अर्थव्यवस्था का उद्भव एवं परिचय

अर्थव्यवस्था का उद्भव एवं परिचय

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अर्थव्यवस्था का उद्भव एवं परिचय

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

अर्थव्यवस्था एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन वितरण एवं लागत का वर्णन होता है। अर्थ का तात्पर्य धन और व्यवस्था का तात्पर्य स्थापित कार्यप्रणाली से है। अर्थव्यवस्था का प्राचीन इतिहास सुमेर राजवंश के समय से मिलता है। अर्थव्यवस्था को व्यष्टि अर्थशास्त्र व समष्टि अर्थशास्त्र के रूप में 2 भागों में बांटा जाता है। अर्थव्यवस्था के अंतर्गत हम सरकार की योजनाबद्ध नीतियों को देखते हैं। एडम स्मिथ को अर्थव्यवस्था का जनक माना जाता है। अर्थव्यवस्था में हम प्रति व्यक्ति आय का आंकलन करते हैं। भारत में पहली बार प्रति व्यक्ति आय का आंकलन दादा भाई नौरोजी ने किया था। अर्थव्यवस्था को नियंत्रण के आधार पर 3 भागों

में विभाजित किया जाता है। 

1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था

2. समाजवादी अर्थव्यवस्था

3. मिश्रित अर्थव्यवस्था

भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था प्रचलित है।

अर्थव्यवस्था का उद्भव एवं परिचय

 

अर्थव्यवस्था में धनशास्त्र का अध्ययन किया जाता है। अर्थव्यवस्था एक विकासमान शास्त्र हैए समय पर ‘विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा अर्थशास्त्र की अलग-अलग परिभाषाएँ दी गई हैं।

एडम स्मिथ- अर्थशास्त्र धनशास्त्र का विज्ञान है।

अल्फ्रेड मार्शल- अर्थशास्त्र में मनुष्य के व्यवहारिक जीवन का अध्ययन किया जाता है।

वाकर के अनुसार- अर्थशास्त्र ज्ञान का वह संग्रह है जो धन से संबंधित है।

अर्थशास्त्र में मानव की सम्पूर्ण आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है, जबकि अर्थव्यवस्था के अंतर्गत किसी देश की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

‘अर्थशास्त्र’ स्वयं में एक व्यापक अवधारणा है जो मानव की समस्त गतिविधियों का अध्ययन करती है।

अर्थशास्त्र शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द EKONOMIA शब्द से हुई है जिसका अर्थ पूंजी का प्रबंधन है।

नोट-जब किसी व्यक्ति-विशेष की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाये तो वह वैयक्तिक अर्थव्यवस्था एवं समूह की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाये तो वह सामूहिक अर्थव्यवस्था कहलाती है।

   वर्तमान में वित्तीय क्रियाएं मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण कारक है जिसके बिना आधुनिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है।

   अर्थशास्त्र के संबंध में प्रायः विद्वानों के मध्य प्रश्न उठता है कि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला।

अर्थशास्त्र कला एवं विज्ञान दोनों की शर्ते पूरी करता है।

 

§     अर्थशास्त्र: कला •

·         अर्थव्यवस्था एक कलात्मक जीवन का अनुभव कराती है।

·         भिन्न-भिन्न परिस्थिति में मानवीय जीवन के आर्थिक व्यवहार पर प्रभाव परिलक्षित होता है।

·         अर्थव्यवस्था एक लक्ष्य निर्धारित करती है जिसे अपनी कार्यकुशलता से प्राप्त किया जाता है। 

·         आवश्यक एवं अनावश्यक कार्यों के मध्य विभेद पैदा करती है। 

नोट- एडम स्मिथ को अर्थशास्त्र के जनक के रूप में जाना जाता है जिनकी पुस्तक ‘‘द वेल्थ ऑफ नेशन्स‘‘ को अर्थव्यवस्था का उद्गम स्रोत माना जाता है।

 

§     अर्थव्यवस्था की प्रमुख पुस्तकें

·         प्रिंसिपल ऑफ इकनॉमिक्स-अल्फ्रेड मार्शल

·         नेचर एण्ड सिग्निफिकेंस ऑफ इकनॉमिक साइंसेज राबिन्स  

·         द जनरल थ्योरी ऑफ इनकम, एम्प्लायमेंट एण्ड इंटरेस्ट जे. एम. कीन्स 

·         प्लान्ड इकॉनामी ऑफ इण्डिया-दादा भाई नौरोजी द वेल्थ ऑफ नेशन्स- एडम स्मिथ

 

                          अर्थशास्त्र की शाखायें

व्यष्टि अर्थशास्त्र

समष्टि अर्थशास्त्र

 

§     व्यष्टि अर्थशास्त्र-व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। इस अर्थव्यवस्था में किसी देश की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति का अध्ययन किया जाता है।

·         व्यष्टि अर्थशास्त्र का जनक एडम स्मिथ को माना जाता है।

·         यह समष्टि अर्थशास्त्र का लघु रूप है।

·         व्यष्टि अर्थशास्त्र में सिर्फ व्यक्ति-विशेष की समस्याओं की पूर्ति का अध्ययन किया जाता है।

·         व्यष्टि अर्थशास्त्र छोटे स्थान तक ही सीमित रहता है।

 

§     समष्टि अर्थशास्त्र 

·         समष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक विश्लेषण का वह शास्त्र है जिसमें समुच्चय का विश्लेषण सम्पूर्ण अर्थशास्त्र के रूप में किया जाता है। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आय उत्पादन बेरोजगारी, मुद्रा संकुचनए आर्थिक विकास आदि आर्थिक क्रियाओं का विश्लेषण किया जाता है।

·         समष्टि अर्थशास्त्र के जनक जॉन मिनार्ड कीन्स को माना जाता है क्योंकि इन्होंने 1929 की विश्व व्यापी महामंदी की समस्या का समाधान अपनी पुस्तक द जनरल थ्योरी ऑफ एम्प्लायमेंट इन्टरेस्ट एण्ड मनी में दिया था

·         समष्टि अर्थशास्त्र में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

 

                             अर्थशास्त्र का महत्व

     सैद्धान्तिक महत्व

व्यावहारिक महत्व

·   विधि ज्ञान हेतु

·      श्रमिकों को लाभ हेतु

·   सिद्धान्तों में वृद्धि हेतु

·   उत्पादकों को लाभ हेतु

·   मुद्रा प्रबंधन हेतुq

·   उपभोक्ताओं को लाभ हेतु

·   तर्कशक्ति में वृद्धि

·   व्यापारियों को लाभ हेतु

·   विश्लेषण क्षमता में वृद्धि हेतु

·   सरकार को लाभ हेतु

·   अन्य शास्त्रों के संबंध के

·   समाज सुधारकों को लाभ हेतु

·   ज्ञान हेतु

·   देश के विकास में लाभ हेतु

 

·   लाभ एवं हानि में समन्वय हेतु

 

§     अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था उत्पादन वितरण एवं खपत की सामाजिक व्यवस्था है।

 

अर्थ                          व्यवस्था

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का तात्पर्य             का तात्पर्य

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मुद्रा है।           स्थापित कार्यप्रणाली

 

अर्थात अर्थव्यवस्था का अर्थ मुद्रा का व्यवस्थित उपभोग करना है।

  अर्थव्यवस्था का सबसे प्राचीन उल्लेख कौटिल्य रचित ग्रंथ अर्थशास्त्र से प्राप्त होता है। अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित भागों में बांटा जाता है

नोट: अर्थव्यवस्था किसी क्षेत्र से संबंधित होती है जैसे- भारतीय अर्थव्यवस्था, ग्रामीण अर्थव्यवस्था।

 

  सेवा क्षेत्र का वर्गीकरण

विकास के आधार पर

नियंत्रण के आधार पर

वैश्विक संबंधों के आधार पर

जनता की कार्यशैली के आधार पर

 

विकास के आधार पर

1. विकसित अर्थव्यवस्था

2. विकासशील अर्थव्यवस्था

1. विकसित अर्थव्यवस्था- विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति तथा पूंजी निर्माण निर्धारित स्तर से बहुत ऊपर होता है। इस अर्थव्यवस्था में मानवीय संसार अधिक शिक्षित तथा कार्य कुशल होता है। राष्ट्रीय आय में द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्र का योगदान प्राथमिक क्षेत्र की तुलना में अधिक होता है। 

उदाहरण के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और कनाडा आदि।

2. विकासशील अर्थव्यवस्था विकासशील देश में राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय अपेक्षाकृत कम होती है।

कृषि एवं उद्योग पिछड़े हुए होते हैं तथा बचत एवं पूंजी निर्माण का स्तर निम्न होता है।

विकासशील देश में अप्रयुक्त अथवा अर्द्ध-प्रयुक्त मानव शक्ति होती है तथा दूसरी तरफ संसाधनों की कम या अधिक मात्रा पायी जाती है। राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान सर्वाधिक होता है।

उदाहरण- भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि।

 

                            नियंत्रण के आधार पर

1. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था

2. समाजवादी अर्थव्यवस्था

3.मिश्रित अर्थव्यवस्था

 

1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के सिद्धांत का स्रोत एडम स्मिथ की पुस्तक द वेल्थ ऑफ नेशन्स को माना जाता है। इसे उदारवादी अर्थव्यवस्था के नाम से भी जाना जाता है।

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषता

·         सरकारी हस्तक्षेप का अभाव

·         निजी संपत्ति

·         उद्यम की स्वतंत्रता

·         लाभ का उद्देश्य

·         प्रतियोगिता पर जोर

·         मांग और आपूर्ति के नियम के आधार पर वितरण

2.      समाजवादी अर्थव्यवस्था-

·         समाजवादी अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक गतिविधियों का संचालन एवं नियंत्रण समाज के पास होता है। 

·         समाजवादी अर्थव्यवस्था के सिद्धांत को जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने प्रतिपादित किया था।

·         इस अर्थव्यवस्था का मुख्य उद्देश्य लोगों का कल्याण करना होता है, लाभ कमाना नहीं

उदाहरण- चीन, पूर्व सोवियत संघ।

सामाजिक अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं

·         आर्थिक नियोजन

·         विषमताओं में कमी

·         सरकार का स्वामित्व

·         वर्ग-संघर्ष की समाप्ति

 

3.     मिश्रित अर्थव्यवस्था

·         मिश्रित अर्थव्यवस्था में पूंजीवादी एवं समाजवादी दोनों अर्थव्यवस्थाओं की विशेषतायें निहित होती हैं।

·         मिश्रित अर्थव्यवस्था के जनक जॉन मिनार्डर कीन्स को माना जाता है।  

·         इस अर्थव्यवस्था में सरकार और बाजार दोनों मिलकर कार्य करते हैं।

मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषतायें

·         मिश्रित मूल्य पद्धति 

·         व्यक्तिगत स्वतंत्रता  

·         निजी और सार्वजनिक क्षेत्र का सह-अस्तित्व

 

                    वैश्विक सम्बन्धों के आधार पर

1. बंद अर्थव्यवस्था

2. खुली अर्थव्यवस्था

 

1.  बंद अर्थव्यवस्था- बंद अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जो किसी बाह्य अर्थव्यवस्था से संबंध नहीं रखती और न ही बाहरी अर्थव्यवस्था से प्रभावित होती है।

·         इसमें आयात एवं निर्यात की गतिविधियां शून्य होती हैं।

2.     खुली अर्थव्यवस्था- खुली अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जो विश्व के साथ आर्थिक गतिविधियाँ करती हैं।

·         इसमें आयात एवं निर्यात की गतिविधियां संपन्न होती हैं।

·         आधुनिक विश्व की सभी अर्थव्यवस्थायें खुली अर्थव्यवस्थायें हैं।

 

                  जनता की कार्यशैली के आधार पर

1. कृषक अर्थव्यवस्था

2.औद्योगिक अर्थव्यवस्था

3. सेवा  अर्थव्यवस्था

 

1. कृषक अर्थव्यवस्था- किसी देश के अर्थव्यवस्था के प्रात सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान 50%  या इससे अधिक होता है तो वह देश कृषक अर्थव्यवस्था वाला होता है।

2. औद्योगिक अर्थव्यवस्था- यदि किसी अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्र का हिस्सा 50% या इससे अधिक होता है तो वह देश औद्योगिक अर्थव्यवस्था वाला देश कहलाता है।

3. सेवा अर्थव्यवस्था- यदि किसी देश के अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद में तृतीयक क्षेत्र का हिस्सा 50% या इससे अधिक होता है तो वह देश औद्योगिक अर्थव्यवस्था वाला देश कहलाता है।

 

§  अर्थव्यवस्था के क्षेत्र

 

अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जाता है

1. प्राथमिक क्षेत्र

2. द्वितीयक क्षेत्र

3. तृतीयक क्षेत्र

 

1. प्राथमिक क्षेत्र- अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र जो प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होता है तथा प्राकृतिक संसाधनों को उत्पाद के रूप में प्राप्त किया जाता है, प्राथमिक क्षेत्र कहलाता है। इसमें कृषि से संबंधित क्षेत्र शामिल होते हैं

जैसे- कृषि, पशुपालन, खनन, मत्स्य पालन इत्यादि।

2. द्वितीयक क्षेत्र- यह अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र है जो प्राथमिक क्षेत्रों के उत्पादों को एक नये उत्पाद के रूप में तैयार करता है। इसे द्वितीयक क्षेत्र कहते हैं इस क्षेत्र में विनिर्माण कार्य होने से इसे औद्योगिक क्षेत्र भी कहते हैं।

जैसे- वस्त्र, उद्योग, लौह इस्पात उद्योग, वाहन आदि।

नोट- जहां पर किसी वस्तु का उत्पादन होता है उसे विनिर्माण कहा जाता है।

3. तृतीयक क्षेत्र- यह अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र है जिसमें विभिन्न प्रकार की सेवायें प्रदान की जाती हैं इसीलिए इस क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहते हैं। इस क्षेत्र के अंतर्गत बैंकिंग, शिक्षा, परिवहन एवं संचार, सामुदायिक सेवायें आदि शामिल किये जाते हैं। 

§  वैश्विक अर्थव्यवस्था का वर्गीकरण  प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के आधार पर वैश्विक अर्थव्यवस्था का वर्गीकरण किया जाता है

 

1. निम्न आय वाले देश- जिन देशों की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 1025 डॉलर या इससे कम है इस श्रेणी में आते हैं।

2. निम्न मध्य आय वाले देश- जिन देशों की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 1026 से 3995 डॉलर के बीच होती है, इस श्रेणी में आते हैं।

3. उच्च मध्य आय वाले देश- जिन देशों की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 3996 से 12375 डॉलर‘ के मध्य होती है। उच्च मध्य आय वाली श्रेणी में आते हैं।

4. उच्च आय वाले देश- जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय 12375 डॉलर या इससे अधिक होती है वह उच्च आय वाले देश हैं।

 

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