राष्ट्रवादी आंदोलन (1905-1918 ई.)
Category :
राष्ट्रवादी आंदोलन
विश्लेषणात्मक अवधारणा
स्वतंत्रता का पौधा शहीदों के रक्त से फलता है। भारत में स्वतंत्रता का पौधा फलने के लिए दशकों से क्रांतिकारी अपना रक्त बहाते रहे हैं। अब हम स्वाधीनता आन्दोलन के द्वितीय चरण में प्रवेश करते हैं। उन्नीसवीं सदी के अंतिम वषोर्ं विशेषत: 1890 र्इ. के पश्चात् भारत में उग्र राष्ट्रवाद का उदय प्रारंभ हुआ तथा 1905 र्इ. तक आते-आते इसने पूर्ण स्वरूप धारण कर लिया। किंतु इसके पीछे क्या कारण थे? कांग्रेस की अनुनय-विनय की नीति से ब्रिटिश सरकार पर कोर्इ विशेष प्रभाव नहीं पड़ा तथा वे शासन में मनमानी करते रहे। इसके प्रतिक्रियास्वरूप इस भावना का जन्म हुआ कि स्वराज्य मांगने से नहीं अपितु संघर्ष से प्राप्त होगा। संवैधानिक आंदोलन से भारतीयों का विश्वास उठ गया। अत: संघर्ष द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने की जिस भावना का जन्म हुआ उसे ही उग्र राष्ट्रवाद की भावना कहते हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक दल इसी भावना का कट्टर समर्थक था। इस दल का मत था कि कांग्रेस का ध्येय स्वराज्य होना चाहिए, जिसे वे आत्मविश्वास या आत्म-निर्भरता से प्राप्त करें। यह दल उग्रवादी कहलाया।
स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन
बंगाल विभाजन (जो कि 1903 र्इ. में सार्वजनिक हुआ तथा 1905 र्इ. में लागू किया गया) के विरोध में प्रारम्भ हुआ। बंगाल विभाजन के पीछे सरकार की वास्तविक मंशा बंगाल को दुर्बल करना था, क्योंकि उस समय बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का प्रमुख केंद्र था। बंगाल विभाजन के लिये सरकार ने तर्क दिया कि बंगाल की विशाल आबादी के कारण प्रशासन का सुचारु रुप से संचालन कठिन हो गया है। यद्यपि कुछ सीमा तक सरकार का यह तर्क सही था, किन्तु उसकी वास्तविक मंशा कुछ और ही थी। विभाजन के फलस्वरूप सरकार ने बंगाल को दो भागों में विभक्त कर दिया। पहले भाग में पूर्वी बंगाल तथा असम और दूसरे भाग में शेष बंगाल को रखा गया।
उदारवादियों का बंगाल विभाजन विरोधी अभियान - (1903-1905 र्इ)
बंगाल विभाजन के विरोध में सक्रिय भूमिका निभाने वाले प्रमुख उग्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय एवं अरविन्द घोष आदि थे।
विरोध के तरीके
आंदोलन का सामाजिक आधार- छात्रों, महिलाओं, जमींदारों का एक वर्ग तथा शहरी निम्न वर्ग एवं साधारण वर्ग। शहरों एवं कस्बों के मध्य वर्ग ने पहली बार किसी राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी, जबकि मुसलमान सामान्यतया आंदोलन से पृथक रहे।
बंगाल विभाजन का रद्द होना- क्रांतिकारी आतंकवाद के उभरने के भय से 1911 र्इ. में सरकार ने बंगाल विभाजन रद्द कर दिया।
स्वदेशी आन्दोलन की असफलता के कारण
कांग्रेस का सूरत विभाजन (1907 र्इ.)
इस अधिवेशन की अध्यक्षता रास बिहारी बोस ने की।
प्रमुख कारण
इस अधिवेशन में कांग्रेस नरम एवं गरम दल में विभाजित हो गर्इ जिन्हे क्रमश: उदारवादी एवं उग्रवादी कहा गया।
स्वदेशी आंदोलन के दमन हेतु सरकार द्वारा किये गये प्रयास
प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व क्रांतिकारी गतिविधियां -
किया गया।
विदेशों में क्रांतिकारी आतंकवाद
इंग्लैंड
की स्थापना।
अमेरिका तथा कनाडा
जर्मनी
लाला हरदयाल के अमेरिका से जर्मनी पहुंचने पर क्रांतिकारी गतिविधियों में तेजी आर्इ जहां वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय प्रमुख नेता थे।
होमरूल लीग आंदोलन- होमरूल लीग आंदोलन, प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् उत्पन्न हुर्इ परिस्थितियों में एक प्रभावशाली प्रतिक्रिया के रूप में प्रारम्भ हुआ। आयरलैंड के होमरूल लीग की तर्ज पर इसे भारत में एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने प्रारम्भ किया।
तिलक की होमरूल लीग- तिलक ने अप्रैल, 1916 में इसकी स्थापना की। इसकी शाखायें महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रांत एवं बरार में खोली गयीं। इसे 6 शाखाओं में संगठित किया गया।
एनी बेसेंट की होमरूल लीग- एनी बेसेंट ने सितम्बर, 1916 में मद्रास में इसकी स्थापना की। शेष भारत में इसकी लगभग 200 शाखायें खोली गयीं। कालान्तर में कर्इ अन्य नेता होमरूल लीग आंदोलन से जुड़ गये, जिनमें नरमपंथी कांग्रेसी भी थे।
कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन, 1916
इस अधिवेशन की अध्यक्षता अंबिकाचरण मजूमदार ने की।
You need to login to perform this action.
You will be redirected in
3 sec