आर्थिक नियोजन एवं आर्थिक सुधार नीतियाँ
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आर्थिक नियोजन एवं आर्थिक सुधार नीतियां
विश्लेषणात्मक अवधारणा
अर्थिक लक्ष्यों की प्रप्ति के लिए उपयोग की जाने की प्रक्रिया को आर्थिक नियोजन कहा जाता है। सर्वप्रथम विष्वेष्रैया योजना का पता प्रथम अर्थिक नियोजन के रूप में चलता है। समय पर योजना बनाई गई। स्वतंत्रता के पश्चात 1947 में पं. नेहरू की अध्यक्षता में आर्थिक नियोजन समिति का गठन किया। इसी की सिफारिश में 15 मार्च, 1950 में योजना आयोग लागू किया गया। इस योजना आयोग के मार्ग दर्षन में ही भारत की आर्थिक नीतियों को सुचारू रूप से चलाया जा रहा है। वर्तमान समय में योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग कार्य कर रहा है।
आर्थिक नियोजन
आर्थिक नियोजन वह प्रक्रिया है जिसमें क्षेत्र-विशेष की आर्थिक सम्पत्ति (संपदा) एवं मानवीय सेवाओं को इस प्रकार उपयोग किया जाता है जिससे आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
यूरोपीय देशों में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप अधिक उत्पादन की प्रणाली की शुरुआत हुई। इस प्रणाली में निजी सम्पत्ति का अधिकार दिया गया और साथ ही व्यक्तियों को व्यवसाय की स्वतंत्रता प्रदान की गई जिसे पूंजीवाद कहा गया।
· वर्ष 1930 की वैश्विक मंदी ने आर्थिक नियोजन की अवधारणा की ओर देखने के लिए विवश किया। मुक्त बाजार व्यवस्था जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं था एक ऐसी व्यवस्था के रूप में उजागर हुई जो लोगों में गरीबी, बेरोजगारी, आय की अत्यधिक असमानता को बढ़ाती जा रही थी। इससे सामाजिक न्याय को चुनौती मिल रही थी, यही कारण रहे कि अर्थशास्त्रियों को कुछ नया प्रयोग करने की आवश्यकता महसूस हुई।
· सर्वप्रथम 1928 ई. में सोवियत संघ में नियोजन को आर्थिक विकास के रूप में अपनाया। वहां की पिछड़ी हुई कृषि तथा औद्योगिक व्यवस्था को अच्छी स्थिति में बदलने के लिए यह प्रयोग कारगर साबित हुआ जिसका प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ने लगा।
विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अर्थिक नियोजन को इस प्रकार परिभाषित किया है
डाल्टन के अनुसार- आर्थिक नियोजन अपने विस्तृत अर्थ में विशाल साधनों के संरक्षक व्यक्तियों के द्वारा निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आर्थिक क्रियाओं का इच्छित निर्देशन है।
रॉबिन्स के अनुसार- योजना बनाने का अर्थ है- उद्देश्य बनाकर कार्य करना, चुनाव या निर्माण करना और निर्णय सभी अर्थिक क्रियाओं का निचोड़ है।
गुर्नार मिर्डाल के अनुसार- आर्थिक नियोजन राष्ट्रीय सरकार की व्यूह रचना का एक कार्यक्रम है, जिसमें बाजार की शक्तियों के साथ-साथ सरकारी हस्तक्षेप द्वारा सामाजिक क्रिया को ऊपर ले जाने के प्रयास किये जाते हैं।
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि आर्थिक नियोजन एक ऐसी योजना है जिसमें आर्थिक क्षेत्र में राजकीय हस्तक्षेप तथा राज्य की साझेदारी होती है।
नियोजन के प्रकार
1. |
अवधि के आधार पर नियोजन |
(1) अल्पकालीन नियोजन (2) मध्यकालीन नियोजन (3) दीर्घकालीन नियोजन |
2. |
प्रकृति के आधार पर |
(1) स्थायी नियोजन (2) अस्थायी नियोजन |
3. |
प्रक्रिया के आधार |
(1) केन्द्रीयकृत नियोजन (2) विकेन्द्रीकृत नियोजन |
4. |
क्षेत्र के आधार पर |
(1) राष्ट्रीय नियोजन (2) क्षेत्रीय नियोजन |
5. |
राज्य और बाजार के अंतर्संबंधों के आधार पर |
(1) आदेशात्मक नियोजन (2) निर्देशात्मक नियोजन |
6. |
महत्व के आधार पर |
(1) समष्टि नियोजन (2) व्यूहरचना नियोजन (3) परिचालन नियोजन |
1. अवधि के आधार पर
(i) अल्पकालीन नियोजन- यह सामान्यताः एक वर्ष के लक्ष्यों एवं रणनीतियों का निर्धारण होता है। इसका निर्धारण दीर्घकालीन नियोजन के उद्देश्यों को प्राप्ति के लिए होता है।
(ii) मध्यकालीन नियोजन- यह योजना 1 वर्ष से अधिक लेकिन 5 वर्ष की अवधि से कम होता है। इसके अंतर्गत उन क्रियाओं को निर्धारित किया जाता है जिनसे आधारभूत समस्या का समाधान हो सके।
(iii) दीर्घकालीन नियोजन- साधारणतः ये योजनायें 10 वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए तैयार की जाती है।
जैसे- विजन 2020, राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 (इसका दीर्घकालिक लक्ष्य वर्ष 2010 तक प्रजनन दर को 2 : 1 अनुपात के प्रतिस्थापन स्तर तक लाना है)
2. प्रकृति के आधार पर
स्थायी नियोजन- यह स्थायी प्रकृति का नियोजन होता है जिसे समय समय पर उपयोग में लाया जाता रहता है। इसमें उपक्रम की नीतियां संगठन का ढांचा प्रमाणित प्रक्रिया एवं विधियाँ संम्मलित की जाती हैं।
अस्थायी नियोजन- यह नियोजन परिस्थिति विशेष के लिए किया जाता है और उद्ददेश्य प्राप्ति के साथ ही समाप्त हो जाता है।
3. प्रक्रिया के आधार पर
(i) केन्द्रीकृत नियोजन- केन्द्रीकृत नियोजन में समस्त आर्थिक निर्णय केन्द्रीय सत्ता द्वारा लिए जाते हैं।
(ii) विकेन्द्रीकृत नियोजन- इस नियोजन में सत्ता का बंटवारा केन्द्रीय सत्ता तथा निम्न स्तरीय संस्था के बीच होता है। यह प्रजातांत्रिक देशों की विशेषता होती है।
4. क्षेत्र के आधार पर
(i) राष्ट्रीय नियोजन- राष्ट्रीय संस्था के द्वारा जब सम्पूर्ण राष्ट्रीय स्तर पर योजना का निर्धारण किया जाता है तो उसे राष्ट्रीय नियोजन कहते हैं।
जैसे- भारत की पंचवर्षीय योजनायें।
(ii) क्षेत्रीय नियोजन- जब किसी क्षेत्र की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए योजनाओं का निर्धारण किया जाता है तो उसे क्षेत्रीय नियोजन कहते हैं। क्षेत्रीय नियोजन राष्ट्रीय नियोजन का ही हिस्सा होता है जैसे- भारत क पूर्वोत्तर राज्यों की विकास की परियोजनायें।
भारत में आर्थिक नियोजन का इतिहास- भारत में आर्थिक नियोजन सोवियत संघ से प्रेरित होकर अपनाया गया है। आजादी से पूर्व कई महत्वपूर्ण योजनायें भारत में लागू की गयी।
विश्वरैया योजना- सर मोक्षगुंडम विश्वेश्रया भारत के महान अभियंता एवं मैसूर प्रांत के पूर्व दीवान थे। उनकी पुस्तकं प्लान्ड इकोनोमी फॉर इण्डिया 1934 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में भारत के विकास के लिए 10 वर्षीय कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया।
कांग्रेस योजना- 1938 दृतत्कालीन कांग्रेस के अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस ने पहली बार 1938 में पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया।
बॉम्बे प्लान- 1944 में बंबई के 8 उद्योगपतियों ने बॉम्बे प्लान प्रस्तुत किया जिसमें 15 वर्षीय सूत्रबद्ध योजना बनाई थी। बॉम्बे प्लान के सूत्रधार सर अर्दशियर दलाल थे। प्रतिपादक उद्योगपति-
· जॉन मथाई
· जे. आर. डी. टाटा
· घनश्याम दास बिडला
· पुरुषोत्तम दास बिडला
· श्री राम सेठ
· श्री कस्तूरी लाल भाई
· ए. डी. श्राफ
· सर अर्देशियर दलाल
जन योजना- इस योजना के प्रतिपादक एम. एन. रॉय थे। इसे 1944 में लागू किया गया था। इस योजना का मख्य उद्देश्य जन समुदाय के जीवन स्तर को न्यूनतम निर्वाह स्तर तक लाना था।
गांधीवादी योजना- इस योजना को 1945 में गांधीवादी विचारक श्री मन्नारायण ने प्रतिपादित किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य जन समुदाय के जीवन स्तर को न्यूनतम निर्वाह स्तर तक लाना था।
सर्वोदय योजना- इस योजना के प्रतिपादक जय प्रकाश नारायण थे जिन्होंने इसे 1950 में लागू किया। इसका मुख्य उद्देश्य अहिंसात्मक ढंग से शोषण विहीन समाज की स्थापना करना था।
भारत की आजादी के बाद आर्थिक नियोजन- स्वतंत्रता के बाद सन् 1947 में पं. नेहरू की अध्यक्षता में आर्थिक नियोजन समिति गठित हुई बाद में इसी समिति की सिफारिश पर 15 मार्च 1950 में योजना आयोग का गठन केन्द्र एवं राज्य के मध्य वित्त बंटवारे तथा इसकी योजना बनाने हेतु किया गया। योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री होता था। इसका एक उपाध्यक्ष होता था जिसकी नियुक्ति मंत्रिमंडल की सिफारिश पर की जाती थी। योजना आयोग के प्रथम उपाध्यक्ष गुलजारी लाल नंदा थे।
राष्ट्रीय विकास परिषद- (NDC) राष्ट्रीय विकास परिषद् का गठन 6 अगस्त 1992 को राष्ट्रीय स्तर पर योजनाओं के निर्माण एवं क्रियान्वयन की रूपरेखा तैयार करने के लिए किया गया। योजना आयोग ने जो सूचीबद्ध प्रस्ताव प्रस्तुत किया उसके सभी मुख्य चरणों पर NDC (राष्ट्रीय विकास परिषद) उस पर विचार करके उस पर स्वीकृति देती है। इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं।
नीति आयोग- राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान (niti) नीति आयोग की स्थापना 1 जनवरी 2015 को योजना आयोग के स्थान पर की गई। यह संस्थान सरकार के थिंकण्टैंक के रूप में अपनी सेवायें प्रदान करता है। इसके पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। इसके अध्यक्ष नरेन्द्र मोदी है। नीति आयोग के प्रथम उपाध्यक्ष अरविन्द पनगडिया थे एवं वर्तमान उपाध्यक्ष महर्षि राजीव कुमार हैं।
भारत में पंचवर्षीय योजनायें
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956)
· यह योजना 1 अप्रैल 1951 को प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के द्वारा शुरू की गई।
· यह योजना हेराल्ड डोमर मॉडल पर आधारित थी।
· इसका मुख्य उद्देश्य- अर्थव्यवस्था के संतुलित विकास की प्रक्रिया को आरंभ करना था।
· इस योजना में कृषि तथा सिंचाई क्षेत्र पर मुख्य जोर दिया गया था।
· इसी योजना के दौरान कई बड़ी सिंचाई परियोजनायें शुरू की गईय जैसे- भाखड़ा-नांगल परियोजना, दामोदर नदी घाटी परियोजना आदि।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61)
· इस योजना का मॉडला पी.सी. महलनाबिस पर आधारित थी।
· दुर्गापुर, भिलाई व राउरकेला में इसके अंतर्गत स्थापित किए गये
· यह योजना भौतिकवादी योजना के नाम से भी जानी जाती है ।
· 'लक्ष्य वृद्धि: 4.5% और वास्तविक वृद्धि' 4.27%
· इस योजना में औद्योगिक क्षेत्र पर मुख्य जोर दिया गया था।
तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-1966)
· इस योजना का मॉडल सुखमय चक्रवर्ती तथा जे. से.डी सुब्रह्मणयम के विकास मॉडल पर आधारित थी।
· इस योजना का मुख्य उद्देश्य खाद्यान्न तथा उद्योगों को समान रूप से विकसित करना था।
· इस योजना के अंतर्गत 1964 में पूर्व सोवियत संघ की सहायता से बोकारो आयरन एंड स्टील कंपनी की स्थापना की गई।
· यह योजना भारत एवं चीन युद्ध के कारण असफल हो गई थी।
· इसी योजना के दौरान सरकार द्वारा नयी कृषि नीति हरित क्रांति को जन्म दिया गया।
· नोटः भारत में हरित क्रांति के जनक एम. एस. स्वामीनाथन को माना जाता है।
· विश्व में हरित क्रांति के जनक नार्मन ए. बोरलॉग को माना जाता है।
योजना अवकाश (1966-69)
· 1965 में भारत पाक युद्ध, तृतीय पंचवर्षीय योजना की असफलता तथा 2 साल तक लगातार सूखा पड़ने, मुद्रा अवमूल्यन, मुद्रास्फीति और संसाधनों की कमी इत्यादि के कारण अगली पंचवर्षीय योजना को विराम दिया गया।
· इस अवधि में 3 वार्षिक योजनायें तैयार की गई वार्षिक योजना को लागू करने का सुझाव तत्कालीन योजना आयोग के उपाध्यक्ष डी. आर. गाडगिल ने दिया था।
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-1974)
· चतुर्थ पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल 1969 को प्रारंभ की गई जो डी. आर. गाडगिल मॉडल पर आधारित थी।
· इस योजना का मुख्य उद्देश्य स्वामित्व के साथ विकास तथा आर्थिक आत्मनिर्भरता की प्राप्ति करना था।
· इस योजना में भारत में कृषि वृद्धि दर सर्वाधिक रही।
· इस योजना के दौरान श्वेत क्रांति (ऑपरेशन फ्लड) की शुरुआत की गई।
· योजना की विफलता का मुख्य कारण मौसम की प्रतिकूलता एवं बांग्लादेशी शरणार्थी समस्या थी।
· जनसंख्या वृद्धि दर पर नियंत्रण करने एवं जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-1978)
· इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी उन्मूलन एवं आर्थिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था।
· इस योजना में बीस सूत्रीय कार्यक्रम (1975) की - शुरुआत की गई।
· यह योजना सामान्यताः सफल रही, लेकिन गरीबी एवं बेरोजगारी में कमी नहीं आई।
· इस योजना में पहली बार गरीबी हटाओ का नारा दिया गया।
· जनता पार्टी की सरकार द्वारा इस योजना को 1978 में समाप्त करने का निर्णय लिया गया।
अनवरत योजना-1978-80
1978 से 1983 तक की अवधि के लिए अनवरत योजना मुरार जी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार द्वारा बनाई गयी, लेकिन
जब 1980 में इंदिरा गांधी सरकार बनी तो इस योजना को समाप्त कर दिया गया। अनवरत योजना का प्रतिपादन गुर्नार मिर्डाल द्वारा उनकी पुस्तक द एशियन ड्रामा में किया गया तथा इसे भारत में लागू करने का श्रेय जनता पार्टी की सरकार तथा डी. टी. लकडावाला को जाता है।
छठी पंचवर्षीय योजना- (1980-85)
· इस योजना का प्रमुख लक्ष्य गरीबी उन्मूलन और रोजगार में वृद्धि था।
· यह योजना आगत-निर्गत मॉडल पर आधारित थी।
अन्य लक्ष्य
· न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के माध्यम से लोगों के जीवन में गुणात्मक सुधार लाना।
· जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण संबंधी उपाय अपनाना आर्थिक और प्रौद्योगिक आत्मनिर्भरता प्राप्ति।
· इस योजना के दौरान समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किये गये।
· योजना का विकास लक्ष्य 5.2% वार्षिक दर रखा गया जिसे 5.54% वृद्धि दर से सफलता पूर्वक प्राप्त किया गया।
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90)
· यह योजना जॉन डब्ल्यू मिलर मॉडल पर आधारित थी।
प्रमुख लक्ष्य-
· समग्र रूप से उत्पादकता में बढ़ोत्तरी करना एवं रोजगारों के अवसर उपलब्ध करना।
· सामाजिक एवं आर्थिक असमानताओं को कम करना।
· देशी तकनीकी का विकास करना, ऊर्जा संरक्षण और गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का विकास करना।
· पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संरक्षण।
· भोजन कार्य और उत्पादन यह नारा इसी योजना में दिया गया।
· योजना में सकल घरेलू उत्पाद में 5% वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया जबकि वास्तविक वृद्धि दर 6.2% वार्षिक रही।
· इसी योजना के अंतर्गत जवाहर रोजगार योजना जैसी महत्वपूर्ण कार्यक्रम प्रारंभ हुये।
योजना अवकाश ( 1990-92)
वार्षिक योजनायें- ( 1 अप्रैल 1990 से 31 मार्च 1992)
· 7वीं पंचवर्षीय योजना की समाप्ति के पश्चात् राजनैतिक अस्थिरता तथा सरकारों के समय पूर्व बदलने से 8वीं पंचवर्षीय योजना प्रारंभ न हो सकी। वर्ष 1990-92 के समय दो एकवर्षीय योजनायें अस्तित्व में आयी।
आठवीं पंचवर्षीय योजना-(1992-1997)
· इस योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता मानव संसाधन का विकास को दी गई।
प्रमुख लक्ष्य
· शताब्दी के अंत तक लगभग पूर्ण रोजगार के स्तर को प्राप्त करने की दृष्टि से रोजगारों के अधिकतम अवसर उपलब्ध कराना।
· प्रारंभिक शिक्षा का विस्तार एवं 15 से 35 वर्ष की आयु के मध्य के लोगों में साक्षरता को बढ़ावा देना।
· पेयजल, टीकाकरण तथा प्राथमिक चिकित्सा का प्रावधान करना।
· विकास को आधार मानते हुए आधारभूत ढांचे को मजबूत करना।
· 7.5% वार्षिक वृद्धि से औद्योगिक विकास का लक्ष्य प्राप्त करना।
· इसी योजना काल में शिक्षा में प्रोत्साहन के लिए ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड तथा राष्ट्रीय पोषाहार कार्यक्रम जैसे अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम प्रारंभ किये गये।
· इस योजना के तहत राष्ट्रीय महिला कोष (1993) की स्थापना गरीब महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए की गई।
नौंवी पंचवर्षीय योजना (1997-2002)
· इस योजना में प्राथमिकता न्यायपूर्ण वितरण एवं समानत के साथ विकास को दी गई।
प्रमुख लक्ष्य
· निर्धनता उन्मूलन हेतु कृषि एवं ग्रामीण विकास को महत्व देना।
· मूल्य स्थिरता को बनाये रखते हुये आर्थिक विकास करना।
· पंचायती राज संस्थाओं सहकारी समितियों एवं स्वयं सेवी संस्थाओं को प्रोत्साहन देना।
· स्वच्छ पेयजल, प्राथमिक स्वास्थ्य, देख-रेख सुविधा सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा एवं आवास जैसी मूलभूत सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
· प्रारंभिक वार्षिक विकास दर 7% निर्धारित की गई लेकिन बाद में इसे संशोधित करके 6.5 किया गया जबकि वास्तविक वृद्धि दर 5.4% ही रही।
· इसकी असफलता का कारण अंतर्राष्ट्रीय मंदीण्को माना गया।
दसवी पंचवर्षीय योजना- (2002-07)
· इसका उद्देश्य देश में गरीबी और बेरोजगारी समाप्त करना तथा अगले 10 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी करना था।
प्रमुख उद्देश्य
· निर्धनता अनुपात में वर्ष 2007 तक 5% तथा वर्ष 2012 तक 15% की कमी लाना
· साक्षरता एवं मजदूरी में लैंगिक अंतराल को 2007 तक 50% तक कम करना।
· 2001-2011 के दशक में जनसंख्या वृद्धि दर को 16.2% के स्तर पर लाना।
· साक्षरता दर बढ़ाकर 75% तक लाना।
· वनों एवं वृक्षों के क्षेत्रफल को बढ़ाकर 2007 तक 25% एवं वर्ष 2012 तक 33% करना।
· मातृत्व मृत्युदर 2007 तक 45% तथा 2012 तक 28 प्रति एक हजार जीवित जन्म तक कम करना।
· योजनावधि में एक घरेलू उत्पाद में वार्षिक वृद्धि दर 8% लक्ष्य रखा गया जबकि उपलब्धि 7.5% रही।
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना-(2007-12)
· इस योजना का मुख्य लक्ष्य तीव्रतम एवं समावेशी विकास था।
प्रमुख लक्ष्य
· इस योजना में शिक्षा का क्षेत्र की थीम अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा थी।
साक्षरता की दर कम-से-कम 75% के स्तर पर पहुंचाना। जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर (2001-2011) को कम करके 16.2% के स्तर पर लाना
· नवम्बर 2007 तक देश के प्रत्येक गांव में टेलीफोन सुविधा उपलब्ध कराना।
· जी.डी.पी. की वृद्धि दर 8% से बढ़ाकर 10% तक करना साथ ही कृषि क्षेत्र में विकास दर 4% तक बढ़ाना।
बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017)
· इस योजना का उद्देश्य तीव्र धारणीय एवं अधिक समावेशीय विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना रखा गया। प्रमुख लक्ष्य
· योजना के अंत तक पूर्ववर्ती आंकलनों की तुलना में गरीबी के स्तर में 10% की कमी लाना
· गैर-कृषि क्षेत्र में 50 मिलियन नये कार्य अवसरों की उपलब्धता के साथ कौशल प्रमाण-पत्र प्रदान करना
· योजना के अंत तक स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों की संख्या को बढ़ाकर सात वर्ष करना।।
· विद्यालय पंजीकरण में लैंगिक तथा सामाजिक अंतराल को योजना के अंत तक दूर करना।
· नवजात मृत्यु दर घटाकर 25% प्रति हजार तथा मातृ मृत्य दर घटाकर 1 प्रति हजार प्रसव के स्तर तक लाना एवं बाल लिंगानुपात 950 के स्तर तक लाना।
· कुल प्रजनन दर घटाकर 2.1 के स्तर तक लाना।
· अवसंरचना में होने वाले निवेश को बढ़ाकर 9% पर लाना।
· ग्रामीण टेली- डेंसिटी को बढाकर 70% के पार पहुँचाना।
· नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में 30,000 मेगावॉट की वृद्धि करना।
· 90% भारतीय परिवारों को बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना।
· सकल घरेलू उत्पाद में 8% वास्तविक दर से वृद्धि।
नोटः बारहवीं पंचवर्षीय योजना में सर्वाधिक निवेश सामाजिक सेवाओं की मदों में किया गया जो परिव्यय का 34.7% रहा।
केंद्र सरकार की आम बजट में क्षेत्रवार आवंटन (चालू कीमतों पर, करोड़ रुपये में)
क्रमांक |
क्षेत्र |
12वीं पंचवर्षीय योजना (अनुमानित) |
हिस्सेदारी : में |
1. |
कृषि और जल संसाधन |
2,84,030 |
7.96 |
2. |
ग्रामीण विकास और पंचायती राज |
6,73,034 |
18.86 |
3. |
वैज्ञानिक विभाग |
1,41,167 |
3.98 |
4. |
शिक्षा |
4,41,167 |
12.71 |
5. |
परिवहन एवं ऊर्जा |
4,53,521 |
12.57 |
6. |
स्वास्थ्य एवं बाल विकास |
4,08,736 |
11.45 |
7. |
शहरी विकास |
1,64,078 |
4.60 |
8. |
अन्य |
9,94,333 |
27.86 |
|
कुल योजना आवंटन |
35,68,626 |
100 |
क्र. |
1991 के पूर्व की आर्थिक नीतियां |
1991 के पश्चात की आर्थिक नीतियां |
1. |
सार्वजनिक क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता |
सार्वजनिक क्षेत्र पर बहुत कम निर्भरता |
2. |
निजी क्षेत्र का नियंत्रित विकास |
निजी क्षेत्र के अधिक विकास पर जोर |
3. |
छोटे उद्योगों का संरक्षण बड़े उद्योगों पर नियंत्रण |
सभी प्रकार के उद्योगों को बढ़ावा देना |
4. |
विदेशी प्रतिस्पर्धा से संरक्षण |
विदेशी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना |
5. |
आयात प्रतिस्थापना पर केंद्रित |
आयात प्रतिस्थापना एवं निर्यात संवर्द्धन |
योजना काल |
विकास लक्ष्य |
वास्तविक औसत |
वास्तविक औसत |
प्राथमिकता के क्षेत्र |
पहली (1951-56) |
2.1 |
3.61 |
हेराल्ड डोमर मॉडल |
कृषि सिंचाई तथा विद्युत |
दूसरी (1956-61) |
4.5 |
4.27 |
प्रो. पी. सी. महालनोविस |
भारी उद्योग चिकित्सा एवं स्वास्थ्य |
तीसरी (1961-66) |
5.6 |
2.34 |
सुखमनी चक्रवती तथा जे. सैण्डी सुब्रम्हण्यम |
खाद्यान्न तथा उद्योग |
चैथी (1969-74) |
5.7 |
3.40 |
अशोक रूद्र तथा ए. एस. सैनी |
कृषि तथा सिंचाई |
पाँचवीं(1974-79) |
4.4 |
4.9 |
डी. पी. धर |
जन स्वास्थ्य समाज कल्याण |
छठी(1980-85) |
5.2 |
5.4 |
ग्रोथ मॉडल |
कृषि उद्योग तथा ऊर्जा |
सातवीं (1985-90) |
5.0 |
5.6 |
प्रणव मुखर्जी |
वस्तु मजदूरी खाद्यान्न तथा ऊर्जा |
आठवीं (1992-97) |
5.6 |
6.6 |
जॉन डब्ल्यू मिलर |
मानव संसाधन (शिक्षा) स्वास्थ्य तथा रोजगार विकास |
नौंवी (1997-02) |
6.5 |
5.70 |
आगत निर्गत मॉडल |
रोजगार ग्राम विकास तथा सामाजिक संरचना |
दसवीं (2002-07) |
7.9 |
7.8 |
योजना आयोग का पत्र |
रोजगार, ऊर्जा सुधार तथा सामाजिक संरचना का विकास |
ग्यारहवीं (2007-12) |
9.0 |
7.9 |
प्रो. सी रंग राजन (योजना) आयोग का पत्र |
तीव्रतर और अधिक समावेशी विकास |
बारहवीं (2012-17) |
8.0 |
|
योजना आयोग का पत्र |
तीव्रतर धारणीय और अधिक विकास |
नीति आयोग- सरकार का थिंक टैंक
अध्यक्ष- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
उपाध्यक्ष- डॉ. राजीव कुमार
पूर्णकालिक सदस्य- वी. के. सारस्वत
प्रो. रमेश चंद्र
डॉ. वी. के. पॉल
पदेन सदस्य- राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री
अमित शाह,
गृह मंत्री निर्मला सीतारमण,
वित्त मंत्री कॉरपोरेट कार्य मंत्री
नरेन्द्र सिंह तोमर,
कृषि और किसान कल्याण मंत्री, ग्रामीण विकास मंत्री, पंचायतीराज मंत्री
विशेष आमंत्रित सदस्य
नितिन जयराम गडकरी- सड़क परिवहन और राजमंत्री, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री
थावर चंद्र गहलोत- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री पीयूष गोयल रेलमंत्री तथा वाणिज्य और उद्योग मंत्री
श्री राव इंद्रजीत सिंह- राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री अमिताभ कांत
उद्देश्य - केन्द्र और राज्य के बीच समन्वय।
ग्रामीण स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के लिए तंत्र विकसित करना।
लंबी अवधि के लिए नीति तथा कार्यक्रम का ढांचा तैयार करना और उनकी प्रगति क्षमता की निगरानी करना। राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञोंए अन्वेशकों के ज्ञान कौशलए नवाचार एवं उद्यमशीलता का बेहतर तरीकों से उपयोग करना।
कार्य- सरकार के थिंक टैंक के रूप में कार्य
· केन्द्र एवं राज्य सरकार को प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों के संबंध में रणनीति एवं तकनीकी सलाह प्रदान करना विशेषज्ञों से परामर्श करके उनके ज्ञान पर आधारित योजना निर्माण।
· संसाधनों के समुचित उपयोग एवं उनकी प्राथमिकता सुनिश्चित करना।
· देश के विकास के आगे आने वाली बाधाओं को पूर्व आंकलन करना एवं दूर करने के आवश्यक सुझाव देना।
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