प्राचीन भारत में कला-संस्कृति एवं विरासत

प्राचीन भारत में कला-संस्कृति एवं विरासत

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प्राचीन भारत में कला-संस्कृति एवं विरासत

 

किसी भी देश की संस्कृति उस देश के धर्म, दर्शन, साहित्य, कला तथा राजनितिक विचारों पर आधारित रहती है। भारत की संस्कृति अनेक तत्वों के मिश्रण से बनी है। विश्व की अनेक प्राचीन संस्कृतियां नष्ट हो गर्इ, परन्तु भारतीय संस्कृति की धारा आज भी प्रवाहित है। अन्य विचारधाराओं के प्रति सहिष्णुता भारतीय संस्कृति की विशेषता रही हैं। भारतीय संस्कृति ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ (सारा संसार एक परिवार है) की भावना से अनुप्रणित है।

 

हड़प्पा सभ्यता में कला-संस्कृति

 

  • हड़प्पाई कांस्य की वस्तुएं निर्मित करने की विधि उसके उपयोग से भली भांति परिचित थे।
  • तांबा राजस्थान की खेतड़ी खान से प्राप्त किया जाता था और टिन अनुमानत: अफगानिस्तान से लाया जाता था ।
  • हड़प्पाई नाव बनाने की विधि, मनका बनाने की विधि, मुहरें बनाने की विधि से भली-भांति परिचित थे।
  • हड़प्पाई पृथ्वी को उर्वरता की देवी मानते थे और पृथ्वी की पूजा उसी तरह करते थे, जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी की पूजा देवी के रूप में करते थे।
  • पुरुष देवता के रूप में मुहरों पर तीन श्रृंगीचित्र पाए गए हैं जो कि योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं।
  • देवता के एक तरफ हाथी, एक तरफ बाघ, एक तरफ गैंडा तथा उनके सिहासन के पीछे भैंसा का चित्र बनाया गया है। उनके पैरों के पास दो हिरनों के चित्र है। चित्रित भगवान की मूर्ति को पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है।

 

वैदिककालीन कला - संस्कृति

 

  • वैदिककाल में देवताओं तथा प्रकृति की उपासना का उल्लेख मिलता है। इसमें पृथ्वी, अग्नि, सोम, बृहस्पति, सरस्वती, सूर्य, सविता, मित्र, वरुण, अदिति, उषा, इन्द्र, रूद्र, मरूत, तथा पवन की पूजा होती थी।
  • इस काल में पुनर्जन्म, कर्म तथा मोक्ष व तप का विशेष महत्व था ।

 

मौर्यकालीन संस्कृति मौर्य कला

  • कला एवं संस्कृति का मौर्य काल में चहुंमुखी विकास हुआ।
  • दरबारी कला स्तम्भों और उनके शीर्षों में अभिव्यक्त हुई।
  • पाटलिपुत्र में कुम्हार से एक राजप्रासाद का अवशेष प्राप्त हुआ है।
  • अशोक के स्तम्भ चुनार (बनारस के निकट) के बलुआ पत्थर से गढ़ा गया। जॉन मार्शल तथा पसी ब्राउन जैसे विद्वानों ने अशोक के स्तम्भों को ईरानी स्तम्भों की अनुकृति बताया है ।
  • अशोक कालीन सारे स्तम्भों में सारनाथ शीर्ष सबसे भव्य है एवं अब तक भारत में उपलब्ध मूर्ति कलाओं में सर्वोत्तम नमूना है।
  • स्तूप शब्द का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
  • सांची तथा भरहुत स्तूपों का निर्माण मूल रूप में अशोक ने ही करवाया था एवं शुगों के समय में सांची स्तूप का विस्तार हुआ।

 

मौर्योत्तरकालीन कला संस्कृति

 

  • पुष्यमित्र के राज्याभिषेक (184 ई. पू.) के साथ शुंगकाल का प्रारम्भ होता है।
  • भरहुत, सांची और अमरावती, नागार्जुनकोण्ड जैसे महास्तूप इस युग में निर्मित हुए। स्तूप शुग कला के सर्वोत्तम स्मारक हैं।
  • स्तूप सामान्यत: बौद्ध धर्म से सम्बद्ध माने जाते हैं किन्तु ऋग्वेद में भी इनका उल्लेख आया है।
  • छोटे स्तूप अल्पेशाख्य एवं बड़े महेशाख्य कहे जाते थे।
  • बेसनगर का स्तम्भ तथा विदिशा का गरुड़-स्तम्भ शुंग-कला के । अच्छे उदाहरण हैं।

 

मौर्योत्तर काल की कला के अन्य तथ्य

 

  • ख्वारिज्म के टोपरकला नामक स्थान पर एक विशाल कुषाण प्रसाद खुदाई में मिला है, जो तीसरी-चौथी सदी का है। इसमें एक प्रशासनिक अभिलेखागार था, जिसमें अरामाइक लिपि और ख्वारिज्मी भाषा में लिखा गया है।
  • फाहियान ने अपने वृतांत में पुरुषपुर के बुर्ज का उल्लेख किया है। वह तेरह मंजिली भव्य इमारत थी।
  • स्तूप - स्तूपों का आकार अर्द्धवृत्ताकार होता था। उसका ऊपरी हिस्सा समतल होता था। उसे हÆमका या ईÜवर का आवास स्थल माना जाता था।
  • महत्वपूर्ण स्तूप - बोधगया (बिहार), मथुरा, अमरावती, नागा. र्जुनकोंड (आंध्रप्रदेश), तक्षशिला
  • मूर्तिकला केन्द्र- मौर्योत्तर काल मे मूर्ति कला के तीन महत्वपूर्ण केद्र थे- उत्तर में गांधार एवं मथुरा तथा दक्षिण में अमरावती।

 

गुप्तकाल की धार्मिक - सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँ

 

  • भारत के सांस्कृतिक इतिहास में गुप्त वंश का अत्यधिक महत्व
  • समुद्रगुप्त तथा कुमारगुप्त प्रथम ने अश्वमेध यज्ञ किया था।
  • उन्होंने बौद्ध धर्म और जैन धर्म को भी प्रश्रय दिया। . राजकाज की भाषा संस्कृत थी। साहित्य की प्रत्येक विधा में
  • संस्कृत ने बहुत उच्च स्थान ग्रहण कर रखा था। इसी काल में दशमलव प्रणाली का अविष्कार हुआ जो बाद में अरबों के माध्यम से यूरोप तक पहुंचा।

 

मंदिर

 

  • गुप्त काल में मंदिर निर्माण कला का जन्म हुआ, इसका विकास बाद में हुआ।
  • गुप्त काल की आकर्षक और भव्य मंदिर निर्माण कला का सबसे अच्छा उदाहरण देवगढ़ (झांसी) का खंडित विष्णु मंदिर है।
  • मूर्ति कला- गुप्तकाल की मूर्ति कला में मुख्यत: विष्णु के अवतारों की प्रतिमा ही बनाई गई है।
  • सारनाथ की कला पर गांधार कला का प्रभाव नहीं है। धर्म चक्र प्रवर्तन की मुद्रा में बुद्ध की मूर्ति यह पर है।
  • चित्रकला - गुप्त काल के चित्रों के अवशेषों को बाघ की गुफाएं, अजंता की गुफाएं एवं बादामी की गुफाओं में देखा जा सकता है।

 

गुप्तकाल में साहित्य

 

  • कालिदास के नाटक अभिज्ञानशाकुंतलम, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्र हैं।
  • शूद्रक का मृच्छकटिकम् एकमात्र दुखांत नाटक है।
  • विशाखदत्त का मुद्राराक्षस एवं देवीचंद्रगुप्तम नाटक हैं।
  • अमरकोश के रचयिता अमर सिंह भी इसी समय हुए।
  • इन उपलब्धियों के कारण गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग भी कहा गया है।

 

गुप्तोत्तर काल कला - संस्कृति

 

  • हेनसांग के अनुसार हर्ष, महायान बौद्धमतानुयायी था, जबकि बांसखेड़ा एवं मधुवन के ताम्रपत्राभिलेख उसे शैव बताते हैं।
  • हर्ष ने कन्नौज तथा प्रयाग में बौद्ध सभाओं का आयोजन किया था
  • चालुक्यों द्वारा निर्मित बादामी तथा ऐहोल के मंदिर दक्षिण भारतीय शैली के प्रतीक हैं।

 

संगमकालीन कला - संस्कृति

 

  • शिक्षा और साहित्य की दष्टि से संगम युग स्वर्णीम काल कहा जाता है।
  • इस काल में रचे गए महत्वपूर्ण ग्रन्थों के नाम तोल्काप्पियम और एक्ततौकै हैं।
  • किलकन्कु - इनमें 18 लघु ग्रन्थ है।यह साहित्य नीतियुक्त है। इनमें दो ग्रंथ तिरुक्कुराल और नलदियार महत्वपूर्ण हैं।
  • संगम महाकाव्य - इनकी संख्या कुल 3 है- शिल्पादिकरम, मणिमेखलाई, जीवक चिन्तामणि
  • उस समय दक्षिण भारत में ‘मुरूगन’ सबसे प्रचलित देवता थे। किसान इन्द्र के रूप ‘मरुडम’ की उपासना करते थे।


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