आधुनिक काल में चित्रकला (चित्रकला भाग 4)

आधुनिक काल में चित्रकला (चित्रकला भाग 4)

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आधुनिक काल में चित्रकला (चित्रकला भाग 4)

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

अंग्रेजो के आगमन के बाद राजस्थानी, मुगल और पहाडी शैली को चित्रकला को गहरा धक्का लगा और चित्रकला की ये शैलिया। समाप्ति की कगार पर पहुंच गर्इ। आधुनिक काल में भारतीय चित्रकला के जनक, अवनींद्रनाथ टैगोर को माना जाता है जिन्होंने स्वदेशी। मूल्यों पर जोर दिया। मुगल कला और यूरोपीय कला के सम्मिश्रण से पटना में बनाए गए चित्र को पटना या कंपनी शैली का कहा गया। मधुबनी पेंटिंग्स बिहार के मिथिलांचल इलाके मधुबनी, दरभंगा और नेपाल के कुछ इलाकों में प्रचलित शैली है।

 

  • औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय कला पर पश्चिमी प्रभाव पूरी तरह से पड़ने लगा था। इस काल के दौरान कर्इ ऐसे चित्रकार हुए जिन्होंने पश्चिमी दृष्टिकोण और यथार्थवाद के वेश में भारतीय विषयों का सुंदर चित्रण किया। इसी दौरान जेमिनी रॉय जैसे कलाकार भी थे।
  • बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में डब्ल्यू. जी. आर्चर ने चित्रकला की मधुबनी शैली खोजी। दरभंगा और नेपाल में यह चित्रकला प्रचलित है। इस शैली के विषय मुख्यत: धार्मिक हैं। दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में हाथ से निर्मित कलमकारी चित्रकला सूती कपड़े पर रंग से छापकर सब्जियों का प्रयोग करके बनार्इ जाती है।
  • बिहार के पटना में मुगल कला और यूरोपीय कला के सम्मिश्रण से विकसित चित्रकला शैली को पटना या कंपनी शैली कहा गया।
  • इसमें ब्रिटिश जल रंग पद्धति का उपयोग किया गया है।
  • आधुनिक काल की एक प्रसिद्ध चित्रकार अमृता शेरगिल हैं, जिन्होंने नवीन भारतीय शैली का सृजन किया। अन्य महान चित्रकारों में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर और रवि वर्मा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
  • मंजूषा का शाब्दिक अर्थ होता है सजा हुआ कक्ष या सजी हुर्इ पिटारी, अंग प्रदेश की शैली है। हालांकि इसका स्वरूप परम्परागत स्वरूप से भिन्न हो गया है।
  • चित्रकारी की बंगाल शैली का विकास 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में ब्रिटिश राज के दौरान हुआ। यह भारतीय राष्ट्रवाद से प्रेरित शैली थी, लेकिन इसको कर्इ कला प्रेमी ब्रिटिश प्रशासकों ने भी प्रोत्साहन दिया। रवींद्रनाथ टैगोर के भतीजे अवनींद्रनाथ टैगोर इस शैली के सबसे पहले चित्रकार थे।
  • भारतीय चित्रकला में प्रकृतिवाद की पश्चिमी संकल्पना के प्रारम्भकर्ता राजा रवि वर्मा ही थे।
  • महाराष्ट्र की वरली जनजाति द्वारा त्रिभुज, वृत्त और वर्ग इत्यादि का प्रयोग करके वरली चित्रकला का विकास किया गया है।

 


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