हस्तशिल्प, वेशभूषा एवं भौगोलिक संकेतक

हस्तशिल्प, वेशभूषा एवं भौगोलिक संकेतक

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हस्तशिल्प, वेशभूषा एवं भौगोलिक संकेतक

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

भारत की भव्य सांस्कृतिक विरासत और सदियों से क्रमिक रूप से विकास कर रही इस परम्परा की झलक देश भर में निर्मित हस्तशिल्प की. भरपूर वस्तुओं में दिखार्इ पड़ती है। भारतीय पारंपरिक वेशभूषा देश की संस्कृति की तरह विविध हैं। देश की कर्इ सुंदर, उज्ज्वल और अनोखी पोशाकें देश की महान भौगोलिक विविधता के कारण राज्य से राज्य तक भी भिन्न होती हैं। भारत में पारंपरिक वेशभूषा भी प्राकृतिक जलवायु के आधार पर पहनी जाती है। कपड़े पहनने की पश्चिमी शैली के मौजूदा प्रचलन के बावजूद, जब उत्सव और अन्य अवसर प्रचलित हैं, भारतीय पारंपरिक वेशभूषा पोशाक का पसंदीदा रूप है।

 

भारतीय हस्तशिल्प

  • भारतीय हस्तशिल्प सामान्य तौर पर हाथों से की गर्इ शिल्पकारी या कारीगरी को कहा जाता है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में उत्पत्ति होने के बाद से मिट्टी के बर्तन भारत में हस्तशिल्प का सबसे प्राचीन रुप हैं। चन्हूदड़ो इस काल मे शिल्प उत्पादन का प्रसिद्ध केंद्र रहा है।
  • मोर्य काल में काष्ठ शिल्प के विकास के पर्याप्त प्रमाण मिले हैं, जिसके साक्ष्य के रूप में चन्द्रगुप्त मोर्य का राजप्रसाद है।
  • संगम काल में उरैयूर एवं मदुरै वस्त्रनिर्माण के प्रमुख केंद्र के रूप में प्रसिद्ध थे।
  • बांस का निर्माता होने के कारण भारत में बांस से बने हस्तशिल्प सबसे इको-फ्रेंडली शिल्प होते हैं।
  • धोकरा हस्तशिल्प का सबसे पुराना रुप है और अपनी पारंपरिक सादगी के लिए जाना जाता है। इस आदिवासी हस्तशिल्प की उत्पत्ति मध्य प्रदेश में हुर्इ।
  • ओडिशा के राज्य में जन्मे हड्डी और सींग के हस्तशिल्प पक्षी और जानवरों के रुप बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • रॉक कला का सबसे पुराना रुप रॉक नक्काशी है जो कि राजस्थान, जयपुर, आडिशा और नागपुर में देखा जा सकता है।
  • चांदी का महीन काम तीन तरह का होता है मीनाकारी, खुल्ला जाल और फूल और पत्तियां।
  • मीनाकारी ओडिशा के कटक के अलावा तेलंगाना का करीमनगर भी इस हस्तशिल्प के लिए मशहूर है।
  • गुप्तकाल में चित्रकला एवं अन्य कलाओं के साथ हस्तशिल्प का विकास हुआ।
  • सल्तनत काल में वस्त्र-निर्माण के क्षेत्र में तीत्र वृद्धि देखी गर्इ। इसका कारण था- बुनने वाले पहियों, सूत कातने के यंत्रों तथा बुनार्इ के यंत्रों का आगमन।
  • मुगल काल में कागज एवं सूती वस्त्र उद्योग काफी उन्नत अवस्था में थे। सूती वस्त्रों के निर्माण के महत्वपूर्ण केंद्र थे आगरा, बनारस, बुरहानपुर, पाटन, जौनपुर, बंगाल, मालवा आदि।
  • भारत में ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा। अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का रूपांतरण औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में कर दिया।
  • राजस्थान का जयपुर, मिट्टी से बनने वाले कलात्मक मटकों एवं सुराही के लिये काफी प्रसिद्ध है।
  • जयपुर की ब्लू पाटरी कला 200 वषोर्ं से अधिक पुरानी है तथा यह विश्विख्यात है।
  • राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित मोलेला गांव टेराकोटा के निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
  • तंजावुर में टेराकोटा से निर्मित की जाने वाली गुडिया विश्वप्रसिद्ध है तथा इसे भौगोलिक उपदर्शन का दर्जा प्राप्त है।
  • भारत में लकड़ी के शिल्प बनाने की प्राचीन परंपरा रही है तथा वर्तमान समय में भी यह देश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित है।
  • कुशल कारीगरों द्वारा लकड़ी के टुकड़ों को विभिन्न आकार देकर खूबसूरत हस्तनिर्मित वस्तुएं बनार्इ जाती हैं।
  • ओडिशा की काष्ठकला पर बंगाल (वर्तमान पश्चिम बंगाल) एवं दक्षिण भारत की काष्ठकला का प्रभाव देखने को मिलता है।

 

जीआर्इ टैग अथवा भौगोलिक संकेतक

  • जीआर्इ टैग अथवा भौगोलिक चिन्ह किसी भी उत्पाद के लिए एक चिन्ह होता है जो कुछ विशिष्ट उत्पाद के लिए एक चिन्ह होता है जो कुछ विशिष्ट उत्पादों (कृषि, प्राकृतिक, हस्तशिल्प और औधोगिक सामान) को दिया जाता है। जोकि एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में 10 वर्ष या उससे अधिक समय से उत्पन्न या निर्मित हो रहा है और यह सिर्फ उसकी उत्पत्ति के आधार पर होता है।
  • इसका आदर्श वाक्य ‘‘अतुल्य भारत की अमूल्य निधि’’ है।
  • विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य के रूप में भारत ने भौगोलिक संकेतक (माल और पंजीकरण) अधिनियम, 1999 को 15 सितंबर 2003 से भारत में लागू किया है।
  • जीआर्इ टैग मुख्य रूप से कुछ विशिष्ट उत्पादों (कृषि, प्राकृतिक, हस्तशिल्प और विशेष औद्योगिक उत्पाद) को दिया जाता है, जो कि एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में 10 वर्ष या अधिक वषोर्ं से उत्पन्न या निर्मित हो रहा है।
  • जीआर्इ टैग मिलने से उत्पादों का सरंक्षण होता है और अंतराष्ट्रीय बाजार में प्रीमियम मूल्य मिलने की संभावना बढ़ती है। यह भी सुनिश्चित होता है कि अधिकृत नाम का उपयोग कोर्इ अन्य ना कर पाए।
  • काश्मीर का वालनट के लकड़ी की नक्काशी, सिक्किम की बड़ी इलायची, मैसूर की रेशम, जयपुर की नीली मिट्टी के बर्तन, कन्नौज का परफ्यूम, गोवा की फेनी आदि भी जीआर्इ टैग प्राप्त कर चुके हैं।
  • चंदेरी की साड़ी, कांजीवरम की साड़ी, और मलिहाबादी आम समेत अब तक 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआर्इ मिल चुका है।
  • भारत में दार्जिलिंग चाय को भी सबसे पहले 2004 में जीआर्इ टैग मिला था।
  • महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर के ब्लू पोटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डु और मध्य प्रदेश के झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गा सहित कर्इ उत्पादों को जीआर्इ टैग मिल चुका है।


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