परमाणु संरचना

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परमाणु संरचना

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

परमाणु तत्वों के रचनात्मक भाग होते हैं। ये तत्व के ऐसे छोटे भाग हैं, जो रासायनिक क्रिया में भाग लेते हैं। प्रथम परमाणु सिद्धांत, जिसे जॉन डॉल्टन ने सन् 1808 में प्रतिपादित किया. के अनुसार परमाणु पदार्थ के ऐसे सबसे छोटे कण होते हैं, जिन्हें और विभाजित नहीं किया जा सकता है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित हो गया कि परमाणु विभाज्य है तथा वह तीन मूल कणों (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन) द्वारा बना होता है। इन अव-परमाण्विक कणों की खोज के बाद परमाणु की संरचना को स्पष्ट करने के लिए बहुत से परमाणु मॉडल प्रस्तुत किए गए।

18वीं शताब्दी के अन्त तक वैज्ञानिकों ने तत्वों एवं यौगिकों के तथ्यों को समझने के बाद तत्वों के संयोजन का अध्ययन किया तथा तत्वों के रासायनिक संयोजन के विभिन्न नियमों को स्थापित कर रसायन विज्ञान को महत्वपूर्ण आधार प्रदान किया। रासायनिक संयोजन के नियमों के आधार पर जॉन डाल्टन ने द्रव्यों की प्रकृति के बारे में एक आधारभूत सिद्धान्त प्रतिपादित किया। इसके अनुसार सभी तत्व अनेक सूक्ष्मतम कणों से मिलकर बने होते हैं, जिन्हें परमाणु की संज्ञा दी गयी।

 

परमाणु (Atom) - किसी तत्व का वह सूक्ष्म कण है, जो रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है, परन्तु स्वतन्त्र अवस्था में नहीं रह सकता।

 

अणु (Molecule) - किसी तत्व या यौगिक का वह सूक्ष्म कण है, जो स्वतन्त्र अवस्था में रह सकता है, किन्तु रासायनिक अभिक्रिया में भाग नहीं ले सकता।

 

परमाणु के मौलिक कण (Fundamental Particles of Atom) - 19वीं शताब्दी तक परमाणु को अविभाज्य माना जाता रहा, लेकिन 20वीं सदी की शुरूआत में वैज्ञानिक खोजों एवं अनुसंधानों द्वारा यह प्रमाणित हो गया कि परमाणु सूक्ष्म कण है, लेकिन इसकी भी अपनी जटिल संरचना होती है परमाणु स्वयं विभिन्न प्रकार के अति सूक्ष्म कणों से मिलकर बना होता है, जिसमे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन प्रमुख हैं। इन्ही तीनो कणों को परमाणु के मौलिक कण कहा जाता है।

 

परमाणु संरचना (Atomic Structure) - परमाणु को बनाने वाले मूल कण इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन के वितरण को परमाणु संरचना कहते है।

कैथोड किरणे: इलेक्ट्रॉन की खोज - जब किसी विसर्जन नलिका में निम्न दाब पर गैस उपस्थित हो और इस नली के सिरों पर उच्च विभवान्तर आरोपित किया जाए तो कैथोड ऋणात्मक इलेक्ट्रोड से एनोड (धनात्मक इलेक्ट्रोड) की तरफ ऋणात्मक किरणों का एक पुंज गमन करता है, जिन्हें कैथोड किरण कहते है। बाद में इन्ही किरणों के कणों को इलेक्ट्रॉन कहा गया। कैथोड किरणें ऋणावेशित कणों से मिलकर बनी होती हैं, जिन्हें इलेक्ट्रॉन (Electron) कहते हैं।

कैथोड किरणों के पुंज को जूलियस प्लकर (Julius Plucker) जोहान विल्हेम हिटोर्फ (Johann Wilhelm Hittorf) द्वारा सन् 1858 में रिसर्च के दौरान देखा गया तथा इनका अध्ययन विलियम क्रुक्स

 

(Willium Crookers) तथा जे. जे. थॉमसन (J.J.Thomson) ने किया।

इलेक्ट्रॉन - यह इकार्इ ऋण आवेश युक्त परमाणु का मूल कण है। जिसकी खोज 1897 र्इ. में जे. जे. थॉमसन ने की थी एवं नामकरण जी. जे. स्टोनी ने किया था। इसे ‘e’ से प्रदशित किया जाता है।

एनोड किरणे : प्रोटॉन की खोज - परमाणु विद्युत उदासीन होता है, इसलिए यदि परमाणु में ऋण विद्युत आवेश वाले कण (इलेक्ट्रॉन) होते हैं, तो इसमें धन विद्युत आवेश वाला भाग भी होगा। सन 1886 में गोल्डस्टीन ने इस धनावेशित भाग की खोज की। गोल्डस्टीन ने विसर्जन नलिका के प्रयोग को छिद्रयुक्त कैथोड के साथ दोहरा कर यह पाया कि कैथोड किरणों के निकलने के कुछ समय पश्चात् एक चमकदार धनावेशित कणों की धारा ऐनोड से कैथोड की ओर चलती है। इन किरणों को ऐनोड किरणे अथवा कैनाल किरणें कहते हैं किरणों के कणों को प्रोटॉन कहा गया।

 

प्रोटॉन (Proton) - यह परमाणु का धनावेशित कण है। इसकी खोज 1886 र्इ. में गोल्डस्टीन ने की एवं नामकरण वर्ष 1919 में रदरफोर्ड ने किया था। इसे ‘p’ से प्रदशित किया जाता है।

 

न्यूट्रॉन की खोज - वर्ष 1932 में वैज्ञानिक चौडविक ने बेरिलियम धातु पर तीव्रगामी अल्फा कणों की बौछार की। नाभिकीय विघटन से ऐसे कण प्राप्त हुए जिन पर कोर्इ आवेश नही होता एवं द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान के बराबर होता है।

 

न्यूट्रॉन (Neutron) - यह एक आवेश रहित (उदासीन) परमाणु का मूल कण है। इस कण की खोज वर्ष 1932 में चौडविक ने की थी। इसे ‘n’ से प्रदशित किया जाता है।

 

परमाणु संख्या (Atomic Number) - किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की कुल संख्या को उस तत्व की परमाणु संख्या (Atomic Number) या परमाणु क्रमांक कहते हैं। इस Z से दर्शाया जाता है। किसी तत्व की परमाणु संख्या उस तत्व का मुख्य गुण होता है।

परमाणु संख्या (Z) ¾ परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन की संख्या

Z ¾ e ¾ p ¾ उदासीन परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या

 

द्रव्यमान संख्या (Mass Number) - किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन की संख्या और न्यूट्रॉन की संख्याओं के योग को उस परमाणु की द्रव्यमान संख्या (Mass Number) कहते हैं। द्रव्यमान संख्या को ‘’ प्रदर्शित किया जाता है। परमाणु द्रव्यमान संख्या को न्युक्लिऑन संख्या भी कहते है।

समस्थानिक (Isotopes) - एक ही तत्व के वे परमाणु, जिनकी परमाणु क्रमांक समान लेकिन द्रव्यमान भिन्न होती हैं, ‘समस्थानिक’ कहलाते हैं। परमाणुओं के रासायनिक गुण इलेक्ट्रानों की संख्या पर निर्भर होते हैं, अर्थात रासायनिक अभिक्रियाओं में सभी समस्थानिकों के व्यवहार समान होते हैं।

समभारिक (Isobars) - भिन्न-भिन्न तत्वों के ऐसे परमाणु, जिनकी द्रव्यमान संख्याएं समान लेकिन परमाणु क्रमांक अलग-अलग होते हैं, समभारिक कहलाते है।

 

समन्यूट्रॉनिक (Isotones) - अलग अलग तत्वों के ऐसे परमाणु, जिनकी परमाणु संख्या तथा द्रव्यमान संख्या दोनों अलग-अलग होती हैं, किंतु उनमें उपस्थित न्यूट्रॉनों का संख्या समान होती है, समन्यूट्रॉनिक कहलाते हैं।

समइलेक्ट्रॉनिक (Isoelectronic) - ऐसे आयन जिनमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है, समइलेक्ट्रानिक कहलाते हैं।

 

थॉमसन का परमाणु मॉडल (Thomson’s Model of an Atom) - सन् 1898 में थॉमसन ने कहा कि परमाणु एक समान धनात्मक विद्युत आवेश वाला एक गोला होता है, जिसमें इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं। वह मॉडल, जिसमें परमाणु का द्रव्यमान पूरे परमाणु पर एक समान वितरित माना गया था।

 

रदरफोर्ड का मॉडल - सन् 1909 में रदरफोर्ड के महत्वपूर्ण अल्फा कण के प्रकीर्णन प्रयोग द्वारा थॉमसन का मॉडल गलत सिद्ध हुआ। रदरफोर्ड ने यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु के केंद्र में बहुत छोटे आकार का धनावेशित नाभिक होता है और इलेक्ट्रॉन इसके चारों ओर वृत्ताकार कक्षाओं में गति करते हैं।

 

बोर का परमाणु मॉडल (Boh’r Model of an Atom) -   नील्स बोर ने निम्नलिखित अवधारणाएं प्रस्तुत की-

(i)         इलेक्ट्रॉन केवल कुछ निश्चित कक्षाओं में ही चक्रण कर सकते हैं, जिन्हें इलेक्ट्रॉन की विक्रित कक्षा (Discrete Orbits) कहते हैं।

(ii)        जब इलेक्ट्रॉन इन विक्रित कक्षा में चक्कर लगाते हैं तो उस ऊर्जा का वितरण नहीं होता। इन कक्षाओं को ऊर्जा (Energy Level) कहते हैं।

(iii)       ये कक्षाएं अंग्रेजी के अक्षरों K,L,M,N,O….अशा

संख्याओं 1, 2, 3, 4, 5 ... के द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं।

स्पेक्ट्रम परमाण्विक स्पेक्ट्रम - प्रिज्म में से सफेद प्रकाश को किरण को गुजारने से यह देखा गया कि कम तरंगदैर्ध्य की लंबी तरंगदैर्ध्य की तरंग की तुलना में अधिक झुक जाती है, क्योंकि साधारण सफेद प्रकाश में –श्य परास में सभी तरंगदैर्ध्य वाली तरंगें होती हैं। सफेद प्रकाश की किरण रंगीन पट्टियों की एक श्रृंखला में फैल जाती है, जिसे स्पेक्ट्रम (Spectrum) कहते हैं।

 

परमाण्वीय स्पेक्ट्रम - –श्य प्रकाश का स्पेक्ट्रम सतत् होता है. क्योंकि उसमें –श्य प्रकाश की लाल से बैंगनी तक सभी तरंगदैर्य उपस्थित होती हैं। इसके विपरीत गैस अवस्था में परमाणुओं का उत्सर्जन स्पेक्ट्रम लाल से बैंगनी तरंगदैर्ध्य में सतत् रूप से प्रदर्शित नहीं करता है, परंतु उनसे केवल विशेष तरंगदैर्ध्य वाला प्रकाश उत्सर्जित होता है, जिनके बीच में काले स्थान रहते हैं। ऐसे स्पेक्ट्रम को रेखा स्पेक्ट्रम अथवा परमाण्वीय स्पेक्ट्रम कहते हैं।

 

हाइड्रोजन परमाणु का बोर मॉडल- रदरफोर्ड मॉडल की कमियों को सन् 1913 में नील्स बोर ने हाइड्रोजन परमाणु के अपने मॉडल में दूर किया तथा यह प्रस्तावित किया कि नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन गति करता है। केवल कुछ कक्षाओं का ही अस्तित्व हो सकता है तथा प्रत्येक कक्षा की निश्चित ऊर्जा होती है। बोर ने विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा की गणना की और प्रत्येक कक्षा के लिए नाभिक और इलेक्ट्रॉन की दूरी का आकलन किया। हालांकि बोर मॉडल हाइड्रोजन के स्पेक्ट्रम को संतोषपूर्वक स्पष्ट करता था, लेकिन यह बहु-इलेक्ट्रॉन परमाणुओं के स्पेक्ट्रमों की व्याख्या नहीं कर पाया।

 

प्रकाश विद्युत प्रभाव (Photo Electric Effect) - जब किसी धातु की सतह पर अधिक आवृत्ति (Frequency) की प्रकाश किरणों को डाला जाता है तो उस धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होने लगता है, जिसे प्रकाश विद्युत प्रभाव कहते हैं।

 

प्लांक क्वाण्टम सिद्धान्त (Plank Quantum theory) - प्लांक का क्वाण्टम सिद्धान्त बताता है कि प्रकाश, ऊर्जा के छोटे-छोटे बंडलों (Packets) के रूप में चलता है। जिन्हें फोटॉन कहते है। प्रत्येक फोटान की ऊर्जा ¾ hv (h ¾प्लांक नियतांक ¾ प्रकाश की आवृत्ति) होती है। E ¾ hv जहां h \[=6.62\times {{10}^{-34}}\] होती है, जिसे प्लांक नियतांक (Plank Constant) कहते हैं। प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या आइंस्टीन द्वारा की गर्इ है।

 

परमाणु संरचना की आधुनिक धारणा (Modern Concept of Atomic Structure) - बोर मॉडल की कमियों को ध्यान में रखते हुए परमाणुओं के लिए अधिक उपयुक्त और साधारण मॉडल के विकास के प्रयास किए गए। इस प्रकार के मॉडल के निर्माण में जिन दो महत्वपूर्ण तथ्यों का अधिक योगदान रहा, वे निम्नलिखित हैं 

(1)        द्रव्य एवं प्रकाश की द्वैत प्रकृति (Dual Nature of Matter and Wave) - फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुइस डी-ब्रोग्ली (Louis de- Broglie) ने सन् 1924 में यह परिकल्पना दी कि जिस प्रकार प्रकाश की द्वैत प्रकृति (तरंग एवं कण दोनों) होती है. उसी प्रकार गति करते हुए पिण्डों (कणों) में भी तरंग प्रकृति होती है। प्रत्येक द्रव्य कण से संबंधित इन तरंगों को द्रव्य तरंगें (Matter Waves) कहते हैं इसकी पुष्टि वर्ष 1927 में डेविसन एवं जर्मर द्वारा किये गये इलेक्ट्रॉन विवर्तन और व्यतिकरण के प्रयोग द्वारा होती है। 

लुइस डी-ब्रोग्ली समीकरण- \[\lambda =h/mv=h/p\] (जहां\[\lambda \]¾ तरंगदैल, h ¾ प्लांक नियतांक, m ¾ गतिशील द्रव्य का द्रव्यमान, V ¾ द्रव्य का वेग, संवेग p ¾ mv)

(2) हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता सिद्धांत (Heisenberg’s uncertaintly principle) - इस सिद्धांत के अनुसार, किसी इलेक्ट्रॉन की सही स्थिति और सही वेग का निर्धारण एक साथ करना संभव नही है। \[\Delta \times \Delta p\ge \] \[h/4\Pi \](यहां \[\Delta \times \]¾ इलेक्ट्रॉन के स्थान में अनिश्चितता, \[\Delta p\]¾ इलेक्ट्रॉन के संवेग में अनिश्चितता,   h ¾ प्लांक स्थिरांक)

 

परमाणु के क्वाण्टम यांत्रिकीय मॉडल (Quantum mechanical mode of atom) - सन् 1926 में वर्नर हाइजेनबर्ग और इर्विन श्रोडिंजर द्वारा अलग-अलग क्वांटम यांत्रिकी का विकास किया गया। श्रोडिंजर द्वारा विकसित क्वांटम यांत्रिकी मॉडल जो तरंगों की गति के विचारों पर आधारित है। क्वांटम यांत्रिकी का मूल समीकरण श्रोडिंजर द्वारा प्रतिपादित किया गया। इसके लिए उन्हें सन् 1933 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। यह समीकरण, जो ब्राग्ली द्वारा बताए गए पदार्थ के कण और तरंग वाले दोहरे व्यवहार को ध्यान में रखता है, जो काफी जटिल है। ऐसे निकाय (जैसे- एक परमाणु या अणु, जिसकी ऊर्जा समय के साथ परिवर्तित नहीं होती है) के लिए श्रोडिंजर समीकरण को इस प्रकार लिखा जाता है\[-H\Psi =E\Psi \] जहां H एक गणितीय संकारक (Operator) है, जिसे ‘हेमिल्टोनियन’ कहते हैं।

 

कोश, उपकोष तथा कक्षक की अवधारणा

(Concept of shell/orbit, subshell and orbital) कोश (shell) कक्षा (orbit) - किसी तत्व के परमाणु के नाभिक के चारों ओर स्थित वे वृत्ताकार पथ जिनमें इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते हैं, कोश (Subshell) या कक्षा (Orbit) कहलाते हैं। प्रत्येक कक्षा का एक निश्चित ऊर्जा स्तर होता है।

उपकोश (Subshell) - प्रत्येक कोश एक अथवा अधिक उपकोशों में विभाजित होता है जिन्हें s,p,d,f अंग्रेजी अल्फाबेट द्वारा दर्शाया जाता है। वे सभी इलेक्ट्रॉन जिनकी कोणीय संवेग क्वाण्टम संख्या (Angular Quantum Number) एक समान होती है, वे एक ही उपकोश में पाए जाते हैं।

 

कक्षक (Orbital)-उपकोश कक्षकों में विभाजित रहते हैं। कक्षक नाभिक के चारों ओर वह क्षेत्र होता है जिसमे इलेक्ट्रॉन पाए जाने की सम्भावना सर्वाधिक होती है। वे इलेक्ट्रॉन जिनकी मुख्य क्वाण्टम संख्या (n), कोणीय संवेग क्वाण्टम संख्या (I) तथा चुम्बकीय क्वाण्टम संख्या (m) एक समान होती है, वे एक ही कक्षक (Orbital) में पाए जाते हैं।

 

क्वाण्टम संख्याएं (Quantum Number) -इन संख्याए द्वारा क्वाण्टम संख्या का किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन की स्थिति (Position), चक्रण की दिशा तथा उसकी ऊर्जा (Energy) की जानकारी प्रदान करती हैं, क्वांटम संख्याएं (Quantum Number)  

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