महासागरीय विज्ञान
विश्लेषणात्मक अवधारणा
पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं। जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं, उस समय बहुत अधिक आयाम के ज्वार-भाटे आ जाते हैं। एक निश्चित दिशा में बहुत अधिक दूरी तक महासागरीय जल की एक विशाल जल-राशि के प्रवाह को महासागरीय जलधारा कहते हैं। यह धारा दो प्रकार की होती है- गर्म जलधारा और ठंडी जलधारा। गर्म एवं ठंडी जलधारा जहां मिलती है वहां प्लेकटन नामक घास मिलती है। जिससे उस स्थान पर मत्स्य उद्योग अत्यधिक विकसित हुआ है।
- तरंगें वास्तव में ऊर्जा हैं, जल नहीं, जो कि महासागरीय सतह के आर पार गति करते हैं।
- ये वायु के जल की विपरीत दिशा में गति से उत्पन्न होती है।
- वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती हैं, जिससे तरंगे उत्पन्न होती हैं।
- वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है।
- चंद्रमा एवं सूर्य के आकर्षण के कारण दिन में एक बार या दो। बार समुद्र तल का नियतकालिक उठने या गिरने को ज्वार-भाटा कहा जाता है।
- चंद्रमा तथा सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेंद्रीय बल दोनों मिलकर पृथ्वी पर ज्वार-भाटाओं को उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी हैं।
- ज्वार-भाटा नौसंचालकों व मछुआरों को उनके कार्य संबंधी योजनाओं में मदद करता है।
- जल धाराएं तापमान को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। ठंडी या गर्म जल धाराएं तापमान को अलग-अलग प्रकार से प्रभावित करती हैं।
- ठंडी जलधाराएं, ठंडा जल, गर्म जल क्षेत्रों में लाती हैं। ये महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर बहती हैं।
- गर्म जलधाराएं, गर्म जल को ठंडे जल क्षेत्रों में पहुंचाती है और प्राय: महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर बहती है।
- कोरियोलिस बल के कारण उत्तरी गोलार्ध में जल की गति की दिशा के दाहिनी तरफ और दक्षिणी गोलार्ध में बायीं ओर प्रवाहित होता है तथा उनके चारों और बहाव को वलय कहा जाता है।
- जापान के निकट क्यूरोसियो की गर्म जल धारा तथा अयोसियो की ठंडी जलधारा के जल के मिलने से वहां पर घना कुहासा छाया रहता है।
- सारगैसो सागर को महासागरीय मरुस्थल के रुप में पहचाना जाता है।
- हिंद महासागर की ग्रीष्मकालीन मानसून की जलधारा गर्म एवं परिवर्तनशील जलधारा है एवं शीतकालीन मानसून हवा ठंडी एवं परिवर्तनशील जलधारा है।