रासायनिक अभिक्रियाएं एवं नाभिकीय रसायन

रासायनिक अभिक्रियाएं एवं नाभिकीय रसायन

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रासायनिक अभिक्रियाएं एवं नाभिकीय रसायन

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

किसी पदार्थ में रासायनिक परिवर्तन होने की घटना को रासायनिक अभिक्रिया कहते हैं। रासायनिक अभिक्रिया में एक या एक से अधिक द्रव्य दूसरे द्रव्य (जो संघठन, गुणों आदि में प्रारंभिक द्रव्य से अलग हो) में परिवर्तित होते हैं। इन्ही रासायनिक अभिक्रिया के द्वारा प्रकृति में पुराने से नए बदलाव होते है और उन्ही बदलाव के कारण उपयोगी वस्तुओं का निर्माण सम्भव होता है।

 

किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में द्रव्य की आण्विक या आयनिक रुप से व्यवस्थित होता है, जिससे अलग द्रव्य का निर्माण होता है। जिन द्रव्यों में रासायनिक परिवर्तन होता है वो क्रियाकारक (Reactant) कहलाते हैं। रासायनिक अभिक्रिया में बने नए द्रव्य को उत्पाद (Product) कहते हैं।

रासायनिक सूत्र - तत्वों, अणुओं एवं यौगिकों को सरलतम् रूप में दर्शाने के लिए रासायनिक सूत्रों का उपयोग किया जाता है। रासायनिक सूत्र के प्रकार - मुलानुपाती सूत्र, अणु सूत्र, सरंचनात्मक सूत्र।

रासायनिक समीकरण - रासायनिक सूत्रों, योजक (+) एवं वियोजक (-) चिन्हों और अन्य प्रतीकों की सहायता से किसी रासायनिक अभिक्रिया को दर्शाने को उस अभिक्रिया का रासायनिक समीकरण कहते है। किसी भी रासायनिक समीकरण के मुख्यत: दो भाग होते हैं-

(i) अभिकारक पक्ष (Reactant side)

(ii) उत्पाद पक्ष (Product Side)

 

रासायनिक अभिक्रियाओं के प्रकार - किसी रासायनिक अभिक्रिया में परमाणुओं के आपसी बंध के टूटने और नए बंध जुड़ने से नए पदाथोर्ं का निर्माण होता है। रासायनिक अभिक्रियाओं को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-संयोजन अभिक्रिया, अपघटन या वियोजन अभिक्रिया, विस्थापन अभिक्रिया, द्विविस्थापन अभिक्रिया, ऊष्माक्षेपी रासायनिक अभिक्रिया, ऊष्माशोषी रासायनिक अभिक्रिया, प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया, उत्क्रमणीय अभिक्रिया, अनुत्क्रमणीय अभिक्रिया।

§    एक पूर्ण रासायनिक समीकरण अभिकारक, उत्पाद एवं प्रतीकात्मक रूप से उनकी भौतिक अवस्था को प्रदर्शित करता है

§    रासायनिक समीकरण को संतुलित किया जाता है जिससे समीकरण में अभिकारक तथा उत्पादए दोनों ही ओरए रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले प्रत्येक परमाणु की संख्या समान हो। समीकरण का संतुलित होना आवश्यक है।

§    संयोजन अभिक्रिया में दो या दो से अधिक पदार्थ मिलकर एक नया पदार्थ बनाते हैं। वियोजन अभिक्रिया संयोजन अभिक्रिया के विपरीत होती है।

§    वियोजन अभिक्रिया में एकल पदार्थ वियोजित होकर दो या दो से अधिक पदार्थ देता है। जिन अभिक्रियाओं में उत्पाद के साथ ऊष्मा का भी उत्सर्जन होता है उन्हें ऊष्माक्षेपी अभिक्रियाए कहते हैं।

§    जिन अभिक्रियाओं में ऊष्मा का अवशोषण होता है उन्हें ऊष्माशोषी अभिक्रियाएं कहते हैं।

§    जब कोर्इ एक तत्व दूसरे तत्व को उसके यौगिक से विस्थापित कर देता हैए विस्थापन अभिक्रिया कहलाती है।

§    द्विविस्थापन अभिक्रिया में दो अलग-अलग परमाणु या परमाणुओं के समूह (आयन) का आपस में आदान-प्रदान होता है। अवक्षेपण अभिक्रिया से अविलेय लवण प्राप्त होता है।

§    अभिक्रिया में पदाथोर्ं से ऑक्सीजन या हाइड्रोजन का योग अथवा ह्रास भी होता है। ऑक्सीजन का योग या हाइड्रोजन का ह्रास ऑक्सीकरण या उपचयन कहलाता है। ऑक्सीजन का ह्रास या हाइड्रोजन का योग अपचयन कहलाता है।

 

रासायनिक ऊष्मागतिकी - वह शाखा जिसके अन्तर्गत रासायनिक पदाथोर्ं में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों में केवल ऊर्जा परिवर्तन का अध्ययन किया जाता हैए रासायनिक ऊष्मागतिकी कहलाती है।

ऊष्मागतिकी में प्रयुक्त कुछ सामान्य राशियां

तन्त्र/निकाय- द्रव्य की निश्चित मात्रा, जो ब्रह्माण्ड से एक सतही सीमा (Boundary System) द्वारा अलग रहता है, तन्त्र (System) कहलाता है। तन्त्र में एक या एक से अधिक पदार्थ हो सकते हैं। तन्त्र निम्न प्रकार के होते हैं- खुला निकाय, बंद निकाय, विलगित निकाय आदि।

वातावरण / परिवेश- तन्त्र के अलावा शेष बचा हुआ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, जो तन्त्र के साथ ऊर्जा, द्रव्यमान या दोनों का आदान-प्रदान कर सकता है, वह तन्त्र का वातावरण (Surrounding) कहलाता है। गहन तथा विस्तीर्ण गुण- वह गुण जो तंत्र (System) में उपस्थित द्रव्य (पदार्थ) की मात्रा पर निर्भर करता है, विस्तीर्ण गुण (Extensive Property) कहलाता है। उदाहरण- एन्थैल्पी, एन्ट्रॉपी, मोलों की संख्या, आयतन आदि।

वह गुण जो तंत्र में उपस्थित पदार्थ की मात्रा पर निर्भर नहीं करता है, गहन गुण (Intensive property) कहलाता है। उदाहरण- ताप, दाब, घनत्व सांद्रण आदि।

अवस्था फलन- किसी भी निकाय के वे गुण जो निकाय की केवल प्रारम्भिक और अंतिम स्थितियों पर निर्भर करते हैं, लेकिन परिवर्तन के पथ पर निर्भर नही होते हैं, अवस्था फलन कहलाते हैं। उदाहरणताप (T), दाब (P), आयतन (V), आंतरिक ऊर्जा (E), एन्थैल्पी (H), एन्ट्रॉपी (S), मुक्त ऊर्जा (G) आदि।

कार्य तथा ऊष्मीय ऊर्जा पथ फलन (Path Function) होते है, अवस्था फलन नहीं होते हैं।

ऊष्मागतिकीय प्रक्रम- वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा कोर्इ ऊष्मागतिकीय तन्त्र एक अवस्था से दूसरी अवस्था में रूपांतरित होता है, ऊष्मागतिकीय प्रक्रम (Thermodynamic Process) कहलाता है। ऊष्मागतिकीय प्रक्रम निम्न प्रकार के होते है- रुद्धोष्म प्रक्रम, समतापीय प्रक्रम, समदाबीय प्रक्रम, समआयतनिक प्रक्रम, चक्रीय प्रक्रम, उत्क्रमणीय प्रक्रम तथा अनुक्रमणीय प्रक्रम।

आंतरिक ऊर्जा- किसी द्रव्य (पदार्थ) में संचित कुल ऊर्जा, जिसके कारण इसमें रासायनिक प्रकृति उपस्थित रहती है, आंतरिक ऊर्जा (Internal Energy) कहलाती है, तात्पर्य यह है कि पदार्थ में उपस्थित उसके संघटक परमाणुओं की स्थान्तरण ऊर्जा, घूर्णन ऊर्जा, रासायनिक बंध ऊर्जा, विद्युतीय ऊर्जा तथा नाभिकीय ऊर्जा का योग आंतरिक ऊर्जा कहलाती है और समीप स्थित अणुओं के साथ परस्पर क्रिया के कारण इसे विभव ऊर्जा (Potential Energy) भी कहते हैं। इसे म् से दर्शाया जाता है। \[E={{E}_{t}}+{{E}_{r}}+{{E}_{v}}+{{E}_{e}}+{{E}_{n}}+{{E}_{pe}}\] ‘यदि आंतरिक ऊर्जा (उत्पादों तथा क्रियाकारको की आंतरिक ऊर्जाओं में ¾\[{{E}_{p}}-{{E}_{R}}\]) में बदलाव होता है, बॉम्ब कैलोरीमीटर (Bomb meter) की सहायता से आंतरिक ऊर्जा का मान प्रायोगिक रूप से ज्ञात किया जा सकता है। अंतत: आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन \[\Delta E={{E}_{2}}-{{E}_{1}}={{E}_{P}}-{{E}_{R}}\]यंहा पर \[{{E}_{1}}\]¾ तन्त्र की प्रारम्भिक अवस्था में आंतरिक ऊर्जा का मान \[{{E}_{2}}\] ¾ तन्त्र की अंतिम अवस्था में आंतरिक ऊर्जा का मान मात्रक - SI प्रणाली में मात्रक जूल (J)

 

ऊष्मा- तन्त्र वातावरण के बीच, उनके ताप के अन्तर के परिणामस्वरूप, आदान-प्रदान होने वाली ऊर्जा को ऊष्मा (Heat) कहते है। सामान्यत: इसे Q अक्षर से दर्शाया जाता है।

 

एन्थैल्पी - स्थिर दाब पर, किसी तन्त्र की कुल ऊष्मा की मात्रा, उस तन्त्र की एन्थैल्पी कहलाती है। इसे H से दर्शाया जाता है। ऊष्माधारिता - किसी पदार्थ की ऊष्माधारिता ऊष्मा की वह मात्रा है जो तन्त्र का ताप 1\[^{o}C\] तक बढ़ाने के लिये आवश्यक हो।

 

विशिष्ट ऊष्माधारिता- ऊष्मा की वह मात्रा जो 1 ग्राम पदार्थ का ताप 1 \[^{o}C\] वृद्धि करने के लिये आवश्यक हो।

 

ऊष्मा रसायन

इसके अन्तर्गत रासायनिक अभिक्रियाओं में होने वाले ऊष्मीय परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है, ऊष्मा रसायन कहलाती है।

§  ऐसी रासायनिक अभिक्रिया जिसमें अभिक्रिया के दौरान उत्सर्जित या अवशोषित होने वाली ऊष्मा की मात्रा ज्ञात की जाती है, उसे ऊष्मा रासायनिक अभिक्रिया कहते है।

 

अभिक्रिया ऊष्मा - किसी रासायनिक अभिक्रिया में होने वाला एन्थैल्पी परिवर्तन (उत्पादों और क्रियाकारकों की एन्थैल्पी के मान का अन्तर) को अभिक्रिया की ऊष्मा कहते है।

 

एन्ट्रॉपी - एन्ट्रॉपी किसी तन्त्र की अव्यवस्था की माप है। एण्ट्रॉपी एक अवस्था फलन है जो तन्त्र के अव्यवस्था की माप दर्शाती है।’

 

गिब्स मुक्त ऊर्जा- ऊर्जा की वह अधिकतम मात्रा, जो किसी प्रक्रम के दौरान तन्त्र (निकाय) द्वारा उपयोगी कार्य में परिवर्तित जा सकती है, मुक्त ऊर्जा या गिब्स मुक्त ऊर्जा कहलाती है।

 

रासायनिक बलगतिकी

रसायन विज्ञान की वह शाखा, जिसके अन्तर्गत अभिक्रिया का वेग, वेग को प्रभावित करने वाले कारक और अभिक्रिया की क्रियाविधि का अध्ययन किया जाता है, रासायनिक बलगतिकी (Chemical Kinetics) कहलाती है।

अभिक्रिया की दर- किसी रासायनिक अभिक्रिया में, एकांक समय में, क्रिया कारकों या उत्पादों की सान्द्रता में परिवर्तन, अभिक्रिया की दर (Rate of Reaction) कहलाता है।

 

अभिक्रिया का दर स्थिरांक (K)- किसी अभिक्रिया में प्रत्येक क्रिया कारकों की सान्द्रता र्इकार्इ हो, दर स्थिरांक कहलाता है।

 

अभिक्रिया की कोटि- यह अभिकारक अणुओं या परमाणुओं या आयनों की उस संख्या के बराबर होती है, जिनकी सान्द्रताओं पर अभिक्रिया की दर निर्भर करता है।

 

अभिक्रिया की अणुसंख्यता- किसी भी अभिक्रिया के प्रारंम्भिक पद में कितने अणु भाग ले रहे हैं वह उस पद की अणु संख्यता (Molecularity of a Reaction) कहलाती है।

 

अर्द्ध आयुकाल- वह समय है जिसमें कि किसी अभिकारक की सान्द्रता घटकर अपने प्रारंभिक सान्द्रण की आधी रह जाती है। प्रथम कोटि की अभिक्रिया का अर्द्ध आयुकाल अभिकारक की प्रारम्भिक सान्द्रण पर निर्भर नहीं होता है।

 

अणु टक्कर (संघटन) का सिद्धांत - इस सिद्धान्त के अनुसार किसी रासायनिक अभिक्रिया के सम्पन्न होने के लिए अभिकारक अणुओं का आपस में टकराना आवश्यक है। अभिकारक अणुओं के मध्य होने वाली सभी टक्करों के फलस्वरूप अभिक्रिया नहीं होती है अर्थात् प्रतिफल नहीं बनते हैं।

सक्रियण ऊर्जा (\[{{E}_{a}}\]) - अभिकारकों की स्थितिज ऊर्जा के अतिरिक्त ओर अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होना जिससे कि वह अभिकारक और उत्पादों के मध्य ऊर्जा अवरोध (Energy barrier) को पार कर सके।

 

नाभिकीय रसायन

रसायनशास्त्र में किसी परमाणु के नाभिक में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन नाभिकीय रसायन (nuclear chemistry) कहलाता है। किसी तत्व के परमाणु का निर्माण तीन अवपरमाण्विक (Subatomic) कणोंइलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन) से मिलकर होता है। परमाणु के नाभिक में धनावेशित प्रोटॉन एवं उदासीन न्यूट्रॉन, जबकि ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन नाभिक के आसपास कक्षा में चक्कर लगाते है, इलेक्ट्रॉनों का आवेश नाभिक के धनावेश को संतुलित करता है जिससे एक विद्युत उदासीन (Electricity Neutral ) परमाणु का निर्माण होता है। परमाणु की तुलना में इलेक्ट्रॉनों का द्रव्यमान नगण्य होता है इसलिए किसी भी परमाणु का सम्पूर्ण द्रव्यमान उसके नाभिक में केंद्रित रहता है। प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन की कुल संख्या को द्रव्यमान संख्या (Mass Number) कहते है।

 

परमाणु में स्थायी एवं अस्थायी नाभिक -परमाणु के सूक्ष्मतम कण नाभिक में विद्यमान धनावेशित प्रोटॉनों के मध्य एक प्रतिकर्षण बल (Repulsion Force) कार्य करता है, इसलिए नाभिक के स्थायित्व को बनाए रखने के लिए नाभिक में कोर्इ अन्य बल भी कार्यरत्त करता है। नाभिक में न्यूट्रॉन-प्रोटॉन अनुपात समरूप (बराबर या लगभग बराबर) होने की स्थिति में यह बल धनावेशित प्रोटॉनों को एक साथ सन्तुलन में रखते हुए परमाणु के नाभिक को स्थायित्व (Stability) प्रदान करता है। नाभिक में प्रोटॉनों की संख्या, न्यूट्रॉनों की संख्या से अधिक होने पर यह बल प्रोटॉनों को नाभिक में न्यूट्रॉनों के साथ संतुलन में नही रख पाता है। परिणामस्वरूप, परमाणु का नाभिक अस्थायी हो जाता है।

रेडियोसक्रियता - यह परमाणुओं के अस्थायी नाभिकों का एक विशिष्ट गुण होता है। अस्थायी नाभिकों में –श्य विकिरण एवं परमाणु के मुलभूत कणों (अल्फा, बीया, गामा) के स्वत: लगातार उत्सर्जन का गुण पाया जाता है। इस प्रकार, वे अपनी ऊर्जा का º्रास करके स्थायित्व प्राप्त कर सकते हैं। अंतत: ‘‘रेडियोसक्रिय पदाथोर्ं द्वारा किरणें उत्सर्जित करने का गुण रेडियोसक्रियता (Radioactivity) कहलाता है।’’

रेडियोसक्रियता की खोज -सन् 1896 में हैनरी बेकुरल (Henry Becquerel) ने अपनी रिसर्च के दौरान पाया कि यूरेनियम के खनिज से लगातार –श्य किरणें स्वत: ही निकलती रहती हैं इन्ही किरणों को बेकुरल किरणों की संज्ञा दी गयी।

 

रेडियोसक्रियता के प्रकार - प्राकृतिक रेडियोसक्रियता कृत्रिम रडियोसक्रियता।

तत्वांतरण - विकिरण के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन करके रेडियो सक्रिय समस्थानिकों के अस्थायी नाभिक विघटित होकर एक नियत समय में स्थायी नाभिकों में बदलने की इस प्रक्रिया को तत्वांतरण (transmulation) कहते है। तत्वांतरण या नाभिकीय क्षरण (Nuclear Decay) की प्रक्रिया एक स्थायी नाभिक वाले तथा गैर-रेडियो सक्रिय तत्व का निर्माण नहीं हो जाता है, तब तक चलती रहती है।

 

कृत्रिम तत्वांतरण के अनुप्रयोग - सर्वप्रथम 1919 र्इ. में रदरफोर्ड ने नाइट्रोजन के नाभिक पर अल्फा कणों की बौछार करके ऑक्सीजन के समस्थानिक (\[_{8}{{O}^{17}}\]) तथा प्रोटॉन (\[_{1}{{H}^{1}}\]) का निर्माण किया।

 

ट्रांस यूरेनियम तत्व - यूरेनियम के बाद आने वाले तत्व या परमाणु क्रमांक 92 से अधिक परमाणु क्रमांक वाले सभी तत्व कृत्रिम रूप से प्रयोगशाला में निर्मित किए गए हैं। इन सभी तत्वों को ट्रांस यूरेनियम तत्व कहते है। प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला सबसे भारी तत्व यूरेनियम है।

रेडियोसक्रिय विखण्डन या रेडियोसक्रिय क्षय - रेडियोसक्रिय तत्वों के द्वारा उत्सर्जित कणों के प्रकार पर रेडियोसक्रिय क्षय की प्रकृति निर्भर करती है। इस आधार पर तीन प्रकार का रेडियोसक्रिय क्षय होता है- अल्फा क्षय (\[\alpha \]-Decay) , बीटा क्षय (\[\beta \]- Decay), गामा क्षय (\[\gamma \]-Decay)

 

रेडियोसक्रिय किरणें - वर्ष 1902 के दौरान रदरफोर्ड ने रेडियोसक्रिय किरणों का अध्ययन किया। उन्होंने इन किरणों को दो भिन्न भिन्न आवेशों से आवेशित प्लेटों के मध्य प्रवाहित करने पर पाया कि ये तीन प्रकार की किरणों में बिखर जाती हैं जिन्हें अल्फा, बीटा तथा गामा किरणें कहा जाता है।

 

रेडियोसक्रिय पदार्थ की औसत आयु -विघटन स्थिरांक के व्युत्क्रम को रेडियोसक्रिय पदार्थ की औसत आयु कहते हैं, इसे \[\tau \] से दर्शाता जाता है।

औसत आयु ¾ \[\tau =1/\lambda =1.44\times {{t}_{(1/2)}}\]

 

रेडियोसक्रिय पदार्थ की सक्रियता - किसी रेडियोसक्रिय पदार्थ की कुल क्षय दर (Total Decay Rate) उसकी सक्रियता कहलाती है। बेकुरल (Bq) सक्रियता मापने का अंतर्राष्ट्रीय पैमाना है, लेकिन मापन का एक अतिरिक्त पैमाना क्यूरी (Ci) का उपयोग किया जाता है। बेकुरल ¾ 1 Bq ¾ 1 क्षय प्रति सेकेंड, 1 क्यूरी ¾\[1Ci=3.7\times {{10}^{10}}\]Bq क्षय प्रति सेकेंड

 

नाभिकीय विखण्डन (nuclear Fission)- तत्वों के भारी परमाणुओं के नाभिकों का कम भार वाले परमाणुओं के हल्के नाभिकों में टूटने को नाभिकीय विखंडन कहा जाता है। नाभिकीय विखण्डन की खोज वैज्ञानिक ऑटो हान (Otto Han) तथा स्ट्रॉसमैन (Strassmann) ने की। इनके अनुसार न्यूट्रॉन की बमबारी करने पर यूरेनियम-235 के परमाणु दो नाभिकों में टूट जाता है।

\[_{92}{{U}^{235}}{{+}_{0}}{{n}^{1}}{{\to }_{56}}B{{a}^{141}}{{+}_{36}}K{{r}^{92}}{{+}_{30}}{{n}^{1}}+200\,Mev\]

 

नाभिकीय संलयन (Nuclear Fission) - इस प्रकार की नाभिकीय अभिक्रिया में परमाणुओं के दो हल्के नाभिक आपस में जुड़कर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं।

उदाहरण - हाइड्रोजन बम।

\[_{\,\,\,\,\,\,1}{{H}^{2}}{{+}_{1}}{{H}^{3}}{{\to }_{2}}H{{e}^{4}}{{+}_{0}}{{n}^{1}}+{\AA}tkZ\]

 


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