Notes - अंतःस्त्रावी तंत्र व हार्मोन

Notes - अंतःस्त्रावी तंत्र व हार्मोन

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अन्तःस्त्रावी तंत्र व हार्मोन

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

हॉर्मोन्स कुछ विशेष प्रकार के रसायन है जो अन्त:स्रावी ग्रंथियों से स्त्रावित होने के पश्चात् विसरित होकर रुधिर कोशिकाओं में प्रवाहित होते हैं। यह रुधिर के माध्यम से शरीर के ऊतकों तथा विभिन्न अंगों में संचरित होकर पहुंचते हैं एवं लक्ष्य अंगों तक जाकर उनकी कोशिकाओं की उपापचयी क्रियाओं, वृद्धि, विकास, प्रजनन, रुधिर दाब तथा रुधिर में विभिन्न पदाथोर्ं की मात्रा का सन्तुलन आदि क्रियाओं का नियंत्रण कर मानव शरीर में रासायनिक समन्वय, एकीकरण और नियमन करते हैं। यद्यपि सभी हॉर्मोन्स सभी प्रकार की कोशिकाओं तथा ऊतकों तक पहुंच सकते हैं, लेकिन ये सिर्फ अपने लक्ष्य अंग या उसकी कोशिकाओं को प्रभावित या उत्तेजित करते हैं।

 

§     ग्रंथियां (Glands) - ये मानव शरीर के ऐसे अंग हैं जो स्त्रावी कोशिकाओं से निर्मित होते हैं एवं विभिन्न प्रकार के तरल पदाथोर्ं को स्त्रावित करते हैं। तीन प्रकार की ग्रंथियां होती हैं- बहि:स्रावी ग्रंथियां (Exocrine Gland), अंत:स्त्रावी ग्रंथियां (Endocrine Gland), निेिजं नजमतपप (Mixed Glands) 31% स्त्रावी ग्रंथियों तथा उससे स्त्रावित होने वाले हॉर्मोन्स के बारे में अध्ययन को अंत:स्त्रावी विज्ञान (Endocrinology) कहते है। इसके जनक ‘थॉमस एडीसन’ हैं।

§     अंत:स्त्रावी तंत्र का निर्माण हाइपोथैलेमस, पीयूष, पीनियल, थायरॉइड, अधिवृक्क (adrenal), अग्नाशय, पैराथायरॉइड, थाइमस और जनन (Gonads- वृषण एवं अंडाशय) द्वारा होता है। इनके साथ ही कुछ अन्य अंग जैसे जठर आंत्रीय पथ (Gastroitestinal Tract), वृक्क, हृदय आदि भी हार्मोन का उत्पादन करते हैं। हाइपोथैलेमस द्वारा 7 मुक्तकारी हार्मोन और 3 निरोधी हार्मोन का उत्पादन होता है जो पीयूष ग्रंथि पर कार्य कर उससे उत्सर्जित होने वाले हार्मोन के संश्लेषण और स्त्रवण का नियंत्रण करते हैं। पीयूष ग्रंथि तीन मुख्य भागों में विभक्त होती है- पार्स डिस्टेलिस, पार्स इंटरमीडिया, पार्स नर्वोसा। पार्स डिस्टेलिस द्वारा 6 ट्रॉफिक हार्मोन का स्त्रवण होता है। पार्स इंटरमीडिया केवल एक हार्मोन का स्राव करता है, जबकि पार्स नर्वोसा दो हार्मोन का स्त्राव करता है। पीयूष ग्रंथि से स्त्रावित हार्मोन कायिक (Somatic) ऊतकों की वृद्धि, परिवर्धन एवं परिधीय (Peripheral) अंत:स्त्रावी ग्रंथियों की क्रियाओं का नियंत्रण करते हैं। पिनियल ग्रंथि मेलाटोनिन का स्राव करती है जो कि हमारे शरीर की 24 घंटे की लय को नियंत्रित करता है, (जैसे कि सोने जागने की लय, शरीर का तापक्रम आदि)

§     थाइरॉइड ग्रंथि से स्रवित होने वाले हार्मोन थाइरॉक्सीन आधारीय उपापचयी दर (Basal Metabolic Rate), केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) के परिवर्धन और परिपक्वन, रक्ताणु उत्पत्ति (erthropoiesis) कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा के उपापचय, मासिक चक्र आदि का नियंत्रण करता है। अन्य थायरॉइड हार्मोन थाइरोकैिल्स्टोनिन हमारे रक्त में कैल्सियम की मात्रा को कम करके उसका नियंत्रण करता है। पैराथायरॉइड ग्रंथियों द्वारा स्त्रवित पैराथायरॉइड हार्मोन (PTH) \[C{{a}^{2+}}\] के स्तर को बढ़ाकर, \[C{{a}^{2+}}\]के समस्थापन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। थार्इमस ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित थाइमोसिन हार्मोन टी-लिम्फोसाइट्स के विभेदीकरण में मुख्य भूमिका निभाता है, जो कोशिका केंद्रित असंक्राम्यता (Cell Mediated immunity) (प्रतिरक्षा) प्रदान करते हैं। साथ ही थाइमोसिन एंटीबॉडी का उत्पादन भी बढ़ाते हैं जो शरीर को तरल असंक्राम्यता (Humoral immunity) (प्रतिरक्षा) प्रदान करते हैं।

§  अधिवृक्क ग्रंथि मध्य में उपस्थित अधिवृक्क मध्यांश (Adernal medullaa) और बाहरी अधिवृक्क वल्कुट (aaadrenal cortex) की बनी होती है। अधिवृक्क मध्यांश एपीनेफ्रीन और नॉरएपीनेफ्रीन हार्मोन का स्त्राव करता है। ये हार्मोन सतर्कता, पुतलियों का फैलना, रोंगटे खड़े करना, पसीना आना, हृदय की धड़कन, हृदय संकुचन की क्षमता, श्वसन की दर, ग्लाइकोजेन अपघटन वसा अपघटन को बढ़ाते हैं। अधिवृक्क वल्कुट ग्लूकोकॉर्टिकाइड्स  (कॉर्टिसॉन) और मिनरेलोकॉर्टिकाइड्स (एल्डोस्टीरॉन) का स्त्राव करता है। ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स ग्लार्इकोजन संश्लेषण, ग्लूकोनियोजिनेसिस, वसा अपघटन (Lipolysis), प्रोटीन अपघटन, रक्ताणु उत्पत्ति, रक्त दाब और ग्लोमेरूलर निस्पंदन (Filtration) को बढ़ाते हैं तथा प्रतिरोधक क्षमता को दबा कर शोथ प्रतिक्रियाओं को रोकता (inhibit inflamamatory reaction) है। खनिज कोर्टिकॉइडस शरीर में जल एवं वैद्युत अपघटकों का नियमन करते हैं।

§     अंत:स्रावी अग्नाशय ग्लूकेगॉन एवं इंसुलिन हार्मोन का स्राव करता है। ग्लूकेगॉन कोशिका में ग्लाइकोजेनोलिसिस तथा ग्लूकोनियोजेनेसिस को प्रेरित करता है, जिससे रक्त में ग्लूकोज

की मात्रा बढ़ जाती है। इसे हाइपरग्लासीमिया (अति ग्लूकोज रक्तता) कहते हैं। इंसुलिन शर्करा के कोशिकीय अभिग्रहण (Cellular glucose uptake) और उपयोग को प्रेरित करती है और ग्लाइकोजिनेसिस के फलस्वरूप हाइपोग्लासिमिया हो जाता है। इंसुलिन की कमी से डायबिटीज मेलीटस (मधुमेह) नामक रोग हो जाता है।

§     वृषण एंड्रोजन हार्मोन का स्त्राव करता है जो नर के आवश्य लैंगिक अंगों के परिवर्धन, परिपक्वन और क्रियाओं को द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का प्रकट होना, शुक्राणु जनन, ना लैंगिक व्यवहार, उपचयी पथक्रम (Anbolic Pathway) और रक्ताणु उत्पत्ति को प्रेरित करता है। अंडाशय द्वारा एस्ट्रोजेन  और प्रोजेस्टेरॉन का स्राव होता है। एस्ट्रोजेन स्त्रियों में आवश्यक लैंगिक अंगों की वृद्धि परिवर्धन और द्वितीयक लैंगिक लक्षण गों के प्रकट होने को प्रेरित करता है। प्रोजेस्टेरॉन गर्भावस्था की देखभाल के साथ ही दुग्ध ग्रंथियों के परिवर्धन और दुग्ध स्त्राव है। हृदय की आलिंद (auricle) भित्ति एंट्रियल नेट्रियूरेटिक कारक का उत्पादन करता है, जो रक्त दाब कम करता है। वृक्क में एरीथ्रोपोइटिन का उत्पादन होता है जो रक्ताणु उत्पत्ति को प्रेरित करता है। जठर आंत्रीय पथ के द्वारा गैस्ट्रिन, सीक्रेटिन, कोलीसिस्टोकाइनिन -पैंक्रियोजाइमिन और जठर अवरोधी पेप्टाइड का स्राव होता है। ये हार्मोन पाचक रसों के स्त्राव और पाचन में सहायता करते हैं।

 

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