इंडो-इस्लामिक / दिल्ली सल्तनत वास्तुकला (स्थापत्य कला भाग 4)

इंडो-इस्लामिक / दिल्ली सल्तनत वास्तुकला (स्थापत्य कला भाग 4)

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इंडो-इस्लामिक/दिल्ली सल्तनत वास्तुकला (स्थापत्य कला भाग 4)

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

मुगल स्थापत्य कला का काल मुख्य रूप से 1526 ईसवी से लेकर 1857 ई. तक माना जाता हैं। मुगल स्थापत्य कला में फारस, तुर्की मध्य एशिया, गुजरात, बंगाल, जौनपुर आदि स्थानों की शैलियो का अनोखा मिश्रण हुआ था। मुगल काल में पहली बार पत्थर के अलावा प्लास्टर एवं पच्चीकारी का प्रयोग किया गया। सजावट के लिए मार्बल पर जवाहरात एवं कीमती पत्थर की जड़ावत का प्रयोग, पत्थरों को काटकर फूल पत्ते, बेल बूटे एवं गुम्बदों तथा बुों को कलश से सजाया जाता था।

इस्लामी एवम भारतीय शैलियों की विशेषताऐ तथा उनका एक दुसरे पर प्रभाव के रूप में इस्लामी स्थापत्य कला की विशष्टिता गुम्बंद, ऊंची-ऊंची मीनारे, मेहराब तथा डाटे थी और भारतीय शिल्पकला की विशेषता चौरस छत, छोटे खम्बे नुकीले मेहराब और तोंडे थी। सम्पूर्ण मध्य काल में भारतीय स्थापत्य कला ने अनेक तरीकों से इस्लामी शैली. को गहरे रूप से प्रभावित किया।

 

  • इंडो - स्थापत्य कला में भारतीय एवं ईरानी शैलियों के मिश्रण के प्रमाण मिलते हैं।
  • शहतीरी शिल्पकला और मेहराबी गुंबद कला का सुंदर समन्वय इस स्थापत्य कला की मुख्य विशेषता है।
  • अत: इंडो-इस्लामिक स्थापत्य कला में धार्मिक एवं धर्मनिरपेक्ष पहलू शामिल हैं। गुंबद और मेहराब की संरचना ने विशाल सभा भवन के निर्माण को सहज बना दिया।
  • गुंबद और मेहराब ने बड़ी संख्या में स्तंभों की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। गुंबद और मेहराब की आंतरिक संरचना रोम से मिलती है और इसे भारत लाने का श्रेय कुषाण शासकों को दिया जाता है।

 

गुलाम वंश स्थापत्य

  • मामलूक तथा खिलजी सुलतानों की वास्तुकला मध्यकालीन वास्तुकला के विकास का पहला चरण माना जाता है।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली विजय के उपलक्ष्य में तथा इस्लाम को प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से 1192 ईसवी में दिल्ली में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण करवाया। इसके प्रांगण में स्थित लौह-स्तंभ पर चौथी शताब्दी के ब्राह्मी लिपि के अभिलेख मौजूद हैं। इसे ‘अनंग पाल की किल्ली’ भी कहते हैं।
  • ऐबक ने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के परिसर में ही कुतुबमीनार का निर्माण शुरू करवाया, जिसे इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।
  • कुतुबमीनार की स्थापना वास्तव में उश के फकीर ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी।
  • कुतुबद्दीन ऐबक कुतुबमीनार की एक ही मंजिल बनवा सका और शेष कार्य इल्तुतमिश ने पूरा करवाया। फिरोज तुगलक के समय इस पर बिजली गिरी और तब चौथी मंजिल को तोड़कर उसकी जगह दो मंजिलें बनवा दी गई। 1506 ईसवी में सिकन्दर लोदी ने भी इसकी मरम्मत करवाई।
  • ऐबक ने ही अजमेर में ‘ढाई दिन का झोंपड़ा’ नामक मस्जिद का निर्माण करवाया। कुतुबमीनार के निकट 1231 ईसवी में इल्तुतमिश ने अपने बड़े पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की स्मृति में सल्तनत काल का पहला मकबरा “सुल्तानगढ़ी के मकबरे” का निर्माण करवाया। इल्तुतमिश ने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के निकट ही 1235 में स्वयं के मकबरे का निर्माण करवाया।
  • बलबन के मकबरे में सर्वप्रथम वास्तविक मेहराब का रूप देखने 1 को मिलता है।

 

खिलजी वास्तुकला

  • अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली के पास सीरी नामक गांव में एक नया नगर बसाया। बरनी ने इसे शहरे नौ अथवा नया नगर - कहा।
  • अलाई दरवाजा का निर्माण कार्य अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1310 ईसवी में प्रारंभ किया गया। इसमें लाल पत्थर तथा संगमरमर का बड़ा ही सुंदर संयोग है। इसके निर्माण में का उद्देश्य कुव्वल-उल-इस्लाम मस्जिद में चार प्रवेश द्वार बनाना था।

 

तुगलक वास्तुकला

  • गयासुद्दीन तुगलक वास्तुकला का प्रेमी था। उसने दिल्ली के पास ऊंची पहाड़ियों पर एक नया नगर तथा एक दुर्ग का निर्माण कराया। यह दिल्ली के 7 नगरों में से एक है। उसका निर्माण रोमन शैली के आधार पर नगर तथा दुर्ग रूप में हुआ है। यह दुर्ग छप्पन कोट के नाम से प्रसिद्ध है।
  • दिल्ली से दौलताबाद राजधानी परिवर्तन के बाद मोहम्मद तुगलक ने रायपिथौरा और सीरी के मध्य में एक नगर जहांपनाह बसाया।
  • बारह खंबा एक सामंत का निवास स्थान था। यह स्थापत्य शैली का अच्छा नमूना है।
  • सुल्तान फिरोज तुगलक ने अपने पूर्वजों की भांति फिरोजाबाद, फतेहाबाद, हिसार, जौनपुर आदि नगरों को बनवाया। उसकी अमर कीर्ति यमुना नहर है।
  • सुल्तान फिरोज तुगलक ने एक महल की स्थापना की जो फिरोजशाह कोटला के नाम से विख्यात है। इसके सामने अशोक स्तंभ है। सुल्तान ने इस विशाल स्तंभ को अंबाला जिले के टोपरा गांव से ला कर यहां गढ़वाया था। एक दूसरे स्तंभ को मेरठ के समीप से लाकर कुश्क-ए-शिकार महल में गढ़वाया।
  • सुल्तान फिरोज तुगलक ने शिक्षा के विकास के लिए उसने एक विद्यालय की स्थापना की।

 

सैय्यद और लोदीकालीन वास्तुकला

  • खिज्र खां ने ‘खिज्राबाद’ एवं मुबारक शाह ने ‘मुबारकाबाद’ नामक नगर का निर्माण करवाया।
  • मुबारक शाह सैय्यद का मकबरा लाल पत्थरों से निर्मित है । इस अष्टभुजाकार इमारत को अलाउद्दीन आलम द्वारा बनवाया गया था। इसके मध्य में गुम्बद है और दीवारों की ऊंचाई बहुत अधिक है।
  • मुहम्मद शाह का मकबरा सामान्य ऊंचाई का अष्टभुजीय मकंबरा है।
  • बहलोल लोदी का मकबरा लाल पत्थरों से निर्मित है। यह मकबरा सिकन्दर लोदी ने बनवाया था।
  • सिकन्दर लोदी के मकबरे का निर्माण इब्राहिम लोदी ने करवाया था। इसके गुम्बद के चारों ओर आठ खंबे बने हैं तथा इसके चारों किनारों पर काफी ऊंचे बुर्ज हैं। इस मकबरे में अष्टभुजीय मकबरों के दोषों से बचने का प्रयास किया गया है।
  • मोठ की मस्जिद का निर्माण सिकन्दर लोदी के वजीर ने करवाया था ।
  • बड़े खां तथा छोटे खां का मकबरा का निर्माण सिकन्दर लोदी ने करवाया था। इनके अतिरिक्त उसने ‘मोती मस्जिद’ भी निर्मित करवाई।
  • इस काल में जामा मस्जिद, बड़ा गुम्बद, दादी का गुम्बद, पीली का गुम्बद, शीश गुम्बद, ताज खां का गुम्बद आदि प्रसिद्ध हैं। पसÊ ब्राउन ने इस युग को “मकबरों का युग’ के नाम से सम्बोधित किया।

 

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