मध्यकालीन भारत की क्षेत्रीय स्थापत्य शैलियां (स्थापत्य कला भाग 6)

मध्यकालीन भारत की क्षेत्रीय स्थापत्य शैलियां (स्थापत्य कला भाग 6)

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मध्यकालीन भारत की क्षेत्रीय स्थापत्य शैलियां (स्थापत्य कला भाग 6)

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

भारतीय स्थापत्य कला में मध्यकालीन भारत स्थापत्य कला प्रांतीय शैलियों का विशेष योगदान है। बंगाल की स्थानीय शैली के अंतर्गत - निर्मित अधिकाश इमारतों में पत्थर के स्थान पर ईटों का प्रयोग किया गया। पाण्डुआ में स्थित मकबरे को ‘लक्खी मकबरे’ के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण हिन्दू भवनों को ईटों से हुआ है। यहां की स्थापत्य कला में स्थानीय शासकों ने हिन्दुओं के प्राचीन परम्परागत पत्थर एवं लकड़ी के प्रयोग को महत्व दिया। बाज बहादुर एवं रूपमती का महल सुल्तान नासिरुद्दीन शाह द्वारा निर्मित करवाया गया। जौनपुर के सम्राट कला एवं विद्या के महान संरक्षक थे, जिन भवनों का निर्माण इन शासकों ने कराया है, वे उनकी स्थापत्यकला की अभिरुचि के प्रमाण हैं।

 

  • विजयनगर स्थापत्य में एक नवीन मंडप चलन में आया, जिसे “कल्याण मंडप” कहा गया।
  • मुख्य मंदिरों के साथ सहायक मंदिरों की एक श्रृंखला को भी जोड़ा गया, जिसे ‘अम्मनशिरीन’ कहा गया।
  • विजयनगर के मंदिरों में इस्तेमाल हुए स्तंभ, संगीत का गुण रखते थे, इसलिये इन्हें संगीतात्मक स्तंभ भी कहा गया, जैसे- विजय विट्ठल मंदिर के स्तंभ।
  • यहां धर्मनिरपेक्ष भवनों में इंडो-इस्लामिक विशेषताएं पाई गई हैं, जैसे- गुंबद एवं कमल का निर्माण।
  • विट्ठल एवं हजारा राम मंदिर, रघुनाथ मंदिर, संगमेश्वर मंदिर आदि विजयनगर मंदिर कला के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • दक्कन में द्रविड तथा चालुक्य प्रभाव से युक्त एक नवीन शैली का उद्भव हुआ। इसे दक्कनी शैली या बीजापुर शैली कहते हैं।
  • इस शैली में गुलबर्ग, बीजापुर, हैदराबाद में निर्मित किए गए भवन हैं। इस शैली की प्रमुख विशेषता तीन मेहराबों वाले अग्रभाग, बल्बनुमा गुंबदों तथा छतों का व्यवहार था।
  • इस शैली में गुलबर्ग और बीदर की मस्जिदें, मोहम्मद आदिलशाह का मकबरा या बीजापुर का गोल गुंबद, दौलताबाद की मीनार और बीदर का महमूद गवां का मदरसा आदि बनवाए गए।
  • वर्ष 1591 ईसवी में हैदराबाद में मुहम्मद कुली कुतुबशाह द्वारा बनवाई गई मशहूर ‘चारमीनार’ इमारत एक चौराहे पर बनी है और इसकी दिशाओं से चारों ओर रास्ते जाते हैं।
  • यहां की स्थानीय शैली के अंतर्गत निर्मित अधिकांश इमारतों में पत्थर के स्थान पर र्इंटों का प्रयोग किया गया।
  • छोटे-छोटे खंभों पर नुकीली मेहराबें तथा कमल जैसे सुन्दर खुदाई के हिन्दू सजावट के प्रतीक चिन्हों को अपनाना बंगाली स्थापत्य कला की महत्वपूर्ण विशेषता थी।
  • बंगाल के पाण्डुआ की अदीना मस्जिद का निर्माण 1364 ईसवी सुल्तान सिकन्दर शाह ने करवाया।
  • दाखिल दरवाजा- भारतीय-इस्लामी शैली के अन्तर्गत गौड़ में स्थित र्इंट से 1465 ईसवी में निर्मित इमारतों का सर्वोत्कृष्ट नमूना है।
  • जलालुद्दीन मुहम्मदशाह का मकबरा पाण्डुआ में स्थित है। इस मकबरे को ‘लक्खी मकबरे’ के नाम से जाना जाता है।
  • अटालादेवी मस्जिद - 1408 ईसवी में इब्राहिम शाह (शर्की) द्वारा निर्मित यह मस्जिद, कन्नौज के राजा विजयचंद्र द्वारा निर्मित द्वारा निर्मित अटालदेवी के मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।
  • मुहम्मद शाह द्वारा 1450 ईसवी में लाल दरवाजा मस्जिद बनवाई गई।
  • 1470 ईसवी में हुसैन शाह शर्की द्वारा जामी मस्जिद का निर्माण करवाया गया।
  • यहां की स्थापत्य कला में स्थानीय शासकों ने हिन्दुओं के प्राचीन परम्परागत पत्थर एवं लकड़ी के प्रयोग को महत्व दिया।
  • श्रीनगर स्थित मन्दानी का मकबरा का निर्माण सिकन्दर ने करवाया था। बाद में जैन-उल-आबिदीन ने इसका विस्तार किया।
  • मालवा की स्थापत्य शैली, मालवा पर मुस्लिम शासकों के अधिकार के पश्चात, दिल्ली की स्थापत्य से प्रभावित थी।
  • मालवा शैली के अन्तर्गत निर्मित अधिकांश इमारतों का केन्द्र बिन्दु माण्डू एवं धार है।
  • माण्डू में स्थित जहाज महल सुल्तान महमूद प्रथम द्वारा बनवाया गया था।
  • कपूर तालाब एवं मुंजे तालाब के मध्य स्थित जहाज महल, जहाज की तरह दिखाई देता है। 1440 ईसवी में हुशंगाबाद का मकबरा का निर्माण महमूद प्रथम ने जामी मस्जिद के पीछे करवाया था।
  • बाज बहादुर एवं रूपमती का महल 1508-09 ईसवी में सुल्तान नासिरुद्दीन शाह द्वारा निर्मित करवाया गया।

 

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