सिंधु घाटी / हड़प्पा सभ्यता
Category :
विश्लेषणात्मक अवधारणा
सैन्धव सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी, जिसका ज्ञान इसके पुरातात्विक अवषेषों से होत है इसकी सबसे बड़ी विषेषता थी पर्यावरण के अनुकूल इसका अद्भुत नगर नियोजन सिन्धु घाटी की सभ्यता का उद्धभव काल में भारतीय उपमहाद्वीप के पष्चिमोत्तर क्षेत्र में हुआ था, जो वर्तमान भारत, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों में अवस्थित है इस काल की सभी संस्कृतियों में सैन्धव सभ्यता सबसे विकसित, विस्तृत और उन्नत अवस्था में थी इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते है क्योंकि सर्वप्रथम 1921 ई. हड़प्पा नामक स्थान से ही इस संस्कृति के सम्बन्ध में जानकारी मिली थी
सिंधु घाटी सभ्यता
भारत का विधिवत इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है, जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं यह सभ्यता लगभग 2500 ई. पू. दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग में फैली हुई थी, जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी
भूमिका
इस महत्वपूर्ण सभ्यता की एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है इस सभ्यता के व्यापक क्षेत्र से हम अंदाजा लगा सकते है कि अपने समय में यह सभ्यता कितनी विस्तृत रही होगी इस सभ्यता का क्षेत्र मेसोपोटामिया व नील नदी की सभ्यता से 12 गुना बड़ा है इस सभ्यता को 5 नामों से जाना जाता है
हड़प्पा सभ्यता (नामकरण)
इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि सबसे पहले हड़प्पा नमक स्थान पर इसे खोजा गया था इस सभ्यता का क्षेत्र सिन्धु नदी के किनारे पर बहुत ही विस्तृत रूप से फैला हुआ है इसलिए इसे सिन्धु घाटी सभ्यता भी कहा गया है इसका क्षेत्र सरस्वती नदी के किनारे भी विस्तृत था। इसलिए इसे सरस्वती सभ्यता भी कहते हैं इसके अतिरिक्त इसे प्रथम नगरीय सभ्यता एवं कांस्ययुगीन सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है
सिंधु घाटी सभ्यता का कालक्रम
इस सभ्यता के कालक्रम के बारे में भी खोजकर्ताओं के अलग-अलग मत थे। वहीं सर जॉन मार्शल ने इस सभ्यता को 3250-2750 ई. पू. का बताया था, पर कार्बन डेटिंग तकनीक के द्वारा सिन्धु घाटी सभ्यता को 2350-1750 ई. पू. का बताया गया है
नोटः कार्बन डेटिंग ऐसी तकनीक है, जिसमें C - 14 कार्बन के द्वारा अवशेषों की आयु ज्ञात की जा सकती है
§ सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार - भौगोलिक व सामाजिक दृष्टि से यह सभ्यता विश्व की सबसे बड़ी सभ्यता थी इसका क्षेत्र पूर्व में उत्तर प्रदेश के अलम;कद्ध गीरपुर से पश्चिम में सुतकांगेडोर तक और उत्तर में जम्मू कश्मीर के मांडा से दक्षिण के दायमाबाद जो कि महाराष्ट्र में हैए तक फैला हुआ है
§ सैन्धव सभ्यता का नगर नियोजन
· हड़प्पाई सभ्यता अपनी नगरीय योजना प्रणाली के लिये जानी जाती है
· मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने.अपने दुर्ग थेए जो नगर से कुछ ऊंचाई पर स्थित होते थेए जिसमें अनुमानतः उच्च वर्ग के लोग निवास करते थे
· दुर्ग से नीचे सामान्यतः ईंटों से निर्मित नगर होते थेए जिनमें सामान्य लोग निवास करते थे
हड़प्पा सभ्यता की एक ध्यान देने योग्य बात यह भी है इस सभ्यता में ग्रिड प्रणाली मौजूद थी जिसके अंतर्गत सडकें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं
· जली हुई ईंटों का प्रयोग हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता थी क्योंकि समकालीन मिस्र में मकानों के निर्माण के लिये शुष्क ईंटों का प्रयोग होता था
· हड़प्पा सभ्यता में जल निकासी प्रणाली बहुत प्रभावी थी
· सिंधु सभ्यता की कृषि
§ गेहूं, जौ, सरसों, तिल, मसूर आदि का उत्पादन होता था। गुजरात के कुछ स्थानों से बाजरा उत्पादन के संकेत भी मिले हैं, जबकि यहां चावल के प्रयोग के संकेत तुलनात्मक रूप से बहुत ही दुर्लभ मिलते हैं
§ हड़प्पाई लोग कृषि के साथ-साथ बड़े पैमाने पर पशुपालन भी करते थे
§ सिंधु सभ्यता के मनुष्यों ने सर्वप्रथम कपास की खेती . प्रारंभ की थी
§ हड़प्पा सभ्यता के अधिकतम स्थान अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में मिले हैं, जहां खेती के लिये सिंचाई की आवश्यकता होती है
§ नहरों के अवशेष हड़प्पाई स्थल शोर्तुगई अफगानिस्तान में पाए गए हैं
अर्थव्यवस्था
§ हड़प्पा सभ्यता में लोग पत्थर, धातुओं, सीप या शंख का व्यापार करते थे
§ धातु मुद्रा का प्रयोग नहीं होता था। व्यापार की वस्तु विनिमय प्रणाली मौजूद थी
§ उन्होंने उत्तरी अफगानिस्तान में अपनी व्यापारिक बस्तियां स्थापित की थीं जहां से प्रमाणिक रूप से मध्य एशिया से सुगम व्यापार होता था
§ दजला-फरात नदियों की भूमि वाले क्षेत्र से हड़प्पा वासियों के व्यापारिक संबंध थे
§ हड़प्पाई प्राचीन लैपिस लाजुली मार्ग से व्यापार करते थे
शिल्पकला
§ हड़प्पाई कांस्य की वस्तुएं निर्मित करने की विधि, उसके उपयोग से भली भांति परिचित थे
§ तांबा राजस्थान की खेतड़ी खान से प्राप्त किया जाता था और टिन अनुमानतः अफगानिस्तान से लाया जाता था
§ टेराकोटा की मूर्तियों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता की महत्वपूर्ण शिल्प विशेषता थी
§ जौहरी वर्ग सोने, चांदी और कीमती पत्थरों से आभूषणों का निर्माण करते थे
टेराकोटा की लघुमूर्तियों पर एक महिला का चित्र पाया गया है, इनमें से एक लघुमूर्ति में महिला के गर्भ से उगते हुए पौधे को दर्शाया गया है हड़प्पाई पृथ्वी को उर्वरता की देवी मानते थे और पृथ्वी की पूजा उसी तरह करते थे, जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी की पूजा देवी के रूप में करते थे पुरुष देवता के रूप में मुहरों पर तीन शृंगी चित्र पाए गए हैं जो कि योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं देवता के एक तरफ हाथी, एक तरफ बाघ, एक तरफ गैंडा तथा उनके सिंहासन के पीछे भैंसा का चित्र बनाया गया है उनके पैरों के पास दो हिरनों के चित्र है चित्रित भगवान की मूर्ति को पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है
सैंधव सभ्यता में धार्मिक जीवन
§ सैंधव सभ्यता से बड़ी संख्या में प्राप्त स्त्री मृणमूर्तियों तथा मुहरों के ऊपर नारी आकृतियों के अंकन के कारण सैंधव . समाज को मातृदेवी का उपासक कहा जा सकता है
§ हड़प्पा से प्राप्त एक मूर्ति जिसके गर्भ से पौधा निकलता हुआ दर्शाया गया है, उसे मातृदेवी या उर्वरता कि देवी कहा गया है
सैन्धवकालीन सामाजिक जीवन
§ संभवतः सैन्धव समाज मातृसत्तात्मक तथा सामाजिक
§ व्यवस्था का मुख्य आधार परिवार था
§ महिलाएं सिंदूर तथा लिपस्टिक का प्रयोग करती थीं। सैन्धववासी शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन का सेवन करते थे गेंहू, जौ, चावल, तिल, सरसों, दाले, आदि प्रमुख खाद्य फसल थे
§ सैन्धववासी मांसाहारी भोजन के रूप में भेंड़, बकरी, सूअर, मुर्गी तथा मछलियों का भी सेवन करते थे
शवाधान के प्रकार
1. पूर्ण शवाधान - पूरे शरीर को जमीन के अंदर दफना देना। यहीं सर्वाधिक प्रचलित तरीका था
2. आंशिक शवाधान - शरीर के कुछ भागों को नष्ट होने के बाद दफनाना
3. कलश शवाधान - शव को जलाकर राख को कलश में रखकर दफनाना
स्थल |
खोजकर्ता |
अवस्थिति |
महत्त्वपूर्ण खोज/तथ्य |
नदी |
हड़प्पा |
दयाराम साहनी (वर्ष 1921) माधोस्वरूप वत्स (वर्ष 1924) |
मोंटगोमरी (पाकिस्तान)
|
· मनुष्य के शरीर की बलुआ पत्थर की बनी मूर्तियां · अन्नागार · कांसे का दर्पण · मछुवारे का चित्र · शंख का बैल · स्त्री की गर्भ से निकलता पौधा · बैलगाड़ी |
रावी |
मोहनजोदड़ो (मृतको का टीला) |
राखलदास बनर्जी (वर्ष1922)
|
लरकाना जिला पंजाब (पाकिस्तान) |
· विषाल स्नानागर · अन्नागार · पुरोहितों का आवास · महाविद्यालय · बंदर का चित्र · कांस्य की नर्तकी की मूर्ति · पशुपति महादेव की मुहर · दाड़ी वाले मनुष्य की पत्थर की मूर्ति · बुने हुए कपड़े |
सिंधु |
सुत्कान्गेडोर |
सरमार्क आरेल स्टाइन (वर्ष 1927)
|
सिंध (पाकिस्तान) |
· हड़प्पा और बेबीलोन के बीच व्यापार का केंद्र बिंदु था · तीन संस्कतियों के साक्ष्य · बंदरगाह |
दाश्क |
चन्हुदड़ो |
एन. जी. मजूमदार (वर्ष1931)
|
मोंटगोमरी (पाकिस्तान) |
· मनके बनाने की दुकानें · बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पदचिन्ह · लिपस्टिक काजल जैसी सौंदर्य प्रसाधन सामग्री · वक्रकार ईंट · मनके का कारखाना · एक मात्र नगर जो दुर्गीकृत नही था |
सिंधु |
आमरी |
एन. जी मजूमदार, जनी कजाल (वर्ष 1935)
|
सिंध (पाकिस्तान) |
· हिरन के साक्ष्य · प्रौगतिहासिक सिंध पूर्व संस्कृति और परवर्ती सिंधु सभ्यता के बीच संक्रमण काल के अवषेष |
सिंध |
कालीबंगन |
अमलानंद घोष (वर्ष 1953) बृजवासी लाल (वर्ष1990)
|
हनुमानगढ़ (राजस्थान) |
· अग्नि वेदिकाएं · ऊंट की हड्डियां · लकड़ी से बनी नालियां · अलंकृत ईंटें · भूकंप · जुते हुए खेत (2 फसली) · शल्य क्रिया के साक्ष्य |
घग्घर |
लोथल |
रंगनाथ राव (वर्ष 1953) |
अहमदाबाद (गुजरात) |
· मानव निर्मित बंदरगाह · गोदीवाडा (डाकयार्ड) · चावल की भूसी · अग्नि वेदिकाएं · शतरंज का खेल · फारस की मुहर · हाथी दांत · घोड़े की मृगमूर्ति · तीन युग्म वाली समाधि · मानव और बकरे की सयुक्त कब्र |
भोगवा |
सुरकोतदा |
जे.पी.जोषी (वर्ष1964) |
कच्छ (गुजरात) |
· घोड़े की हड्डियां · मनके · तराजू का पलड़ा · कलश सवाधान |
सरस्वती |
बनावली |
आर. एस. विष्ट (वर्ष 1985) |
कच्छ (गुजरात) |
· मनके · जौ · हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा संस्कृतियों के साक्ष्य · सफेद कुआं · खेल स्टेडियम |
सरस्वती |
धौलावीरा |
आर. एस. विष्ट (वर्ष1985) |
कच्छ (गुजरात) |
· जल निकासी प्रबंधन · जल कुंड |
& |
रोपड़ |
यज्ञदत्त शर्मा (वर्ष 1955) |
रूपनगर (पंजाब) |
· तांबे की कुलहाड़ी · मानव के साथ कुत्ते दफनाने के साक्ष्य |
सतलुज |
You need to login to perform this action.
You will be redirected in
3 sec