Super Exam General Studies Dance and Music / नृत्य और संगीत Question Bank भारत में जनजातीय एवं लोकनृत्य (नृत्यकला भाग 2)

  • question_answer
    छऊ नृत्य के संदर्भ में निम्न कथनों पर विचार करें -
    1. यह पूर्वी भारत का लोकनृत्य है।
    2. यह मुख्य रूप से महाकाव्यों रामायण और महाभारत के विभिन्न प्रसंगों पर आधारित है।
    3. पुरुलिया छऊ नृत्य को यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है। उपरोक्त में से सत्य कथनों का चुनाव करें

    A) 1 और 2   

    B)          2 और 3

    C) 1 और 3   

    D)          1, 2 और 3

    Correct Answer: D

    Solution :

    उत्तर - 1, 2 और 3
    व्याख्या - उपरोक्त सभी कथन सत्य हैं।
    · छऊ नृत्य पूर्वी भारत में प्रचलित एक मुखौटा नृत्य है। भारतीय राज्यों ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में छऊ नृत्य चौत्र महीने के अंत में बंगाली कैलेंडर के अनुसार गजन महोत्सव और सूर्य महोत्सव के अवसर पर किया जाता है। पुरुलिया छऊ नृत्य को यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है। छऊ नृत्य पौराणिक है, क्योंकि यह मुख्य रूप से महाकाव्यों रामायण और महाभारत के विभिन्न प्रसंगों पर आधारित है। कभी-कभी भारतीय पुराणों और अन्य भारतीय साहित्य के कुछ प्रकरणों में शैव, शक्तिवाद और वैष्णववाद में पाए गए धार्मिक विषयों का उपयोग किया जाता है।
    टिप्पणी - छऊ नृत्य के प्रकार - छऊ के प्रमुख तीन प्रकार हैं जो तीन अलग-अलग क्षेत्रों से प्रारम्भ हुई हैं -
    1. सरायकेला छऊ (बिहार)
    2. पुरूलिया छऊ (पश्चिम बंगाल)
    3. मयूरभंज छऊ (उड़ीसा)
    इन तीनों उपशैलियों में जो अंतर है वह मुख्यत: मुखौटों के प्रयोग को लेकर है। सरायकेला और पुरुलिया शैली में नृत्य के समय मुखौटे लगाये जाते हैं, पर मयूरभंज छऊ में मुखौटों का प्रयोग नहीं होता। सरायकेला और पुरुलिया शैलियों में नर्तक जो मुखौटे लगाते हैं उनकी रूप रेखा अलग होती है।
    · मयूरभंज छऊ नृत्य शैली का अपना एक लम्बा इतिहास है. आरम्भ में यह एक आदिवासी नृत्य था जिसका जन्म 18वीं शताब्दी में ओडिशा के मयूरभंज जंगलों में हुआ था 19वीं शताब्दी में इसने एक युद्धकला शैली (मार्शल आर्ट) का दर्जा प्राप्त कर लिया था, परन्तु पुन: कालांतर में छऊ नृत्य का स्वरूप अधिक कोमल हो गया।
    विशेष -
    · छउ नृत्य भाव भंगिमाओं और नृत्य का मिश्रण है। इसमें  युद्ध की तकनीक विशिष्ट रूप से दिखाई गयी है।
    · छउ नृत्य परंपरागत लोक संगीत की धुन के साथ प्रस्तुत किया जाता है। इसके साथ प्रयुक्त होने वाले वाद्ययंत्रों में तरह-तरह के ढोल, धुम्सा और खर्का के साथ मोहरी एवं शहनाई भी शामिल हैं।
    · वार्षिक सूर्य पूजा के समय में छउ नृत्य विशेष रूप से किया जाता है।
    एक नजर इधर भी - पश्चिम बंगाल में यह नृत्य खुले मैदान में किया जाता है। इसके लिए लगभग 22 फुट चौड़ा एक घेरा बना लिया जाता है, जिसके साथ नर्तकों के आने और जाने के लिए कम से कम पांच फुट का एक गलियारा अवश्य बनाया जाता है। जिस घेरे में नृत्य होता है, वह गोलाकार होता है। बाजे बजाने वाले सभी अपने-अपने बाजों के साथ एक तरफ बैठ जाते हैं। प्रत्येक दल के साथ उसके अपने पांच या छ: बजनिए होते हैं। धेरे में किसी प्रकार की सजावट नहीं की जाती और कोई ऐसी चीज़ भी नहीं होती, जो इस नृत्य के लिए अनिवार्य समझी जाती हो।
    · इस नृत्य शैली में मुखौटों का व्यापक प्रयोग किया जाता है। मुखौटों के माध्यम से ही देवताओं और शत्रुओं में भेद किया जाता है।
    · छउ नृत्य को वर्ष 2012 कि हिन्दी फिल्म बर्फी में शामिल किया हैं।


You need to login to perform this action.
You will be redirected in 3 sec spinner