प्रकाश एवं प्रकाशकीय यंत्र

प्रकाश एवं प्रकाशकीय यंत्र

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प्रकाश एवं प्रकाशकीय यंत्र

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

                प्रकाश तथा इसकी प्रकृति (Nature) तथा इससे संबंधित प्रभावों का अध्ययन 'प्रकाशिकी' के अंतर्गत आता है। प्रकाश की प्रकृति दोहरी होती है। इस अध्याय में हम प्रकाश में विवर्तन व्यतिकरण, परावर्तन, ध्रुवण, अपवर्तन जैसे गुणों तथा प्रकाश की तरंग प्रकृति के आधार पर की जाएगी। दर्पण लैंस तथा सूक्ष्मदर्शी के दैनिक जीवन में उपयोगों का अध्ययन करेंगे।

 

                प्रकाश एक ऊर्जा है जिसकी अनुभूति आंखों द्वारा होती है। जिसके कारण हम विभिन्न वस्तुओं को देखते हैं। हमारी आंखें विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम से सम्बंधित विकिरणों जिनकी तरंगदैर्ध्य 400 mm से 750 mm तक होती है, इन विकिरणों को प्रकाश कहते हैं। प्रकाश, इसकी प्रकृति तथा इससे सम्बन्धित प्रभावों का अध्ययन 'प्रकाशिकी' के अंतर्गत किया जाता है।

 

            प्रकाश की दोहरी प्रकृति होती है- प्रथम यह कभी कण के रूप में व्यवहार करता है और द्वितीय, कभी-कभी यह तरंग की तरह व्यवहार करता है। प्रकाश में विवर्तन, व्यतिकरण, परावर्तन, ध्रुवण, अपवर्तन सरल रेखा में गमन आदि गुणों की व्याख्या प्रकाश की तरंग प्रकृति के आधार पर की जाती है जबकि कुछ गुणों को प्रकाश विद्युत प्रभाव, काम्पटन प्रभाव आदि की व्याख्या प्रकाश के फोटॉन या कणिका प्रकृति के आधार पर की जाती है।

                प्रकाश एक विद्युत चुम्बकीय तरंग है जिसे चलने के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती, निर्वात में इसकी चाल \[3\,\,\times \,\,10\]मी/सेकेंड होती है। जब किसी वस्तु को अत्यधिक गर्म किया जाता है तो वह उष्मीय विकिरण प्रकाश का उत्सर्जन करता है।

               

                प्रकाश का परावर्तन जब एक प्रकाश किरण किसी माध्यम से चलकर एक परिसीमा (दो माध्यमों को अलग-अलग करने वाली सीमा) पर आपतित होकर उसी माध्यम में वापस जाती है, तो इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं। परावर्तन के पश्चात प्रकाश का वेग, तरंगदैर्ध्य तथा आकृति अपरिवर्तित रहते हैं जबकि तीव्रता तल की प्रकृति के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। यदि परावर्तन सघन माध्यम से होता है, तो कला (\[\pi \]) से परिवर्तित हो जाती है। इसे स्टोक नियम भी कहते हैं। ये नियम किसी भी परावर्तक पृष्ठ चाहे वह समतल हो या वक्रित हो के प्रत्येक बिन्दु के लिए वैध है।

                झुके हुए दो समतल दर्पणों द्वारा बने प्रतिबिम्ब- \[\theta \] कोण पर झुके हुए दो समतल दर्पणों के मध्य स्थित वस्तु के प्रतिबिम्बों (n) की संख्या -

            (i) यदि \[\frac{360{}^\circ }{\theta }\] = समपूर्णाक, तब \[n=\left( \frac{360{}^\circ }{\theta }-1 \right)\]

            (ii) यदि \[\frac{360{}^\circ }{\theta }\]= विषमपूर्णांक तब, दो सम्भावनाएं हो सकती है।

            (a) वस्तु सममित अवस्था में स्थित है- तब \[\left( n \right)=\left( \frac{360{}^\circ }{\theta }-1 \right)\]

            (b) वस्तु असममित अवस्था में स्थित है- तब \[\left( n \right)=\frac{360{}^\circ }{\theta }\] 

                दर्पणों की फोकस दूरी \[f=\frac{R}{2}\]

                जहां f= फोकस दूरी है। तथा वक्रतात्रिज्या = R है।

            \[\]

            (जहां = दर्पण से बिम्ब की दूरी, v = दर्पण से प्रतिबिम्ब की दूरी)

 

 

                प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of light)

                जब प्रकाश की किरण एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में तिर्यक आपतित होकर संचरण करती है तो दोनों माध्यमों को पृथक करने वाले पृष्ठ पर इसके संचरण की दिशा प्रारम्भिक दिशा से विचलित हो जाती है। इस परिघटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।

           

            कॉशी समीकरण (Cauchy's Equation)

            \[\mu =A+\frac{B}{{{\lambda }^{2}}}+\frac{C}{{{\lambda }^{4}}}+.....\]   

                प्रकाशिक घनत्व दो माध्यमों में प्रकाश की चाल का अनुपात है जबकि द्रव्यमान घनत्व एकांक आयतन का द्रव्यमान है। जैसे तारपीन के तेल का द्रव्यमान घनत्व जल के द्रव्यमान घनत्व से कम होता है। लेकिन इसका प्रकाशिक घनत्व अधिक होता है।

                पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection)

                किसी सघन माध्यम में संचरित होता हुआ प्रकाश विरल माध्यम के पृथक्कारी पृष्ठ पर क्रांतिक कोण से अधिक कोण पर आपतित हो तो उसका पुनः उसी माध्यम में परावर्तन हो जाता है इस प्रभाव को पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं। उदाहरण- हीरे का चमकना प्रकाशिक तन्तु, गोताखोर का दृष्टि क्षेत्र, पोरो प्रिज्म आदि।

 

            प्रकाश तंतुओं का निर्माण

                क्वार्ट्ज जैसे पदार्थों के शोधन तथा विशिष्ट विरचन द्वारा किया जाता है। जिससे इनके भीतर लम्बी दूरियां तय करते समय प्रकाश का अवशोषण बहुत कम हो। प्रकाशिक तंतु कांच के तंतुओं के बने होते हैं जिन पर अपेक्षाकृत कम अपवर्तनांक के पदार्थ की पतली परत का लेपन होता है।

 

                लैंस (Lens)

                लैंस एक ऐसा संमागी पारदर्शी माध्यम होता है जो दो वक्र पृष्ठों से अथवा एक वक्र पृष्ठ तथा एक समतल पृष्ठ से घिरा होता है। वक्र पृष्ठ गोलीय, बेलनाकार अथवा पर वलयाकर हो सकते हैं। परन्तु अधिकांशतः पृष्ठ गोलीय होते हैं। लैंस दो प्रकार के होते हैं। जो लैंस बीच में मोटा तथा किनारों पर पतले होते है वे 'उत्तल लैंस' (Convex Lens) कहलाते हैं। यह प्रकाश किरणों को एकत्रित करता है इसलिए इसे अभिसारी लैंस भी कहते हैं।

            अवतल लैंस (Concave lens)- इसके विपरीत जो लैंस बीच में पतले तथा किनारों पर मोटे होते हैं वे अवतल लैंस कहलाते हैं। यह प्रकाश किरणों को अपसारित करता है इसलिए इसे अपसारी लैंस भी कहतें हैं।

                लैंस निर्माता सूत्र - \[\frac{1}{f}=\left[ \frac{{{\mu }_{2}}}{{{\mu }_{1}}}-1 \right]\left[ \frac{1}{{{R}_{1}}}-\frac{1}{{{R}_{2}}} \right]\]

                        \[{{\mu }_{1}}=1\] (हवा के लिए अपवर्तनांक)

                        \[{{\mu }_{2}}=\mu \] (कांच माध्यम के लिए)

                या \[\frac{1}{f}=\left( \mu -1 \right)\left( \frac{1}{{{R}_{1}}}-\frac{1}{{{R}_{2}}} \right)=f\propto \frac{1}{\left( \mu -1 \right)}\]

                अतः किसी लैंस की फोकस दूरी लाल रंग के लिए सर्वाधिक एवं बैंगनी रंग के लिए सबसे कम होती है।

 

                लैंस की क्षमता (Power of lens)

                प्रकाश की किरणों को अभिसरित अथवा अपसरित करने के सामर्थ्य को लैंस की क्षमता या लैंस की शक्ति कहते हैं।

                किसी लैंस की फोकस दूरी जितनी कम होगी, उसकी क्षमता उतनी ही अधिक होगी। किसी भी लैंस की क्षमता, उस लैंस की फोकस दूरी की व्युत्क्रम होती है। फोकस दूरी मीटर में है तो लैंस क्षमता डायऑप्टर में होगी।

                लैंस क्षमता

            लैंस की क्षमता का SI मात्रक डायऑप्टर (D) = m-1

                चूंकि उत्तल लैंस की फोकस दूरी धनात्मक तथा अवतल लैंस की ऋणात्मक होती है। अतः उत्तल लैंस की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लैंस की क्षमता ऋणात्मक होती है।

 

            प्रिज्म (Prism)

                किसी कोण पर झुके दो अपवर्तक सतहों से घिरा पारदर्शी माध्यम प्रिज्म कहलाता है। प्रिज्म के जिन पृष्ठों से अपवर्तन होता है। उन्हें प्रिज्म के अपवर्तक पृष्ठ कहते हैं। दो अपवर्तक पृष्ठों के बीच का कोण प्रिज्म कोण या अपवर्तक कोण कहलाता है।

 

                प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of light)

                जब सूर्य के श्वेत प्रकाश की किरणें किसी खुरदरे पृष्ठ जैसे वायुमण्डल के कणों आदि पर आपतित होती है तो परावर्तित किरणें उसी माध्यम में विभिन्न दिशाओं में बिखर जाती है, इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं।

 

                प्रकाशिक यंत्र (Optical Instruments)

                जब वस्तुएं बहुत सूक्ष्म अथवा बहुत दूर स्थित होती हैं तो हमारी आंखें उन्हें स्पष्ट नहीं देख पाती है। जिन युक्तियों या उपकरणों द्वारा उन्हें स्पष्ट एवं आवर्धित देख सकते हैं वे प्रकाशीय उपकरण कहलाते हैं। दर्पणों, लैंसों तथा प्रिज्मों के परावर्ती तथा अपवर्ती गुणों का उपयोग करके अनेक प्रकाशिक युक्तियां एवं यंत्र तैयार किये जाते हैं। जैसे परिदर्शी, बहुमूर्तिदर्शी, दिवनेत्री, दूरदर्शक, सूक्ष्मदर्शी आदि। नेत्र सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक प्रकाशीय उपकरण है जो प्रकृति की देन है।

 

                नेत्र (Eye)

                नेत्र एक गोलाकार गेंद की भांति होती है नेत्र के गोले की रक्षा के लिए एक श्वेत पटल (Sclera) अपारदर्शक भाग नेत्र को ढके रहता है। श्वेतपटल के मध्य में उभरे हुए वक्रीय पृष्ठ को कॉर्निया (Cornea) या स्वच्छ पटल कहते हैं। यह एक प्रकार का पारदर्शक लैंस होता है। आइरिस के पीछे नेत्र लैंस पक्ष्माभी पेशियों की सहायता से अपने स्थान पर लगा होता है। यह एक लचीले पदार्थ का बना उत्तल लैंस होता है। दोनों पृष्ठों की वक्रता त्रिज्या अलग-अलग होती है। पक्ष्माभी पेशियों के द्वारा नेत्र लैंस की आकृति (वक्रता) परिवर्तित की जा सकती है। जिससे लैंस की फोकस दूरी बदल सकती है। इस लैंस से देखने वाली वस्तु का उल्टा, छोटा एवं वास्तविक प्रतिबिम्ब बनता है। कॉर्निया और नेत्र लैंस के मध्य एक द्रव भरा होता है जिसे नेत्रोद या जलीय द्रव कहते हैं। कॉर्निया के सामने स्थित नेत्र का अन्य महत्वपूर्ण भाग रेटिना (दृष्टिपटल) (Retina) होता है। नेत्र लैंस और रेटिना के बीच खोखले कोष्ठ में एक लसेदार गाढ़ा पदार्थ भरा रहता है जिसे विटियस ह्यूमर (काचाभ द्रव) कहते हैं। प्रकाश कॉर्निया से प्रवेश होते हुए पुतली में से गुजरता है। नेत्र लैंस इस प्रकाश को फोकसित करके रेटिना पर प्रतिबिम्ब बना देता है। रेटिना तंत्रिका तंतुओ की एक पतली झिल्ली होती है जो नेत्र के पीछे के वक्रित पृष्ठ को ढके रखती है। रेटिना में श्लाका और शंकु होते हैं जो क्रमशः प्रकाश की तीव्रता तथा रंग के प्रति संवेदनशील होते है तथा दृक तंत्रिकाओं से होकर विघुतीय संकेतो का मस्तिष्क तक प्रेषित करते है जो इस सुचना को अंततः संसाधित कर प्रतिबिम्ब को सीधा बनाता है।   

            जब पेशिया शिथिल होती है तो नेत्र लेन्स और रेटिना के बीच की दुरी अर्थात नेत्र लेंस की फोकस दुरी 2 .5 से.मी. होती है।

                 

               

                मांसपेशियों द्वारा नेत्र लैंस की फोकस दूरी परिवर्तित करने के गुण को ही नेत्र की संमजन क्षमता कहते हैं।

                दूर बिन्दु नेत्र के बीच की दूरी को 'दृष्टि विस्तार' कहते हैं।

            अतः स्वस्थ नेत्र अनंत और 25 से.मी. के बीच रखी वस्तुओं को स्पष्टता से देख सकता है।

            दृष्टिदोष

            (i) निकट दृष्टिदोष (ii) दीर्घ दृष्टिदोष (iii) अबिंदुकता या दृष्टि वैषम्यदोष (iv) जरा दूरदर्शिता

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