तत्वों का वर्गीकरण एवं गुणों में आवर्तित

तत्वों का वर्गीकरण एवं गुणों में आवर्तित

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तत्वों का वर्गीकरण एवं गुणों में आवर्तिता

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

आवर्त सारणी प्रमाणित तौर पर रसायन शास्त्र का अत्यंत महत्वपूर्ण विचार है। विषय अध्ययन के लिए इससे सहायता मिलती है। खोजकर्ताओं को नर्इ दिशा मिलती है और व्यवस्थित रूप में संपूर्ण रसायन शास्त्र का संक्षिप्त वर्णन मिलता है। यह इस बात का एक अद्भुत उदाहरण है कि रासायनिक तत्व अव्यवस्थित समूह में बिखरी हुर्इ इकार्इ नहीं होते, अपितु वे व्यवस्थित समूहों में समानता प्रदर्शित करते हैं। जो लोग यह जानना चाहते हैं कि दुनिया छोटे-छोटे अंशों से कैसे बनी, उनके लिए आवर्त सारणी बहुत उपयोगी है।

 

सामान्य परिचय- ब्रह्मांड में स्थित प्रत्येक द्रव्य किसी किसी तत्व, तत्व के मिश्रण अथवा यौगिक से बना हुआ है। यह तत्व पदार्थ की संरचना गुण धर्म एवं एवं भौतिक स्वरूप को निर्धारित करते हैं।

तत्वों के वर्गीकरण की आवश्यकता- तत्व सभी प्रकार के पदाथोर्ं की मूल इकार्इ होते हैं। सन् 1800 में केवल 31 तत्व ज्ञात थे। सन् 1865 तक 63 तत्वों की जानकारी हो गर्इ थी। वर्तमान समय मे 118 तत्वों के बारे में पता है। इनमें से बहुत सारे तत्व प्राकृतिक तत्व एवं कुछ तत्वों को प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से वैज्ञानिक द्वारा निर्मित किया गया है। अब इतने सारे तत्वों और उनके असंख्य यौगिकों के रसायन का अध्ययन अलग-अलग कर पाना बहुत कठिन है। इस कठिनार्इ को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने तत्वों का वर्गीकरण करके इस अध्ययन को संगठित किया और आसान बनाया। इतना ही नहीं, इस संक्षिप्त तरीके से सभी तत्वों से संबंधित रासायनिक तथ्यों का अध्ययन तर्कसंगत रूप से तो कर ही सकेंगे, भविष्य में खोजे जाने वाले अन्य तत्वों के अध्ययन में भी सहायता प्राप्त होगी।

आवर्त सारणी की उत्पत्ति एवं विकास क्रम

तत्वों का वर्गीकरण समूहों में और आवर्तिता नियम एवं आवर्त सारणी का. विकास वैज्ञानिकों द्वारा अनेक अवलोकनों तथा प्रयोगों का परिणाम है।

धातु एवं अधातु वर्गीकरण- सर्वप्रथम वैज्ञानिक बर्जीलियस द्वारा तत्वों को धातुओं और अधातुओं में वर्गीकृत किया गया। सामान्य ताप पर ठोस अवस्था में रहने वाले, चमकदार, लचीले, ऊष्मा एवं विद्युत के सुचालक तत्वों को धातुओं के रूप में वर्गीकृत किया गया, जबकि सामान्य ताप पर ठोस अवस्था में रहने वाले, चमक रहित, लचीलापन वाले एवं ऊष्मा विद्युत के कुचालक इस प्रकार के तत्वों को अधातुओं की श्रेणी में रखा गया। योगदान का श्रेय मेंडेलीव को दिया गया है। हालांकि आवर्ती संबंधों के अध्ययन का आरंभ डॉबेराइनर ने किया था, किंतु मेंडलीव ने आवर्त नियम को पहली बार प्रकाशित किया। मेंडलीव का आवर्त नियम ‘‘तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं’’ आवर्ती फलन से तात्पर्य है कि एक नियत अंतराल के पश्चात इसके गणों में पुनरावर्ती हो। इस अंतराल को आवर्त कहते है। मेण्डलीफ की आवर्त सारणी- मेंडलीव के आवर्त सारणी में आवर्त एवं वर्ग होते है।

आवर्त (Peroid)- तत्वों के परमाणु भार के वृद्धि क्रम में क्रमबद्ध करने पर क्षैतिज कतारें प्राप्त होती हैं जिन्हें ‘आवर्त’ कहते हैं।

वर्ग/समूह (Group)- आवर्त नियम के अनुसार तत्वों को परमाणु भार के वृद्धि क्रम में क्षैतिज कतारों में रखने पर समान गुण वाले तत्व एक ही उर्ध्वाधर कालम में उपस्थित रहते हैं, इन्हें ‘वर्ग’ कहते हैं। इस सारणी में केवल 8 समूह होते है। मेण्डलीफ ने कुछ अभी तक नहीं खोजे गये तत्वों के लिए रिक्त स्थान छोड़े। नोबल गैसों की खोज नहीं हुर्इ अत: इन्होने आवर्त में इनके लिए कोर्इ स्थान नहीं दिया। मेण्डलीव ने मूलभूत परमाण्वीय गुण (परमाणु द्रव्यमान) को वर्गीकरण का आधार माना था।

 

मेण्डलीव द्वारा तत्वों के वर्गीकरण के दो प्रमुख कारक-

1.     समान तत्वों का एक साथ रखना

2.     तत्वों को बढ़ते परमाणु द्रव्यमान के क्रम में व्यवस्थित करना।

 

मेण्डलीफ की आवर्त सारणी की उपयोगिता

1. तत्वों के अध्ययन में सहायक

2. नये तत्वों की खोज में सहायक

3. परमाणु भार ज्ञात करने में सहायक

4. संदेहजनक परमाणु भारों को ठीक करने में सहायक

 

मेण्डलीफ की आवर्त सारणी के दोष-

1. भारी तत्वों को हल्के तत्वों से पहले रखा जाना

2. हाइड्रोजन का स्थान अनिश्चित

3. समान गुण वाले तत्वों को अलग अलग वगोर्ं में रखा जाना

4. विभिन्न गुणों वाले तत्वों का एक ही वर्ग में रखा जाना

5. दुर्लभ मृदा तत्वों का सही स्थान पर ना रखा जाना

6. समस्थानिकों को स्थान नही दिया गया

7. आठवें वर्ग में तीन वगोर्ं के तत्वों का एक साथ रखा जाना।

आधुनिक आवर्त सारणी की रूपरेखा-

वर्ष 1913 में अंग्रेज भौतिकी वैज्ञानिक हेनरी मोजले ने तत्वों के अभिलाक्षणिक x-किरण स्पेक्ट्रमों में नियमितता पार्इ और देखा कि जहां UV-किरण की आवृत्ति है और परमाणु-क्रमांक (Z) के मध्य वक्र आलेखित करने पर एक सरल रेखा प्राप्त होती है, परंतु परमाणु द्रव्यमान तथा के आलेख में सरल रेखा प्राप्त नहीं होती। अत: मोजले ने दर्शाया कि परमाणु-द्रव्यमान की तुलना में किसी तत्व का परमाणु-क्रमांक उस तत्व के गुणों को दर्शाने में अधिक सक्षम है।

 

आधुनिक आवर्त नियम (Modern Periodic Low) -’’तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुणधर्म उनके परमाणु क्रमांक के आवर्ती फलन (Periodic Function) होते हैं’’

 

आधुनिक आवर्त सारणी (Modern Periodic Table)- नील्स बोर ने तत्वों के बढ़ते हुए परमाणु-क्रमांकों (परमाणु संख्या) के आधार पर उन्हें एक सारणी के रूप में व्यवस्थित किया। यह आवर्त सारणी बोर की आवर्त सारणीध्आधुनिक आवर्त सारणी (Modern Periodic Table)/आवर्त सारणी का दीर्घ रूप कहलायी। आधुनिक आवर्त सारणी में 18 वर्ग (ग्रुप) तथा 7 आवर्त (पीरियड)

है।

आधुनिक आवर्त सारणी में किसी एक वर्ग के सभी तत्वों के परमाणुओं के सबसे बाहरी कक्षा में इलेक्ट्रानों की संख्या (अर्थात ‘संयोजक इलेक्ट्रानों’ की संख्या) समान होती है। इस कारण किसी एक वर्ग के सभी तत्वों के मुख्य गुण समान होते हैं। 5 हल्की धातुएं - वर्ग 1 और 2 में, क्षारीय धातुएं- वर्ग 1 में, क्षारीय मृदा धातुएं- वर्ग 2 में संक्रमण धातुएं या भारी धातुएं - वर्ग 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 में

अधातुएं - वर्ग 13, 14, 15, 16 और 17 में, अक्रिय गैसें - वर्ग 18 में

 

आवतोर्ं का वितरण- तत्वों की इलेक्ट्रॉनिक संरचना एवं आवर्तसारणी के दीर्घ रूप में निकट का संबंध है। आवर्त सारणी का प्रत्येक आवर्त मुख्य ऊर्जा स्तरध् कोश के आधार पर है। पहला आवर्त हाइड्रोजन से शुरू होता है जिसके लिए n ¾ 1 है, दूसरे आवर्त में इलेक्ट्रॉन n ¾ 2 वाले कोश में प्रवेश करता है।

 

ग्रुपों का वितरण- ग्रुपों का वितरण आधुनिक आवर्त सारणी में कुल 18 ऊर्ध्वाधर स्तंभ हैं जिन्हें ग्रुप कहते हैं। इन ग्रुपों को 1 से 18 तक की संख्याओं द्वारा दर्शाते हैं प्रत्येक ग्रुप के सभी तत्वों के बाह्यतम कोश की इलेक्ट्रॉनिक संरचना समान होती है।

सामान्य तत्व या निरूपक तत्व- ग्रुप 1, 2, 13, 14, 15, 16, 17 और 18 के तत्व निरूपक तत्व कहलाते हैं। इन तत्वों के परमाणुओं के भीतरी कोश इलेक्ट्रॉनों द्वारा पूर्णत: भरे होते हैं जबकि इनके बाह्यतम कोश अपूर्ण होते हैं।

 

ब्लॉक तत्व (Block Element)- ग्रुप 1 और ग्रुप 2 के तत्व ब्लॉक तत्व कहलाते हैं। ग्रुप 1 ग्रुप 2 के सभी तत्वों में अन्तिम इलेक्ट्रॉन बाह्यतम कक्षा के s-अॉर्बिटल में पाये जाते हैं। अत: उनके बाह्यतम कक्षा की सामान्य इलेक्ट्रॉनिक संरचना ग्रुप 1 ग्रुप 2 के

लिए क्रमश: \[n{{s}^{1}}\]\[n{{s}^{2}}\] है।

मेण्डलीफ आवर्त सारणी के दोषों का निवारण-

1.     कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्वों को अधिक परमाणु द्रव्यमान

वाले तत्वों के बाद में रखा गया

2.     समस्थानिकों का स्थान का

3.     असमान गुणों वाले तत्वों को एक ही स्थान पर रखना

4.     उत्कृष्ट गैसों का स्थान

मेण्डलीफ की आवर्त सारणी के दोषों को आधुनिक सारणी के द्वारा दूर किया गया।

आधुनिक आवर्त सारणी के कुछ दोष-

1.     हाइड्रोजन परमाणु, लेन्थेनाइडो और एक्टिनॉइड की स्थिति में

संशय बना हुआ।

2.     समान गुण वाले कुछ तत्वों को आवर्त सारणी में भिन्न-भिन्न

स्थान पर रखा गया।

आवर्त-सारणी के दीर्घ रूप की मेण्डलीफ की सारणी से श्रेष्ठता-

1.       इसे याद रखना अपेक्षाकृत सरल है क्योंकि इसमें वर्गीकरण

अधिक विज्ञान सम्मत तरीके से किया गया है।

2.       प्रत्येक तत्व की स्थिति उसके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार

पर निश्चित की गयी है।

3.       आवर्त सारणी का दीर्घ रूप परमाणु-क्रमांक पर आधारित है जो परमाणु का अधिक मूल गुण है।

आवर्तिता का कारण

किसी तत्व के रासायनिक गुण उसके परमाणु की बाह्यत्तम कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करते हैं। अत: बाह्यत्तम इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में नियमित रूप से परिवर्तन होने पर तत्वों के गुणों में भी नियमित परिवर्तन होता है।

तत्वों के प्रकार तत्वों का s, p, d, f का वर्गीकरण-

(i)     प्रतिनिधि तत्व-दो वर्ग

(a) s- ब्लॉक-जिसमें केवल बाह्यतम s-कक्षकों में इलेक्ट्रॉन

भरें।

(b) p-ब्लॉक-जिसमें बाह्यतम p-कक्षकों में इलेक्ट्रॉन भरें।

संक्रमण तत्व- s एव p-ब्लॉक के मध्य स्थित तत्व जिनमें दो बाह्यतम कोश अपूर्ण एवं इलेक्ट्रान (n-1) कक्षक में भरें। इसे d-ब्लॉक तत्व भी कहते हैं।

(iii) अन्तर-संक्रमण तत्व- f-ब्लॉक तत्व वर्ग 3 4 के मध्य स्थित

बाह्यतम तीन अपूर्ण कोश वाले तत्व एवं (-2) िमें इलेक्ट्रॉन

भरें।

तत्वों के गुणों में आवर्तिता

परमाणु त्रिज्याएं (Atomic radius)- परमाणु के नाभिक के बह्यत्तम इलेक्ट्रॉनिक कोश के बीच की दूरी होती है।

वाण्डर वॉल्स त्रिज्या (Vander Walls radius)- ठोस अवस्था में किसी एक तत्व के दो निकटतम अणुओं के परमाणुओं के नाभिकों की दूरी का आधा, उस तत्व के परमाणु की वाण्डर वॉल्स त्रिज्या कहलाती है।

सहसंयोजक त्रिज्या (Covalent radius)- किसी तत्व के अणु में एक सहसंयोजक बंध (Single Covalent Bond) द्वारा आबद्ध परमाणुओं के नाभिकों की दूरी का आधा उस तत्व के परमाणु की सहसंयोजक त्रिज्या कहलाती है।

अक्रिय गैस त्रिज्या (Inert gas radius)- अक्रिय गैसों की सहसंयोजक त्रिज्याओं के मान अधिक होते हैं। अपने स्थायी विन्यास के कारण ये गैसें यौगिक नहीं बनाती एवं अक्रिय होती हैं, अत: इनकी सहसंयोजक त्रिज्या का निर्धारण सम्भव नही है।

परमाणु आयतन (Atomic Volume)- किसी तत्व के एक मोल परमाणुओं का ठोस अवस्था में गलनांक पर जो आयतन होता है परमाणु आयतन (Atomic Volume) कहलाता हैं।

परमाणु आयतन का गणितीय मान प्राय: निम्नानुसार ज्ञात किया जाता हैं-

परमाणु आयतन ¾ (ग्राम परमाणु द्रव्यमान )/घनत्व

 

आयनन एन्थैल्पी (Ionizing enthalpy)- तत्वों द्वारा इलेक्ट्रॉन त्यागने की मात्रात्मक प्रकृति ‘आयनन एन्थैल्पी’ कही जाती है। आद्य अवस्था (ground State) में विलगित गैसीय परमाणु (isolated gaseous Atom) से बाह्यतम इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने में जो ऊर्जा लगती है, उसे ‘तत्व की आयनन एन्थैल्पी’ कहते हैं।

परिरक्षण-प्रभाव (Sheilding Effect) - तत्वों में क्रोडीय इलेक्ट्रॉनों (Core element) की स्थिति नाभिक तथा संयोजी इलेक्ट्रॉन के बीच जाने के फलस्वरूप संयोजी इलेक्ट्रॉन नाभिक से परिरक्षित (Sheilded) या आवरित (Screened) हो जाता है। इस प्रभाव को ‘परिरक्षण-प्रभाव’ (Sheilding Effect) या ‘आवरण-प्रभाव’ (Screening Effect) कहते हैं।

 

क्रोड इलेक्ट्रॉन (Core Element)- परमाणु में सबसे वाह्यतम कोश के अलावा आंतरिक कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों को क्रोड इलेक्ट्रॉन कहते है।

 

इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पीध्इलेक्ट्रॉन बंधुता (Electron Gain enthalpy/ Affinity)-

जब कोर्इ उदासीन गैसीय परमाणु (x) इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन (anion) में परिवर्तित होता है, तो इस प्रक्रम में हुए एन्थैल्पी परिवर्तन को उस तत्व की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी कहते हैं। यह एन्थैल्पी इस तथ्य की माप कही जा सकती है कि किस सरलता से परमाणु इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करके ऋणायन बना लेता है।

 

ऋणविद्युतता (Electronegativity)- ‘‘किसी यौगिक के अणु में उसके किसी परमाणु द्वारा साझे के इलेक्ट्रॉन युग्म को अपनी ओर आकर्षित करने (और इस प्रकार आंशिक ऋणावेशित हो जाने) की प्रवृत्ति को विद्युत ऋणता या ऋणविद्युतता कहते हैं।’’

 

संयोजकता (Valency)- आवर्त सारणी में तत्वों की संयोजकता भी एक आवर्ती गुण है। संयोजकता- तत्व का एक परमाणु हाइड्रोजन अथवा अन्य एक संयोजी तत्व के कितने परमाणुओं के साथ संयोजन करता है। उसे उस तत्व की संयोजकता कहते हैं।


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