प्रमुख सागर एवं महासागर

प्रमुख सागर एवं महासागर

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प्रमुख सागर एवं महासागर

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

पृथ्वी पर उपस्थित सर्वाधिक विस्तृत जालराशि के समूह को महासागर कहा जाता है। महासागर पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का लगभग दो-तिहार्इ हिस्सा घेरे हुए हैं। उत्तरी गोलार्इ का 60 फीसदी और दक्षिणी गोलार्द्ध का 80 फीसदी भाग महासागरों से ढका हैं। पृथ्वी के कुल जल का 97.5 प्रतिशत खारे जल के रूप में महासागरों में उपस्थित है। स्थल की ऊंचार्इ और महासागरों की गहरार्इ को उच्चतामितीय वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। पृथ्वी पर कुल पांच महासागर हैं- प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, अंटार्कटिक महासागर और आर्कटिक महासागर।

  • कुल जल राशि का मात्र5 फीसदी भाग ही स्वच्छ जल या मीठा जल है।
  • महासागरीय जल के दो महत्वपूर्ण गुण हैं- तापमान और लवणता।
  • जलमंडल का वह बड़ा भाग जिसकी कोर्इ निश्चित सीमा ना हो, महासागर कहलाता है।
  • सबसे बड़ा महासागर प्रशांत महासागर है।
  • महासागरों की औसत गहरार्इ 3800 मीटर है जबकि स्थल की औसत ऊंचार्इ 840 मीटर होती है।
  • जलमंडल का वह ‘बड़ाभाग, जो तीन तरफ जल से घिरा हो और एक तरफ महासागर से मिला हो, समुद्र कहलाता है।
  • समुद्र का स्थलीय भाग में प्रवेश कर जाने पर जो जल का क्षेत्र बनता है, उसे खाड़ी कहते हैं।
  • अटलांटिक महासागर में वार्षिक तापांतर प्रशांत महासागर की अपेक्षा अधिक होता है।
  • प्रशांत महासागर में गुआम द्वीप के पास स्थित मेरियाना गर्त सबसे गहरा गर्त है।
  • इसकी गहरार्इ लगभग 11 किमी. है, इसे चौलेंजर गर्त भी कहते हैं।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण गोलार्द्ध की तुलना में तापान्तर अधिक होता है।
  • समुद्री जल की औसत लवणता लगभग 35 प्रति हजार होती हैं।
  • लवणता को प्रति हजार में व्यक्त करते हैं।
  • समान खारेपन वाले स्थानों को मिलाकर खींची गयी रेखा को समलवण रेखा कहते हैं।
  • तुर्की की वान झील की लवणता सबसे अधिक (330%) है।
  • जलमग्न उत्थान का वह भाग जहां जल की गहरार्इ छिछली होती है उसे शोल कहते हैं।

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