कृषि खाद्य सुरक्षा एवं आपूर्ति

कृषि खाद्य सुरक्षा एवं आपूर्ति

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कृषि खाद्य सुरक्षा एवं आपूर्ति

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

भारतीय कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की जान मानी जाती है। जब भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक के अंतर्गत आता था तब से आज तक भारत मूलतः कृषि अर्थव्यवस्था वाला देश बना रहा है। पूर्व में फसलें ब्रिटिश अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उगवाते थे लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कृषि में बदलाव हुआ। कृषि व खाद्य सुरक्षा के विकास के लिए समय- समय पर कई क्रांतियों को लाया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य कृषि को विकसित करना रखा गया था। 1966-67 में कृषि को और उन्नत बनाने के लिए हरित क्रान्ति को औपचारिक रूप से अपना लिया गया। ऐसी कई क्रांतियाँ हुईं जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान समय में भारत की लगभग 64 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है। साथ-ही-साथ कई अनुसंधान केन्द्र विकसित किये गये जैसे- केन्द्रीय चावल अनुसंधान केन्द्र- कटक में विकसित किया गया। सरकार भी कई अहम कदम उठा रही है।

 

कृषि, खाद्य सुरक्षा एवं आपूर्ति 

§     भारत में कृषि

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है।

 स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किए गए।

वर्तमान भारत में कृषि कितनी महत्वपूर्ण है इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्व के 2.4% क्षेत्र और 4.2% जल का उपयोग करके हम विश्व की 17.5% आबादी का पालन-पोषण कर रहे हैं।

 

§     भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का महत्व

·         औद्योगिक क्षेत्रों में उपयोगी वस्तुओं की आपूर्ति

·         बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न आपूर्ति

·         राष्ट्रीय आय में योगदान

·         अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सहयोगी

·         रोजगारोन्मुख 

·         वित्त निर्माण में सहयोगी

·         खाद्यान्न आत्मनिर्भरता

·         पर्यावरण अनुकूलता

 

§     फसलों का वर्गीकरण

1. मौसम के आधार पर

2. खाद्यान्न फसलों के आधार पर 7

3. व्यापारिक फसलों के आधार पर

4. नकदी फसलों के आधार पर।

 

1. मौसम के आधार पर- फसलों को 3 भागों में बाँटते है

 

 

प्रमुख फसल

बुआई

कटाई

1.

रबी की फसलें-गेहूँ, चना, सरसो, मटर, जौ, मसूर एवं आलू

अक्टूबर-नवम्बर

मार्च-अप्रैल

2.

खरीफ की फसलें चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, सोयाबीन, मूंगफली, उड़द

जून-जुलाई

अक्टूबर- नवम्बर

3.

जायद फसलें तरबूज, खरबूज, ककड़ी, खीरा, भिंडी, अन्य सब्जिया

मार्च-अप्रैल

जून-जुलाई

 

2. खाद्यान्न फसलें- इन फसलों का उपयोग मुख्यतः भोजन संबंधी आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया जाता है।

1. प्रमुख फसलें- गेहूँ, धान, जौ, चना।

2.द्वितीयक फसलें- रागी, कोदो, सावाँ।

3. तृतीयक  (मोटे अनाज) फसलें- मक्का, ज्वार, बाजरा।

 

3. व्यापारिक फसलें- इन फसलों को मुख्यतः धन प्राप्ति के उददेश्य से उगाया जाता है।

इन्हें 4 भागों में बाँटते हैं

1. रेशेदार फसलें- जूट, कपास, सनई आदि।

2. तिलहन फसलें- सरसों, तिल, सूरजमुखी, मूंगफली आदि।

3. पेय फसलें- चाय, कहवा आदि।

4. बागवानी फसलें- सब्जियाँ, फल, फूल, मसाले आदि।

 

जैविक कृषि

जैविक कृषि में संश्लेषित उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग कम एवं भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए हरी खाद, कम्पोस्ट व फसल चक्र का प्रयोग ज्यादा किया जाता है। जैविक कृषि से भूमि की उर्वरा शक्ति लम्बे समय तक बनी रहती है साथ-ही-साथ पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता और उत्पाद की गुणवत्ता भी अच्छी होती है।

मुख्य उद्देश्य

1. मृदा संरक्षण को बढ़ाना

2. जैविक खाद का प्रयोग (गोबर की खाद)

3. जैविक तरीकों द्वारा कीट एवं रोगों को नियंत्रित करना

 

जैविक कृषि का महत्व

1. मानव स्वास्थ्य में सुधार लाना।

2. कृषक कम लागत लगाकर अधिक लाभ कमाना।

3. उच्च गुणवत्ता वाली फसलों का उत्पादन।

4. पर्यावरण प्रदूषण को कम करना।

5. कृषि मित्र जीवों को सुरक्षित रखना

नोटः 1. 2018.19 के बजट में जैविक कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए ‘महिला स्वयं सहायता समूह बनाने की घोषणा की है।

2. देश का पहला सम्पूर्ण जैविक कृषि अपनाने वाला राज्य सिक्किम बना है।

बीज अधिनियम-कृषि में विकास के लिए बीजों का महत्वपूर्ण योगदान होता है, इसलिए बीज अधिनियम-1966 को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के द्वारा स्थापित किया गया।

मुख्य उद्देश्य- 1. बीजों के विकास पर जोर देना। 2. बीजों के निर्यात को प्रोत्साहन देना

नोटः केन्द्र सरकार ने सन् 2005 में राष्ट्रीय बीज अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना उत्तर प्रदेश के वाराणसी में की है।

जी.एम. फसलें- ऐसी फसलें जिन्हें आनुवांशिक इंजीनियरिंग की सहायता से फसलों की आनुवांशिक संरचना में परिर्वतन कर एक बेहतर किस्म तैयार की जाती है, जी.एम. फसलें कहलाती हैं जैसे- बीटी बैंगन, बीटी कपास आदि। सर्वाधिक- 1. अमेरिका 70.9 (कि.हे.) क्षेत्र, 2. ब्राजील- 44.2 (कि.हे. क्षेत्र)

अनुबंध आधारित कृषि- इसमें कई छोटे-छोटे किसान मिल कर एक बड़े किसान के रूप में कार्य करते हैं जिससे छोटे खेत बड़े कृषि जोत में परिवर्तित हो जाते हैं। इन किसानों और खरीददार कंपनी के बीच उत्पादन की प्राप्ति खरीद और विपणन की शर्तों को पहले से तय कर लिया जाता है।

 

उपयोगी खाद्य सुरक्षा एवं आपूर्ति

 

खाद्य सुरक्षा का अर्थ है- लोगों को समय पर उपयोगी भोजन उपलब्ध कराना।  

खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार- सभी व्यक्तियों को सही समय पर उनके लिए आवश्यक बुनियादी भोजन के लिए भौतिक एवं आर्थिक दोनों रूप में उपलब्धि का आश्वासन मिलना खाद्य सुरक्षा है।

 

§     राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम

10 सितम्बर 2013 को पारित हुआ एवं इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को सस्ती दर पर उत्तम खाद्यान्न की आपूर्ति कराना है ताकि उन्हें पोषण मिले तथा वे स्वस्थ शरीर के साथ सम्मानित जीवन जी सकें।

बफर स्टॉक- फूड कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया एक सरकारी संस्था है जो किसानों से अनाज खरीदती है फिर विभिन्न स्थानों पर बफर स्टॉक रखती है। बफर स्टॉक का इस्तेमाल किसी स्थान पर खाद्यान्न की कमी आने पर होता है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली-

इस कार्यक्रम के तहत शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों को सस्ते दामों पर खाद्यान्न और अन्य आवश्यक चीजें उपलब्ध करायी जाती हैं। इस वितरण प्रणाली को वर्ष 1950 में प्रारंभ किया गया था।

राष्ट्रीय कृषि आयोग- राष्ट्रीय कृषि आयोग का गठन वर्ष 2004 में डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में हुआ था।

प्रमुख सिफारिशें

·         सभी कृषिगत उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्यों के उतार-चढ़ाव से किसानों की सुरक्षा हेतु बाजार जोखिम स्थिरीकरण कोष का सुझाव। सूखे एवं वर्षा संबंधी जोखिमों से बचाव हेतु कृषि जोखिम कोष का सुझाव।

·         सभी राज्यों में राज्यस्तरीय किसान आयोग के गठन का सुझाव।

·         किसानों के लिए बीमा योजनाओं का विस्तार।

भारतीय कृषि नीति, 2007- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह भारत की तीसरी कृषि नीति है।

कृषि नीति के उद्देश्य

·         कृषकों की निवल आय में वृद्धि

·         समर्थक सेवाओं का विकासय जैसे- बीज, सिंचाई, उर्वरक, आदि।

·         फसलों कृषि, पशु, मछली, जंगल के संदर्भ में जैव सुरक्षा को सशक्त बनाना।

·         भूमि सुधार एजेंडा के बचे हुए भाग को पूरा करना।

·         कृषकों के लिए सामाजिक सुरक्षा विकसित करना, कृषि के विकास के  लिए कृषि को राज्यसूची से समवर्ती सूची में शामिल करना।

 

भारत के प्रमुख कृषि शोध संस्थान,

 

शिमला

केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान

जालंधर

पशु स्वास्थ्य संस्थान

करनाल

भारतीय डेयरी अनुसंधान संस्थान

हिसार

केन्द्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

गाजियाबाद

राष्ट्रीय जैव उर्वरक विकास केन्द्र

कानपुर

केन्द्रीय दलहन अनुसंधान संस्थान

लखनऊ

केन्द्रीय गन्ना अनुसंधान संस्थान

जोधपुर

टिड्डी चेतावनी केन्द्र

कोलकाता

केन्द्रीय पटसन अनुसंधान संस्थान

कटक

केन्द्रीय चावल अनुसंधान संस्थान

हैदराबाद

केन्द्रीय शुष्क कृषि अनुसंधान संस्थान

राजमुंद्री

केन्द्रीय तम्बाकू अनुसंधान संस्थान

कोयम्बटूर

भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान

कोच्ची

केन्द्रीय समुद्री मत्स्यन अनुसंधान संस्थान

 

कृषि से संबंधित महत्वपूर्ण संस्थाएँ

1. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR)- इस संस्था का मुख्य उद्देश्य कृषि के अनुसंधान में किसान एवं प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करना है। इसकी स्थापना 16 जुलाई 1929 में की गई। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

2. कृषि प्रौद्योगिकी व अनुसंधान संस्था (कपार्ट)- इसकी स्थापना 1 सितम्बर 1986 को की गई। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण विकास के लिए परियोजनाओं के क्रियान्वयन में निजी क्षेत्र की स्वेच्छा से भागीदारी को बढ़ावा देना है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।

3. नाबार्ड- इसकी स्थापना मुख्य रूप से कृषि तथा ग्रामीण विकास के लिए ऋण के रूप में (वित्त उपलब्ध) कराना है। इस समिति की स्थापना शिवराम सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर 12 जुलाई 1982 को की गई।

4. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक- कृषि के लिए साख उपलब्ध कराने के लिए 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना की गई। इसके द्वारा अल्पकालीन ऋण किसानों को उपलब्ध कराया जाता है।

5. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान- केन्द्र सरकार ने झारखण्ड के हजारी बाग जिले के बरही ब्लॉक के गौरिया कर्मा गाँव में 18 जनवरी, 2017 को स्थापित करने की मंजूरी प्रदान की है। यह कृषि से संबंधित समीक्षाओं के अनुसंधान के लिए स्थापित किया गया।

 

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