तंत्रिका तंत्र

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तंत्रिका तंत्र

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

मानव शरीर में बहुत में अंग एवं अंग तंत्र पाए जाते हैं जो कि स्वतंत्र रूप से कार्य करने में असमर्थ होते हैं। जैव स्थिरता (Homeostatis) बनने देत इन अंगों के कायोर्ं में समन्वय अत्यधिक आवश्यक है। समन्वयता(Coordination) एक ऐसी क्रियाविधि है. जिसके द्वारा दो या अधिक अंगों में क्रियाशीलता बढ़ती है एक-दूसरे अंगों के कायोर्ं में मदद मिलती है। तंत्रिका तंत्र समन्वयी तथा एकीकृत क्रियाओं के साथ ही अंगों की उपापचयी और समस्थैनिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है।

§     विशिष्ट ऊतकों की वह प्रणाली जो प्राणियों में सोचने, समझने तथा उद्दीपनों या संवेदनाओं या बाह्य परिवर्तनों को ग्रहण करने की क्षमता प्रदान करती है, तंत्रिका तंत्र (Nervous System) कहलाती है। तंत्रिका तंत्र से संबंधित ऊतक को तंत्रिकीय ऊतक(Nervous Tissue) कहते हैं।

§     तंत्रिका तंत्र की क्रियात्मक इकार्इ न्यूरोंस, झिल्ली के दोनों ओर सांद्रता प्रवणता(Differential Concentration of Gradient) अंतराल के कारण उत्तेजक कोशिकाएं होती हैं। स्थिर तंत्रिकीय झिल्ली(resting Neutral Membrane) के दोनों ओर का विद्युत विभवांतर विरामकला विभव(Resting Potential) कहलाता है। तंत्रिकांक्ष(Nerve Axon) झिल्ली पर विद्युत विभावांतर प्रेरित उद्दीपन द्वारा संचारित होता है। इसे सक्रिय विभव कहते हैं। तंत्रिकाक्ष झिल्ली की सतह पर आवेगों(Impulse) का संचरण विध्रुवीकरण(Depolarisation) और पुन: ध्रुवीकरण

(Repolarisation) के रूप में होता है। पूर्व सिनेप्टिक न्यूरॉन और पश्च सिनेप्टिक न्यूरॉन की झिल्लियां सिनेप्स (Synapse) का निर्माण करती है, जो कि सिनैप्टिक विदर (Synaptiv clefet) द्वारा पृथक हो सकती है या नहीं होती है। सिनेप्स दो प्रकार के होते हैं विद्युत सिनैप्स और रासायनिक सिनेप्स। रासायनिक सिनैप्स पर आवेगों के संचरण में भाग लेने वाले रसायन न्यूरोट्रांसमीटर कहलाते हैं।

§     मानव तंत्रिका तंत्र(Nervous/neutral System) दो भागों का बना होता है

(i) केंद्रीय (Central) तंत्रिका तंत्र - CNS और

(ii) परीधीय (Peripheral) तांत्रिका तंत्र। CNS मस्तिष्क और मेरूरज्जु (Spinal Cord) का बना होता है। मस्तिष्क को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है।

(i) अग्र मस्तिष्क (Forebrain)(ii) मध्य मस्तिष्क(Mid Brain)(iii) पश्च मस्तिष्क(Hind Brain) अग्र मस्तिष्क प्रमस्तिष्क(Cerebrum), थेलेमस और हाइपोथेलेमस से बना होता है। प्रमस्तिष्क लंबवत् दो अर्द्ध गोलार्द्धो(Two Halves) में विभक्त होता है, जो कॉर्पस कैलोसम से जुड़े रहते हैं। अग्र मस्तिष्क का महत्वपूर्ण भाग हाइपोथेलेमस शरीर के तापक्रम, खाने और पीने आदि क्रियाओं का नियंत्रण करता है।

§     प्रमस्तिष्क गोला(Cerebral Hemisphere) का आंतरिक भाग और संगठित गहरार्इ(aAssociated Deep) में स्थित संरचनाएं मिलकर एक जटिल संरचना बनाते हैं, जिसे लिम्बिक तंत्र कहते हैं। यह सूंघने(Olfaction), प्रतिवर्ती क्रियाओं(autonomic responses), लैंगिक व्यवहार के नियंत्रण, मनोभावों की अभिव्यक्ति और अभिप्रेरण (Motivation) से संबंधित होता है। मध्य मस्तिष्क ग्राही एकीकरण तथा एकीकृत –ष्टि(Integrates Visuals), तंतु(Tactile) तथा सुनने की क्रियाओं से संबंधित है।

§     पश्च मस्तिष्क पोंस, अनु मस्तिष्क (Cerebellum) और मेडîूला का बना होता है। अनु मस्तिष्क कर्ण की अर्द्धचंद्राकार नलिकाओं (Semicircular Canal) तथा श्रवण तंत्र से प्राप्त होने वाली सूचनाओं को एकीकृत करता है। मध्यांश (मेड्यूला) में श्वसन, हृदय परिसंचयी (Cardiovasucular Reflexes), प्रतिवर्तित और जठर स्रावों के नियंत्रण केंद्र होते हैं। पोंस रेशेनुमा पथ का बना होता है, जो मस्तिष्क के विभिन्न भागों को आपस में जोड़ता है। परिधीय तंत्रिका तंत्र को प्राप्त उद्दीपनों के लिए अनैच्छिक प्रतिक्रियाओं (Involunytary responses) को प्रतिवर्ती क्रियाएं(Reflex Actions) कहा जाता है। वातावरणीय बदलाव की सूचना CNS को संवेदी अंगों (Sensory Organs) से प्राप्त होती हैं, जिन्हें संचरित और विश्लेषित किया जाता है। इसके बाद संदेशों(Signals) को आवश्यक समायोजन (Adjustment) हेतु भेजा जाता है।

§     मानव नेत्र गोलक(Eye Ball) की दीवारें तीन परतों से बनी

होती है। बाहरी परत कॉर्निया और शुक्लपटल(Sclera) से मिलकर बनती है। स्केलेरा के भीतर की ओर मध्य परत कॉरोइड कहलाती है। आंतरिक परत रेटिना में दो प्रकार की प्रकाश ग्राही कोशिकाएं होती हैं - शलाका(Rods) और शंकु(Cones) इन कोशिकाओं में प्रकाश संवेदी प्रोटीन प्रकाश वर्णनक पाए जाते हैं। दिन-रात की –ष्टि(Photoyopic Vision) एयर रंगीन –ष्टि शंकु का कार्य है तथा संध्या या हल्के अंधेर में देखना(Twilight/Scotopic vision) शलाका का कार्य है। प्रकाश रेटिना से प्रवेश कर लैंस तक पहुंचता है और रेटिना पर वस्तु की छवि बनती है।

§     रेटिना में उत्पन्न आवेगों को मस्तिष्क के –ष्टि वल्कुट भाग तक – तंत्रिका द्वारा भेजा जाता है। जहां पर तंत्रिकीय आवेगों का विश्लेषण होता है और रेटिना पर बनने वाली छवि को पहचाना जाता है। कर्ण(Eye) को बाह्य कर्ण, मध्य कर्ण अंत:कर्ण में विभाजित किया जा सकता है। बाह्य कर्ण पिन्ना तथा बाह्य श्रवण गुहा से बना होता है। मध्य कर्ण तीन अस्थिकाओं मैलियस, इंकस और स्टेप्सीज से बना होता है। द्रव्य से भरा अंत:कर्ण लेबरिथ का घुमावदार भाग कोक्लिया कहलाता है। कोक्लिया दो झिल्लियों बेसिलर झिल्ली और राइजनर्स झिल्ली द्वारा तीन कक्षों में विभाजित होता है। र्गन कॉर्टार्इ आधारीय झिल्ली द्वारा तीन कक्षों में विभाजित होता है। र्गन कॉर्टार्इ आधारीय झिल्ली पर स्थित होता है और इसमें पार्इ जाने वाली रोम कोशिकाएं(Hair Cells) श्रवण ग्राही(Auditory Receptor) की तरह कार्य करती हैं। कर्ण ड्रम में उत्पन्न कंपन्न कर्ण अस्थिकाओं और अंडाकार खिड़की द्वारा द्रव से भरे अंत: कर्ण तक भेजे जाते हैं, जहां वे आधारीय झिल्ली में एक तरंग उत्पन्न करती हैं। आधारीय झिल्ली में होने वाली गति रोम कोशिकाओं को मोड़ती है और टेक्टोरियस झिल्ली के विरूद्ध दबाव उत्पन्न करते हैं। फलस्वरूप तंत्रिका आवेग उत्पन्न होते हैं और अभिवाही तंतुओं (Afferent Fibers) द्वारा मस्तिष्क के श्रवण वल्कुट (Auditory Cortex) तक भेजे जाते हैं। अंत: कर्ण में भी कोक्लिया के ऊपर जटिल तंत्र होता है और शरीर के संतुलन (Balance of Body) और सही स्थिति(Posture) को बनाए रखने में हमारी मदद करता है।

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