वन्य एवं वन्य जीव संरक्षण

वन्य एवं वन्य जीव संरक्षण

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वन्य एवं वन्य जीव संरक्षण

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

‘‘परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। लेकिन प्रकृति में ही परिवर्तन मानव जगत के लिये भयावह भविष्य की एक धुंधली तस्वीर के रूप में दिखार्इ दे रहा है। मानव द्वारा प्रकृति में अत्याधिक हस्तक्षेप, संसाधनों का दोषपूर्ण दोहन, पर्यावरणीय प्रदूषण आदि ने जैव विविधता को अत्याधिक प्रभावित किया है। यदि समय रहते जैव विविधता हास का संरक्षण नहीं किया गया तो भविष्य की पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेगी। प्रस्तुत पाठ वन एवं ‘‘वन्यजीव संरक्षण’’ के अध्ययन के पश्चात हम जैव विविधता के संरक्षण के सभी पहलुओं को समझने में सक्षम बन सकेंगे।

 

  • भारत जैव विविधता के संदर्भ में विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक है। यहां विश्व की सारी जैव उपजातियों की 8% संख्या (लगभग 16 लाख) पार्इ जाती है।
  • एक अनुमान के अनुसार भारत में 10% वन्य वनस्पति जगत और 20% स्तनधारियों के लुप्त होने का खतरा है। इनमें चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख, पहाड़ी कोयल, जंगली चित्तीदार उल्लू जैसे जानवर एवं मधुका और हुबरड़िया हेप्टान्यूरोन (घास की प्रजाति) जैसे पौधे शामिल है।
  • राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड, भारत में वन्यजीवों से संबंधित योजनाओं एवं नीतियों के क्रियान्वयन, नियंत्रण व नियमन करने वाली शीर्ष संस्था है।
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के प्रावधानों के अधीन गठित भारतीय वन्यजीव बोर्ड एक वैधानिक सलाहाकर संस्था है। ऐसे भौगोलिक क्षेत्र, जिनमें दीर्घकालिक रूप से प्रकृति के संरक्षण से जुड़ी पारितंत्र की सेवाओं और सांस्कृतिक महत्व को वैधानिक एवं अन्य उपायों से संरक्षित किया जाता है, संरक्षित क्षेत्र (Protected Areas) कहलाते है।

 

जैव विविधता का संरक्षण

                    

स्व-स्थाने संरक्षण

  • जैव विविधता संरक्षण की वह विधि जिसमें जीव-जन्तुओं का सरंक्षण उन्हीं के प्राकृतिक अधिवास में कर दिया जाता है, स्व-स्थाने संरक्षण कहलाती है।
  • इस विधि के अंतर्गत राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य, जैवमंडल आगार, जैव विविधता हॉटस्पॉट क्षेत्र, पवित्र उपवन आदि के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण सुनिश्चित किया जाता है।

 

राष्ट्रीय उद्यान

  • पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र को बचाये रखने के लिये जिसे स्थान पर समस्त जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों को संरक्षित कर दिया जाता है, उसे राष्ट्रीय उद्यान कहते है।

                             

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, किसी समृद्ध जैव विविधता वाले प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को, राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की शक्ति राज्यों को देता है।
  • राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में जंतुओं का शिकार, वन्य जीव-जंतुओं के आवास पर अतिक्रमण, हथियार प्रयोग, कृषि आदि समस्त मानवीय गतिविधियां पूर्णत: प्रतिबंधित होती है।

 

वन्यजीव अभ्यारण्य

  • पर्यावरण एवं पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु जिस स्थान पर ‘‘जाति विशेष’’ जानवर को संरक्षित किया जाता है,
  • उसे वन्यजीव अभ्यारण्य कहते है। वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, राज्य को किसी जैसे स्थान जो जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो एवं जहां पर पर्याप्त जैविकीय, भू-आकृतिक, जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों आदि की बहुलता हो, उस क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • अभ्यारण्यों का निजी स्वामित्व भी हो सकता है एवं यहां राष्ट्रीय उद्यान की अपेक्षा कम प्रतिबंध होते है।

 

जैवमण्डल आगार क्षेत्र

  • जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र या जैवमण्डल आगार या जीव मंडल निचय (आरक्षित) विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र है, जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) के मानव और जैव-मण्डल कार्यक्रम (MAB) के अंतर्गत मान्यता प्राप्त है।
  • जैवमण्डल आगार क्षेत्र की शुरूआत वर्ष 1975 से यूनेस्को (UNESCO) के मानव एवं जैवमण्डल कार्यक्रम के अंतर्गत हुर्इ, जिसका प्रमुख उद्देश्य पारितंत्र एवं इसके आनुवांशिक पदार्थों का संरक्षण करना, वैज्ञानिक शोध हेतु आधारभूत पर्यावरण प्रदान करना एवं जैव विविधता के सतत् उपयोग एवं सरंक्षण को सुनिश्चित करना है।
  • मानव एवं जैवमण्डल (MAB) कार्यक्रम की शुरूआत वर्ष 1971 मे यूनेस्को द्वारा हुर्इ, जिसका उद्देश्य प्राकृतिक, सामजिक एवं आर्थिक शिक्षा के एकीकरण द्वारा मानव जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाकर प्रकृति एवं पर्यावरण पारितंत्र को सुरक्षित करना है।
  • जैव मण्डल आगार क्षेत्र को केंद्र से बाहर की ओर क्रमश: क्रोड क्षेत्र, बफर क्षेत्र एवं सक्रमण क्षेत्र में विभाजित किया गया है।
  • भारत में जैव मण्डल आगार की शुरूआत वर्ष 1986 में हुर्इ, जब नीलगिरी में भारत का पहला BSR खोला गया। यह केरल, कर्नाटक व तमिलनाडु राज्य में विस्तृत है।
  • संरक्षण आगार (Conservation Reserves) वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में 2002 के संशोधन द्वारा संरक्षण आगार एवं समुदाय आगार की अवधारणा को जोड़ा गया।
  • राज्य स्वामित्व के अधीन ऐसे क्षेत्र है, जो राष्ट्रीय उद्यान या अभ्यारण्यों से संलग्न है, एवं जिन्हें स्थानिक समुदाय से विचार-विमर्श कर जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों, समुद्री जीवों आदि की सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु संरक्षित घोषित कर दिया जाता है, संरक्षण आगार कहलाते है।
  • तमिलनाडु के तिरूनेलवेली में भारत का पहला संरक्षण आगर खोला गया।

 

समुदाय आगार

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के संशोधन 2002 के अनुसार, ऐसे क्षेत्र जो किसी व्यक्ति या संस्था के स्वामित्व में हैं एवं जो राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य व संरक्षण आगार के अंतर्गत शामिल नहीं है, राज्य सरकार उसे जीव-जन्तुओं व समुदाय के संरक्षण हेतु समुदाय आगार घोषित कर सकती है।
  • ‘समुदाय आगर वन्यजीव एवं वनस्पतियों के साथ-साथ मानवीय मूल्यों, परम्पराओं एवं संस्कृति की भी सुरक्षा व संवर्धन करते है।

 

पवित्र उपवन (Sacred Groves)

  • IUCN के अनुसार पवित्र उपवन प्रकृति की आराधना का एक रूप है। इसके अंतर्गत धार्मिक, सांस्कृतिक व प्राकृतिक महत्व के वनोंय एवं वनस्पतियों को संरक्षित किया जाता है।
  • पवित्र उपवन (Sacred Groves) भारत के उत्तर-पूर्व हिमालयी क्षेत्र, पश्चिमी घाट पूर्वी घाट, तटीय क्षेत्र केंद्रीय पठार और पश्चिमी मरूस्थल क्षेत्रों में पाए जाते है।

 

बाह्य-स्थाने संरक्षण

  • जैव विविधता संरक्षण की इस विधि के अंतर्गत जीव जंतुओं एवं वनस्पतियों का संरक्षण उनके प्राकृतिक आवास से बाहर किसी विशेष सुरक्षित स्थान पर किया जाता है।
  • बाह्य स्थोन संरक्षण विधि बड़े जंतुओं के संरक्षण का सबसे प्रभावशाली तरीका है।
  • इस विधि में जीव-जंतुओं की पहचान, उनके प्रतिस्थापन के लिये अनुकूल पर्यावरण का निर्माण, आदि हेतु उच्च तकनीक, पारितंत्र ज्ञान एवं कुशल रणनीति व प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
  • इस विधि के अंतर्गत, कृषि की महत्वपूर्ण प्रजातियों का संरक्षण बीज बैंकों (Seed Bank) के माधयम से किया जाता है। वनस्पतियों (पेड़, पौधों, पुष्प आदि) की महत्वपूर्ण देशज, विदेशज व दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण बॉटेनिकल गार्डन में किया जाता है।
  • समुद्री या जलीय जीवों की संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण ‘‘एक्वेरियम’ (Aquarium) के माध्यम से किया जाता है।
  • चिड़ियाघरों के माध्यम से देश की संकटग्रस्त एवं संवेदनशील जंतु प्रजातियों को संरक्षित किया जाता है।
  • दुर्लभ जीनों को ‘‘जीन बैंक’’ के माध्यम से संरक्षित किया जाता है।

 

जैव विविधता संरक्षण हेतु भारतीय प्रयास

  • वन एवं वन्यजीव संरक्षण हेतु वर्ष 1894 में भारत की प्रथम वन नीति को घोषणा की गर्इ।
  • स्वतंत्रता पश्चात वर्ष 1952 में भारत की नर्इ वन नीति की घोषणा भारत सरकार द्वारा की गर्इ जिसे वर्ष 1988 में संशोधित किया गया। इस वन नीति के निम्न प्रमुख उद्देश्य थे-

 

  • देश में 33% भाग पर वन लगाना
  • पर्यावरण संतुलन बनाए रखना तथा पारिस्थितिक असंतुलित क्षेत्रों में वन लगाना
  • देश की प्राकृतिक धरोहर, जैव विविधता तथा आनुवांशिक पूल का लगाना।
  • मृदा अपरदन और मरूस्थलीय रोकना तथा बाढ़ व सूखा नियंत्रण
  • निम्नीकृत भूमि पर सामाजिक वानिकी एवं वनरोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार
  • वनों की उत्पादकता बढ़ाकर वनों पर निर्भर ग्रामीण जनजातियों को इमारती लकड़ी, र्इधन, चारा और भोजन उपलब्ध करवाना और लकड़ी के स्थान पर अन्य वस्तुओं को प्रयोग में लाना।
  • वर्ष 1980 में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम की शुरूआत हुर्इ जिसके अंतर्गत पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों का प्रबंध, सुरक्षा तथा ऊसर भूमि पर वनरोपण का लक्ष्य रखा गया।
  • वर्ष 1972 में वन्यजीव (संरक्षण अधिनियम) पारित हुआ, जिसका प्रमुख उद्देश्य संकटग्रस्त प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान करना तथा राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य जैसे संरक्षित क्षेत्रों को कानूनी सहायता प्रदान करना है।
  • वर्ष 1986 में ‘‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम’’ पारित हुआ
  • भारत द्वारा 18 फरवरी, 1994 को जैव विविधता अभिसमय (Convention On Bio - Diversity - CBD) का अनुसमर्थन में किया गया।
  • वर्ष 2008 में राष्ट्रीय जैव विविधता कार्ययोजना (National Bio - Diversity Action Plan) बनार्इ गर्इ।
  • CBD के उपबंधों को प्रभावी बनाने हेतु ‘जैव विविधता अधिनियम’ 2002 पारित किया गया।
  • यूनेस्को की मानव एवं जीव मंडल योजना (MAB) के तहत भारत सरकार ने वनस्पति जगत और प्राणि जगत के संरक्षण के लिये महत्वपूर्ण कदम उठाए है।
  • जैव विविधता संरक्षण से संबंधित ‘‘कार्टाजेना प्रोटोकॉल’’ पर भारत ने 11 मर्इ 2011 को हस्ताक्षर किये और 9 अक्टूबर 2012 को इसका अनुसमर्थन किया।
  • वन्यजीव संरक्षण हेतु भारतीय वन्यजीव बोर्ड, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो आदि संस्थानों की स्थापना।
  • देश की संकटग्रस्त जीव प्रजातियों के संरक्षण हेतु, प्रोजेक्ट टार्इगर (1973), प्रोजेक्ट एलीफैंट (1992), गैंडा परियोजना (1987) आदि प्रारम्भ की गर्इ है।

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