दिल्ली सल्तनत (1206-1526 ई.)

दिल्ली सल्तनत (1206-1526 ई.)

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दिल्ली सल्तनत

       

विश्लेषणात्मक अवधारणा

            महाभारत काल से दिल्ली में राजनैतिक अस्थिरता और उथल- पुथल देखने को मिलती रही है। कभी इसका नाम इंद्रप्रस्थ हुआ करता  था। शायद तभी से दिल्ली राजनैतिक सत्ता का केंद्र रही है। यही कारण है कि यहां भारतीय इतिहास के सर्वाधिक शक्तिशाली, शासकों ने राज्य किया। आइए देखते हैं इस काल में किस दिशा में दिल्ली का शासन घुमाव लेता रहा। अपने कालचक्र में दिल्ली पर अनेक शासकों ने हुकूमत की जो समय- समय पर बदलती भी रही। शासन और हुकूमत के इस परिवर्तन में एक काल आया जिस दौरान भारत में इस्लामिक स्थापत्य शैली का विकास हुआ। इसे दिल्ली का सल्तनत काल कहा गया।       

 

दिल्ली सल्तनत ( 1206-1526 ई.)

            1206-1526 ई. तक भारत पर शासन करने वाले पांच वंश के सुल्तानों के शासनकाल को दिल्ली सल्तनत, सल्तनत-ए-हिन्द अथवा सल्तनत-ए-दिल्ली कहा जाता है।

 

            दिल्ली सल्तनत के क्रमानुसार पांच वंश निम्नलिखित थे

§  गुलाम वंशध्मामलुक वंशध्इल्बरी वंश (1206-1290 ई.) 84 वर्ष

§  खिलजी वंश (1290-1320 ई.) - 30 वर्ष

§  तुगलक वंश (1320-1414 ई.) - 94 वर्ष

§  सैयद वंश (1414-1451 ई.) - 36 वर्ष

§  लोदी वंश (1451-1526 ई.) - 75 वर्ष

 

            इनमें से चार वंश मूलतः तुर्क थे जबकि अंतिम वंश लोदी वंश अफगान था। मुहम्मद गौरी का गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक, गुलाम वंश का प्रथम सुल्तान था। इस सल्तनत ने न केवल बहुत से दक्षिण एशिया के मंदिरों का विनाश किया साथ ही अपवित्र भी किया, पर इसने भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दिल्ली सल्तनत अपने आप में महत्वपूर्ण काल है जिसमें एक महिला ने भी शासन की बागडोर संभाली थी। अंत में मुगल सल्तनत द्वारा इस इस साम्राज्य का अंत हुआ।

 

            गुलाम वंश (1206-1290 ई.)

            गुलाम वंश को विभिन्न नामों से जाना जाता है। इसका विवरण निम्नलिखित है-

§  गुलाम वंश - प्रारंभिक इतिहासकारों ने इसे गुलाम वंश कह क्योकि इस वंश के कुछ शासक गुलाम रह चुके थे। हालागि ऐबक के बाद यह नाम सर्वाधिक उपयुक्त नहीं है।

§  मामलुक वंश - मामलुक का अर्थ, ऐसे गुलाम या दास से है जिनके माता-पिता स्वतंत्र हों या ऐसे दास जिन्हें सैनिक काय में लगाया जाता था। अतः यह नाम भी गुलाम वंश की पूर्ण व्याख्या करने में असमर्थ है।

§  इल्बरी वंश - कुतुबुद्दीन ऐबक को छोड़कर इस वंश के सभी शासक इल्बरी जाति के तुर्क थे।

§  अतः यह नाम सर्वाधिक उपयुक्त नाम है।

 

            मामलुक वंश के शासकों का क्रम निम्न हैः

कुतुब-उद-दीन ऐबक (1206-1210 ई.)

 

आरामशाह (1210-1211 ई.)

                  \[\downarrow \]

शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (1211-1236 ई.)

                  \[\downarrow \]

रुक्नुद्दीन फिरोजशाह (1236 ई.)

                  \[\downarrow \]

रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.)

                  \[\downarrow \]

मुईजुद्दीन बहरामशाह (1240-1242 ई.)

                  \[\downarrow \]

अलाउद्दीन मसूदशाह (1242-1246 ई.)

                   \[\downarrow \]

नासिरुद्दीन महमूद शाह (1246-1265)

                   \[\downarrow \]

गयासुद्दीन बलबन (1265-1287 ई.)

                   \[\downarrow \]

अजुद्दीन कैकुबाद (1287-1290 ई.)

                   \[\downarrow \]

कैयूमर्स (1290 ई.)

                  

कुतुबुद्दीन ऐबक (1206--1210 ई.)

कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम वंश का संस्थापक था।

1206. में मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने स्वयं को लाहौर में एक स्वतंत्र शासक घोषित किया। हालांकि भारत में इसने कभी स्वतंत्र राज्य की घोषणा नहीं की।

पहले इसकी राजधानी लाहौर थी बाद में दिल्ली को राजधानी बनाया।

दिल्ली का पहला सुल्तान या तुर्की शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था।

1208. में खलीफा ने कुतुबुद्दीन ऐबक को स्वतंत्र शासक के रूप में मान्यता दी।

कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद तथा अजमेर में अढ़ाई दिन का झोपड़ा का निर्माण कराया।

कुतुबुद्दीन ऐबक ने ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुब मीनार की नींव डाली। कुतुब मीनार का निर्माण कार्य इल्तुतमिश के समय पूरा हुआ।

कुतुबुद्दीन ऐबक को उसकी उदारता के लिए लाखबख्श कहा गया है।

1210 ई. में लाहौर में चैगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिरकर कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु हो गई।

कुतुबुद्दीन ऐबक का मकबरा लाहौर में है।

 

आरामशाह

§  कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के सरदारों ने आरामशाह को सुल्तान बनाया। लेकिन दिल्ली के सरदारों और लोगों ने इल्तुतमिश को सुल्तान बनने के लिए आमंत्रित किया।

 

इल्तुतमिश (1210.1236 ई.)

§  भारत में मुस्लिम सत्ता का वास्तविक आरंभ इल्तुतमिश से माना जाता है। सुल्तान बनने से पहले इल्तुतमिश बदायूं का इक्तादार था।

§  इल्तुतमिश इल्बरी तुर्क था जिसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम के रूप में खरीदा था। वैसे इल्तुतमिश मुहम्मद गौरी के समय में ही दासता से मुक्त हो चुका था।

 

तुर्कान (तुर्किन.)-ए-चहलगानी

§  इल्तुतमिश ने चालीस तुर्की सरदारों का एक दल तुर्कान.ए.चहलगानी बनाया।

§  इल्तुतमिश के शासनकाल में मंगोल शासक चंगेज खान ने पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण किया था।

§  इल्तुतमिश ने मुल्तान तथा लाहौर पर अधिकार किया तथा यल्दौज और कुबाचा की शक्ति को कुचला।

§  1229. में बगदाद के खलीफा से उसने सुल्तान पद की वैधानिक स्वीकृति प्राप्त की।

§  इल्तुतमिश ने राजपूताना और मालवा के राज्यों को अपने अधीन किया।

§  1234.35. में उज्जैन पर आक्रमण कर महाकाल मंदिर को लूटा।

§  इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार का निर्माण कार्य पूरा कराया तथा दिल्ली में एक मदरसे का निर्माण भी कराया।

§  इल्तुतमिश ने इक्ता व्यवस्था लागू किया। जिसका अर्थ या धन के स्थान पर तनख्वाह के रूप में भूमि प्रदान करना।

§  इल्तुतमिश ने चांदी का सिक्का टंका तथा तांबे का सिक्का जीतलं चलाया।

 

रजिया (1236-1240 ई.)

§  भारत की प्रथम मुस्लिम महिला शासिका रजिया सुल्ताना इल्तुतमिश की पुत्री थी। यह मुस्लिम एवं तुर्की इतिहास की पहली महिला शासक थी।

§  ग्वालियर से वापिस आने के बाद इल्तुतमिश ने रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और चांदी के टंके पर उसका नाम अंकित करवाया।

§  रजिया को इतिहास में रजिया सुल्तान या रजिया सुल्ताना के नाम से भी जाना जाता है।

§  रजिया ने पर्दा प्रथा को त्यागकर पुरुषों के समान काबा (चोगा) पहनकर दरबार में हिस्सा लिया।

§  रजिया के काल से ही राजतंत्र और तुर्क सरदारों के बीच संघर्ष आरंभ हुआ।

§  रजिया ने अबीसीनियाई जमालुद्दीन याकूत को अमीर-ए-आखूर अर्थात् अश्वशाला का प्रधान नियुक्त किया था।

§  याकूत से नजदीकी तुर्की अमीरों को पसंद नहीं आई तथा वे रजिया के विरुद्ध हो गये। मामले को सम्हालने के लिए रजिया ने भटिंडा के सूबेदार अल्तूनिया से विवाह कर लिया। इसी बीच इल्तुतमिश के एक पुत्र बहराम शाह ने तुर्की सरदारों की सहायता से सत्ता हथिया ली तथा रजिया और अल्तूनिया की कैथल के समीप हत्या कर दी।

§  प्रसिद्ध इतिहासकार मिन्हाज-उस-सिराज ने लिखा है, ‘‘रजिया एक महान शासक, कुशाग्र बुद्धि, न्यायप्रिय, हितकारी, विद्वानों की आश्रयदाता, प्रजा का कल्याण करने वाली एवं सामरिक गुणों को रखने वाली स्त्री शासक है।‘‘

इसके बाद अलाउद्दीन मसूद शाह तथा नासिरुद्दीन महमूद ने शासन किया परंतु वे अयोग्य निकले तथा बलबन ने सत्ता हथिया ली।

 

बलबन (1266-1287 ई.)

§  बलबन नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में नायब-एममलिकात (नायब वजीर ) नियुक्त किया गया।

§  अपने विरोधियों के प्रति बलबन ने लौह एवं रक्त की कठोर नीति का पालन किया।

§  1266 ई. में नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के बाद बलबन ने सत्ता हथिया कर स्वयं सुल्तान बन गया।

§  बलबन ने सुल्तान बनने के बाद उलुग खां की उपाधि धारण की।

§  राजत्व का सिद्धान्त - बलबन ने अपने आप को नियामत-ए-खुदाई अर्थात पृथ्वी पर ईश्वर की छाया बताया कि मैं ईश्वर का प्रतिबिम्ब (जिल्ले इलाही) हूं।

§  बलबन के राजत्व सिद्धान्त की दो विशेषताएं थी

·         सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया होता है।

·         सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है।

§  बलबन ने अपने दरबार में फारस के तर्ज पर ‘सिजदा’ (घुटने टेक कर सुल्तान का अभिवादन करना) एवं ‘पैबोस‘ (लेटकर मुख से सुल्तान के चरण को चूमना) की प्रथा का प्रचलन किया।

§  बलबन ने पारसी नववर्ष की शुरूआत में मनाए जाने वाले उत्सव नवरोज/नौरोज की भारत में शुरूआत की।

§  तुर्कान-ए-चिहलगानी - इल्तुतमिश द्वारा स्थापित चालीस तुर्को के संगठन तुर्कान-ए-चिहलगानी का अन्त बलबन ने किया। वह जानता था की यह संगठन उसे नुकसान पहुंचा सकता है।

§  बलबन ने दीवान-ए-विजारत (वित्त विभाग) को सैन्य विभाग से अलग कर दीवान-ए-अर्ज (सैन्य विभाग) की स्थापना की। विभाग के प्रमुख को अर्ज-ए-मुमालिक कहा जाता था।

§  बलबन ने अपना अर्ज-ए-मुमलिक इमाद-उल-मुल्क को बनाया। इस विभाग पर सैना की भर्ती, प्रशिक्षण, वेतन एवं रख रखाव आदि की जिम्मेदारी होती थी।

§  गुप्तचरों के प्रमुख अधिकारी को वरीद-ए-मुमालिक तथा गुप्तचरों को वरीद कहा जाता था। प्रत्येक इक्तादारो में गुप्तचर प्रणाली क्रियान्वित थी।

§  1286 ई. में बलबन का बड़ा बेटा शाहजादा मुहम्मद मंगोलों के द्वारा मारा गया और दूसरा बेटा बुगरा खां पश्चिम बंगाल का सूबेदार था। बड़े बेटे के वियोग में अस्वस्थ होकर 1287 ई. में बलबन की मृत्यु हो गई। इसके बाद बुगरा खां के पुत्र कैकुवाद को सुल्तान बनाया गया।

§  दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों में किलों को निर्मित करवाने वाला पहला सुल्तान बलबन था। दिल्ली का लाल महल तथा लाल भवन का निर्माण इसी ने करवाया। बलबन का दरबारी इतिहासकार अमीर खुसरो था। अमीर खुसरो ने इतिहासकार के रूप में अपने जीवन का आरम्भ शाहजादा मुहम्मद के काल से किया।

§  अमीर खुसरो उत्तर प्रदेश के एटा जिले का निवासी था। उसने 7 सुल्तानों के काल को देखा था।

अमीर खुसरो को तूतिए-हिन्द के नाम से भी जाना जाता है।

 

            कैकवाद (1287-1290 ई.)

§  बलबन ने अपने पौत्र कैखुसरोध्कायखुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया परन्तु बलबन की मृत्यु के बाद तुर्क अमीर फिर सक्रिय हो गए तथा कैखुसरो के स्थान पर कैकुबाद को सुल्तान मनोनीत किया। इस प्रकार बलबन का उत्तराधिकारी उसके छोटे बेटे बुगरा खां का पुत्र कैकुबाद हुआ। इस नए सुल्तान ने मुइजुद्दीन कैकुबाद की उपाधि धारण की।

 

क्यूमर्स (1290 ई.)

§  कैकुवाद के अपंग होने पर उसके तीन वर्षीय पुत्र क्यूमर्स को सुल्तान बनाया गया। क्यूमर्स का संरक्षक जलालुद्दीन खिलजी को बनाया गया। नये सुल्तान को शम्मसुद्दीन क्यूमर्स की उपाधि दी गई।

§  जलालुद्दीन खिलजी ने 1290 ई. में कैकुबाद एवं की हत्या करके 1290 ई. में खिलजी वंश की नींव डाली।

 

            नोट - गुलाम वंश का अन्तिम सुल्तान क्यूमर्स था। गुलाम वंश में कुल 11 शासकों ने शासन किया।

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