तुगलक वंश

तुगलक वंश

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विश्लेषणात्मक अवधारणा

                तुगलक वंश के शासकों ने दिल्ली सल्तनत पर सर्वाधिक लम्बे समय (लंगभग 94 वर्ष) तक शासन किया। गयासुद्दीन तुगलक ने 7 सितंबर 1320 को अलाउद्दीन खिलजी के हजार स्तंभों वाले महल में प्रवेश किया। 8 सितंबर 1320 को यह दिल्ली की गद्दी पर बैठा और तुगलक वंश की स्थापना की। इब्नबतूता के अनुसार ये तुर्कों की करौना शाखा से था। वहीं मलिक इसे मिश्रित नस्ल का मानता है। फरिश्ता के अनुसार इसकी माता जाट और पिता मलिक तुगलके था। अलाउद्दीन ने इसे दीपालपुर का गवर्नर नियुक्त किया था। इसी के बारे में कहा जाता है कि ‘‘वह अपने राजमुकुट के नीचे सैंकड़ों पंडितों का शिरस्तान (पगड़ी) छिपाये हुए है।’’ निजामुद्दीन औलिया ने गयासुद्दीन तुगलक के संबंध में कहा था, दिल्ली अभी दूर है।

 

 

      खिलजी वंश का अंत कर दिल्ली में एक नये वंश का उदय हुआ जिसे तुगलक. वंश कहते है। तुगलक वंश ने दिल्ली पर। 1320-1413 ई. तक राज किया।

                तुगलक वंश का पहला शासक गाजी मालिक जिसने अपने को गयासुद्दीन तुगलक के रूप में पेश किया।

 

                तुगलक वंश के शासक

गयासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.)

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मोहम्मद तुगलक (1325-51 ई.)

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फिरोज शाह तुगलक (1351-88 ई.)

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मोहम्मद खान (1388 ई.)

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गयासुद्दीन तुगलक शाह ।। (1388 ई.)

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अबूबकर (1389-90 ई.)

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नासिउद्दीन मोहम्मद (1390-94 ई.) हुमायूं खां (1394-95 ई.)

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नसीरुद्दीन महमूद (1395-1412 ई.)

                             

                गयासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.)

                यह तुगलक वंश का संस्थापक था। इसका पूर्व नाम गाजी मलिक था, जिसने दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर बैठने के बाद अपना नाम गयासुद्दीन कर लिया।

                वह पहला ऐसा शासक था, जिसने अपने नाम के साथ गाजी शब्द (काफिरों का वध करने वाला) जोड़ा था। इसे तुगलक गाजी भी कहते थे।

                इसने मंगोलों के 23 आक्रमण विफल किए थे।

               

                गयासुद्दीन तुगलक के सुधार

                गयासुद्दीन तुगलक ने आर्थिक सुधार के अन्तर्गत अपनी आर्थिक नीति का आधार संयम, सख्ती एवं नरमी के मध्य संतुलन (रस्म-ए-मियान) को बनाया।

                गयासुद्दीन ने मध्यवर्ती जमीदारों विशेष रूप से मुकद्दम तथा खूतों को उनके पुराने अधिकार लौटा दिए, जिससे उनको वही स्थिति प्राप्त हो गयी, जो बलबन के समय में प्राप्त थी।

                गयासुद्दीन ने अमीरों की भूमि पुनः लौटा दी।

                गयासुद्दीन ने सिंचाई के लिए कुंए एवं नहरों का निर्माण करवाया।

       

नहर का निर्माण करवाने वाला गयासुद्दीन सल्तनत काल का प्रथम सुल्तान था। साथ ही सल्तनत काल में डाक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का श्रेय गयासुद्दीन तुगलक को ही जाता है।

 

                अलाउद्दीन खिलजी की कठोर नीति के विरुद्ध उसने उदारता की नीति अपनायी, जिसे बरनी ने ‘रस्मे मियान’ अथवा ‘मध्यपंथी नीति’ कहा है।

                गयासुद्दीन ने अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चलाई गयी दागने तथा चेहरा प्रथा को प्रभावी तरीके से लागू किया।

               

                महत्वपूर्ण विजय - वारंगल व तेलंगाना की विजय (1324 ई.) । तिरहुती विजय, मंगोल विजय (1324 ई.) गयासुद्दीन ने तुगलकाबाद नामक एक दुर्ग की नींव रखी।

                मृत्यु

                जब गयासुद्दीन तुगलक बंगाल अभियान से लौट रहा था, तब लौटते समय तुगलकाबाद से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अफगानपुर में एक महल में सुल्तान गयासुद्दीन के प्रवेश करते ही वह महल गिर गया, जिसमें दबकर उसकी मार्च, 1325 ई. को मुत्यु हो गयी। गयासुद्दीन तुगलक का मकबरा तुगलकाबाद में स्थित है।

 

                मोहम्मद तुगलक (1325-51 ई.)

  • गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ‘जूना खां’, मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसका मूल नाम ‘उलूग खां’ था।
  • मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद बिन तुगलक सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था।

       

मुहम्मद बिन तुगलक के कार्य

  • दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि (1326-27 ई.) - मुहम्मद तुगलक ने दोआब के ऊपजाऊ प्रदेश में कर की वृद्धि कर दी, परन्तु उसी वर्ष दोआब में भयंकर अकाल पड़ गया, जिससे पैदावार प्रभावित हुई। तुगलक के अधिकारियों द्वारा जबरन कर वसूलने से उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया, जिससे तुगलक की यह योजना असफल रही।
  • राजधानी परिवर्तन (1326-27 ई.) - तुगलक ने अपनी योजना के अन्तर्गत राजधानी को दिल्ली से देवगिरि स्थानान्तरित किया। देवगिरि को ‘‘कुव्वतुल इस्लाम’’ भी कहा गया। सुल्तान की इस योजना के लिए सर्वाधिक आलोचना की गई। मुहम्मद तुगलक की यह योजना भी पूर्णतः असफल रही।

सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन (1329-30 ई.) - इस योजना के अन्तर्गत मुहम्मद तुगलक ने सांकेतिक व प्रतीकात्मक सिक्कों का प्रचलन करवाया। मुहम्मद तुगलक ने ‘दोकानी’ नामक सिक्के का प्रचलन करवाया। सांकेतिक मुद्रा के अन्तर्गत सुल्तान ने संभवतः पीतल (फरिश्ता के अनुसार) और तांबा (बरनी के अनुसार) धातुओं के सिक्के चलाये, जिसका मूल्य चांदी के रुपये टका के बराबर होता था। सिक्का ढालने पर राज्य का नियंत्रण नहीं रहने से अनेक जाली टकसाल बन गये। लगान जाली सिक्के से दिया जाने लगा, जिससे अर्थव्यवसथा ठप्प हो गई। सांकेतिक मुद्रा चलाने की प्रेरणा चीन तथा ईरान से मिली।

 

खुरासन एवं काराचिल का अभियान - चैथी योजना के अन्तर्गत मुहम्मद तुगलक के खुरासान एवं कराचिल विजय अभियान का उल्लेख किया जाता है। खुरासन को जीतने के लिए मुहम्मद तुगलक ने 3,70,000 सैनिकों की विशाल सेना को एक वर्ष का अग्रिम वेतन दे दिया, परन्तु राजनैतिक परिवर्तन के कारण दोनों देशों के मध्य समझौता हो गया, जिससे सुल्तान की यह योजना असफल रही और उसे आर्थिक रूप से हानि उठानी पड़ी।

मुहम्मद बिन तुगलक की सोच उसके समय से बहुत आगे थी। उसने बहुत सारे विचारों पर मंथन किया लेकिन उन विचारों के क्रियान्वयन से जुड़े उसके पैमाने बहुत मजबूत और टिकाऊ नहीं थे इसीलिए वह असफल रहा। अपनी योजनाओं के कारण मुहम्मद बिन तुगलक को ‘स्वप्नशील’, ‘‘बुद्धिमान मूर्ख’ ‘पागल’ एवं ‘रक्त-पिपासु’ कहा गया है।

मुहम्मद तुगलक ने कृषि के विकास के लिए ‘दिवान-ए-अमीर कोही’ नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की। सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, किसानों की उदासीनता, भूमि का अच्छा न होना इत्यादि कारणों से कृषि उन्नति सम्बन्धी अपनी योजना को तीन वर्ष पश्चात्. समाप्त कर दिया। मुहम्मद बिन तुगलक ने किसानों को बहुत कम ब्याज पर ऋण (सोनथर) उपलब्ध कराया।

 

फिरोज शाह तुगलक (1351.88.)

  • फिरोज शाह तुगलक 45 वर्ष की उम्र में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा। उसके पिता का नाम रज्जब था जो कि गयासुद्दीन तुगलक का छोटा भाई था

 

फिरोज शाह तुगलक के कार्य

  • राजस्व व्यवस्था के अन्तर्गत फिरोज ने अपने शासन काल में 24 करों को समाप्त कर दिया और केवल 4 कर खराज (लगान) ‘खुम्स’ (युद्ध में लूट का माल) ‘जजिया’, एवं ‘जकात’ को वसूल करने का आदेश दिया।
  • उलेमाओं के आदेश पर सुल्तान ने एक नया सिंचाई (हक.ए.शर्ब) कर भी लगायाए जो उपज का 1/10 भाग वसूला जाता था।
  • सुल्तान ने सिंचाई की सुविधा के लिए 5 बड़ी नहरें यमुना नदी से हिसार तकए सतलुज नदी से घग्घर नदी तकए सिरमौर की पहाड़ी से लेकर हांसी तकए घग्घर से फिरोजाबाद तक एवं यमुना से फिरोजाबाद तक का निर्माण करवाया।
  • उसने फलों के लगभग 1200 बाग लगवाये। आन्तरिक व्यापार को बढ़ाने के लिए अनेक करों को समाप्त कर दिया।
  • नगर एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यों के अन्तर्गत सुल्तान ने लगभग 300 नये नगरों की स्थापना की।
  • जौनपुर नगर की नींव फिरोज ने अपने चचेरे भाई जूनाखां (मुहम्मद बिन तुगलक) की स्मृति में डाली थी।
  • उसके शासन काल में खिज्राबाद एवं मेरठ से अशोक के दों स्तम्भलेखों को लाकर दिल्ली में स्थापित किया गया। कुतुबमीनार का निर्माण कराया।

 

                अपने कल्याणकारी कार्यों के अन्तर्गत फिरोज ने एक रोजगार का दफ्तर एवं मुस्लिम अनाथ स्त्रियों विधवाओं एवं लड़कियों की सहायता हेतु एक नये ‘दीवान-ए-खैरात’ नामक विभाग की स्थापना की। एक राजकीय अस्पताल (दारुल सफा) का निर्माण करवायाए जिसमें गरीबों का मुफ्त इलाज होता था। फिरोज के शासनकाल में दासों की संख्या लगभग 1,80,000 पहुंच गई थी। इनकी देखभाल हेतू सुल्तान दे ‘दीवान-ए-बंदगान’ की स्थापना की।

 

                संरक्षण

  • शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में सुल्तान फिरोज ने अनेक मकबरों एवं मदरसों की स्थापना करवायी। उसने ष्जियाउद्दीन बरनीष् एवं ‘शम्स-ए-सिराज अफीफ’ को अपना संरक्षण प्रदान किया।
  • बरनी ने ‘फतवा-ए-जहांदारी’ एवं ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ की रचना की।
  • फिरोज शाह तुगलक ने अपनी आत्मकथा ‘फूतूहत-ए-फिरोजशाही’ की रचना की।
  • फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु सितम्बर, 1388 में हुई थी। हौजखास परिसर, दिल्ली में उसे दफना दिया गया।

 

                मोहम्मद खान (1388 ई.)

  • फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु 1388 ई. में हुई थी। उसके बाद दिल्ली सल्तनत में कुछ दिनों के लिए मोहम्मद खान ने दिल्ली में शासन किया और कुछ दिनों के भीतर ही उनकी हत्या कर दी गई।

 

                गयासुद्दीन तुगलक शाह

  • फिरोजशाह तुगलक और मोहमद खान के हत्या के बाद दिल्ली
  • सल्तनत में फिरोज शाह तुगलक का पोता गयासुद्दीन अगला शासक बना लेकिन 5 महीने के अल्प शासन के बाद उसकी हत्या कर दी गयी।

       

        अबूबक्र शाह

  • गयासुद्दीन तुगलक शाह की हत्या कर के फरवरी, 1389 में जफर खां के पुत्र अबूबकर स्वयं सुल्तान बन गया।

 

नसीरुद्दीन मोहम्मदशाह

  • नासिरुद्दीन मुहम्मद शाह ने 1390-1394 ई. तक शासन किया। तुगलक शाह की हत्या कर अबू बक्र ने 1389 ई. में सल्तनत पर शासन का आरम्भ किया। दिल्ली के कोतवाल, मुलतान, समाना, लाहौर के अक्तादारों ने मुहम्मद शाह को सहयोग देकर 1390 ई. में अबूबक्र को शासन से हटा दिया और नासिरुद्दीन मुहम्मद शाह स्वयं शासक बन गया।

 

हूंमायू खां (1394-95 ई.)

  • नासिरुद्दीन मुहम्मद शाह के दिल्ली सल्तनत में उनका पुत्र हुमायूं ने लगभग 3 माह तक शासन किया और उसकी मृत्यु हो गई।

 

                नसीरुद्दीन महमूद शाह (1395-1412 ई.)

                मार्च, 1394 में दिल्ली सल्तनत का शासक महमूद शाह बना। उसकी दुर्दशा को देखकर व्यंग्य से कहा जाता था- ‘‘विश्व के सम्राट तुगलकों का राज्य दिल्ली से पालम तक फैला हुआ था।’’ 17 दिसम्बर 1398 ई. को तैमूर का आक्रमण दिल्ली पर हो गया तथा सुल्तान स्वयं गुजरात भाग गया। पुनः वजीर मल्लू खां ने सुल्तान को दिल्ली बुलाकर गद्दी पर बिठाया। 1412 ई. में महमूद शाह की मृत्यु हो गई, जिससे तुगलक वंश का अंत हो गया।


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