चित्रकला परिचय एवं प्रकार (चित्रकला भाग 1)
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चित्रकला परिचय एवं प्रकार (चित्रकला भाग 1)
विश्लेषणात्मक अवधारणा
भारत रंग, खुशी, सौंदर्य और सपने की भूमि है जिस कारण यहां चित्रकला को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। भारत की तरह, भारतीय चित्र भी विशाल, विविध, ऐतिहासिक और अद्वितीय हैं। भारतीय चित्र इसकी सरासर गतिशीलता के साथ देश की कलात्मक भव्यता को प्रदर्शित करता है। यह अजंता, एलोरा, बौद्ध ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों; जैन ग्रंथों या मुगल, डेक्कन और कांगड़ा की लघु:चित्रकला के भित्ति चित्र हों, उन सभी के बीच एक सामान्य विषय भारतीय कला, शास्त्र आदि का प्रदर्शन है। भारतीय चित्रकला को मोटे तौर पर दीवार चित्रों और लघु के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के चित्र इस दो व्यापक श्रेणी के अंतर्गत आते हैं, लेकिन फिर से उनके विकास, उद्भव और शैली के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। लगभग सभी प्राचीन चित्रों को गुफाओं और मंदिरों की दीवार पर उकेरा गया है। लघु चित्रकारी कपड़े और कागज के छोटे कैनवस पर बनाई गई पेंटीग हैं। 6-7 वीं शताब्दी के समृद्ध इतिहास के साथ भारत में लघु चित्रकारी ने अपने सरासर सूक्ष्मता के साथ वास्तविकता को व्यक्त किया। भारतीय चित्रकला गुफा के भीतरी इलाकों से विकसित हुई है और इतिहास में अमर बनी हुई है।
चित्रकला: एक परिचय
- वात्सायन के ग्रन्थ कामसूत्र में शामिल 64 कलाओं में चित्रकला का भी स्थान है।
- विष्णुधर्मोत्तर पुराण में चित्र सकल कलाओं में श्रेष्ठ कहा गया है और उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का प्रदाता भी माना गया है।
- चित्रकला के छह अंग माने जाते हैं - अरुपभेद, प्रमाण, लावनी, भावयोजना, सादृश्य तथा वर्णिकाभंग।
- विशाखदत्त ने अपने ग्रंथ ‘मुद्राराक्षस’ में 6 मुख्य सिद्धांतों अथवा अंगों अथवा षडांगों का उल्लेख किया है।
- भारतीय चित्रकला को सामान्यत: 4 भागों में बांटा जा सकता है
- गुफाओं के अंदर दीवारों में की गई चित्रकारी “भित्ती चित्रकारी” अथवा “गुण्डा चित्रकारी’ कहलाती है।
- लकड़ी, पत्थरों और धातुओं में किया जाने वाला चित्रांकन “चित्रफलक’ होता है।
- विभिन्न वस्त्रों एवं पोशाकों में की जाने वाली चित्रकला को “चित्रपट” कहा जाता था।
- पृष्ठों, छोटे-छोटे कागज या वस्त्रों के टुकड़ों पर की जाने वाली चित्रकला “लघु चित्रकला” कहलाती है।
- प्रागैतिहासिक काल में मनुष्य गुफाओं में रहता था। उसके द्वारा गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारी की गई है।
- प्रागैतिहासिक चित्रकला के उदाहरण उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर महाराष्ट्र के रायगढ़, मध्य प्रदेश के होशंगाबाद, बिहार के शाहाबाद आदि से मिले हैं।
- भीमबेटका में 700 से अधिक शैलाश्रय हैं जिनमें 450 शैलाश्रय चित्रों द्वारा सज्जित हैं। इस स्थल की खोज वर्ष 1957-58 में डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी।
- प्रागैतिहासिक चित्रों में अधिकांश चित्र आखेट के प्राप्त होते हैं। जिसमें पशु-पक्षियों का अंकन मुद्राओं के साथ करने का प्रयास किया गया है।
प्राचीन भारत में चित्रकला
- हड़प्पा सभ्यता में मिट्टी के खिलौनों, मुहरों, बर्तनों आदि पर चित्र उकेरे गये है।
- हड़प्पा के यहां चित्रों में ज्यामितीय आरेखन, मानव, पशु-पक्षियों, वनस्पतियों आदि का चित्रांकन मिलता है। कुछ आरेखनों में जगह भरने हेतु बिन्दुओं और सितारों का प्रयोग किया गया है।
- सिन्धु घाटी की सभ्यता में अधिकांश पात्रों पर लाल रंग चढ़ाकर काले रंग से चित्रकारी की गई है।
- हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद चित्रकला का विकास अवरुद्ध दिखाई देता है।
- वैदिककाल और महाजनपदकाल में भी चित्रकला के सन्दर्भ में विशेष जानकारी उपलब्ध नही हैं।
- छत्तीसगढ़ के सरगुजा की रामगढ़ पहाड़ियों में जोगीमारा और सीताबेंग नामक गुफाओं में 500 ईसवीपू. से 200 ईसवीपू. के बीच लाल, काले एवं सफेद रंगों से चित्रकारी के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।