निर्धनता एवं बेरोजगारी

निर्धनता एवं बेरोजगारी

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निर्धनता एवं बेरोजगारी

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

निर्धनता एवं बेरोजगारी स्वतंत्र भारत के सम्मुख सर्वाधिक कठिन चुनौती थी। भारत तथा विश्व में निर्धनता की प्रवृत्तियों को निर्धनता रेखा की अवधारणा के माध्यम से समझा जाता है। निर्धनता को दो भागों में बांटा जाता है

(1) शहरी निर्धनता (2) ग्रामीण निर्धनता। निर्धनता के अवलोकन के लिए निर्धनता रेखा एक समान्य विधि है। भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण करते समय जीवन-निर्वाह के लिए खाद्य आवश्यकता, कपड़ों, जूतों, ईधन, प्रकाश, शैक्षिक एवं चिकित्सा संबंधी आवश्यकताओं पर जोर दिया जाता है। विकासशील देशों में अत्यंत आर्थिक निर्धनता (विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार प्रतिदिन 1 डॉलर से कम पर जीवन निर्वाह करना) में रहने वाले लोगों की अधिकता है। भारत में व्यापक निर्धनता बेरोजगारी के अनेक कारण हैं, एक ऐतिहासिक कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन के दौरान आर्थिक विकास का निम्न स्तर है। आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने और जनसंख्या नियंत्रक दोनों मोर्चों पर असफलता के कारण निर्धनता चक्र बना है। सिंचाई और हरित क्रांति के प्रसार से कृषि क्षेत्र में रोजगार के अनेक अवसर सृजित हुए, लेकिन इनका प्रभाव भारत के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रहा।

 

निर्धनता एवं बेरोजगारी

निर्धनता वह स्थिति होती है जिसमें एक व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं (भोजन, वस्त्र, आवास) की पूर्ति में असमर्थ होता है। प्रोण् अमर्त्य सेन गरीबी क्षमताओं का अभाव है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम अनुसार-गरीबी बहुआयामी होती है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन- गरीबी आधारभूत आवश्यकताओं में प्राप्ति की अक्षमता है।

नीति आयोग- जीवित रहने, स्वस्थ्य रहने एवं दक्षता के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं को पूर्ण करने का अभाव ही गरीबी है।

                           निर्धनता के प्रकार

निरपेक्ष गरीबी

सापेक्ष गरीबी

 

निरपेक्ष गरीबी- निरपेक्ष गरीबी वह स्थिति होती है जिसमें मनुष्य की बुनियादी आवश्यकताओं जैसे- भोजन, पेयजल स्वच्छता सुविधायें, स्वास्थ्य एवं शिक्षा का अभाव होता है।

भारत में निरपेक्ष गरीबी का अनुमान लगाने के लिए गरीबी रेखा का प्रयोग किया गया। गरीबी रेखा वह रेखा होती है जो प्रति व्यक्ति औसत मासिक व्यय को प्रकट करता है, जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूर्ण कर पायें।

जिन व्यक्तियों का प्रतिमाह उपभोग व्यय गरीबी रेखा से कम है, उन्हें निर्धनता की श्रेणी में रखा जाता है। निर्धनता ज्ञात करने की विधि हेड काउंट विधि होती है जिसमें उन व्यक्तियों को गिना जाता है जो निर्धनता रेखा से नीचे है।

सापेक्ष गरीबी

यह विभिन्न आय वर्गों के बीच विषमता को स्पष्ट करती है। समाज के औसत व्यक्ति के जीवन स्तर की तुलना में किसी व्यक्ति के उपभोग आय व संपत्ति का अभाव सापेक्षिक गरीबी है। सामान्यताः इसके अंतर्गत व्यक्तियों की आय, जीवन स्तर की तुलना की जाती है। 

·         निर्धनता की श्रेणियाँ

श्रेणी-(I)- चिरकालिक निर्धन- ऐसे व्यक्ति जिनका परिवार पीढ़ियों से निर्धनता में जीवन व्यतीत कर रहा है एवं अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम नहीं है, जैसे- अनियमित मजदूर एवं भूमिरहित श्रमिक

श्रेणी-(II)- अल्पकालिक निर्धन- ऐसे व्यक्ति जो काम न मिलने पर गरीबी रेखा के नीचे पहुंच जाते है तथा काम मिलने पर गरीबी रेखा से ऊपर आ जाते हैं अल्पकालिक निर्धन होते हैं।

श्रेणी-(III)- कभी निर्धन नहीं- ऐसे व्यक्तियों के पास आय के निश्चित स्रोत उपलब्ध होते हैं अतः ये कभी निर्धन नहीं होते हैं।

 

निर्धनता का दुष्चक्र

निर्धनता के दुष्चक्र का सिद्धांत प्रो. रेगनर नक्र्से ने दिया है जिसके अनुसार कोई व्यक्ति गरीब है क्योंकि वह गरीब है।

इसका तात्पर्य यह है कि निर्धनता एक दुष्चक्र है जो व्यक्ति को निर्धनता की परिधि से बाहर नहीं आने देता है, जैसे- मान लें किसी गांव में कोई व्यक्ति रहता है जो अत्यन्त गरीब है। जब फसल बोने का समय आता है तो वह अच्छे किस्म के बीज उपयोग में नहीं ला पाता है। सिंचाई के साधन उसके पास उपलब्ध नहीं है, अच्छे उर्वरक कीटनाशक का उपयोग करने में वह असमर्थ है। अत्याधुनिक उपकरणों का प्रयोग कृषि में करने से वंचित है। इसका यह परिणाम होगा कि वह अपनी फसल का उत्पादन अच्छा प्राप्त नहीं करेगा जिससे उसकी गरीबी भी खत्म नहीं होगी। यह दुष्चक्र निरंतर चलता रहेगा जब तब कि उसे उसके कृषि कार्य में कुछ सहायता और नहीं मिलती।

इस दुष्चक्र को तोड़ने का प्रयास सरकार द्वारा निरंतर जारी है। इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं

 

लॉरेंज वक्र विधि

·         लॉरेंज वक्र को 1905 में मैक्स ओ लॉरेंज ने विकसित किया था।

·         लॉरेंज वक्र द्वारा किसी देश के लोगों के बीच आय विषमता को ज्ञात किया जाता है।

·         इस वक्र को प्रत्येक बिंदु उन व्यक्तियों को प्रदर्शित करता है जो एक निश्चित आय के प्रतिशत के नीचे होते हैं।

·         यदि आप समाज के 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल आय का 10 प्रतिशतय 20 प्रतिशत लोगों के पास 20 प्रतिशत हो एवं इसी अनुपात में आगे भी बढ़े तो इन्हें प्रदर्शित करने वाली रेखा 45° रेखा होगी।

·         पूर्ण समता रेखा या निरपेक्ष समता रेखा भी कहते हैं।

 

·                     गिनी गुणांक

यह भी आय के वितरण की विषमता की माप की प्रचलित विधि है। यह लॉरेंज वक्र पूर्ण समता रेखा के बीच का क्षेत्रफल तथा पूर्ण समता रेखा के नीचे के कुल क्षेत्र के बीच का अनुपात होता है। यदि G=0, तो प्रत्येक व्यक्ति को एक ही आय G=1 तो एक ही व्यक्ति को पूरी आय गिनी गुणांक का अधिकतम मूल्य 1 के बराबर होता है गिनी गुणांक में यदि 100 से गुणा कर दें तो गिनी गुणांक प्राप्त हो जाता है।

भारत में निर्धनता मापने संबंधी समितियाँ-

भारत में निर्धनता निर्धारण हेतु राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) एक मुख्य संख्या के रूप में कार्य करता है।

नीलकांत दांडेकर और वी.एम. रथ के फॉर्मूले-भारत में स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1971 में वैज्ञानिक तरीके से निर्धनता रेखा का निर्धारण किया गया।

इसके अनुसार उस व्यक्ति को निर्धनता की श्रेणी में रखा जाएगा जो प्रतिदिन औसतन 2,250 कैलोरी भोजन प्राप्ति में असमर्थ था।

डॉवाई. के. अलघ समिति- भारत में बनी इस समिति ने पहली बार ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र के गरीबों का प्रतिमान अलग किया।

इस समिति के अनुसार शहरी क्षेत्र में 2100 से कम कैलोरी तथा ग्रामीण क्षेत्र में 2400 से कम कैलोरी ग्रहण करने वाले व्यक्ति निर्धनता की श्रेणी में आएँगे। इस विभाजन के पीछे तर्क ये था कि ग्रामीण लोग अधिक शारीरिक श्रम करते हैं।

लकड़वाला समिति- योजना आयोग द्वारा वर्ष 1989 में प्रो. डी. टी. लकड़वाला की अध्यक्षता में समिति का निर्माण किया गया। जिसने वर्ष 1993 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में ग्रामीण एवं शहरी निर्धनता के लिए अलग-अलग मूल्य सूचकांकों के विषय पर बात हुई।

इस समिति द्वारा 18 राज्यों के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग निर्धनता रेखा का निर्धारण किया गया।

ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता रेखा के लिए कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को लिया गया तथा शहरी क्षेत्रों के लिए औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को लिया गया।

सुरेश तेंदुलकर समिति- योजना आयोग द्वारा वर्ष 2004 में सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसने अपनी रिपोर्ट वर्ष 2009 में तैयार की।

सुरेश तेंदुलकर समिति ने गरीबी के बहुआयामी रूप को स्वीकार किया।

समिति ने उपभोग बास्केट में परिवर्तन किये तथा जीवन जीने के लिए अदा की जाने वाले मूल्य की बात की।

तेंदुलकर समिति ने प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खर्च ग्रामीण क्षेत्रों में RS. 27 तथा शहरी क्षेत्रों में RS. 33 को माना। इस तरह प्रति व्यक्ति मासिक खर्च 1816 ग्रामीण क्षेत्र के लिए एवं RS. 1,000 शहरी क्षेत्र के लिए निर्धनता रेखा माना गया तथा इससे नीचे जीवन-यापन करने वाले गरीब माने गये।

सी. रंगराजन समिति- वर्ष 2012 में योजना आयोग द्वारा सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसने अपनी रिपोर्ट वर्ष 2014 में तैयार किया जिसमें सम्पूर्ण देश में ग्रामीण स्तर पर RS. 972 तथा शहरी स्तर पर RS. 1,407 प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा को आधार माना गया।

अरविंद पनगडिया टास्क फोर्स- मार्च 2015 में नीति आयोग द्वारा डॉ. अरविन्द पनगड़िया की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया जिसका कार्य भारत में निर्धनता के आंकलन हेतु विधि तैयार करना था। इस टास्क फोर्स द्वारा (Eliminating Poverty Creating  Jobs and Strength Social Programs) नाम से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई- जिसके दो तत्व थे

(I) भारत में गरीबी का निर्धारण अथवा मापन किस प्रकार या किस आधार पर होना चाहिए।

(II) भारत में गरीबी उन्मूलन के लिए क्या-क्या रणनीतियाँ एवं कार्यक्रम बनाये जाने चाहिए। 

·                     भारत में गरीबी का स्तर 

भारत सरकार के आँकड़ो के अनुसार वर्ष 2011-12 के लिए गरीबी का स्तर 21.9% पाया गया।

निर्धनता अनुपात

 

वर्ष

ग्रामीण

शहरी

भारत

1.

1993&94

50.1

30.8

45.3

2.

2004&05

41.8

25.7

37.2

3.

2011&12

25.7

13.7

21.9

 

·         निर्धनता के कारण

·         तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या

·         देश की कुल राष्ट्रीय आय जनसंख्या की तुलना में कम होना

·         पंचवर्षीय योजनाओं का अपेक्षित लाभ न मिल पाना चिरकालिक  बेरोजगारी एवं अल्परोजगार

·         पूँजी स्टॉक तथा पूँजी निर्माण में कमी

·         उद्यमियों की कमी

·         सामाजिक रूढ़ियाँ

·         अधोसंरचना की कमी

·         आय का असमान वितरण

बेरोजगारी जब एक व्यक्ति प्रचलित मजदूरी की दर से काम करने के लिए इच्छुक एवं तैयार तो रहता है परन्तु उसे कोई काम नहीं मिलता तो वह बेरोजगार कहलाता है।

सामान्यताः 15 से 59 आयु वर्ग के लोगों को आर्थिक रूप से कार्यशील माना जाता है।

·                     बेरोजगारी के प्रकार

शहरी बेरोजगारी

औद्योगिक बेरोजगारी शिमित बेरोजगारी

ग्रामीण बेरोजगारी

अदृश्य बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी

 

अन्य प्रकार- खुली या अनैच्छिक बेरोजगारी संरचनात्मक बेरोजगारी अल्परोजगार घर्षणात्मक बेरोजगारी चक्रीय बेराजगारी

भारत में निर्धनता एवं बेराजगारी से संबंधित सरकारी योजनाएँ-

क्र.

योजना

प्रारंभ

1.

मरूभूमि विकास कार्यक्रम

1977-78

2.

काम के बदले अनाज कार्यक्रम

1977-78

3.

अन्तोदय योजना कार्यक्रम

1977-78

4.

ट्राइसेम

1979

5.

एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम

1980

6.

ड्वाक्रा

1982

7.

जवाहर रोजगार योजना

1989

8.

नेहरू रोजगार योजना

1989

9.

दस लाख कुआं योजना

1988-89

10.

इंदिरा आवास योजना

1985-86

11.

प्रधानमंत्री रोजगार योजना

1993

12.

रोजगार आश्वासन योजना

1993

13.

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना

1997

14.

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना

1999

15.

जवाहर ग्राम समृद्धि योजना

1999

16.

प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना

2000-2001

17.

प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना

2000

18.

जनश्री बीमा योजना

2000-2001

19.

अंत्योदय अन्न योजना

2000

20.

आश्रय बीमा योजना

2001-02

21.

जे. पी. रोजगार गारंटी योजना

2002-03

22.

भारत निर्माण कार्यक्रम

2005-06

23.

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम

2006

24.

प्रधानमंत्री जन-धन योजना

28 अगस्त 2014

25.

पं. दीन दयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम

16 अक्टूबर 2014

26.

पं. दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना

25 दिसम्बर 2014

27.

प्रधानमंत्री कौशल विकास कार्यक्रम

15 जुलाई 2015

28.

उस्ताद

14 मई 2015

29.

प्रधानमंत्री युवा योजना

2016-17

30.

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना

मई 2016

 

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