स्वतंत्रता और विभाजन

स्वतंत्रता और विभाजन

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स्वतंत्रता ओर विभाजन

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

जिस प्रकार एक विशाल नदी अपने उद्गम स्थान से निकलकर अपने गंतव्य अर्थात् सागर मिलन तक अबोध रूप से बहती जाती है और बीच-बीच में उसमें अन्य छोटी-छोटी धाराएं भी मिलती रहती हैं, उसी प्रकार हमारी मुक्ति गंगा का प्रवाह भी 1757-1947 र्इ. तक अनवरत रहा है, और उसमें मुक्ति यत्न की अन्य धाराएं भी मिलती रही हैं। भारतीय स्वतंत्रता के सशस्त्र संग्राम की विशेषता यह रही है कि क्रांतिकारियों के मुक्ति प्रयास कभी शिथिल नहीं हुए। भारत की स्वतंत्रता के बाद आधुनिक नेताओं ने भारत के सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन को प्राय: दबाते हुए उसे इतिहास में कम महत्व किन्तु स्वराज्य उपरान्त यह सिद्ध करने की चेष्टा की गर्इ कि हमें स्वतंत्रता केवल कांग्रेस के अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से मिली है। इस नये विकृत इतिहास में स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले, सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियों, अमर आत्माओं को आइये याद करते हैं...

 

 

राजगोपालाचारी फार्मूला (1944 र्इ.)

द्वि-राष्ट्र सिद्धांत और ब्रिटिशों से भारत की स्वतंत्रता को लेकर मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलग अलग विचारों के कारण पैदा हुए मतभेदों को सुलझाने के उद्देश्य से राजगोपालाचारी फार्मूला लाया गया था। सी. राजगोपालाचारी, जो कि कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता थे, ने मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच के राजनैतिक गतिरोध को दूर करने के लिए एक फार्मूला तैयार किया। यह फार्मूला, जिसे महात्मा गांधी का समर्थन प्राप्त था, वास्तव में लीग की पाकिस्तान मांग की मौन स्वीकृति थी।

 

राजगोपालाचारी फार्मला

  • मुस्लिम लीग कांग्रेस की स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करे।
  • लीग कांग्रेस को केंद्र में अस्थायी सरकार के गठन में सहयोग प्रदान करे।
  • युद्ध की समाप्ति के बाद एक आयोग गठित किया जायेगा जो उन जिलों की पहचान करेगा जहां मुस्लिमों का स्पष्ट बहुमत है और इन क्षेत्रों (गैर मुस्लिमों को शामिल कर) में, यह जानने के लिए कि वे पृथक संप्रभु राज्य का गठन चाहते हैं या नहीं, वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव कराये जायेंगे।

 

वेवेल योजना एवं शिमला सम्मेलन (1945 र्इ.)

अक्टूबर, 1943 को लिनलिथगो की जगह लार्ड वेवल (स्वतक ॅंअमसस) भारत के वायसराय बन कर आये। इस समय भारत की स्थिति अत्यधिक तनावपूर्ण थी। वेवल ने स्थिति को सामान्य बनाने की दिशा मे प्रयास करते हुए सर्वप्रथम भारत छोड़ो आंदोलन के समय गिरफ्तार कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों को रिहा किया।

4 जून 1945 को वेवल ने ‘वेवेल योजना’ प्रस्तुत की, जिसकी प्रमुख शर्ते इस प्रकार थी

  • केन्द्र में एक नर्इ कार्यकारी परिषद का गठन हो, जिसमें

वायसराय तथा कमांडर इन चीफ के अलावा शेष सदस्य भारतीय हों।

  • कार्यकारी परिषद एक अंतरिम व्यवस्था थी, जिसे तब तक देश का शासन चलाना था, जब तक की एक नये स्थायी संविधान पर आम सहमति नहीं हो जाती।

 

शिमला सम्मेलन (Shimla conference)

  • वेवेल प्रस्ताव पर विचार-विमर्श हेतु शिमला में 25 जून 1945 को शिमला सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें 21 भारतीय राजनैतिक नेताओं ने हिस्सा लिया।
  • शिमला सम्मेलन में के प्रतिनिधि के रूप में मौलाना अबुल कलाम आजाद तथा मुस्लिम लीग के मुहम्मद अली जिन्ना ने हिस्सा लिया।
  • सम्मेलन में जिन्ना द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव की वायसराय की कार्यकारिणी के सभी मुस्लिम सदस्य लीग से ही लिये जाये, क्योंकि मुस्लिम लीग ही मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था है।
  • जिन्ना के इस अनुचित और अप्रजातांत्रिक प्रस्ताव का कांग्रेस ने विरोध किया, वेवेल ने 14 सदस्यों वाली परिषद में 6 सदस्य मुसलमानों में से चुने गये, फिर भी लीग ने इस योजना का विरोध किया, अंतत: वेवेल ने इस योजना को निरस्त कर दिया।
  • अबुल कलाम आजाद ने शिमला सम्मेलन की असफलता को भारत के राजनैतिक इतिहास में एक जलविभाजक की संज्ञा दी।
  • सम्मेलन में वेवेल ने लीग को अधिक संतुष्ट करने की नीति का पालन कर मुसलमानों को एक ऐसी वीटो शक्ति सौंप दी, जिसका वह किसी भी संवैधानिक प्रस्तावों के विरुद्ध प्रयोग कर सकती थी।

 

माउंटबेटन योजना

  • 22 मार्च 1947 को भारत के 34वें और अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन भारत आये, जिनका एक मात्र उद्देश्य था, अतिशीघ्र भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देना।
  • माउंटबेटन ने 15 अगस्त 1947 को भारतीयों को सत्ता सौंपने का दिन निर्धारित किया।
  • लगभग दो महीने की बातचीत के बाद बेटन इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विभाजन ही एकमात्र विकल्प है। अत: उन्होंने एटली के 20 फरवरी 1947 के वक्तव्य के दायरे में भारत विभाजन की एक योजना तैयार की।
  • विवशता की स्थिति में कांग्रेस (Congress) की ओर से पं.जवाहरलाल नेहरू एवं सरदार पटेल ने विभाजन योजना को स्वीकार किया, लेकिन गांधी जी अंत तक विभाजन का कड़ा विरोध करते रहे।
  • गांधी जी के शब्दों में- यदि सारा भारत भी आग की लपटों में घिर जाये, फिर भी पाकिस्तान नहीं बन सकेगा। यदि कांग्रेस विभाजन चाहती है तो वह मेरे मृत शरीर पर ही होगा, क्योंकि जब तक मैं जीवित हूं भारत को विभाजित नहीं होने दूंगा।

 

प्रधानमंत्री एटली की घोषणा

3 जून की योजना मूलत: भारत विभाजन की योजना थी, इसमें उस प्रक्रिया का उल्लेख किया गया था, जिसके अंतर्गत अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित की जानी थी तथा मुस्लिम बहुल प्रांतों को यह चुनना था, कि वे भारत में रहेंगे या प्रस्तावित राज्य पाकिस्तान में शामिल होंगे।

माउंट बेटन 3 जून योजना का प्रारूप इस प्रकार था

  • मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र यदि चाहें तो अलग अधिराज्य बना सकते हैं पर इसके लिए एक नर्इ संविधान निर्मात्री सभा बैठेगी,

बंगाल और पंजाब की प्रांतीय विधान सभाओं के दो पृथक-पृथक भाग होंगे (जिसमें एक मुस्लिम बहुल जिला तथा दूसरे में बाकी जिले के प्रतिनिधि होंगे।)

  • उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत में जनमत संग्रह द्वारा यह निश्चित किया जायेगा, कि वे पाकिस्तान में मिलना चाहते हैं या नहीं। असम के मुस्लिम बहुल इलाके सिलहट जिले में इसी तरह का जनमत संग्रह होना था।
  • सिंध और बलूचिस्तान के मामले में संबद्ध प्रांतीय विधान मंडल को सीधे निर्णय लेना था।
  • पंजाब, बंगाल व असम के विभाजन हेतु एक सीमा आयोग का गठन।
  • रजवाड़ों को इस बात का निर्णय लेना था कि वे भारत में रहना चाहते हैं या फिर पाकिस्तान में।
  • पं. गोविंद बल्लभ पंत ने विभाजन की योजना के पुष्टि हेतु प्रस्ताव करते हुए कहा, कि आज हमें पाकिस्तान या आत्महत्या में से एक को चुनना है। देश की स्वतंत्रता और मुक्ति पाने का यही एकमात्र रास्ता है, इससे भारत में एक शक्तिशाली संघ की स्थापना होगी।
  • कांग्रेस के राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता मौलाना आजाद ने कहा, कि यदि कांग्रेस के नेताओं ने विभाजन मान लिया, तो इतिहास उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगा।
  • खान अब्दुल गफ्फार खां (सीमांत गांधी) ने विभाजन पर आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा, कि कांग्रेस के नेतृत्व ने उनके आंदोलन के भेड़ियों के आगे फेंक दिया।

 

कैबिनेट मिशन प्लान (1946 र्इ.)

  • 22 जनवरी को कैबिनेट मिशन को भेजने का निर्णय लिया

गया था और 19 फरवरी 1946 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री सी.

आर. एटली की सरकार ने हाउस अॉफ लॉर्ड्स में कैबिनेट मिशन के गठन और भारत छोड़ने की योजना की घोषणा की।

  • तीन ब्रिटिश कैबिनेट सदस्यों का उच्च शक्ति सम्पन्न मिशन, जिसमे भारत सचिव लॉर्ड पैथिक लारेंस, बोर्ड अॉफ ट्रेड के अध्यक्ष सर स्टैफोर्ड क्रिप्स और नौसेना प्रमुख ए. वी. अलेक्जेंडर शामिल थे, 24 मार्च 1946 को दिल्ली पहुंचा।

 

  • मिशन के प्रस्ताव
  • मिशन ने ब्रिटिश भारत के निर्वाचित प्रतिनिधियों और भारतीय रजवाड़ों से संविधान के निर्माण के सम्बन्ध में विचार-विमर्श कर एक समझौते को तैयार करने का प्रस्ताव रखा।
  • संवैधानिक निकाय के गठन का प्रस्ताव
  • प्रमुख भारतीय दलों के समर्थन से एक कार्यकारी परिषद् के गठन का प्रस्ताव

 

मिशन का उद्देश्य

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के मध्य के राजनैतिक गतिरोध को दूर करना और साम्प्रदायिक विवादों को रोकना था।
  • कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि केंद्र में एक सशक्त सरकार हो जिसकी शक्तियां प्रांतीय सरकारों की तुलना में अधिक हों।
  • जिन्ना के नेतृत्व में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग भारत को अविभाजित रखना चाहती थी लेकिन तभी जब मुस्लिमों को कुछ राजनैतिक सुरक्षोपाय प्रदान किये जाये, जैसे कि विधायिकाओं में समानता की गारंटी
  • 1945 र्इ. में हुए शिमला सम्मलेन के बाद 16 मर्इ 1946 को कैबिनेट मिशन योजना की घोषणा की गयी।

 

मिशन की अनुशंसाएं

  • भारत की एकता को बनाये रखा जाये।
  • इसने सभी भारतीय क्षेत्रों को मिलाकर एक बहुत ही कमजोर संघ के गठन का प्रस्ताव रखा, जिसे केवल रक्षा, विदेशी मामलों और संचार पर ही नियंत्रण प्राप्त था। संघ को यह शक्ति प्राप्त होगी कि वह इन सभी विषयों के प्रबंधन के लिए आवश्यक वित्त जुटा सके।
  • संघीय शक्तियों के अतिरिक्त अन्य सभी शक्तियां और अवशिष्ट शक्तियां ब्रिटिश भारत के प्रान्तों को प्रदान की गयीं।
  • एक संविधान निर्मात्री निकाय या संविधान सभा का चुनाव किया जाये जिसमे सभी राज्यों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में निश्चित सीटें प्रदान की जाएं।
  • इसने प्रस्तावित संविधान सभा में 292 सदस्यों को ब्रिटिश भारत से और 93 सदस्यों को रियासतों से शामिल करने का प्रस्ताव रखा

विभाजन को समझना

  • भारत का बंटवारा
  • भारत का बंटवारा 1947 र्इ. में भारत और पाकिस्तान नाम के दो राष्ट्रों के साथ हुआ। यह बंटवारा लार्ड माउन्टबेटन की योजना के अनुसार हुआ था।
  • भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को मिलाकर एक नए राष्ट्र पाकिस्तान को बनाया गया था। यह पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा हुआ था।
  • पश्चिमी पाकिस्तान जो की पंजाब और पूर्वी पाकिस्तान जो की बंगाल को विभाजित करके बनाया गया था। दोनों

ही क्षेत्र मुस्लिम बहुल इलाके थे।

 

  • बंटवारे की पृष्ठभूमि -
  • ब्रिटिश लोगो की हमेशा से ‘‘फूट डालो और राज करों’’ की नीति रही है। स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजो ने अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए हिन्दू और मुस्लिम के रूप में लोगो को आपस में लड़ाया और फिर एक दूसरे के हिमायती बनकर दोनों को एक दूसरे के प्रति भड़काते रहे।
  • यह योजना धीरे धीरे काम करने लगी और मुसलमानों को यह लगने लगा की हिन्दू बहुसंख्यक देश में वे सुरक्षित नहीं है। इसका भाव तब और प्रखर हो गया जब मुस्लिम लीग ने अलग राष्ट्र की मांग की
  • मुसलमानों ने कांग्रेस पर यह आरोप लगाया की वह मुस्लिम विरोधी है और उसके हिन्दू सदस्यों को हिन्दू महासभा में भाग लेने का अधिकार है जबकि मुस्लिम सदस्यों को ऐसा अधिकार प्राप्त नहीं है। वहीं हिन्दुओं में यह भावना घर करने लगी की भारतीय सरकार और नेता मुसलमानों को विशेष अधिकार देने लगी है और हिन्दुओं के साथ पक्षपात करने लगी है।
  • मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल से इस भावना को और बल मिला। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच अविश्वास की खार्इ गहरी होती चली गयी।
  • दोनों समुदायों के बीच अविश्वास की भावना जन्म लेने लगी। मुस्लिम लीग ने 1940 र्इ. में अपने लिए अलग राष्ट्र, पाकिस्तान की मांग की।
  • पाकिस्तान की मांग धीरे धीरे जोर पकड़ने लगी और जब यह मांग न मानी गयी तो मुस्लिम लीग ने बंगाल में सीधी कार्यवाही के जरिये पाकिस्तान राष्ट्र बनाने के घोषणा की।
  • 16 अगस्त 1946 के दिन मुस्लिम लीग ने कलकत्ता में प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मानाने की घोषणा की और उसी दिन दंगे शुरू हो गये और जो कर्इ दिनों तक चलते रहे।
  • मार्च, 1947 तक यह सांप्रदायिक हिंसा पूरे भारत में फैल गयी।
  • मजबूरन कांग्रेस देश के बंटवारे के लिए तैयार हो गयी।

 

विभाजन के कारण

  • कुछ विद्वान यह मानते है की बंटवारे की पृष्ठभूमि 20वीं सदी के शुरुआत 1909 र्इ. में है जब अंग्रेजो ने मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था कर दी।
  • 1919 र्इ. में जब पृथक चुनाव क्षेत्र का विस्तार किया गया तो साम्प्रदायिकता की भावना को बल मिला।
  • अलग चुनाव क्षेत्र होने से मुसलमान अपने प्रतिनिधि चुन सकते थे और इससे राजनेताओं में लालच बढ़ गया।
  • वे सांप्रदायिक भाषण देने लगे। अपनी समुदाय को नाजायज फायदा पहुंचाने लगे ताकि वे चुनाव जीत सके। चुनाव में दिए गए भाषण धीरे-धीरे धार्मिक अस्मिताओं से जुड़ गये।
  • इसक अलावा और दूसरे कारण जैसे मस्जिद के सामने संगीत बजाना और गो रक्षा आन्दोलन, आर्य समाज का ‘‘शुद्धि की कोशिशें’’ जैसे मुद्दों से सांप्रदायिक तनाव बढ़ा।
  • मध्यवर्गीय प्रचारक और सांप्रदायिक कार्यकर्ता धीरे धीरे अपने अपने समुदाय को दूसरे समुदाय के खिलाफ लामबंद करने लगे। इससे विभिन्न भागो में दंगे फैलने लगे। सभी समुदायों के बीच गहरे फर्क होते गए और दंगा फसाद के साथ साथ हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगी।
  • ब्रिटिश सरकार की नीतियों और समाज में साम्प्रदायिकता के बढ़ने से विभाजन के खार्इ चौड़ी होती गर्इ और दंगो के कारण हुर्इ अशांति को शांत करने के लिए देश का विभाजन मान्य करना पड़ा।

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