मध्यकालीन भारत में कला-संस्कृति एवं विकास

मध्यकालीन भारत में कला-संस्कृति एवं विकास

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मध्यकालीन भारत में कला-संस्कृति एवं विकास

हिन्दु धर्म तथा इस्लाम की सांस्कृतिक परंपराओं के समेकन से मिश्रित या हिन्दु इस्लामी संस्कृति का जन्म हुआ। देश में पहले भी कर्इ आक्रमण हुये थे पर यह एक अलग किस्म का आक्रमण था। 1258 र्इसवी तक दिल्ली सल्तनत अत्यंत महत्वपुर्ण कला और संस्कृति का केन्द्र हो चुका था। मुगल सम्राट कला व संस्कृति के प्रेमी थे। उनकी कलाकृतियों में विभिन्न महल, भवन निर्माण कला, चित्रकला आदि का चरम उत्कर्ष मिलका है। अकबर बाबर, जहागीर तथा शाहजहां के शासनकाल में चित्रकला को स्वर्णित ऊंचाइयां मिली।

भारत पर मुस्लिम आक्रमण के सांस्कृतिक प्रभाव

  • अरबों और तुर्कों के भारत विजय से महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव पड़े।
  • मुस्लिम आक्रमणों के साथ इस देश में ऐसे निश्चित सामाजिक एवं धार्मिक विचारों ने प्रवेश किया, जो मौलिक रूप में हिन्दुस्तान के विचारों से भिन्न थे तथा आक्रमणकारियों का मूल निवासियों में पूर्णत: विलीन होना सम्भव नहीं हुआ।
  • भारत पर मुस्लिम आक्रमण के सांस्कृतिक प्रभाव बलूचिस्तान और सिंधु पर 711 ईसवी में मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में चढ़ाई की। उन्होंने  सिंधु और मुलतान पर कब्जा कर लिया।
  • इस काल मे ही जैनुल आबेदीन तथा बंगाल के हुसैन शाह के मुस्लिम राजदरबारों में अध्ययन और अनुवाद या संक्षिप्तीकरण हुआ।
  • हिन्दू लेखकों ने फारसी भाषा में मुस्लिम साहित्यिक परम्पराओं पर लिखा।
  • अनेक मुसलमान कवियों ने हिन्दी में तथा हिन्दू कवियों ने उर्दू में रचनायें की। अमीर खुसरो कुछ हिन्दी ग्रन्थों का लेखक जाना जाता है।
  • इस्लाम राजधर्म था। हिन्दुओं की धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिये गये। मन्दिरों और मूर्तियों को तोड़ा गया क्योंकि इस्लाम में मूर्ति पूजा का निषेध था।

दिल्ली सल्तनत में कला - संस्कृति

  • दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत कला, शिक्षा और व्यापार शैली में एक अद्भुत हिन्दू और इस्लामी शैली का मिश्रण दृ दृष्टिगोचर होता है।
  • 1296-1316 ईसवी के दौरान, खुसरो की कविता, बरनी का ऐतिहासिक कार्यशैली और हजरत निजाम-उद-दीन औलिया के व्यक्तित्व में इस सांस्कृतिक जीवन शक्ति के सभी तत्व मौजूद रहे थे।
  • सल्तनत के प्रारंभिक इतिहास में अमीर खुसरो एक प्रख्यात फारसी कवि थे। उनके द्वारा लिखे गए ग्रन्थ हैं- किरान-उस-सादेन, मिफ्ता-उल-फुतूह, आशिका, और खजाइन-उल-फुतूह आदि प्रमुख ग्रन्थ ।
  • भारतीय संगीत में अरब संगीत पर अधिक प्रभाव डाला था जिसकी वजह से उत्तरी भारत में एक नयी प्रकार की संगीत प्रणाली का जन्म हुआ था, सुल्तान हुसैन संगीत के रोमांटिक स्कूल के मूल संस्थापक थे।

 

सल्तनतकालीन स्थापत्य  

  • सल्तनत काल में भारतीय स्थापत्य कला के क्षेत्र में जिस शैली का विकास हुआ, वह भारतीय तथा इस्लामी शैलियों का सम्मिश्रिण थी। इसलिए स्थापत्य कला की इस शैली को ‘इण्डो इस्लामिक’ शैली कहा गया।
  • कुछ विद्वानों ने इसे ‘इण्डो-सरसेनिक’ शैली कहा है। फग्र्युसन महोदय ने इसे पठान शैली कहा है, किन्तु यह वास्तव में भारतीय एवं इस्लामी शैलियों का मिश्रण थी।
  • सल्तनत काल में इमारतों में पहली बार वैज्ञानिक ढंग से मेहराब एवं गुम्बद का प्रयोग किया गया। यह कला भारतीयों ने अरबों से सीखी।
  • मुस्लिम आक्रमण के पूर्व भारत में चित्रकारी का हिन्दू, बौद्ध एवं जैन चित्रकला के अन्तर्गत काफी विकास हुआ था, परन्तु अजन्ता चित्रकला के बाद भारतीय चित्रकला का क्रम अवरुद्ध हो गया।
  • सामान्यत: सल्तनत काल को भारतीय चित्रकला के पतन का काल माना जाता है।
  • 1353 ई. में मुहम्मद तुगलक के समय का एक ऐसा चित्र प्राप्त हुआ है, जिसमें एक संगीत गोष्ठी का चित्रण किया गया है तथा स्त्रियां सुल्तान के समक्ष वीणा और सितार बजा रही हैं।
  • गयासुद्दीन तुगलक संगीत का विरोधी था।
  • शेख मुइनुद्दीन चिश्ती के अनुसार-”संगीत आत्मा के लिए पौष्टिक आहार है”।
  • बलबन का पुत्र ‘बुगरा खां’ महान् संगीत प्रेमी था। बलबन का . पौत्र कैकुबाद सर्वाधिक संगीत प्रेमी सुल्तान था।
  • अमीर खुसरो को सितार और तबले के अविष्कार का श्रेय दिया जाता था। मध्यकालीन संगीत परम्परा के आदि संस्थापक अमीर खुसरो थे। सर्वप्रथम उन्होंने भारतीय संगीत में कव्वाली गायन को प्रचलित किया।
  • अमीर खुसरो को ‘तूती - ए- हिन्द हिन्द’ अर्थात् ‘भारत का तोता’ आदि नाम से भी जाना जाता था।

 

मुगलकालीन कला एवं संस्कृति

  • मुगल स्थापत्य कला का काल मुख्य रूप से 1526 ईस्वी से लेकर 1857 ईस्वी तक माना जाता हैं। मुगल स्थापत्य कला में फारस, तुर्की, मध्य एशिया, गुजरात, बंगाल, जोनपुर आदि स्थानों की शैलियों का अनोखा मिश्रण हुआ था।
  • मुगल काल के शासकों ने ‘फारसी’ को अपनी राजभाषा बनाया था। इस काल का फारसी साहित्य काफी समृद्ध था।
  • रामानन्द, रामानुज, कबीर, चौतन्य जैसे हिन्दू सन्तों के प्रादुर्भाव से इस्लाम धर्म की कट्टरता कम हुई ।
  • अकबर ने दीन -ए - इलाही, नामक नवीन धर्म का प्रतिपादन किया। अकबर को छोड़कर सभी शासक धार्मिक कट्टरतावादी नीति के समर्थक थे।
  • हिन्दू धर्म शैव और वैष्णव दो सम्प्रदायों में बंटा था।
  • इसी बीच सिक्ख धर्म का उदय हुआ, जिसमें गुरु रामदास, अंगद, अमरदास, तेगबहादुर, गुरु गोविन्द सिंह भी हुए ।


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