संवैधानिक निकाय एवं महत्वपूर्ण अन्य निकाय

संवैधानिक निकाय एवं महत्वपूर्ण अन्य निकाय

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             विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

              भारतीय समाज विविधताओं वाला समाज़ है। यहाँ विभिन्न परिवार जाति-जनजाति में सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के कारण, कई लोगों को मूलभूत अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। इन्हीं अधिकारों की प्राप्ति के लिए संविधान में कई संस्थाओं का समय समय द्य पर निर्माण किया गया है। इसमें सर्वप्रथम प्रत्येक व्यक्ति को अपने मत का प्रयोग करने का अधिकार देने के लिए 25 जनवरी, 1950 को स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की स्थापना की गई, जो देश में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव को सुनिश्चित करता है एवं समाज के सभी वर्गों की सहभागिता को चुनाव में मतदान के द्वारा सुनिश्चित करवाता है। इसी प्रकार अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए संविधान के अनुच्छेद-17 के तहत संसद द्वारा वर्ष 1955 में सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम पारित किया गया एवं बाद में अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 पारित किया गया। इसी के परिप्रेक्ष्य में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए 65वें संविधान संशोधन, 1990 द्वारा एक बहुसदस्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की स्थापना की गई परन्तु 89वें संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग को पृथक् कर दिया गया। किसी भी संविधान द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों की सही पहचान तब होती है जब उन्हें लागू किया जाता है। समाज के । गरीब, अशिक्षित और कमजोर वर्गों के लोगों को अपने अधिकारों का उपयोग करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। पीपुल्स युनियन फॉर सिविल लिबर्टिज या पीपुल्स युनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स जैसी संस्थाएँ अधिकारों के हनन के विरुद्ध चैकसी प्रदान करती हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में वर्ष 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया, जो मानव अधिकारों के उल्लघन की जाँच करता है एवं अपनी रिपोर्ट संसद में प्रतिनिधियों के माध्यम से रखता है। इसी प्रकार संविधान में अल्पसंख्यकों, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए भी इसी प्रकार के आयोगों के गठन के प्रावधान किए गए हैं।

  • संवैधानिक निकायः
  1. निर्वाचन आयोगः संविधान के भाग-15 में संविधान के अनुच्छेद-324 से 329-क तक निर्वाचन आयोग तथा निर्वाचन से संबंधित उपबन्ध किये गए हैं।
  • संरचनाः इसमें वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त है। सभी सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकालः 6 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र (जो भी पहले हो) तक पद पर बने रह सकते है।
 
  • निर्वाचन आयोग की शक्तियां एवं कार्यः
      (I) संसद और राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव आयोग करवायगा।
      (II) वह प्रत्येक चुनाव में आदर्श आचार संहिता जारी करता है। चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन एवं सीमांकन।
      (III) यह जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार राजनीतिक दलों को नियंत्रित करता है और चुनाव लड़ने के योग्य होने पर उन्हें पंजीकृत करता है।
      (IV) यह राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को व्यय किये जाने की सीमा की निगरानी रखता है तथा उल्लंघन किये जाने पर नियंत्रित करता है।
      (V) यह उन उम्मीदवारों को निलंबित कर सकता है जो अपने चुनाव खर्च को समय पर जमा नहीं करवा पाते हैं।
  1. संघ लोक सेवा आयोगः संविधान के अनुच्छेद-315 के अधीन 26 जनवरी, 1950 को नए संविधान के प्रवर्तन के साथ ही फेडरल पब्लिक सर्विस कमीशन को स्वायत्त संस्था के रूप में संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया और संघ लोक सेवा आयोग नाम दिया गया। संविधान के अनुच्छेद-315 से 323 तक आयोग के संगठन सदस्यों की नियुक्ति एवं पद मुक्ति स्वतंत्रता, शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन किया गया है।
  • आयोग की संरचनाः संविधान के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग के एक अध्यक्ष व अन्य सदस्यों के जिन का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। वर्तमान में लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष के अतिरिक्त 10 अन्य सदस्य होते हैं।
  • कार्यकालः अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष अथवा अधिकतम 65 वर्ष की आयु, इनमें से जो भी पहले हो, तक होता है। अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
 
  • संघ लोक सेवा आयोग के कार्यः
     (I) विभिन्न केंद्रीय सेवाओं हेतु भर्ती हेतु संघ लोक सेवा आयोग द्वारा प्रतियोगिता परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है।
     (II) अखिल भारतीय सेवाओं केंद्रीय सेवाओं व केंद्रीय प्रशासनिक क्षेत्रों की लोक सेवाओं की नियुक्ति के लिए परीक्षा का आयोजन करता है।
     (III) किसी राज्य के राज्यपाल के अनुरोध पर राष्ट्रपति की स्वीकृति के उपरांत सभी या किन्हीं मामलों पर राज्यों को सलाह प्रदान करता है।
     (IV) जब दो या दो से अधिक राज्य अपने लिए एक संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग के गठन का अनुरोध करें तो ऐसी स्थिति में संघ लोक सेवा आयोग द्वारा परीक्षा का आयोजन किया जाता है।
     नोटः संघ लोक सेवा आयोग का गठन वर्ष 1926 में लिए आयोग की अनुशंसा पर किया गया था।
  1. वित्त आयोगः संविधान के अनुच्छेद 280 के अनुसार वित्त आयोग का गठन राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक वर्ष में किया जाता है। यह केंद्र एवं राज्यों के मध्य राजस्व के वितरण की सिफारिश करता है।
  • संरचनाः एक अध्यक्ष एवं चार अन्य सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। इसके तहत वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ निर्धारित की गई है।
  • अध्यक्षः सार्वजनिक कार्य का अनुभव रखने वाला व्यक्ति हो।
  • सदस्यः
       (I) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में योग्यता रखता हो।
       (II) लोक वित्त का ज्ञाता हो।
       (III) अर्थशास्त्र का विशेषज्ञ हो।
       (IV) वित्तीय प्रशासन का जानकार हो।
        नोटः संविधान में योग्यता का कोई उल्लेख नहीं है उपर्युक्त. योग्यता संसद द्वारा निर्धारित की गई हैं।
  • वित्त आयोग की शक्ति और कार्य
      (I) केंद्र एवं राज्यों के मध्य कर से प्राप्त राजस्व के बंटवारे के विषय पर सलाह देना।
      (II) केंद्र द्वारा राज्यों को दी जाने वाली अनुदान के विषय में सलाह देना।
      (III) राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों और नगर पालिकाओं के संशोधन के पूरक के लिए राज्य के कोष को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपायों के रूप में राष्ट्रपति को सिफारिश करना।
  1. अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोगः
  • स्थापनाः 12 मार्च 1992 को 65 वें संविधान संशोधन 1990 के द्वारा की गई परन्तु 89 संविधान संशोधन 2003 के द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग को पृथक कर दिया गया। अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय आयोग का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-338 और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग अनुच्छेद-338 (क) में किया गया है।
  • संरचनाः एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष एवं तीन सदस्य
  • आयोग के कार्यः
  1. अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करना।
  2. अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के हितों का उल्लंघन होने पर मामलों की जांच एवं सुनवाई करना।
  3. अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए प्रयास करना।
  1. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोगः संविधान के भाग -16 अनुच्छेद 340 में पिछड़े वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग का प्रावधान किया गया था जिसकी स्थापना 2 अप्रैल, 1993 को की गई थी। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 की जगह राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 2018 प्रभावी हो गया है।
  • संरचनाः एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा तीन अन्य सदस्य। यह राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं तथा उनकी सेवा की शर्ते तथा कार्यकाल का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
       कार्यः
  • अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए संवैधानिक संरक्षण के मामलों की जांच सुनवाई करना, जो अन्य पिछड़ा वर्ग के हितों का उल्लंघन करते है।
  • अन्य पिछड़ा वर्ग के सामाजिक तथा आर्थिक विकास के लिए प्रयास करना।
       टिप्पणी-जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट की अनुशंसाओं का इंतजार किये बगैर सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के बाबत 123वें संशोधन विधेयक को प्रस्तुत कर दिया और इसे संसद को दोनों सदनों में पारित कर दिया गया। बाद में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 14 अगस्त, 2018 को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिसूचित कर दिया और इसकी अधिसूचना गज़ट ऑफ इंडिया के माध्यम से जारी कर दी गई। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 की जगह राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 2018 प्रभावी हो गया है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल गया है और इसे अनुसूचित जाति आयोग को प्रदत्त शक्तियों के समकक्ष शक्तियां प्रदान कर दी गयी हैं।
  • अन्य महत्वपूर्ण निकायः
  1. नीति आयोगः नीति आयोग (National Institution for Transforning India) भारत सरकार द्वारा गठित एक नया संस्थान है, जिसे योजना आयोग के स्थान पर बनाया गया है। 1 जनवरी, 2015 को नीति आयोग योजना आयोग (15 मार्च, 1950) के स्थान पर अस्तित्व में आया। यह संस्थान सरकार के थिंक टैंक के रूप में सेवाएं प्रदान करेगा। नीति आयोग ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के लिए तंत्र विकसित करेगा और इसे उत्तरोत्तर उच्च स्तर तक पहुंचाएगा। नीति आयोग कार्यक्रमों और नीतियों के क्रियान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन और क्षमता निर्माण पर जोर देगा। नीति आयोग का विजन बल प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को ’राष्ट्रीय एजेंडा’ का प्रारूप उपलब्ध कराना है। संरचनाः नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) की संरचना इस प्रकार हैः
  1. भारत के प्रधानमंत्रीः अध्यक्ष।
  2. गवर्निंग काउंसिल में राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्रशासित प्रदेशों उप-राज्यपाल शामिल होंगे।
  3. विशिष्ट मुद्दों, जिनका संबंध एक से अधिक राज्य या क्षेत्र से हो, को देखने के लिए क्षेत्रीय परिषदें गठित की जाएंगी। इन क्षेत्रीय परिषदों की अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष करेंगे।
  4. संबंधित कार्य क्षेत्र की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ और कार्यरत लोग, विशेष आमंत्रित के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा नामित किए जाएंगे।
  5. पूर्णकालिक संगठनात्मक ढांचे में (प्रधानमंत्री अध्यक्ष होने के अलावा) निम्न होंगेः
     (I) उपाध्यक्षः प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त (प्रथम उपाध्यक्षः अरविंद पनगढ़िया, अर्थशास्त्री)
     (II) सदस्यः पूर्णकालिक (अधिकतम 5)
     (III) अंशकालिक सदस्यः विश्वविद्यालय शोध संस्थानों और संबंधित संस्थानों से अधिकतम दो पदेन सदस्य, अंशकालिक सदस्य बारी के आधार पर होंगे।
     (IV) पदेन सदस्यः केन्द्रीय मंत्रिपरिषद से अधिकतम चार सदस्य प्रधानमंत्री द्वारा नामित होंगे। यदि बारी के आधार को प्राथमिकता दी जाती है तो यह नियुक्ति विशिष्ट कार्यकाल के लिए होगी।
     (V) मुख्य कार्यकारी अधिकारीः भारत सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी को निश्चित कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
     (VI) सचिवालय आवश्यकता के अनुसार बनाया जाएगा।
  1. लोकपाल एवं लोकायुक्तः
  1. लोकपाल और लोकायुक्त उत्पति एवं विकासः वर्ष 1809 में स्वीडन में आधिकारिक तौर पर विश्व में सर्वप्रथम लोकपाल का उद्घाटन किया गया। इसके बाद 1919 में फिनलैंड 1955 में डेनमार्क, तथा 1962 में नॉर्वे ने इस प्रणाली को अपनाया गया था। ग्रेट ब्रिटेन ने इसे 1967 में अपनाया और इस तरह की व्यवस्था करने वाला लोकतांत्रिक विश्व का प्रथम सबसे बड़ा देश बन गया । भारत में, संवैधानिक लोकपाल की अवधारणा को पहली बार 1960 में संसद में कानून मंत्री अशोक कुमार सेन द्वारा प्रस्तावित किया गया।
  2. लोकपाल एवं लोकायुक्त शब्द एल. एम. सिंघवी द्वारा दिए गए है। वर्ष 1968 में, लोकपाल विधेयक को लोकसभा में पारित कर दिया गया था पर लोकसभा के विघटन होने पर वह समाप्त हो गया, इसके उपरांत यह लोकसभा में कई बार समाप्त हो गया है। वर्ष 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिफारिश की कि लोकपाल का गठन बिना किसी देर के अतिशीघ्र किया जाना चाहिए। इसके उपरांत वर्ष 2011 में सरकार ने प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों के एक समूह का गठन किया, जो कि भ्रष्टाचार से निपटने के उपाय सुझाये एवं लोकपाल विधेयक के प्रस्ताव की जांच करें। वर्ष 2013 में, अन्ना हजारे के नेतृत्व में ’भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ’ आंदोलन चलाया, जिसने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) पर दबाव डाला तथा संसद के दोनों सदनों में लोकपाल तथा लोकायुक्त विधेयक-2013 पारित किया गया। इस जिसे 1 जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति से स्वीकृति प्राप्त हुई तथा यह 16 जनवरी, 2014 को लागू हो गया।
  • सदस्यः लोकपाल में एक अध्यक्ष तथा अधिकतम 8 सदस्य हो सकते हैं। इसमें 4 न्यायिक सदस्य, 4 सदस्य राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग राष्ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग, अल्पसंख्यक तथा महिला आयोग में से होने चाहिए।
  • अध्यक्षा एवं सदस्यों का चयन एक चयन समिति के द्वारा होगा चयन समिति के सदस्य - (I) प्रधानमंत्री, (II) लोकसभा अध्यक्ष, (III) लोकसभा में विपक्ष का नेता, (IV) भारत के मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश्ज्ञं
  • भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित एक प्रसिद्ध न्यायविद्
  • अध्यक्ष एवं प्रत्येक सदस्य चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा अपने हाथ और मुहर के तहत वारंट द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
  • कार्यकालः कार्यालय में प्रवेश करने से 5 वर्ष तक तथा 70 वर्ष की आयु पूरा करने तक।
  • केन्द्र में लोकपाल तथा राज्य स्तर पर लोकायुक्त की स्थापना। अतः यह समान रूप से सतर्कता तथा भ्रष्टाचार विरोधी मार्ग प्रदान करते है, केन्द्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर ।
  • लोकायुक्तः लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम-2013 को कानूनी रूप मिलने के पूर्व कई राज्यों ने अपने राज्य में लोकायुक्त नियुक्त कर रखे थे। सर्वप्रथम लोकायुक्त का गठन सन् 1971 ई. में महाराष्ट्र में हुआ था। यद्यपि ओडिशा में यह अधिनियम 1970 ई. में पारित हुआ। परन्तु उसे 1983 में लागू किया गया।
       भारत के विभिन्न राज्यों में नियुक्त लोकायुक्त निम्न हैः

        

राज्य
स्थापना
राज्य
स्थापना
ओडिशा
1970
महाराष्ट्र
1971
राजस्थान
1973
बिहार
1974
उत्तर प्रदेश
1975
मध्य प्रदेश
1983
आंध्र प्रदेश
1983
हिमाचल प्रदेश
1983
कर्नाटक
1985
गुजरात
1986
पंजाब
1995
असम
1985
दिल्ली
1995
केरल
1999
झारखण्ड
2001
छत्तीसगढ़
2002
हरियाणा
2002
उत्तराखण्ड
2002
जम्मू-कश्‍मीर
2002
पश्चिम बंगाल
2003
त्रिपुरा
2008
गोवा
2011

 

      3.राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगः राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 1993 में ’मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993’ के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जो कि संसद द्वारा बनाया गया है।
  • संरचनाः आयोग के सदस्यः
  1. एक अध्यक्ष, जो सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अथवा किसी एसे व्यक्ति जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो।
  2. एक सदस्य, जो सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो।
  3. एक सदस्य जो उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रहा हो।
  4. दो सदस्य, मानवाधिकारों से संबंधित विषयों में व्यावहारिक अनुभव के ज्ञान वाले व्यक्तियों को नियुक्त किया जायेगा। इसके अतिरिक्त, आयोग के पदेन सदस्य होंगे, जो अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष, अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग अनुसूचित जनजातियों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग।
  • विशेषः मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2019 में उपबंधित प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष और दिव्यांगजनों संबंधी मुख्य आयुक्त को आयोग के सदस्य के रूप में सम्मिलित किया गया है।
  • नियुक्तिः एनएचआरसी के अध्यक्ष एवं सदस्यों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा छह सदस्यों की समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाता है, जो इस प्रकार है
  1. प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), 2. गृह मंत्री, 3. लोकसभा में विपक्ष का नेता, 4. राज्यसभा में विपक्ष का नेता, 5. लोकसभा अध्यक्ष, 6. राज्यसभा के उपाध्यक्ष।
  • एनएचआरसी का कार्यकालः 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) जिस दिन वह अपने कार्यालय में प्रवेश करता है।
  • आयोग के कार्य
  • किसी सरकारी अधिकारी द्वारा इस तरह के उल्लंघन को रोकने के लिए भारत सरकार के अधिकारों के उल्लंघन या लापरवाही पर निष्पक्ष या प्रतिक्रियात्मक रूप में पूछताछ करना।
  • न्यायालय के अवकाश रो, मानवाधिकारों से संबंधित न्यायालय की कार्यवाही में हस्तक्षेप करना।
  • पीडितों और उनके परिवारों को राहत देने के बारे में सिफारिशें करें। मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए लागू होने वाले समय और संविधान या किसी कानून के तहत प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों की समीक्षा करें तथा उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करें।
  • मानवाधिकारों पर संधियों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय उपकरणों का अध्ययन करना और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सिफारिशें करना।
  • समाज के विभिन्न वर्गों के बीच प्रमाव अधिकारों की शिक्षा में संलग्न है और प्रकाशनों, मीडिया, सेमिनारों और अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देते है।
  • मानव अधिकारों के क्षेत्र में काम करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों और संसाधनों के प्रयासों को प्रोत्साहित करना। ऐसे अन्य कार्य, जो कि मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक हो सकते हैं।
  • किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड की आवश्यकता या किसी भी न्यायालय या कार्यालय से उसकी प्रतिलिपि कराना
  1. राष्ट्रीय महिला आयोगः महिलाओं के उत्थान, विकास के लिये इस आयोग की स्थापना 31 जनवरी, 1992 की गई। पहले आयोग का गठन 31 जनवरी 1992 को किया गया, जिसके अध्यक्ष जयंती पटनायक थे। संरचनाः आयोग एक बहु-सदस्यीय निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष और पाँच सदस्य होते हैं, जिन्हें केन्द्र सरकार द्वारा मनोनीत किया जाता है। एक सदस्य, केन्द्र सरकार द्वारा नामित सचिव होता है। सभी सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है परन्तु वे अपना पद किसी भी समय केंद्र सरका को त्याग-पत्र देकर पद मुक्त हो सकते है।
  • आयोग के कार्यः
  1. महिलाओं को कानूनी सुरक्षा तथा संबंधित कानूनों की समीक्षा करना।
  2. महिलाओं की समस्याओं के निवारण की सुविधा के लिए या महिलाओं को प्रभावित करने वाली नीति से संबंधित विषयों में सरकार को सलाह देना।
  3. महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव और उत्पीड़न, कार्यस्थल पर यौन शोषण जैसी समस्याओं की जाँच करना और इस मामले में सक्षम अधिकारी को सुझाव देना।
  1. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोगः वर्ष 1978 में गृह मंत्रालय के प्रस्ताव में अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की परिकल्पना की गई थी। अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना 1978 में कार्यकारी संकल्प के माध्यम से की गई थी। एनसीएम अधिनियम, 1992 के अधिनियम के साथ, अल्पसंख्यक आयोग का नाम बदलकर, ’राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग’ कर दिया गया और, 1993 में पहला वैधानिक आयोग गठित किया गया।
  • संरचनाः एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पांच सदस्य होते है।
  • कार्यकालः आयोग के अध्यक्ष तथा सभी सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है।
  • आयोग के कार्यः
  1. संघ और राज्यों के तहत अलसंख्यकों के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
  2. संविधान संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा अधिनियमित कानूनों में प्रदत अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा उपायों के काम की निगरानी करना।
  3. राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए वैधानिक व कल्याणकारी उपाय से संबंधित सुझाव देना।
      टिप्पणी-23 अक्टूबर, 1993 को अधिसूचना जारी करके, भारत सरकार द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय में पांच धार्मिक समुदायों को शामिल किया गया था, जो निम्नलिखित है1. मुस्लिम 2. सिख, 3. ईसाई, 4. बौद्ध 5. पारसी)
      विशेष-जैन धर्म को 27 जनवरी, 2014 को भारत सरकार द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय में शामिल कर लिया गया है। इस प्रकार वर्तमान में कुल 6 समुदायों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा प्रदान किया गया है।
  1. केन्द्रीय सतर्कता आयोगः केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना फरवरी 1964 में केन्द्र सरकार द्वारा श्री के. संथानम् की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर की गई।
  • आयोग के सदस्यः एक मुख्य सतर्कता आयुक्त तथा दो अन्य सदस्य, एक समिति की सिफारिशों पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। समिति में निम्न लोग होते हैं
  1. प्रधानमंत्री-अध्यक्ष, 2. गृह मंत्री,
  2. लोक सभा में विपक्ष का नेता।
  • आयोग का निष्कासनः राष्ट्रपति द्वारा किए संदर्भ पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा साबित किए गए दुव्र्यवहार या अक्षमता के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा।
  • आयोग के कार्यः केन्द्र सरकार के निर्देश पर ऐसे किसी विषय की जाँच करना, जिसमें केन्द्र सरकार या इसके प्राधिकरण के किसी कर्मचारी द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत कोई अपराध किया हो।
  1. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत अपराधों की जाँच से संबंधित दिल्ली विशेष पुलिस बल के कामकाज की देखरेख करना, जाँच के दौरान निर्देश देना तथा की गई जाँच की समीक्षा करना।
  2. केन्द्र सरकार और इसके प्राधिकरणों को ऐसे किसी मामले में सलाह देना एवं सतर्कता प्रशासन पर नजर रखना।
  1. केन्द्रीय सूचना आयोगः सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत एक अधिकारिक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन किया गया है।
  • संरचनाः एक मुख्य सूचना आयोग एवं 10 से कम सूचना आयुक्तों का प्रावधान है। वर्तमान में आयोग में कुल 7 सदस्य हैं, जिसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त 6 सदस्य हैं।
  • नियुक्तिः राष्ट्रपति द्वारा एक 3 सदस्य समिति की सिफारिश पर की जाती है। इस समिति में निम्नलिखित सदस्य शामिल होते हैः
  1. प्रधानमंत्री अध्यक्ष, 2. लोकसभा के विपक्ष के नेता, 3. प्रधानमंत्री द्वारा नामित कैबिनेट का मंत्री।
  • कार्य एवं शक्तियाँ:
  1. केन्द्र सूचना आयोग को केन्द्र विषय में तथा राज्य सूचना आयोग को राज्य सरकार के मामले में एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
  2. आयोग को जाँच करते समय सिविल कोर्ट की शक्ति प्राप्त होती है।
  3. किसी व्यक्ति की शिकायत प्राप्त करना तथा पूछताछ करना आयोग का कर्तव्य है।
  1. केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सी.बी.आई.): सी.बी.आई. कोई वैधानिक संस्था नहीं है। इसे जाँच संबंधी शक्तियाँ दिल्ली विशेष पुलिस अधिष्ठान अधिनियम, 1946 से प्राप्त होती है। केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की स्थापना वर्ष 1963 में हुई थी। इससे पहले इस संगठन को विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के नाम से जाना जाता था। वर्तमान में सी.बी.आई. देश की शीर्ष अन्वेषण अभिकरण (ऐजेन्सी) है।
  • सी.बी.आई. के कार्यः
  1. केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, घूसखोरी तथा दुराचार से संबंधित विषयों की जाँच करना।
  2. भ्रष्टाचार निरोधक, ऐजेंसियों तथा विभिन्न राज्य पुलिस बलों के मध्य समन्वय स्थापित करना।
  3. राजकोषीय तथा आर्थिक कानून के उल्लंघन के विषयों की जाँच करना, जैसे-सीमा शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क, विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम आदि की अवमानना के विषय।
  4. राज्य सरकार के अनुरोध पर किसी सार्वजनिक महत्व के विषय की जाँच करना।
  5. अपराध से संबंधित आँकडों का अनुरक्षण तथा अपराधिक सूचनाओं का प्रसार करना आदि।

 

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