रसायन शास्त्र का इतिहास एवं मूलभूत अवधारणाएं

रसायन शास्त्र का इतिहास एवं मूलभूत अवधारणाएं

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रसायन शास्त्र का इतिहास एवं मुलभुत अवधारणाएं

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

विज्ञान का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है। रसायनज्ञ पदाथोर्ं की संरचना, भों और परिवर्तनों के बारे में अध्ययन करते हैं। सभी पदार्थ द्रव्य द्वारा बने होते हैं। वे तीन भौतिक अवस्थाओं-ठोस, द्रव और गैस में पाए जाते हैं। इन तीनों अवस्थाओं में घटक-कणों की व्यवस्था भिन्न-भिन्न होती है। इन अवस्थाओं के अभिलाक्षणिक गुणधर्म है। द्रव्य को तत्वों, यौगिकों और मिश्रणों के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। किसी तत्व में एक ही प्रकार के कण होते नो परमाणु या अणु हो सकते हैं। जब दो या अधिक तत्वों के परमाणु निश्चित अनुपात में संयुक्त होते हैं, तो यौगिक प्राप्त होते हैं। मिश्रण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं और हमारे आसपास उपस्थित अनेक पदार्थ मिश्रण हैं।

 

सामान्य परिचय - रसायन शास्त्र विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें द्रव्य (पदार्थ) के संगठन, संरचना (बनावट) के गुणों और विभिन्न प्रकार के पदाथोर्ं की परस्पर क्रिया का अध्ययन किया जाता है। रसायन शास्त्र (Chemistry) शब्द की उत्पत्ति मिस्र के कीमिया शब्द (Chemia) से मानी जाती है। कीमिया शब्द का अर्थ है - काला रंग। मिस्र के वैज्ञानिक कीमियागर (Alchemist) कहलाते थे।

§  फ्रांस के रसायनज्ञ एंटोनी लेवोसियर (Antoine Lavoisier) को आधुनिक रसायन शास्त्र का जनक कहते है।

अध्ययन के लिये रसायन शास्त्र को चार मुख्य शाखाओं में विभाजित किया गया है -

i. भौतिक रसायन (Physical Chemistry)

ii. अकार्बनिक रसायन (Inorganic Chemistry)

iii.कार्बनिक रसायन (Organic Chemistry)

iv.वैश्लेषिक रसायन (Analytical Chemistry)

रसायन शास्त्र की अन्य शाखाएं -

§  जैव रसायन (Bio-Chemistry)

§  औद्योगिक रसायन (Industrial Chemistry) 

§  नाभिकीय रसायन (Nuclear Chemistry)

§  फार्मास्यूटिकल रसायन (Pharmaceutical Chemistry)

§  कृषि रसायन (Agriculture Chemistry)

§  भू-रसायन (Geo-Chemistry)

§  औषधि रसायन (Medicinal Chemistry)

द्रव्य द्रव्य के मूल लक्षण

द्रव्य (matter) - ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु जिसमें द्रव्यमान (mass) निहित होता है एवं वह वस्तु स्थान घेरती है, द्रव्य कहलाती है। द्रव्य अत्यंत सूक्ष्म कणों से मिलकर निर्मित होता है, जिससे द्रव्य निश्चत गुण एवं संगठन ग्रहण करता है।

द्रव्य के मूल लक्षण

(Fundamental Characterstics of Matter)

§  द्रव्य के कणों के मध्य आकर्षण (प्रबल या दुर्बल) होता है।

§  द्रव्य के कण नियमित रुप से गतिमान रहते है।

§  द्रव्य के कणों के मध्य रिक्त स्थान (अत्यंत सूक्ष्म या अधिक) होता है।

द्रव्य की अवस्थाएं एवं प्रकार (States of Matter and Types)

भौतिक अवस्था के आधार पर द्रव्य को ठोस, द्रव और गैस में विभाजित किया गया है। प्रकृति में द्रव्य की यह अवस्थाएं द्रव्य के कणों के गुणधमोर्ं के कारण विद्यमान रहती है।

ठोस अवस्था (Solid State)- इस अवस्था में सामान्य स्थिति में द्रव्य का आकार आयतन दोनों निश्चित होते हैं। ठोस पूर्णत: असंपीडî (Incompressible) होते है। इस अवस्था में द्रव्य के कणों के मध्य स्थान अत्यंत नगण्य होता है, जिससे इनका घनत्व अधिक होता है। उदाहरण– लोहा, सोना, चांदी, पत्थर आदि।

द्रव अवस्था (Liquid State) - इस अवस्था में द्रव्य का आयतन निश्चित रहता है लेकिन आकार निश्चित नहीं रहता है। द्रव में ठोस की अपेक्षा संघटक कणों के बीच रिक्त स्थान अधिक होता है एवं अपेक्षाकृत असंपीडî तरल होते है। इनका घनत्व ठोस की अपेक्षा कम होता है। उदाहरण - दूध, जल, तेल आदि।।

गैस अवस्था (Gas State)- इस अवस्था में द्रव्य का आयतन आकार दोनों ही अनिश्चित होते है। गैस में ठोस द्रव अवस्था की अपेक्षा संघटक कणों के बीच रिक्त स्थान अधिक होता है। गैस एक अत्याधिक संपीडî (Compressible) तरल के रुप में विद्यमान रहती है, जिसका घनत्व ठोस द्रव की अपेक्षा अत्यंत कम होता है। उदाहरण –\[{{H}_{2}}\] गैस,\[{{N}_{2}}\], गैस, CNG आदि।

प्रकृति में सामान्य दशाओं में द्रव्य की तीन अवस्थाएं ठोस, द्रव और गैस होती है लेकिन कुछ विशेष दशाओं में द्रव्य की प्लाज्मा बोस-आइंस्टाइन कंडनसेट दो अन्य अवस्थाएं भी पायी जाती है।

 

प्लाज्मा अवस्था (Plasma State) - इस अवस्था में कण अत्यधिक ऊर्जा वाले और अत्यधिक उत्तेजित अवस्था में होते हैं। ये कण आयनिकृत (धनायन ऋणायन) गैस के रुप में विद्यमान होते है। नियॉन बल्ब और ‘‘फलोरेसेंट îूब’’ में प्लाज्मा अवस्था होती है। नियॉन बल्ब के अंदर नियॉन गैस और ‘‘लोरसेन्ट टयूब के अंदर हीलियम या कोर्इ अन्य अक्रीय गैस होती है। प्लाज्मा के कारण ही तारों और सूर्य में भी चमक होती है। अत्यधिक उच्च तापमान के कारण ही तारों में प्लाज्मा अवस्था बनती है। बोस आइंस्टाइन कंडनसेट अवस्था (BEC State) - सन् 1920 में भारतीय भौतिक वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस ने पदार्थ की पांचवी अवस्था के लिए विशेष गणनाएं की थी। इन्हीं आधार पर अल्बर्ट आइंस्टाइन ने पदार्थ की भविष्य में खोजी जाने वाली एक नर्इ अवस्था की जानकारी प्रस्तुत की, जिसे बोस आइंस्टाइन कंडनसेट (BEC) अवस्था कहा गया। इस अवस्था को सामान्य वायु के घनत्व के एक लाखवें भाग जितने कम घनत्व वाली गैस को बहुत ही कम तापमान पर ठंडा करने पर प्राप्त होती है।

द्रव्य की भौतिक अवस्था में परिवर्तन

ऊर्जा, ताप, दाब आदि बाह्य कारकों के प्रभाव से पदार्थ की विभिन्न अवस्थाओं में परिवर्तन किया जा सकता है। द्रव्य की अवस्था परिवर्तन में निम्नलिखित प्रक्रम सम्मिलित हैं।

गलन (Melting) - ठोस से द्रव अवस्था में परिवर्तन

वाष्पीकरण (Vaporization) - द्रव से गैस अवस्था में परिवर्तन

संघनन (Condensation) - गैस से द्रव अवस्था में परिवर्तन 

जमना (Freezing) - द्रव से ठोस अवस्था में परिवर्तन

ऊर्ध्वपातन (Sublimation) - ठोस से गैस अवस्था में परिवर्तन

उत्क्रमणीय ऊर्ध्वपातन - गैस से ठोस अवस्था में परिवर्तन

(Reverse Sublimation)

 

द्रव्य का रासायनिक आधार पर वर्गीकरण - रासायनिक संघटन के आधार पर ब्रह्माण्ड के समस्त द्रव्यों को तत्व, यौगिक और मिश्रण विभिन्न रूपों में विभाजित किया गया है।

शुद्ध पदार्थ (Pure Substance) - द्रव्य के शद्ध रूप को शद्ध पदार्थ की संज्ञा दी गयी है। इसमें विशिष्ट गुणों तथा निश्चित रासायनिक संगठन की उपस्थिति रहती है। शुद्ध पदार्थ को तत्व और यौगिक में वर्गीकृत किया जाता है।

तत्व (Element) - यह द्रव्य का सरलतम् रूप है, जिसे भौतिक तथा रासायनिक प्रक्रियाओं से और अधिक सरल द्रव्यों या संगठकों में बांटा नहीं जा सकता है। सभी तत्व एक ही प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बने होते हैं। आवर्त सारणी में तत्वों को धातुओं, उपधातुओं तथा अधातुओं में वर्गीकृत किया गया है। वर्तमान समय में 118 तत्व खोजे जा चुके है, जिसमें 92 प्राकृतिक तत्व एवं 26 तत्व रासायनिक विधियों से वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में संश्लेषित किये गये है।

यौगिक (Compound) - यह दो या दो से अधिक तत्वों के एक निश्चित अनुपात में रासायनिक रुप से संयुक्त होने के फलस्वरुप बनते हैं। यौगिक भी तत्वों के –श्य शुद्ध पदार्थ होते है लेकिन तत्वों के विपरीत यौगिकों को और अधिक सरल पदाथोर्ं में बांटा जा सकता है। यौगिकों को मुख्यत: अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिकों में वर्गीकृत किया गया है।

मिश्रण एवं मिश्रण के प्रकार (Mixture and types of mixtures)

मिश्रण - जब दो या दो से अधिक तत्वों या यौगिकों को अनिश्चित अनुपात में भौतिक तरीके से मिलाया जाता है एवं उन तत्वों या यौगिकों के बीच रासायनिक अभिक्रिया ना हो, मिश्रण कहलाता है। उदाहरण  ठोस पदाथोर्ं का मिश्रण – रेत, बारूद, सीमेंट आदि का मिश्रण।

मिश्रण के प्रकार - मिश्रण मुख्यत: दो प्रकार के होते है समांगी मिश्रण तथा विषमांगी मिश्रण।

मिश्रण के घटकों का पृथक्करण (Methods of separatiवद of miÛture components)-  प्राय: प्राकृतिक पदार्थ रासायनिक तौर पर पूर्णत: शुद्ध नहीं होते है। कभी-कभी मिश्रण से घटकों को पृथक करने के लिए विशेष तकनीकों को प्रयोग में लाया जाता है।

1.     क्रिस्टलीकरण (Crystallization)- इस विधि का प्रयोग ठोस पदाथोर्ं को शुद्ध करने में किया जाता है।

उदाहरण -समुद्री जल से नमक प्राप्त करना।

2.     आसवन (Distillation) - आसुत जल इसी विधि से तैयार

किया जाता है।

3.     आंशिक अथवा प्रभाजी आसवन (Fractional distillation) - इस विधि से विभिन्न गैसों का पृथक्करण तथा पेट्रोलियम उत्पादों से उनके विभिन्न घटकों का पृथक्करण किया जाता है।

4.     भाप आसवन (Steam distillation) - इस विधि द्वारा मिथाइल अल्कोहल, एसिटोन आदि का पृथक्करण किया जा सकता है।

5.     निस्यन्दन (Filteration) - प्रयोगशाला में किसी विलयन में प्राप्त अवक्षेप (precipitate) को फिल्टर पेपर द्वारा निस्पंदित करते हैं।

6.     ऊर्ध्वपातन (Sublimation) - अमोनियम क्लोराइड, नेप्थेलीन और एंथ्रासीन इत्यादि ऊर्ध्वपातित होने योग्य ठोस पदाथोर्ं के कुछ उदाहरण हैं।

7.     वर्णलेखन (Chromatography) - इस विधि का उपयोग डार्इ, प्राकृतिक रंगो और रक्त से नशीले पदाथोर्ं (drugs) को

पृथक करने में किया जाता है।

परमाणु अणु की प्रारंभिक अवधारणा (Elementary concept of atoms and molecules) -

आधुनिक रसायन परमाणु सिद्धान्त पर आधारित है। इसके प्रणेता वैज्ञानिक जॉन डाल्टन हैं। इन्होंने अपनी पुस्तक “New System of Chemical Philosophy” में परमाणु के सम्बंध में अपने विचार प्रस्तुत किये, जो डाल्टन का परमाणु सिद्धान्त (Dalton’s AtomicTheory) के नाम से जाना जाता है। इसे परमाणु सिद्धांत या डाल्टन का परमाणुवाद भी कहा जाता है। इस सिद्धान्तानुसार प्रत्येक पदार्थ अत्यन्त सूक्ष्म गोलाकार तथा अविभाज्य कणों से बना है, जिन्हें परमाणु (Atom) कहते हैं। परमाणु छोटी-छोटी पूर्ण संख्याओं में जुड़कर ‘अणु’ या ‘यौगिक’ बनाते हैं।

परमाणु द्रव्यमान (Atomic Mass) - एक परमाणु का द्रव्यमान कार्बन-12 के 1/12 वे भाग से कितना गुना भारी है।

औसत परमाणु द्रव्यमान (Average atomic mass) - किसी तत्व के विभिन्न समस्थानिकों के द्रव्यमानों का औसत, औसत परमाणु द्रव्यमान कहलाता है।

ग्राम परमाणु द्रव्यमान (Gram Atomic Mass) - किसी तत्व का ग्राम परमाणु-द्रव्यमान उसका ग्रामों में प्रदर्शित किया गया वह द्रव्यमान है जो संख्यात्मक रूप से परमाणु-द्रव्यमान के बराबर है, उसे ग्राम परमाणु भी कहते हैं।

आण्विक द्रव्यमान (Molecular Mass) - किसी पदार्थ का आण्विक द्रव्यमान उसके सभी संघटक परमाणुओं के द्रव्यमानों का योग होता है।

रासायनिक संयोग के नियम (Laws of Chemical Combination)-

वैज्ञानिकों द्वारा यौगिक की रासायनिक रचना में मात्रात्मक महत्व को दर्शाने के लिए गुणात्मक (Qualitative) रसायन की मात्रात्मक (Quantitative) विधि से सत्यता स्थापित करने के प्रयास किये गए। इस आधार पर यह पाया गया कि प्रत्येक रासायनिक अभिक्रिया कुछ नियमों के आधार पर पूर्ण होती है। ये नियम रासायनिक संयोग के नियम कहलाते हैं, जो निम्नलिखित-

1. द्रव्यमान संरक्षण का नियम या पदार्थ की अविनाशिता का नियम

2. निश्चित या स्थिर अनुपात का नियम

3. गुणित अनुपात का नियम

4. तुल्यांक समानुपात का नियम या व्युत्क्रम अनुपात का नियम

5. गे-लुसाक का गैस आयतन सम्बन्धी नियम

मोल संकल्पना (Mole concept) -

मोल (mole)- यह पदार्थ की वह मात्र। है जिसमें कणों की संख्या (परमाणुध् आयनध्अणुध् सूत्र इकार्इ आदि) कार्बन-12 के ठीक 12 ग्राम में विद्यमान परमाणुओं के बराबर होती है।

मोलर द्रव्यमान (Molar mass)- पदार्थ के एक मोल अणुओं का द्रव्यमान उसका मोलर द्रव्यमान कहलाता है।

ऐवोगैड्रो संख्या (Avogadro’s number)- एक मोल \[6.022\times {{10}^{23}}\]कण दर्शाता है संख्या \[6.022\times {{10}^{23}}\] को ऐवोगैड्रो स्थिरांक (Avogadro Constant) या ऐवोगैड्रो संख्या है। इसे \['{{N}_{A}}'\] संकेत द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

यौगिकों में प्रतिशत संघटन (Percentage composition of compounds)- किसी यौगिक में भार के अनुसार उसके 100 भागों में उपस्थित किसी तत्व के भागों की संख्या उसका प्रतिशत संघटन कहलाता है। यौगिक में उपस्थित तत्वों का प्रतिशत संघटन को दो प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है- (i) भारात्मक विश्लेषण से, (ii) यौगिक के अणु सूत्र से।

मूलानुपाती सूत्र (Empirical Formula)- किसी यौगिक में उपस्थित विभिन्न परमाणुओं के सरलतम पूर्ण संख्या-अनुपात को व्यक्त करता है।

आण्विक सूत्र (Molecular formula)- किसी यौगिक के अणु में उपस्थित विभिन्न प्रकार के परमाणुओं की सही संख्या को दर्शाता है। अणु सूत्र ¾ (मूलानुपाती सूत्र),

रासायनिक अभिक्रिया (Chemical Reaction)- दो या दो से अधिक पदाथोर्ं के आपस में रासायनिक क्रिया करने पर नए पदार्थ बनने की घटना रासायनिक अभिक्रिया कहलाती है। रासायनिक समीकरण (Chemical Equation) - किसी रासायनिक अभिक्रिया को संकेतों तथा सूत्रों द्वारा प्रकट करने की विधि को रासायनिक समीकरण कहते है।

रससमीकरणमिति (Stoichiometry)- ‘स्टॉइकियोमीट्री’ के अन्तर्गत रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारकों (reactants) और उत्पादों (products) के द्रव्यमानों (या कभी-कभी आयतनों) का परिकलन किया जाता है।

 

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