स्थायी विन्यास प्राप्त करने की प्रवृत्ति रखते हैं। अत: रासायनिक बंध बनाने के लिए दो या दो से अधिक परमाणु परस्पर इलेक्ट्रॉनों का वितरण करके अक्रिय/उत्कृष्ट गैसों के समान स्थायी इलेक्ट्रॉनिक संरचना प्राप्त कर लेते हैं।

 

लूइस प्रतीक (Lewis symbol)- रसायनज्ञ जी.एन. लूइस ने परमाणु में संयोजकता इलेक्ट्रॉनों को दर्शाने के लिए सरल संकेतो को प्रस्तावित किया, जिन्हें लूइस प्रतीक (Lewis Symbol) कहा जाता है।

 

संयोजी इलेक्ट्रॉन (Valence Electrons)- अणु के निर्माण में परमाणुओं के सभी इलेक्ट्रॉन भाग नहीं लेते। परमाणुओं के बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉन ही रासायनिक बंध निर्माण में भाग लेते हैं। ये इलेक्ट्रॉन संयोजकता इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं तथा इस बाह्यतम कोश को संयोजकता कोश कहते हैं।

अष्टक नियम (Octet Rule)- ‘‘कोर्इ परमाणु अणु का निर्माण करते समय इलेक्ट्रॉन त्याग कर अथवा ग्रहण करके अथवा सहभाजन (Sharing) करके अपने बाह्यतम कोश में आठ इलेक्ट्रॉन पूरा करने की प्रवत्ति रखता है’’ रासायनिक बंधों के प्रकार विभिन्न तत्वों के परमाणु के अक्रियध्उत्कृष्ट गैसों के समान स्थायी विन्यास प्राप्त करने के लिए निम्न तीन प्रकार के रासायनिक बंध बना सकते हैं

(1) आयनिक बंध, (2) सहसंयोजक बंध, (3) उप- सहसंयोजक बंध

 

1.             आयनिक बंध या विद्युत संयोजी बंध (lonic bond or Electrovalent bond)-यह बंध एक परमाणु से दूसरे परमाणु पर इलेकॉनों के स्थानान्तरण से या परमाणुओं के मध्य इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण से जो रासायनिक बंध बनते हैं उन्हें आयनिक बंध या विद्युत संयोजी बंध कहते हैं।

जालक ऊर्जा (जालक एन्थैल्पी)- किसी आयनिक ठोस के एक मोल यौगिक को गैसीय अवस्था में संघटक

 

 

आयनों में पृथक करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को उस यौगिक की ‘जालक ऊर्जा कहते है।

उदाहरण के लिए- NaCl की जालक एन्थैल्पी 788 kJ/mol है।

 

2.             सहसंयोजक बंध (Covalent Bond)- परमाणु अपना अष्टक पूर्ण करने के लिए समान संख्या में इलेक्ट्रॉनों का सहभाजन (Sharing) भी कर सकते हैं। ये परमाणु समान या भिन्न हो सकते हैं। इस प्रकार बना हुआ रासायनिक बंध सहसंयोजी या सहसंयोजक बंध (Covalent bond) कहलाता है और इस प्रकार बने यौगिक सहसंयोजी यौगिक (Covalent compounds) कहलाते हैं। उदाहरण- क्लोरीन \[\left( \text{C}{{\text{l}}_{2}} \right)\]

आबंधप्राचल (Bond parameters)

बंध लंबार्इ (Bond length)- किसी अणु में बंधित परमाणुओं के नाभिकों के बीच साम्यावस्था दूरी ‘बंध लंबार्इ’ कहलाती है। बंध लंबार्इ एक्स-किरण विवर्तन, स्पेक्ट्रोमीटर तथा इलेक्ट्रॉन विवर्तन (Electron Diffraction) तकनीकों की सहायता से ज्ञात की जाती है। बंधित युग्म का प्रत्येक परमाणु बंध-लंबार्इ में योगदान देता है। सहसंयोजी बंध में प्रत्येक परमाणु का योगदान उस परमाणु की ‘सहसंयोजी त्रिज्या’ कहलाती है। बंधित अवस्था में किसी परमाणु के नाभिक, जो जुड़े हुए परमाणु के नाभिक के संपर्क में होता है, की त्रिज्या उसकी सहसंयोजी त्रिज्या मानी जाती है।

 

सहसंयोजी त्रिज्या- एक ही अणु में बंधित दो समान परमाणुओं के बीच की दूरी का आधा भाग होती है।

वाण्डरवाल त्रिज्या- अनाबंधित अवस्था में संयोजी कोश सहित परमाणु का सम्पूर्ण आकार को दर्शाती है। वाण्डरवाल त्रिज्या ठोस अवस्था में विभिन्न अणुओं के दो समान परमाणुाओं के बीच की दूरी का आधा भाग होती है।

 

बंध-कोण (Bond angle)- किसी अणु के केंद्रीय परमाणु के आसपास उपस्थित बंधन इलेक्ट्रॉन युग्म को धारण करने वाले कक्षको के बीच बनने वाले कोण को ‘बंध कोण’ कहते हैं। बंध एन्थैल्पी- गैसीय स्थिति में दो परमाणुओं के बीच विशिष्ट बंधों के एक मोल को वियोजित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को ‘बंध एन्थैल्पी’ कहते हैं। बंध एन्थैल्पी का मात्रक kJ/mol होता है। उदाहरणार्थ- हाइड्रोजन के अणु में H-H बंध की बंध एन्थैल्पी 435.8 kJ/mol होती है, अर्थात्

\[{{H}_{2}}\left( g \right)\to H\left( g \right)+H\left( g \right);A,{{H}^{o}}=435.8kJ/mol\]

 

आबंध कोटि (Bond Order)- सहसंयोजी बंध की लूइस व्याख्या के अनुसार किसी अणु में दो परमाणुओं के मध्य बंधों की संख्या आबंध. कोटि (Bond Order) कहलाती है। अणुओं के स्थायित्व को समझने के लिए एक उपयोगी सामान्य सह-संबंध यह है कि आबंध-कोटि बढ़ने पर बंध एंथैल्पी बढ़ती है, जबकि बंध लंबार्इ घटती है।

 

आबंध-ध्रुवणता

किसी बंध का सौ प्रतिशत आयनिक या सहसंयोजी होना एक आदर्श स्थिति है। परंतु वास्तव में कोर्इ भी बंध या यौगिक पूर्ण रूप से सहसंयोजी या आयनिक नहीं होता है। यहां तक कि दो हाइड्रोजन परमाणुओं के बीच बनने वाले सहसंयोजी बंध की  

प्रकृति भी आंशिक रूप से आयनिक होती है।

 

द्विध्रुव आघूर्ण

ध्रुवण के कारण अणु में द्विध्रुव आघूर्ण उत्पन्न हो जाता हैं। द्विध्रुव

को आवेश के मान तथा धनात्मक और ऋणात्मक आवेशों के बीच की दूरी के गुणनफल के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसे सामान्यत: ग्रीक शब्द ‘µ’  द्वारा दर्शाया जाता है। इसे निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जाता है-

द्विध्रुव आघूर्ण (µ) ¾ आवेश () \[\times \]आवेश पृथक्करण की दूरी (r)

 

उप-सहसंयोजक बंध (Coordinate Bond or Coordinate Covalent Bond)- सहसंयोजक बंध से बंधे हुए दोनों परमाणु एक-एक इलेक्ट्रॉन प्रदान करके इलेक्ट्रॉन युग्म का साझा करते है सहसंयोजक बंध के ऐसे उदाहरण भी हैं जिनमें बन्धित परमाणुओं में सें एक ही परमाणु दोनों इलेक्ट्रॉन प्रदान करता है। इस बंध में एक ही परमाणु e प्रदान करता है।

 

अणुओं में रासायनिक बन्ध

क्वाण्टम यांत्रिकी तथा पाउली के अपवर्जन नियम पर आधान्ति दो सिद्धान्तों का विकास किया गया जिसे सहसंयोजी बंध सिद्धान्त (Covalent bond theory) कहा गया-

(i) संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त (ii) अणु कक्षक सिद्धान्त संयोजकता बंध सिद्धान्त (Valency Bond Theory VBT) संयोजकता बंध सिद्धान्त को सर्वप्रथम 1927 में हिटलर एवं लन्दन (W-Heitler and F-London) ने प्रस्तुत किया, जिसे 1933 में पाउला एवं स्लेटर (Pouling and Slater) ने विस्तृत रूप से विकसित किया। इस प्रकार हिटलर-लन्दन द्वारा प्रस्तुत एवं पाउलिंग-स्लेटर विकसित सिद्धान्त को सम्मिलित रूप से संयोजकता बंध सिद्धान्त (Valence Bond theory) कहते हैं।

 

कक्षक अतिव्यापन (Orbital Overlapping)

जब दो इलेक्ट्रॉन बहुत दूर रहते हैं तो उस स्थिति में उनका साझा  (Sharing ) सम्भव नहीं है। जब दो परमाणु समीप होते हैं तब उनके दोनों कक्षक आंशिक रूप से अतिव्यापन कर सकते हैं। इस प्रकार दोनों इलेक्ट्रॉन सहभाजित हो जाते हैं। बंध की प्रबलता (Strength) अतिव्यापन की मात्रा पर निर्भर करती है।

कक्षक अतिव्यापन के प्रकार-

1. s-s अतिव्यापन - a. समाक्ष अतिव्यापन, b. पार्श्ववार्ता अतिव्यापनव

2. s-p अतिव्यापन

3. p-p अतिव्यापन

 

सिग्मा (\[\sigma \]) एवं पार्इ (\[\pi \])

बन्ध सिग्मा-बन्ध (sigma bond)- दो कक्षको का एक ही अक्षय उनके सिरों द्वारा अतिव्यापन (End to end Overlapping) होने से जो बंध बनता है उसे सिग्मा बंध कहते हैं। सिग्मा बंध में इलेक्ट्रॉन का घनत्व अंत: नाभिकीय अक्ष (Inter-nuclear axis) पर अधिकतम होता है। यह मजबूत बंध है। सिग्मा बंध s-s, s-p तथा p-p समाक अतिव्यापन से बनता है।

 

पार्इ-बन्ध (pi-bond)- दो -कक्षकों के पार्श्ववर्ती अतिव्यापन से ने बंध को पार्इ बंध कहते हैं। यह बंध सिग्मा बंध की तुलना में दुर्बल होता है।

अनुनाद एवं अनुनाद संकर

रसायन में कुछ यौगिकों को केवल एक ही संरचना वाले ऐसे सूत्र द्वारा स्पष्ट नही किया जा सकता जिससे उस यौगिक के सभी गुणों की व्याख्या की जा सके। उस स्थिति में उसके एक से अधिक संरचना लिखे जाते हैं जिनसे उस यौगिक के अधिकांश ज्ञात गुणों की व्याख्या हो सके। ये सभी संरचना सूत्र कैनॉनिकल रूप (Conical Form) या अनुनाद संरचना (Resonance Structure) कहलाते हैं तथा यह धारणा अनुनाद कहलाती है। सभी अनुनाद संरचनाएं एक साथ लिखने पर वह समूह अनुनाद संकर कहलाता है। अनुनाद संकर और सर्वाधिक स्थायी अनुनाद संरचना की ऊर्जा का अंतर अनुनाद ऊर्जा (Resonance Energy) कहलाता है।

सहसंयोजक अणुओं की आकृति

योजकता कोश इलेक्ट्रॉन युग्म प्रतिकर्षण सिद्धांत (VSEPR Theory)

लुइस अवधारणा अणुओं की आकृति की व्याख्या करने में असमर्थ है वी. एस. र्इ. पी. आर. सिद्धांत सहसंयोजी आकृति को समझने के लिए एक सरल कार्यविधि उपलब्ध कराता है। यह विधि सर्वप्रथम सन् 1940 में सिजविक तथा पॉवेल (Sidgwick and Powell) ने परमाणुओं के संयोजकता कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉन युग्मों के बीच प्रतिकर्षण अन्योग्य क्रियाओं के आधार पर प्रस्तुत किया था। इस विधि को नाइहोम तथा गिलेस्पी (Nyholm and gillespie) ने सन् 1957 ¾ ओर अधिक विकसित तथा संशोधित किया।

 

संकरण (Hybridization) -

लगभग समान ऊर्जा वाले विभिन्न परमाणवीय कक्षक मिश्रित होकर उतनी ही संख्या में समान ऊर्जा एवं आकृति वाले नये कक्षक बनाते है यह प्रक्रिया संकरण कहलाती है।

1. sp संकरण-एक s तथा एक p-कक्षकों का मिश्रित होकर दो रेखीय p-कक्षकों का बनाना। \[s{{p}^{2}}\]संकरण-एक s तथा दो p-कक्षकों का मिश्रित होकर समतल त्रिकोणीय आकृति के तीन \[s{{p}^{3}}\] संकरित कक्षक बनाना।

- 3. \[s{{p}^{3}}\] संकरण-एक s तथा तीन p-कक्षक मिश्रित होकर समचतुष्फलकीय आकृति के चार \[s{{p}^{3}}\] संकरित कक्षक बनाना।

 

आण्विक कक्षक सिद्धांत (Molecular Orbital theory)-

यह सिद्धान्त हुण्ड एवं मुलिकन के द्वारा प्रस्तुत किया गया। इसके अनुसार परमाणु कक्षकों के संयोग एवं व्यवस्था से संपूर्ण अणु से संबद्ध आण्विक कक्षकों के बनने के रूप में बंधन का वर्णन करता है। आण्विक कक्षकों की संख्या संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों की संख्या के बराबर रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना होती है। आबंधी आण्विक कक्षक नाभिकों के मध्य इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ा देते हैं तथा इनकी ऊर्जा व्यक्तिगत परमाणु कक्षकों की ऊर्जा से कम होती है। प्रतिआबंधी आण्विक कक्षक में नाभिकों के मध्य शून्य इलेक्ट्रॉन घनत्व होता है। इन कक्षकों की ऊर्जा व्यक्तिगत परमाणु कक्षकों की अपेक्षा उच्च होती है।

 

ऊर्जा आरेख (Energy Diagram)- बन्धी आणविक कक्षक (Bonding MO) एवं विपरीत बन्धी आणविक कक्षक का बनना, ऊर्जा आरेख द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। बन्धी अणु कक्षक की ऊर्जा, परमाणु कक्षको की ऊर्जा से कम होती है। जबकि विपरीत बन्धी आणविक कक्षक की ऊर्जा बन्धी आणविक कक्षक की ऊर्जा से तथा घटक परमाणु कक्षकों से हमेशा अधिक होती है।

 

बन्ध-क्रम (Bond Order)- यह दो परमाणुओं के बीच बने बंध की सामर्थ्य की माप है। बन्ध-क्रम को “बन्धी एवं विपरीत बन्धी अणु कक्षकों के इलेक्ट्रॉनों के अर्द्ध-अन्तर’’ के रूप में परिभाषित किया जाता है। यदि बन्ध-क्रम भिन्नात्मक है तो अणु अनुचुम्बकीय होगा लेकिन यदि बन्ध-क्रम पूर्णाक संख्या है। तो अणु अनुचुम्बकीय या प्रतिचुम्बकीय दोनों हो सकता है।

 

हाइड्रोजन बन्धन (Hydrogen Bonding)- हाइड्रोजन बंध हाइड्रोजन परमाणु एवं विद्युत ऋणी परमाणु (N, O, F) के बीच होता है, तो उसमें हाइड्रोजन आबंध बनाता है। यह अंतर-अणुक (समान या भिन्न अणुओं के अलग-अलग अणुओं के बीच) या अंतरा-अणुक (एक अणु में ही) प्रकार का हो सकता है। हाइड्रोजन आबंध कर्इ यौगिकों की संरचनाओं तथा गुणधमोर्ं को बहुत प्रभावित करता है।

 

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