स्वाधीनता संग्राम (1935-1939 ई.)
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स्वाधीनता संग्राम (1935-1939 ई.)
विश्लेषणात्मक अवधारणा
आजादी की इस यात्रा में 1935 र्इ. का अधिनियम लागू हो चुका था। 1937 र्इ. के प्रारंभ में प्रांतीय विधान सभाओं हेतु चुनाव कराने की घोषणा कर दी गयी तथा इसी के साथ ही सत्ता में भागीदारी के प्रश्न पर द्वितीय चरण की रणनीति पर बहस प्रारंभ हो गयी। इस बात पर सभी राष्ट्रवादियों में आम सहमति थी कि 1935 र्इ. के अधिनियम का पूरी तरह विरोध किया जाये। किंतु मुख्य प्रश्न यह था कि ऐसे समय में जबकि आंदोलन चलाना असंभव है इसका विरोध किस तरह किया जाये। इस बात पर पूर्ण सहमति थी कि व्यापक आर्थिक और राजनैतिक कार्यक्रम को आधार बनाकर कांग्रेस को ये चुनाव लड़ना चाहिए। इससे जनता में उपनिवेशी शासन के विरुद्ध चेतना का और प्रसार होगा। लेकिन चुनाव के पश्चात क्या किया जायेगा यह तय नहीं था। यदि चुनावों में कांग्रेसियों को प्रांतों में बहुमत मिला तो उसे सरकार बनानी चाहिए या नहीं? इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रवादियों के मध्य तीव्र मतभेद थे। इस मुद्दे पर बहस ने, एक बार पुन: वामपंथियों एवं दक्षिणपंथियों के मध्य उग्र रूप धारण कर लिया।
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (कांग्रेस समाजवादी दल) स्थापना
उद्देश्य
इस पार्टी की स्थापना का उद्देश्य निम्न मांगों में निहित था
जुलार्इ, 1931 में बिहार में समाजवादी दल की स्थापना जयप्रकाश नारायण, फूलन प्रसाद वर्मा एवं कुछ अन्य लोगों ने मिलकर की। 1933 र्इ. में पंजाब में भी एक समाजवादी दल का गठन किया गया। ‘समाजवाद ही क्यों’ पुस्तक की रचना जयप्रकाश नारायण ने तथा ‘समाजवादी एवं राष्ट्रीय आन्दोलन’ पुस्तक की रचना आचार्य नरेन्द्र देव ने की थी।
अन्य दलों की स्थापना
प्रांतीय विधान सभा चुनाव (1937 र्इ.) -
कांग्रेस का चुनाव घोषणा-पत्र
कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में 1935 र्इ. के भारत शासन अधिनियम को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया। इसके अतिरिक्त उसने नागरिक स्वतंत्रता की बहाली, राजनैतिक बंदियों की रिहायी, कृषि के ढांचे में व्यापक परिवर्तन, भू-राजस्व और लगान में उचित कमी, किसानों को कर्ज से राहत तथा मजदूरों को हड़ताल करने, विरोध प्रदर्शन करने तथा संगठन बनाने के अधिकार देने इत्यादि का वचन दिया। गांधी जी ने किसी भी चुनावी सभा को संबोधित नहीं किया।
गांधीजी की स्थिति
इन्होंने कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में सत्ता में भागीदारी का विरोध किया किंतु 1936 र्इ. के प्रारंभ होने तक वे कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर देने के पक्ष में राजी हो गये। 1936 र्इ. के प्रारंभ में लखनऊ अधिवेशन और 1937 र्इ. के अंत में फैजपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने चुनावों में भाग लेने, प्रशासन में भागीदारी के विरोध को स्थगित करने तथा सत्ता में भागीदारी के मुद्दे पर चुनाव के पश्चात विचार करने का निर्णय लिया।
कांग्रेस का प्रदर्शन
कांग्रेस ने 1161 सीटों में से 716 स्थानों पर चुनाव लड़ा। असम, बंगाल, पंजाब, सिंध और उ. प. सीमांत प्रांत को छोड़कर शेष सभी प्रांतों में उसने स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया तथा बंगाल, असम और उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत में वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।
कांग्रेस का त्रिपुरी संकट (1939)
व्यक्तिगत सत्याग्रह (17 अगस्त 1940)
3 सितम्बर 1939 को भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने यह घोषणा की, कि भारत भी द्वितीय विश्व युद्ध में सम्मिलित है। वायसराय ने इस घोषणा से पूर्व किसी भी राजनैतिक दल से परामर्श नहीं किया। इससे कांग्रेस असंतुष्ट हो गर्इ। महात्मा गांधी ने भी ब्रिटिश सरकार की युद्धनीति का विरोध करने के लिए 1940 र्इ. में अहिंसात्मक ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ आरम्भ किया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह के उद्देश्य
व्यक्तिगत सत्याग्रह का प्रथम चरण
अगस्त प्रस्ताव (8 अगस्त 1940)
भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने 8 अगस्त 1940 को शिमला ‘ से एक वक्तव्य जारी किया, जिसे अगस्त प्रस्ताव कहा गया। यह प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा ब्रिटेन से भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य को लेकर पूछे गए सवाल के जबाव में लाया गया. था। यह भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो के द्वारा जारी किया गया औपचारिक वक्तव्य था, जिसने संविधान निर्माण प्रक्रिया की नींव रखी और कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन को सहमति प्रदान की।
अगस्त प्रस्ताव के प्रावधान
द्वितीय विश्वयुद्ध की राजनीति एवं क्रिप्स मिशन (1942)
पृष्ठभूमि - भारत के राजनैतिक गतिरोध को दूर करने के उद्देश्य से ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने ब्रिटिश संसद सदस्य तथा मजदूर नेता सर स्टेफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में 23 मार्च 1942 को एक मिशन भारत भेजा। हालांकि इस मिशन का वास्तविक उद्देश्य, युद्ध में भारतीयों को सहयोग प्रदान करने हेतु उन्हें फुसलाना था। सर क्रिप्स, ब्रिटिश युद्ध मंत्रिमंडल के सदस्य भी थे तथा उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का सक्रियता से समर्थन किया।
क्रिप्स मिशन के मुख्य प्रावधान
डोमिनियन राज्य के दर्जे के साथ एक भारतीय संघ की स्थापना की जायेगीय यह संघ राष्ट्रमंडल के साथ अपने संबंधों के निर्धारण में स्वतंत्र होगा
युद्ध की समाप्ति के पश्चात् नये संविधान निर्माण हेतु संविधान निर्मात्री परिषद का गठन किया जायेगा।
ब्रिटिश सरकार, संविधान निर्मात्री परिषद द्वारा बनाये गये नये संविधान को अग्रलिखित शतों के अधीन स्वीकार करेगा
(i) संविधान निर्मात्री परिषद द्वारा निर्मित संविधान जिन प्रांतों को स्वीकार नहीं होगा वे भारतीय संघ से पृथक होने के अधिकारी होंगे। पृथक होने वाले प्रान्तों को अपना पृथक संविधान बनाने का अधिकार होगा। देशी रियासतों को भी इसी प्रकार का अधिकार होगाय तथा (ii) नवगठित संविधान निर्मात्री परिषद तथा ब्रिटिश सरकार सत्ता के हस्तांतरण तथा प्रजातीय तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के मुद्दे को आपसी समझौते द्वारा हल करेंगे।
क्रिप्स मिशन की असफलता
क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव भारतीय राष्ट्रवादियों को संतुष्ट करने में असफल रहे तथा साधारण तौर पर भारतीयों के किसी भी वर्ग की सहमति नहीं प्राप्त कर सके। विभिन्न दलों तथा समूहों ने अलग-अलग आधार पर इन प्रस्तावों का विरोध किया।
कांग्रेस ने निम्न आधार पर प्रस्तावों का विरोध किया
मुस्लिम लीग ने भी क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया
गांधीजी ने क्रिप्स प्रस्तावों पर टिप्पणी करते हुये कहा कि ‘‘यह आगे की तारीख का चेक था, जिसका बैंक नष्ट होने वाला था’’। जवाहरलाल नेहरू ने क्रिप्स प्रस्तावों के संबंध में कहा कि ‘‘क्रिप्स योजना को स्वीकार करना भारत को अनिश्चित खण्डों में विभाजित करने के लिये मार्ग प्रशस्त करना था।’’
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