नागरिकता

नागरिकता

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विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

नागरिकता महज एक कानूनी अवधारणा नहीं है। इसका समानता और अधिकारों के व्यापक उद्देश्यों से भी घनिष्ठ संबंध है। इस संबंध का सर्वसम्मत सूत्रीकरण अंग्रेज समाजशास्त्री टी.एच. मार्शल (1893-1981) ने किया है। अपनी पुस्तक नागरिकता और सामाजिक वर्ग (1950) में मार्शल ने नागरिकता को किसी समुदाय के पूर्ण सदस्यों को प्रदत्त प्रतिष्ठा के रूप में परिभाषित किया है। इस प्रतिष्ठा को ग्रहण करने वाले सभी लोग प्रतिष्ठा में अंतर्भूत अधिकारों और कर्तव्यों के मामले में बराबर होते हैं। मार्शल नागरिकता में 3 प्रकार के अधिकारों को शामिल करते हैं नागरिक, राजनैतिक और सामाजिक अधिकार। नागरिकता वर्ग पदानुक्रम के विभाजक परिणामों का प्रतिकार कर समानता सुनिश्चित करती है। इस प्रकार यह वृहद, सुबद्ध और समरस समाज रचना को सुसाध्य बनाती है। नागरिकता से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख संविधान के दूसरे भाग में और संसद द्वारा बाद में पारित कानूनों में हुआ है।

 

नागरिकता का विचार यूनानी दार्शनिक अरस्तु द्वारा प्रतिपादित किया गया था, जिसमें सभी नागरिकों को शासन सत्ता में पूर्ण भागीदारी का अधिकार दिया गया। इसमें नागरिक गणतंत्रवाद अथवा सक्रिय नागरिकता का विचार भी कहा जाता है, यद्यपि अरस्तु के विचार में नागरिकता केवल मालिक (स्वामी) के लिए उपलब्ध थी। आधुनिक युग में नागरिकता का विचार वैधानिक रूप में परिवर्तित हो गया और नागरिकों को मूलभूत अधिकार प्राप्त हुए, जो विदेशियों को उपलब्ध नहीं है।

नागरिकताः भारत के संविधान के भाग- II में अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता से संबंधित प्रावधान है। भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है।

  •              नागरिकता संबंधी प्रमुख प्रावधान एवं अनुच्छेद •

·          अनुच्छेद 5: भारत में जन्म, वंश, पंजीकरण, देशीयकरण और क्षेत्र के समावेश द्वारा नागरिकता प्रदान की जाती है। उपर्युक्त सभी प्रकार से नागरिकता ग्रहण की जा सकती है इस का विस्तृत विवरण नागरिकता अधिनियम, 1955 में किया गया है। इस अधिनियम में उल्लेखित आधार पर भारत में जन्म, पंजीकरण, देशीयकरण और क्षेत्र के समावेश में  से किसी भी एक आधार पर भारत की नागरिकता प्राप्त की जा सकती है।

·         अनुच्छेद 6: ऐसे व्यक्तियों की नागरिकता के संबंध में प्रावधान है जो पाकिस्तान से आए हों और निम्नलिखित दो शर्ते पूरी करते हों: यदि वह अथवा उसके माता या पिता में से कोई अथवा उनके पूर्वज में से कोई (मूल रूप में यथा अधिनियमित) भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में जन्मा था और  

           (i) यदि वह 19 जुलाई, 1948 से पूर्व स्थानांतरित हुआ हो और भारत में सामान्यतः निवास कर रहा हो।  

           (ii) यदि वह 19 जुलाई, 1948 को या उसके बाद आया हो तो वह पंजीकरण के द्वारा नागरिक बन सकता है किन्तु इसके लिए कम-से-कम 6 माह तक भारत में निवास आवश्यक है।

·             अनुच्छेद 7: पाकिस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार से सम्बंधित है।

·           अनुच्छेद 8: ऐसे व्यक्ति जिनके वंश का कोई व्यक्ति भारत का नागरिक हो और वह स्वयं भारत से बाहर रह रहा हो। वह पंजीकरण के द्वारा भारत का नागरिक बन सकता है, किन्तु तभी जब उसने राजनयिक या कौन्सलीय प्रतिनिधि के पास इसका आवेदन किया हो तथा उनके द्वारा इसे पंजीकृत कर लिया गया हो।

·             अनुच्छेद 9: विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित करने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं होगा।

·             अनच्छेद 10: नागरिकता के अधिकारों के बने रहने से सम्बंधित है।

·             अनुच्छेद 11: संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनिमयन किया जा सकेगा तथा संसद को इससे सम्बंधित अन्य मामलों के लिए कानून बनाने का अधिकार होगा।

            नागरिकता की समाप्ति संबंधी प्रमुख प्रावधानः भारतीय नागरिकता का अंत निम्न प्रकार से किया जा सकता हैः

            1. स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता का परित्याग करने

            2. यदि कोई भारतीय नागरिक किसी अन्य देश की नागरिकता सुरक्षा से स्वीकार कर लेता है, तो उसकी भारत की नागरिकता समाप्त हो जाएगी।

            3. भारत सरकार द्वारा भारतीय नागरिक को आवश्यक रूप से नागरिकता से वंचित (बर्खास्त) करने पर नागरिकता समाप्त हो जाएगीः

            i यदि नागरिकता अवैध तरीके से प्राप्त की गई हो।

            ii  यदि नागरिक भारत के संविधान के प्रति निष्ठा न रखने पर अथवा संविधान में आस्था न रखने पर भी नागरिकता समाप्त हो जाएगी।

  • नागरिकता अधिनियम, 1955: भारतीय संसद को अनुच्छेद 11 के तहत नागरिकता के संबंध में विधि निर्माण का अधिकार प्रदान किया गया है। इसी के अंतर्गत वर्ष 1955 में नागरिकता अधिनियम पारित किया गया था। भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार निम्न में से किसी एक आधार पर नागरिकता प्राप्त की जा सकती है।
  1. जन्म सेः प्रत्येक व्यक्ति जिसका जन्म संविधान लागू होने अर्थात् 26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात् 1 जुलाई, 1947 से पूर्व भारत में हुआ हो, वह जन्म से भारत का नागरिक होगा। अपवादः राजनयिकों के बच्चे, विदेशियों के बच्चे।
  2. वंश-परम्पराद्वारा नागरिकताः भारत के बाहर अन्य देश में 26 जनवरी, 1950 के पश्चात् जन्म लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक माना जायेगा, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो। माता की नागरिकता के आधार पर विदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा किया गया है।
  3. देशीयकरण द्वारा नागरिकताः भारत सरकार से देशीयकरण का प्रमाण-पत्र प्राप्त कर भारत की नागरिकता प्राप्त की जा सकती है।
  4. पंजीकरण द्वारा नागरिकताः निम्नलिखित वर्गों में आने वाले पंजीकरण के द्वारा भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं
          (i) भारतीय मूल का वह व्यक्ति जो भारत की नागरिकता प्राप्ति का आवेदन देने से ठीक 7 वर्ष पूर्व से भारत में रह चुका हो।
          (ii) वे भारतीय, जो अविभाज्य भारत से बाहर किसी देश में निवास कर रहे हों।
          (iii) वे व्यक्ति जिसने भारतीय नागरिक से विवाह किया हो और वह पंजीकरण के लिए प्रार्थना-पत्र देने से पूर्व 7 वर्ष से भारत में निवास कर रहा हो।
          (iv) भारतीय नागरिकों के नाबालिग बच्चे।                                             
          (v) राष्ट्रमंडलीय देशों के नागरिक, जो भारत में रहते हों या भारत सरकार की नौकरी कर रहे हों। आवेदन-पत्र देकर भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।
  1. भूमि-विस्तार द्वाराः यदि किसी नये भू-भाग को भारत में शामिल किया जाता है, तो उस क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को स्वतः भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
  • भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986: इस अधिनियम के आधार पर भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1955 में निम्न संशोधन किये गये हैं:
  1. अब भारत में जन्मे केवल उस व्यक्ति को ही नागरिकता प्रदान की जायेगी, जिसके माता-पिता में से एक भारत का नागरिक हो।
  2. जो व्यक्ति पंजीकरण के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें अब भारत में कम-से-कम पाँच वर्षों तक निवास करना होगा। पहले यह अवधि छह माह थी।
  3. देशीयकरण द्वारा नगरिकता तभी प्रदान की जायेगी, जबकि संबंधित व्यक्ति कम-से-कम 10 वर्षों तक भारत में रह चुका हो। पहले यह अवधि 5 वर्ष थी। नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986 जम्मू-कश्मीर व असम सहित भारत के सभी राज्यों पर लागू होगा।
  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019ः नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को 1955 के अधिनियम में संशोधन करने के लिए लाया गया। इस संबंध में 9 दिसंबर को नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 लोकसभा से पारित हुआ और 11 दिसंबर को राज्यसभा से पारित हुआ तथा 12 दिसंबर को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होने के उपरांत यह अधिनियम प्रभावी हो गया।
  • संशोधन अधिनियम के प्रमुख प्रावधानः संसद में पेश विधेयक में किए गए संशोधन के अनुसार 31 दिसंबर, 2014 या उसके पूर्व पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए वहां के अल्पसंख्यकों हिंदू, बौद्धों, सिख जैन, पारसी और ईसाई को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। इन प्रवासियों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा अवैध प्रवासियों को जेल या विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट भारत में प्रवेश अधिनियम, 1926 में भी छूट प्रदान की गई है।
  • पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागरिकताः अधिनियम किसी भी व्यक्ति को पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्ति के लिए आवेदन करने कीअनुमति प्रदान करता है, लेकिन इन सभी के लिए कुछ योग्यताओं को पूरा करना अनिवार्य है, जैसे-जो व्यक्ति आवेदन कर रहा है, वह 1 वर्ष पूर्व से भारत में रह रहा हो तो वह पंजीकरण के उपरांत नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकता है। नागरिकता प्राप्त करने की एक महत्वपूर्ण योग्यताओं में से एक यह है कि व्यक्ति आवेदन से पूर्व एक निश्चित समय अवधि से भारत में निवास कर रहा हो या केंद्र सरकार की नौकरी कर रहा हो और कम-से-कम 11 वर्ष का समय उसने भारत में बिताया हो, इस उपर्युक्त योग्यता के संबंध में नागरिकता संशोधन अधिनियम में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के हिंदुओं, बौद्धों सिखों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाईयों के लिए एक अन्य प्रावधान है कि इन समूह के व्यक्तियों के लिए 11 साल अवधि को घटाकर 5 साल कर दिया गया है।
  • नागरिकता प्राप्त करने परः (i) ऐसे व्यक्तियों को भारत में उनके प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जाएगा और (ii) उनके खिलाफ अवैध प्रवास या नागरिकता के संबंध में कानूनी कार्यवाही बंद कर दी जायेगी।
  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019: इस अधिनियम में पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए विशेष प्रावधान किया गया है। अवैध प्रवासियों के लिये नागरिकता का यह प्रावधान संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लाग नहीं होगा। इन आदिवासी क्षेत्रों में कार्बी आंगलोंग (असम), गारो हिल्स (मेघालय), चकमा जिला (मिजोरम) और त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र जिले शामिल हैं। इसके अतिरिक्त यह बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत ‘‘इनर लाइन‘ में आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा। इन क्षेत्रों में इनर लाइन परमिट के माध्यम से भारतीयों की यात्राओं को विनियमित किया जाता है। वर्तमान में यह परमिट प्रणाली अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नगालैंड पर लागू है। मणिपुर को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से इनर लाइन परमिट शासन के तहत लाया गया है और उसी दिन संसद में यह बिल पारित किया गया था।


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