भारत में राजनैतिक संस्थाएं एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

भारत में राजनैतिक संस्थाएं एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

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भारत में राजनैतिक संस्थाएं एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

पाठ का उद्देश्य विद्यार्थियों को आधुनिक भारत के इतिहास की इस यात्रा में अब समझ विकसित करना चाहिए कि उन्नीसवीं सदी का भारत किस हर तरफ से द्वंद्वों एवं संघषोर्ं में फसा हुआ था। देश किसानों के आंदोलन, सामाजिक सुधार आंदोलन, आदिवासियों के आंदोलन, सन्यासियों के आदोलन, सैनिक असंतोष जैसे द्वंद्वों एवं संघषोर्ं में फंसा हुआ था। इन आंदोलनों एवं समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले विचारों के कारण चारों ओर उत्तेजना का वातावरण बना गया था। लोग अपने पुराने विचारों को त्याग रहे थे, नर्इ शिक्षा एवं नये विचार ग्रहण कर रहे थे। वे बेकारी और गरीबी से उबरना चाहते थे, आजादी चाहते थे। नागरिक अधिकारों में वृद्धि चाहते थे। इसलिये धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलन आरम्भ होने के साथ-साथ अराजनैतिक एवं राजनैतिक संस्थाओं का भी उदय हुआ।

 

 

भूमिका - दिसम्बर, 1885 मे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अचानक घटी कोर्इ घटना नहीं थी, बल्कि यह राजनैतिक जागृति की चरम पराकाष्ठा थी। कांग्रेस की स्थापना से पहले भी अनेक राजनैतिक एवं गैर राजनैतिक संगठनों की स्थापना हो चुकी थी -

  • बंग भाषा प्रकाशन सभा- 1836 र्इ. में राजा राम मोहन राय के अनुयायिओं द्वारा स्थापित यह संगठन सरकार की नीतियों से संबंधित मामलों की समीक्षा करती थी।
  • लैंड होल्डर्स सोसायटी- इसकी स्थापना बंगाल के जमीदारों ने 1838 र्इ. में की थी। इसके माध्यम से उन्होंने भूमि के अतिक्रमण व अपहरण का विरोध किया। इस तरह का यह पहला संगठित राजनैतिक प्रयास था।
  • बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी- 1843 र्इ. में संस्था का उद्देश्य आम जनता के हितों की रक्षा करना तथा उन्हें बढ़ावा देना था।
  • ब्रिटिश इंडिया एसोशिएशन- 1851 र्इ. में लैण्ड होल्डर्स सोसायटी एवं बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी के विलय के उपरांत यह संगठन अस्तित्व में आया। राधाकान्त देव इसके अध्यक्ष थे। 1852 र्इ. में बॉम्बे एसोसिएशन तथा मद्रास नेटिव एसोसिएशन की स्थापना की गर्इ। इन संस्थाओं ने अपने-अपने क्षेत्र में राजनैतिक गतिविधियों को जारी रखा।
  • पूना सार्वजनिक सभा- इसकी स्थापना एम. जी. रानाडे, गणेश वसुदेव एवं अन्य सहयोगियों ने 1870 र्इ. में की इस संस्था ने राजनैतिक चेतना जगाने में काफी योगदान दिया।
  • र्इस्ट इंडिया एसोसिएशन- लंदन में राजनैतिक प्रचार के उदेश्य से दादा भार्इ नौरोजी द्वारा 1866 र्इ. में इसकी स्थापना की गर्इ थी। इसकी बहुत सी शाखाएं भारत में खोली गर्इ। इंडियन लीग1875 र्इ. में शिशिर कुमार घोष ने इसकी स्थापना की थी।
  • इंडियन एसोसिएशन- इंडियन एसोसिएशन की स्थापना 1876 र्इ. में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनंद मोहन बोस ने की। इस संस्था को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पूर्वगामी कहा गया भारत में प्रबल जनमत तैयार करना, हिंदू-मुस्लिम जनसंपर्क की स्थापना करना, सार्वजनिक कार्यक्रम के आधार पर लोगों को संगठित करना, सिविल सेवा के भारतीयकरण के पक्ष में मत तैयार करना आदि इसके प्रमुख उद्देश्य थे।
  • मद्रास महाजन सभा- 1884 र्इ. में वीर राधवाचारी, जी. सुब्रमण्यम अय्यर और आनंद चारलू ने मद्रास महाजन सभा की स्थापना की। 1885 र्इ. में बंबर्इ प्रेसीडेंसी एसोसिएशन की स्थापना फिरोजशाह मेहता, के. टी. तैलंग और बदरूद्दीन तैय्यबजी ने मिलकर की।

 

कांग्रेस की स्थापना एवं घटनाक्रम

स्थापना

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एक अवकाश प्राप्त अंग्रेज अधिकारी एलन आक्टोवियन ह्यूम ने 28 दिसंबर 1885 को की थी।
  • ए. ओ. ह्यूम ने दरअसल 1884 र्इ. में ही एक संगठन की स्थापना की थी, जिसका नाम भारतीय राष्ट्रीय संघ रखा गया था। इसी का नाम अगले साल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पड़ा।
  • प्रथम अधिवेशन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नाम
  • भारतीय राष्ट्रीय संघ का पहला अधिवेशन 28-31 दिसम्बर, 1875 तक बंबर्इ के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में आयोजित किया गया था। इसी सम्मेलन में दादाभार्इ नौरोजी ने संगठन का नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस रखने का सुझाव दिया, जो स्वीकार कर लिया गया
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अध्यक्ष व्योमेश चंद्र बनर्जी को बनाया गया। बनर्जी कोलकाता उच्च न्यायालय के प्रमुख वकील थे।
  • कांग्रेस के पहले अधिवेशन में कुल 72 सदस्य शामिल हुए। जिनमें दादाभार्इ नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, काशीनाथ तैलंग, दीनशा एडलजी वाचा, बी. राघवाचारी, एस. सुब्रमण्यम आदि थे।
  • बंबर्इ में हुए प्रथम अधिवेशन में शामिल 72 प्रतिनिधियों में ज्यादातर ऐसे लोग थे, जो अंग्रेजी पढ़े लिखे थे। इनमें प्रमुख रूप से वकील, व्यापारी और जमींदार श्रेणी के लोग थे।

 

  • प्रथम अधिवेशन में उठार्इ गर्इ प्रमुख मांगे
  • केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में विस्तार किया जाए।
  • उच्च सरकारी नौकरियों में भारतीयों को भी पूरे अवसर दिए जाएं।
  • अंग्रेज सरकार के भारी सैनिक खर्च में कमी की जाए।
  • अंग्रेजों के भारतीय प्रशासन की जांच के लिए एक रॉयल

कमीशन गठित किया जाए।

 

  • सेफ्टी वाल्व का सिद्धांत

लाला लाजपत राय ने 1916 र्इ. में यंग इण्डिया अखबार में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने कांग्रेस को लार्ड डफरिन के दिमाग की उपज बताया। आर. पी. दत्त ने भी कांग्रेस की स्थापना को ब्रिटिश सरकार की एक पूर्व निश्चित योजना का परिणाम बताया था। ऐसा माना जाता है कि लार्ड डफरिन ने ह्यूम के माध्यम से कांग्रेस की स्थापना इसलिए करवार्इ थी, ताकि भारतीय जनता में पनपता आक्रोश किसी तरह से खतरनाक रूप न ले सके। ऐसा संगठन बने जो इस असंतोष को सेफ्टी वॉल्व के रूप में बाहर निकाल सके।


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