प्राचीन भारत/पूर्व मध्यकालीन भारत की क्षेत्रीय स्थापत्य शैलियां (स्थापत्य कला भाग 3)

प्राचीन भारत/पूर्व मध्यकालीन भारत की क्षेत्रीय स्थापत्य शैलियां (स्थापत्य कला भाग 3)

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प्राचीन भारत/पूर्व मध्यकालीन भारत की क्षेत्रीय स्थापत्य शैलियां (स्थापत्य कला भाग 3)

  • गुजरात के स्थापत्य को सोलंकी उपशैली, चालुक्य उपशैली या मंडोवार उपशैली भी कहा जाता है।
  • इसके तहत हिन्दू मंदिरों के साथ-साथ जैन मंदिरों का भी निर्माण हुआ।
  • अर्द्ध-गोलाकार पीठ और मंडोवार गुजरात उपशैली की पहचान अथवा विशेषता हैं।
  • वह अर्द्ध-गोलाकार संरचना जिसकी वजह से छत-शिखर अलग-अलग दिखता है, उसे मंडोवार कहते हैं।
  • माउंट आबू का आदिनाथ मंदिर, तेजपाल मंदिर, पालिताना के सैकड़ों मंदिर, सोमनाथ मंदिर, मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर आदि इस शैली के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • माउंट आबू पर बने कई मंदिरों में संगमरमर के दो मंदिर हैंदिलवाड़ा का जैन मंदिर तथा तेजपाल मंदिर। माउंट आबू के मंदिरों का निर्माण सोलंकी शासक भीम सिंह प्रथम के मंत्री दंडनायक विमल ने करवाया था, इसी कारण इसे विमलबसाही मंदिर भी कहते हैं।
  • ओडिशा के मंदिर मुख्यत: भुवनेश्ववर, पुरी और कोणार्क में स्थित हैं।
  • ओडिशा वास्तुकला की विशिष्टता में देउल (गर्भगृह के ऊपर उठता हुआ विमान तल), जगमोहन (गर्भगृह के समीप का विशाल हॉल), नटमंडप (जगमोहन के समीप में नृत्य के लिये हॉल), भोगमंडप, परकोटा तथा ग्रेनाइट पत्थर का प्रयोग शामिल है।
  • भुवनेश्वर का लिंगराजमंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर इस शैली के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
  • कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण गंग वंश के शासक नरसिंह देव प्रथम ने किया था।
  • कोणार्क के सूर्य मंदिर को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में भी शामिल किया गया है।
  • कोणार्क के ब्लैक पैगोडा अर्थात सूर्य मंदिर के अतिरिक्त उत्तराखंड के अल्मोड़ा में कटारमल सूर्य मंदिर है।
  • लिंगराज मंदिर ओडिशा मंदिर स्थापत्य की संपूर्ण विशेषताओं का सर्वोत्तम उदाहरण है।
  • पालकालीन स्थापत्य के इस दौर में विक्रमशिला विहार, ओदंतपुरी विहार, जगदल्ला विहार आदि का निर्माण हुआ।
  • धर्मपाल द्वारा निर्मित सोमापुर महाविहार (बांग्लादेश) सबसे बड़ा बौद्ध विहार है जिसे यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।
  • नालंदा महाविहार की स्थापना तो गुप्तकाल में कुमारगुप्त के द्वारा हुई, किंतु पाल शासकों ने भी इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • यह नागर और द्रविड़ शैली की विशेषताओं से युक्त बेसर शैली है।
  • पट्टदकल के मंदिरों में चालुक्यकालीन स्थापत्य संपूर्ण रूप में विद्यमान है। इसलिये इसे 1987 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।
  • यहां के मंदिरों में चट्टानों को काटकर संयुक्त कक्ष और विशेष ढांचे वाले मंदिरों का निर्माण देखने को मिलता है।
  • ऐहोल में 70 से अधिक मंदिर हैं जिनमें रविकीर्ति द्वारा बनवाया गया मेंगुती जैन मंदिर तथा लाढ़खां का सूर्य मंदिर प्रसिद्ध है।
  • बादामी के गुफा मंदिरों में खंभों वाला बरामदा, मेहराबयुक्त कक्ष, छोटा गर्भगृह और उनकी गहराई प्रमुख है।
  • बादामी में मिली चार गुफाएं: शिव, विष्णु, विष्णु अवतार व जैन तीर्थकर पाशर्वनाथ से. संबंधित हैं।
  • बादामी के भूतनाथ, मल्लिकार्जुन और येल्लमा के मंदिरों के स्थापत्य का विशेष महत्व है।
  • पट्टदकल के विरुपाक्ष मंदिर का स्थापत्य विशिष्ट है। इसके अलावा यहां के मंदिरों में संगमेश्वर, पापनाथ आदि प्रमुख हैं।
  • राष्ट्रकूटकालीन स्थापत्य में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एलोरा नामक स्थल और मुंबई के समीप एलीफैंटा की गुफाएं महत्वपूर्ण हैं।
  • विश्व विरासत में शामिल एलीफैंटा की अधिकतर गुफाएं हिन्दू (शिव) धर्म और शेष बौद्ध धर्म को समर्पित हैं।
  • एलोरा हिन्दू, बौद्ध व जैन तीनों को समर्पित रहा है। एलीफेंटा में बनी त्रिमूर्ति विश्व प्रसिद्ध है, जो शिव के ही तीनों रूपों की है। ?
  • एलोरा की गुफाएं
  • ‘रॉक कट अर्किटेक्चर’ का प्रसिद्ध उदाहरण हैं इन्हें विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया है।
  • इसमें कैलाश गुहा मंदिर (गुफा संख्या-16) की गणना विश्व स्तर की भव्यतम कलाकृतियों में की जाती है। इसकी तुलना एथेंस के प्रसिद्ध मंदिर ‘पार्थेनन’ से की गई है।
  • कोंकणी मौर्यों के समय इस द्वीप को धारापुरी कहा जाता था, बाद में हाथी की एक विशाल प्रतिमा मिलने के कारण पुर्तगालियों ने इसे एलीफैंटा कहा।
  • पल्लव कला के विकास की शैलियों को क्रमश: महेंद्र शैली, मामल्ल शैली और राजसिंह शैली में देखा जा सकता है।
  • पल्लव राजा महेन्द्र वर्मन के समय वास्तुकला में “मंडप’ निर्माण प्रारंभ हुआ।
  • राजा नरसिंह वर्मन ने महाबलीपुरम नामक नगर की स्थापना की और ‘रथ’ निर्माण का शुभारंभ किया।
  • पल्लव काल में रथ या मंडप दोनों ही प्रस्तर काटकर बनाए जाते थे।
  • पल्लवकालीन आदि-वराह, महिषमर्दिनी, पंचपांडव, रामानुज आदि मंडप विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
  • ‘रथमंदिर’ मूर्तिकला का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जिनमें द्रौपदी रथ, नकुल- सहदेव रथ, अर्जुन रथ, भीम रथ, गणेश रथ, पिंडारी रथ तथा वलैयंकुट्ट प्रमुख हैं।
  • इन आठ रथों में द्रौपदी रथ एकमंजिला और छोटा है बाकी सातों रथों को सप्त पैगोडा कहा गया है।
  • राजसिंह शैली के उदाहरण महाबलीपुरम के तटीय मंदिर, अर्काट का पनमलाई मंदिर, कांची का कैलाशनाथ और बैकुंठ । पेरूमल का मंदिर आदि हैं।
  • चोल इतिहास के प्रथम चरण अर्थात विजयालय से लेकर । उत्तम चोल में तिरुकट्टलाई का सुंदेश्वर मंदिर, कन्नूर का बालसुब्रह्मण्यम मंदिर, नरतमालै का विजयालय मंदिर, कुंभकोणम का नागेश्वर मंदिर तथा कदम्बर- मलाई मंदिर आदि का निर्माण हुआ।
  • महान चोलों (राजराज-से कुलोतुंग-iii तक) के दौर में तंजावुर में वृहदेश्वर मंदिर तथा गंगईकोंड चोलपुरम का शिव मंदिर (राजेन्द्र प्रथम का) ख्याति प्राप्त हैं। इन दोनों मंदिरों को देखकर कहा गया कि “उन्होंने दैत्यों के समान कल्पना की और जौहरियों के समान उसे पूरा किया।’
  • दारासुरम का ऐरावतेश्वर और त्रिभुवनम का कम्पहरेश्वर मंदिर भी सुंदर एवं भव्य हैं। चोल स्थापत्य की विशिष्टता है कि चोलों ने वास्तुकला में मूर्तिकला और चित्रकला का भी समन्वय किया।

 

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