आर्द्रता एवं वर्षण

आर्द्रता एवं वर्षण

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आर्द्रता एवं वर्षण

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

किसी निश्चित ताप पर वायु के निश्चित आयतन पर अधिकतम नमी धारण करने की क्षमता को वायु की आर्द्रता सामर्थ्य कहते हैं। वायुमंडल के किसी भाग में स्थित जलवाष्य की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। जल के वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं। वायुमंडल में उपलब्ध जल का गैसीय रूप (जलवाष्य) हो वायुमंडलीय आर्द्रता है। विश्व में औसत वार्षिक मात्रा लगभग 98 सेमी. होती है। विषुवत रेखा से \[10{}^\circ \]उत्तर से \[10{}^\circ \]दक्षिणी अक्षांशों में काफी अधिक वर्षा होती है।

 

  • वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं।
  • वायुमण्डल में जलवाष्प (आर्द्रता) का अनुपात कम ही (0 से लेकर 4 प्रतिशत तक) है फिर भी किसी भी स्थान के मौसम

और जलवायु पर इसका प्रभाव पड़ता ही है। जल वायुमण्डल में तीनों रूपों में उपस्थित रह सकता है। यह जल वाष्प के रूप में गैसीय अवस्था में रह सकता है।

 

आर्द्रता हेतु परिस्थितियां

 

  • जिस स्थान पर तापमान जितना अधिक होगा, वहां की वायु में आर्द्रता ग्रहण करने की शक्ति उतनी ही अधिक होगी।
  • तापमान कम होने पर हवा की नमी सोखने की शक्ति कम हो जाती है इसलिए विषुवत रेखीय हवाओं में आर्द्रता ग्रहण करने की शक्ति उच्च अक्षांशों वाली हवाओं से अधिक होती है।
  • ठीक इसी प्रकार ऊंचार्इ बढ़ने के साथ-साथ आर्द्रता तेजी से कम होने लगती है।
  • वायुमण्डल की आर्द्रता का स्थानान्तरण अक्षांशीय पट्टियों के बीच होता है।
  • दोनों गोलाडोर्ं में \[10{}^\circ \]से \[40{}^\circ \]अक्षांशों के बीच वर्षण की तुलना में वाष्पन अधिक होता है।
  • वाष्पीकरण - जब कोर्इ द्रव पदार्थ किसी तापमान पर गैस में परिवर्तन होने लंगता है, तो इस प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।
  • संगलन - यह ठोस पदार्थ के द्रव में बदलने की स्थिति है। इस प्रक्रिया में पदार्थ के तापमान में कोर्इ बदलाव नहीं आता है।
  • संघनन - संघनन का आशय वायु की संतृप्त अवस्था से है। अर्थात जब वायु की सापेक्ष आर्द्रता 100 प्रतिशत हो जाती है अर्थात् वह संतृप्त हो जाती है, तो संघनन शुरु हो जाता है। यह एक प्रकार से जलवाष्प के तरल में बदलने की प्रक्रिया है।
  • बादलों के प्रकार - बादलों के प्रकारों का वर्गीकरण उनकी ऊंचार्इ, उनके आकार, उनके रंग तथा प्रकाश को परावर्तित करने की उनकी क्षमता के आधार पर किया गया है।

 

ऊंचार्इ के आधार पर बादलों को तीन मुख्य वगोर्ं में रखा गया है-

  1. उच्च मेघ (5 से 14 किलोमीटर)
  2. मध्य मेघ (2 से 7 किलोमीटर) तथा
  3. निम्न मेघ (2 किलोमीटर से नीचे)

 

  1. उच्च मेघ (5 से 14 किलोमीटर)

 

  • उच्च मेघ की ऊंचार्इ 5 से 14 किलोमीटर के बीच होती है। ये तीन प्रकार के होते हैं -

(i) पक्षाभ मेघ - इन मेघों की की रचना हिम कणों से होती

है, इसलिए ये पंखनुमा होते हैं। पृथ्वी पर से ये बहुत कोमल

और. सफेद रेशम की तरह दिखार्इ देते हैं। जब ये आकाश में अव्यवस्थित तरीके से फैले होते हैं, तब इन्हें साफ मौसम का प्रतीक माना जाता है। इसके ठीक विपरीत यदि ये व्यवस्थित तरीके से फैले हों, और इनका रंग भी साफ न हो, तो मौसम में गड़बड़ी होने की संभावना बढ़ जाती है।

(ii) पक्षाभ-स्तरी मेघ - ये मेघ देखने में सफेद पतले-पतले

जैसे दिखार्इ देते हैं। इसके कारण आकाश का रंग दुधिया हो जाता है। इन मेघों के फैलने से सूर्य और चन्द्रमा के चारों ओर प्रभा-मण्डल बन जाता है। सामान्यतया ये आने वाले तूफान की सूचना देते हैं।

(iii) पक्षाभ-कपासी मेघ - ये बादल छोटे-छोटे गोलाकार ढेरों

के रूप में पाये जाते हैं। इनकी कोर्इ छाया पृथ्वी पर नहीं पड़ती।

 

  1. मध्यमेघ

 

  • इनकी ऊंचार्इ 2 किलोमीटर से 7 किलोमीटर तक होती है। ये दो प्रकार के होते हैं -

(i) मध्यस्तरीय मेघ - ये आकाश में भूरे तथा नीले रंग के होते

हैं जो मोटी परतों के रूप में फैले रहते हैं। जब ये बहुत घने हो जाते हैं, तब सूर्य और चन्द्रमा तक स्पष्ट दिखार्इ नहीं देते। साधारणतया इनसे दूर-दूर तक और लगातार बारिश होती है। (ii) मध्य कपासी मेघ - इनका रंग भूरा और श्वेत होता है।

ये पंक्तिबद्ध या लहरों के रूप में पाए जाते हैं।

 

  1. निम्न मेघ

 

  • धरातल से 2 किलोमीटर की औसत ऊंचार्इ पर पाए जाने वाले

मेघ निम्न मेघ कहलाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं

(i) स्तरीय कपासी मेघ

(ii) स्तरीय मेघ तथा

(iii) वर्षा स्तरीय मेघ ।

 

इनमें से वर्षा स्तरीय मेघों से लगातार जल वृष्टि या हिम वृष्टि होती है। ये बहुत सधन और काले रंग के होते है, जिनसे धरती पर अंधेरा तक छा जाता है।

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