बौद्ध वास्तुकला/मौर्य वास्तुकला (स्थापत्य कला भाग 2)

बौद्ध वास्तुकला/मौर्य वास्तुकला (स्थापत्य कला भाग 2)

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बौद्ध वास्तुकला/मौर्य वास्तुकला (स्थापत्य कला भाग 2)

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

बौद्ध स्थापत्यकला का विकास भारत और भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ। बौद्ध धर्म के बाद विकसित एवं इस धर्म से प्रभावित वास्तुकला को बौद्ध वास्तुकला कहा जाता है। इस वास्तुकला का प्रारम्भ तो मौर्यकाल से हुआ किन्तु यह वास्तुकला का मौर्योत्तर, गुप्त और गुप्तोत्तर । काल में भी पल्लवित होती रही। इस वास्तुकला के प्रमुखता से तीन प्रकार होते हैं: चैत्य, स्तूप और विहार। स्तूप शब्द का अर्थ होता है मिट्टी का टीला। सांची, भरहूत, अमरावती यह भारत के सबसे पुराने स्तूपों में से हैं। विहार एक विशाल । सभामंडप या कक्ष अथवा आंगन जैसा होता है जिसके चारों और बौद्ध भिक्षु को रहने के लिए छोटे-छोटे कमरे बने होते हैं। एलोरा । महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से 14 मील दूर शैलकृत गुफा मंदिरों के लिए संसार-प्रसिद्ध स्थान है। विभिन्न कालों में बनी अनेक गुफाए बौद्ध, हिंदू तथा जैन संप्रदाय से संबंधित हैं। भारतीय स्थापत्य में हिन्दू मंदिर का विशेष स्थान है। हिन्दू मंदिर में अन्दर एक गर्भगृह होता है जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। पंचायतन एवं नागर बेसर, द्रविड़ जैसे शब्द मंदिर वास्तुकला से जुड़े हुए हैं।

 

स्तंभ

  • स्तंभलेख की शुरुआत मौर्यकाल से मानी जाती है। वस्तुत: मौर्यकाल के सर्वोत्कृष्ट नमूने अशोक के एकाश्म स्तंभ हैं।
  • स्तंभ के मुख्य भाग को “लाट” कहते हैं और ऊपरी हिस्से को “शीर्ष” कहते हैं।
  • अशोक के स्तंभ में की गई खास तरह की पॉलिश को ओप कहते हैं। अशोक कालीन स्तंभ दो प्रकार के हैं। एक वृहद स्तंभ लेख जिनकी संख्या 7 है जबकि दूसरे प्रकार के लघु स्तंभ लेख की संख्या 2 है।
  • भारत का राष्ट्रीय चिन्ह सारनाथ का स्तंभ (अशोक स्तंभ) धर्मचक्र प्रवर्तन की घटना का स्मारक था और धर्मसंघ की अक्षुण्णता बनाए रखने के लिए इसकी स्थापना हुई थी। यह चुनार के बलुआ पत्थर के लगभग 45 फुट लंबे प्रस्तरखंड का बना हुआ है।
  • 15 अगस्त 1947 को शीर्ष स्तंभ को राष्ट्रीय प्रतीक माना गया था।

 

मौर्यकालीन स्तंभ

 

  • लोरिया नंदगढ़ स्तंभ
  • संकिसा स्तंभ (फरुखाबाद)
  • रामपुरवा स्तंभ : सारनाथ स्तंभ

 

स्तंभ लेख

 

  • मेरठ का स्तंभ लेख(वर्तमान में दिल्ली)
  • टोपरा स्तंभ लेख (उत्तरप्रदेश)
  • प्रयाग स्तंभ लेख (उत्तरप्रदेश)
  • लोरिया नंदनगढ़ स्तंभ लेख (प .चंपारण बिहार)
  • लोरिया अरेराज लेख (बिहार)
  • रामपुरवा स्तंभ लेख (बिहार)
  • 1750 में ट्रीफैन्थलर ने अशोक स्तंभ का पता लगाया 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने पढ़ने की शैली का विकास किया।

 

स्तूप

  • स्तूप निर्माण की परंपरा बहुत पुरानी है। वैदिक काल में
  • शव-समाधियों को मिट्टी के थूहों या टीलों के रूप में बनाया जाता था।
  • स्तूप निर्माण की परंपरा का वास्तविक इतिहास बौद्ध और जैन धर्म के साथ शुरू होता है।
  • स्तूप अर्धवृताकार सरंचना है। इस अर्धवृत्त को “अंड” कहा जाता है। इसके शीर्ष भाग में हर्मिका नामक संरचना होती है, जहां बुद्ध या किसी शिष्य के अवशेष रखे जाते हैं। हर्मिका स्तूप का सबसे पवित्र भाग है।
  • बौद्ध परंपरा के अनुसार स्तूप स्मारक के रूप में बनाए जाते थे। बौद्ध ग्रंथ महापरिनिर्वाणसूत्र में चार प्रकार के स्तूपों का उल्लेख किया गया है।
  • वास्तुकला की दृष्टि से निम्नलिखित स्तूप महत्वपूर्ण और प्रख्यात हैं:
  • सान्नी के स्तूप
  • सारनाथ का स्तूप
  • भरहुत का स्तूप
  • बंगाल का स्तूप
  • पिपरहवा का स्तूप
  • गांधार क्षेत्र के स्तूप

 

चैत्यगृह एवं विहार

  • चैत्य का शाब्दिक अर्थ है, चिता-संबंधी। शवदाह के बाद बचे
  • हुए अवशेषों को भूमि में गाड़कर उनके ऊपर जो समाधियां बनाई गई, उन्हे को प्रारंभ में चैत्य अथवा स्तूप कहा गया।
  • पश्चिमी भारत में सातवाहनों के काल में अनेक चैत्यगृहों का निर्माण करवाया गया।
  • हीनयान धर्म से संबंधित प्रमुख चैत्यगृह हैं- भाजा, कोण्डाने, पीतलखोरा, अजंता, बेडसा, नासिक तथा कार्ले।
  • महायान धर्म से संबंधित प्रमुख चैत्यगृह हैं- भट्टीप्रोलु, नागार्जुनकोंडा, अमरावती
  • इन समाधियों में महापुरुषों के धातु-अवशेष सुरक्षित थे, अत: चैत्य उपासना के केन्द्र बन गये। कालांतर में बौद्धों ने इन्हें अपनी उपासना का केन्द्र बना लिया और इस कारण चैत्य-वास्तु बौद्धधर्म का अभिन्न अंग बन गया।
  • पहले चैत्य या स्तूप खुले स्थान में होता था, किन्तु बाद में उसे भवनों में स्थापित किया गया। इस प्रकार के भवन चैत्यगृह कहे गये। ये दो प्रकार के होते थे -
  1. पहाड़ों को काटकर बनाये गये चैत्य
  2. ईट-पत्थरों की सहायता से खुले स्थान में बनाये गये चैत्य

 

विहार का अर्थ

  • चैत्यगृहों के समीप ही भिक्षुओं के रहने के लिये आवास बनाये गये, जिन्हें विहार कहा गया।
  • इस प्रकार चैत्यगृह वस्तुत: प्रार्थना भवन (गुहा-मंदिर) होते थे, जो स्तूपों के समीप बनाये जाते थे, जबकि विहार भिक्षुओं के निवास के लिये बने हुए मठ या संघाराम होते थे।

 

गुफा स्थापत्य

  • यह चट्टानी वास्तुकला का एक रूप है। पहाड़ों को काटकर उसमें कोठरी का निर्माण किया जाता था,जिसका उपयोग जैन और बौद्ध भिक्षुओं के आवास के रूप में होता था।
  • गुफा निर्माण मूलत: जैन धर्म की विशेषता थी, किन्तु कालांतर में यह बौद्ध और हिन्दू भिक्षुओं के आवास- स्थल के रुप मे भी प्रसिद्ध हुआ।
  • चौथी शताब्दी ईसापूर्व से 12वीं शताब्दी तक के गुफा निर्माण की निरंतरता जारी रही।
  • अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास वाघोरा नदी के पास सह्याद्रि पर्वतमाला (पश्चिमी घाट) में रॉक-कट गुफाओं की एक श्रृंखला के रूप में स्थित हैं। इसमें कुल 29 गुफाएं (सभी बौद्ध) हैं, जिनमें से 25 को विहार या आवासीय गुफाओं के रूप में जबकि 4 को चैत्य या प्रार्थना हॉल के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।
  • एलोरा की गुफाएं- ये गुफाएं महाराष्ट्र की सह्याद्रि पर्वतमाला में अजंता की गुफाओं से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित हैं। यहां 34 गुफाओं का एक समूह है, जिनमें 17 ब्राह्मण, 12 बौद्ध और 5 जैन धर्म से संबंधित हैं।
  • मौर्यकालीन प्रसिद्ध गुफाएं-बराबर पहाड़ी की गुफाए (बिहार), नागार्जुनी पहाड़ी की गुफाएं (गया- बिहार), उदयगिरि तथा खंडागिरी की गुफाएं (ओडिशा)
  • गुप्तकालीन प्रसिद्व गुफाएं- अजंता- एलोरा (महाराष्ट्र), उदयगिरि (मध्यप्रदेश विदिशा)।

 

मंदिर वास्तुकला

  • मंदिर निर्माण की प्रक्रिया का आरंभ तो मौर्य काल से ही शुरू हो गया था किंतु गुप्त काल को मंदिरों की विशेषताओं से युक्त देखा जाता है।
  • मंदिर निर्माण की प्रक्रिया 2 तरह से विकसित हुई
  1. संरचनात्मक मंदिर
  2. चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर
  • छठी शताब्दी ईसवी तक उत्तर और दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला शैली लगभग एकसमान थी, लेकिन छठी शताब्दी ई. के बाद प्रत्येक क्षेत्र का भिन्न-भिन्न दिशाओं में विकास हुआ।
  • ब्राह्मण हिन्दू धर्म के मंदिरों के निर्माण में तीन प्रकार की शैलियों नागर, द्रविड़ और बेसर शैली का प्रयोग किया गया।
  • नागर शैली - नागर शब्द नगर से बना है। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इसे नागर शैली कहा जाता है। यह संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली है जो हिमालय से लेकर विध्य पर्वत तक के क्षेत्रों में प्रचलित थी। नागर शैली के मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं।
  • द्रविड़ शैली - कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक द्रविड़ शैली के मंदिर पाए जाते हैं। द्रविड़ शैली की पहचान विशेषताओं में- प्राकार (चहारदीवारी), गोपुरम (प्रवेश द्वार), वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ), पिरामिडनुमा शिखर, मंडप (नंदी मंडप) विशाल संकेन्द्रित प्रांगण तथा अष्टकोण मंदिर संरचना शामिल हैं। द्रविड़ शैली के मंदिर बहुमंजिला होते हैं।
  • बेसर शैली -नागर और द्रविड़ शैलियों के मिले-जुले रूप को बेसर शैली कहते हैं। बेसर शैली को चालुक्य शैली भी कहते हैं। इस शैली के मंदिर विध्याचल पर्वत से लेकर कृष्णा नदी तक पाए जाते हैं।बेसर शैली के मंदिरों का आकार आधार से शिखर तक गोलाकार (वृत्ताकार) या अर्द्ध गोलाकार होता है।

 

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