Super Exam General Studies Dance and Music / नृत्य और संगीत Question Bank शास्त्रीय, अर्धशास्त्रीय एवं उप शास्त्रीय संगीत (संगीत कला भाग 2)

  • question_answer
    दक्षिण भारतीय कर्नाटक संगीत में सत्य कथन कौन सा है?

    A) सप्तक के स्वरों की स्वरावलियों को अलंकारम कहते हैं।

    B) वराजाति प्रारंभिक संगीत शिक्षण का अंग है।

    C) आकार में स्वरों का उच्चारण आलापनम् कहलाता है।

    D) उपरोक्त सभी

    Correct Answer: D

    Solution :

    उत्तर - उपरोक्त सभी
    व्याख्या - उपरोक्त सभी कथन सत्य है। दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में सप्तक के स्वरों की स्वरावलियों को अलंकारम कहते हैं। इनका प्रयोग संगीत अभ्यास के लिये किया जाता है। स्वराजाति प्रारंभिक संगीत शिक्षण का अंग है। लक्षणगीतम् में राग का शास्त्रीय वर्णन किया जाता है। पुरंदरदास के लक्षणगीत कर्नाटक में गाए जाते हैं। कर्नाटक शैली उस संगीत का सृजन करती है जिसे परम्परिक सप्तक में बनाया जाता है। यह भारत के शास्त्रीय संगीत की दक्षिण भारतीय शैली का नाम है, जो उत्तरी भारत की शैली हिन्दुस्तानी संगीत से काफी अलग है। इस शैली में ज्यादातर भक्ति संगीत के रूप में होता है और ज्यादातर रचनाएं हिन्दू देवी देवताओं को संबोधित होता है। इसके अलावा कुछ हिस्सा प्रेम और अन्य सामाजिक मुद्दों को भी समर्पित होता है। वर्णम, जावाली, तिल्लाना, कीर्तनम, कृति आदि कर्नाटक संगीत में प्रमुख अवयव हैं। कर्नाटक संगीत के अवयव -
    वर्णम - वर्णम की तुलना हिंदुस्तानी शैली के ठुमरी के साथ की जा सकती है। इस रूप को वर्णम कहा जाता है क्योंकि प्राचीन संगीत में ‘वर्ण’ नामक स्वरा समूह के कई पैटर्न इसकी बनावट में परस्पर जुड़े हुए हैं। इसके तीन मुख्य भाग पल्लवी, अनुपल्लवी तथा मुक्तयीश्वर होते हैं।
    जावाली- यह प्रेम प्रधान गीतों की शैली है। भरतनाट्यम के साथ इसे विशेष रूप से गाया जाता है। इसकी गति काफी तेज होती है।
    तिल्लाना- उत्तरी भारत में प्रचलित तराना के समान ही कर्नाटक संगीत में तिल्लाना शैली होती है। यह भक्ति प्रधान गीतों की गायन शैली है।
    जवाली- सुगम संगीत के अंतर्गत आने वाली ये गायन शैलियां उत्तर भारतीय संगीत की विधाएं- ठुमरी, टप्पा, गीत आदि के काफी समान है। इन्हें मध्य लय में गाया जाता है। पद्म श्रृंगार प्रधान तथा जवाली अलंकार व चमत्कार प्रधान होती है।
    कीर्तनम - यह भक्ति सामग्री या साहित्य के भक्ति भाव के लिए मूल्यवान है। रागमालिका- इसमें रागों के नामों की कवितावली होती है अर्थात जिस राग का नाम आता है, वहां उसी राग के स्वरों का प्रयोग होता है, जिससे रागों की एक माला सी बन जाती है।
    भजनम्- इसमें जयदेव और त्यागराज आदि संत कवियों की पदावलियां गाई जाती हैं। यह गायन शैली भक्ति भावना से परिपूर्ण होती है।
    कृति - यह कीर्तनम से विकसित हुई। यह संगीत का एक अत्यधिक विकसित रूप है।


You need to login to perform this action.
You will be redirected in 3 sec spinner