ब्रिटिश भारत का प्रशानिक ढांचा और नीतिया (1857-1947 ई.)

ब्रिटिश भारत का प्रशानिक ढांचा और नीतिया (1857-1947 ई.)

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मौर्य साम्राज्य

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

1857 र्इ. की बगावत के सदमे से अंग्रेज कभी उबर नहीं सके। भारतीयों के दमन और अपने औपनिवेशिक लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से उन्होंने पुलिस एक्ट, 1861 बनाया, जो आज भी वर्तमान पुलिस प्रणाली का आधार बना हुआ है। 1857 र्इ. के विद्रोह से अंग्रेजों को इस बात का भलीभांति ऐहसास हो चुका था कि एक सुसंगठित जन विद्रोह कभी भी ब्रिटिश शासन के लिये एक गंभीर चुनौती बन सकता है। इस विद्रोह में प्रशासन एवं जनता के मध्य संपर्क का अभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुआ। साम्राज्यवादी सरकार को यह अनुभव हो गया कि शासन को जन सामान्य से सम्पर्क बनाये रखकर ही उसे प्रशासन से जोड़ा जा सकता है। इसके साथ ही उन्हें अहसास हुआ कि प्रशासन को भारतीयों की सभ्यता, संस्कारों एवं रीति-रिवाजों से भलीभांति अवगत होना है तो उसके लिये जनता का सहयोग अपरिहार्य है इससे प्रशासन को सु–ढ़ता तो मिलेगी ही, उसे 1857 र्इ. जैसी घटनाओं को ज्यादा कुशलतापूर्वक हल करने में भी सहायता मिल सकेगी।

 

महत्वपूर्ण अवधारणायें एवं तथ्य

पृष्ठभूमि  

§  1858 का चार्टर अधिनियम- इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नानुसार थे

§  भारत का शासन कंपनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों सौंपा गया।

§  भारत में मंत्री-पद की व्यवस्था की गर्इ।

§  15 सदस्यों की भारत-परिषद का सृजन हुआ।

§  भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण् स्थापित किया गया।

§  1861 का भारत शासन अधिनियम- इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नानुसार थे

§  गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया गया।

§  विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ।

§  गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गर्इ।

§  गवर्नर जरनल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गर्इ।

§  1892 का भारत शासन अधिनियम- इस अधिनियम के तहत मुख्य प्रावधान निम्नानुसार हैं।

§  अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली की शुरुआत हुर्इ।

§  इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने

तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गर्इ।

§  1909 का भारत शासन अधिनियम मार्ले-मिंटो सुधार, इस अधिनियम के तहत मुख्य प्रावधान निम्नानुसार हैं -

§  पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक प्रतिनिधित्व

का उपबंध किया गया।

§  भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गर्इ।

§  केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला।

§  प्रांतीय विधान परिषदों की संख्या में वृद्धि की गर्इ।

§  1919 का भारत शासन अधिनियम (मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार) - इस अधिनियम के तहत निम्न प्रावधान किए गए -

§  केंद्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गर्इ - प्रथम राज्य परिषद तथा दूसरी केंद्रीय विधान सभा। जिसमें राज्य परिषद के सदस्यों की संख्या 60 थी, जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वषोर्ं का होता था। केंद्रीय विधान सभा के सदस्यों की संख्या 145 थी, जिनमें 104 निवार्चित तथा 41 मनोनीत होते थे। इनका कार्यकाल 3 वषोर्ं का था। दोनों सदनों के अधिकार समान थे। इनमें सिर्फ एक अंतर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था।

§  प्रांतो में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया। इस योजना के अनुसार प्रांतीय विषयों को दो उपवगोर्ं में विभाजित किया गया- आरक्षित तथा हस्तांतरित।

§  आरक्षित विषय थे - वित्त, भूमिकर, अकाल सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियां, छापाखाना, समाचार पत्र, सिंचार्इ, जलमार्ग, खान, कारखाना, बिजली, गैस, व्यालर, श्रमिक कल्याण, औद्योगिक विवाद, मोटरगाड़ियां, छोटे बंदरगाह और सार्वजनिक सेवाएं आदि।

§  हस्तांतरित विषय

(i) शिक्षा, पुस्तकालय, संग्रहालय, स्थानीय स्वायत्त शासन, चिकित्सा सहायता।

(ii) सार्वजनिक निर्माण विभाग, आबकारी, उद्योग, तौल

तथा माप, सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक

तथा अग्रहार दान आदि।

आरक्षित विषय- आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद् के माध्यम से करता थाय जबकि हस्तांतरित विषय का प्रशासन प्रांतीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था।

§  द्वैध शासन प्रणाली को 1935 के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया।

§  भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है।

§  इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया।

§  1935 का भारत शासन अधिनियम- 1935 के अधिनियम में 451 धाराएं और 15 परिशिष्ट थे। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

§  अखिल भारतीय संघ- यह संघ 11 ब्रिटिश प्रांतों, 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मलित हों। प्रांतों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, लेकिन देसी रियासतों के लिय यह ऐच्छिक था। देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुर्इ और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया।

§  प्रांतीय स्वायत्ता- इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया।

§  केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना - कुछ संघीय विषयों (सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामले) को गवर्नर जनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया।

§  अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर - जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गर्इ, जो मंत्रिमंडल व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था।

§  संघीय न्यायालय की व्यवस्था (1937)- इसका अधिकार क्षेत्र प्रांतों तथा रियासतों तक विस्तृत था। इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गर्इ। न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी काउंसिल (लंदन) को प्राप्त थी।

§  ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता- इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था।

§  भारत परिषद का अंत- इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद् का अंत कर दिया गया।

§  सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार- संघीय तथा प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार आंग्ल भारतीयों - भारतीय र्इसाइयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया।

§  इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था।

§  इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया, अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया।

§  1947 का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम- ब्रिटिश संसद में 4 जुलार्इ 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलार्इ 1947 को स्वीकृत हो गया। इस अधिनियम में 20 धाराएं थीं।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं -

§  दो अधिराज्यों की स्थापना- 15 अगस्त 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगे, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी। सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपा जाएगा।

§  भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी।

§  संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना- जब तक संविधान सभाएं संविधान का निर्माण नहीं कर लेती, तब तक वह विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेंगी।

§  भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएंगे।

§  1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जब तक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है तब तक उस समय 1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा।

§  देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अंत कर दिया गया। उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मलित होने और अपने भावी संबंधों का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गर्इ।

 

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