भू-संचलन एवं सम्बंधित स्थलाकृतियां

भू-संचलन एवं सम्बंधित स्थलाकृतियां

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भू-संचलन एवं सम्बंधित स्थलाकृतियां

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

पृथ्वी के आन्तरिक भाग से उत्पन्न होने वाले बल को अन्तर्जात बल जबकि पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होने वाले बल को बहिर्जात बल कहते हैं। अन्तर्जात बल का संबंध पृथ्वी के भू-गर्भ से होता है जबकि बहिर्जात बल का संबंध मुख्यत: वायुमंडल से है। पटल विरूपणी संचालन मन्द गति से होने वाला संचालन है जिसका प्रभाव हजारों वषोर्ं बाद परिलक्षित होता है। आकस्मिक बल से भूपटल पर विनाशकारी घटनाओं का आकस्मिक आगमन होता है। जैसे- भूकम्प, ज्वालामुखी व भू-स्खलन।

 

            

सामान्य परिचय

  • भूतल पर परिवर्तन दो बलों अन्तर्जात एवं बहिर्जात बल के कारण होता है।
  • पृथ्वी के आन्तरिक भाग से उत्पन्न होने वाले बल को अन्तर्जात बल जबकि पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होने वाले बल को बहिर्जात बल कहते हैं।

 

अन्तर्जात बल

  • अन्तर्जात बल का संबंध पृथ्वी के भू-गर्भ से होता है जबकि बहिर्जात बल का संबंध मुख्यत: वायुमंडल से है।
  • अन्तर्जात बल से पृथ्वी में क्षैतिज तथा लम्बवत् संचलन उत्पन्न होते हैं।
  • अन्तर्जात बलों को कार्य की तीव्रता के आधार पर दो प्रकारों आकस्मिक एवं दीर्घकालिक बलों में बांटा गया है।
  • आकस्मिक बलों के परिणामस्वरूप भूपटल पर विनाशकारी घटनाओं जैसे- भूकम्प, ज्वालामुखी व भू-स्खलन का आकस्मिक आगमन होता है।
  • दीर्घकालिक बल को पटल विरूपणी बल भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत लम्बवत तथा क्षैतिज संचलन आते हैं।

 

बहिर्जात बल

  • बहिर्जात बल पृथ्वी के अन्तर्जात बलों द्वारा भूतल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने में सतत् प्रयत्नशील रहते हैं। इसलिए बहिर्जात बल को समतल स्थापक बल भी कहते हैं।

 

महत्वपूर्ण स्थलाकृतियां

  • वलन - पृथ्वी के आन्तरिक भागों में उत्पन्न अन्तर्जात बलों के क्षैतिज संचलन द्वारा धरातलीय चट्टानों में संपीडन के कारण लहरों के रूप में पड़ने वाले मोड़ों को वलन कहते हैं। वलन के कारण चट्टानों के ऊपर उठे हुए भाग को अपनति तथा नीचे धंसे हुए भाग को अभिनति कहते हैं।

 

वलनों के प्रकार

  • सममित वलन में वलन की दोनों भुजाओं की लम्बार्इ व ढलान समान होती है।
  • असममित वलन में दोनों भुजाओं की लम्बार्इ व ढाल असमान होती है।
  • जब किसी वलन की एक भुजा सामान्य झुकाव व ढाल वाली तथा दूसरी भुजा उस पर समकोण बनाती है एवं उसका ढाल खड़ा होता है,तो उसे एकदिगनत वलन कहते हैं।
  • समनत वलन में वलन की दोनों भुजाएं समानान्तर होती हैं। लेकिन क्षैतिज दिशा में नहीं होती हैं।
  • अत्यधिक तीव्र क्षैतिज संचलन के कारण जब वलन की दोनों भुजाएं एक दूसरे के समानान्तर और क्षैतिज दिशा में होती जाती हैं, तो उसे परिवलित वलन कहते हैं।
  • भ्रंशन - इसके अन्तर्गत दरारें, विभंग व भ्रंशन को शामिल किया जाता है। भू-पटल में एक तल के सहारे चट्टानों के स्थानान्तरण से. उत्पन्न संरचना को भ्रंश कहते हैं। भ्रंशन की उत्पत्ति क्षैतिज संचलन के दोनों बलों से होती है। परन्तु तनाव बल का स्थान अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिकतर भ्रंश इसी के कारण उत्पन्न हुए हैं।
  • भ्रंश घाटी - जब दो समानान्तर भ्रंशों का मध्यवर्ती भाग नीचे धंस जाता है तो उसे द्रोणी या भ्रंश घाटी कहते हैं।
  • रैम्प घाटी - रैम्प घाटी का निर्माण उस स्थिति में होता है जब दो भ्रंश रेखाओं के बीच स्तम्भ यथा स्थिति में ही रहे परन्तु संपीडनात्मक बल के कारण किनारे के दोनों स्तम्भ ऊपर उठ जाये।
  • भ्रंशोत्थ पर्वत - जब दो भ्रंशों के बीच का स्तम्भ अपनी स्थिति में रहे एवं किनारे के स्तम्भ नीचे धंस जाये तो ब्लॉक पर्वत का निर्माण होता है।

उदाहारण - भारत का सतपुड़ा पर्वत, जर्मनी का ब्लैक फॉरेस्ट व वास्जेस पर्वत, पाकिस्तान का साल्ट रेंज ।

  • हॉर्स्ट पर्वत - जब दो भ्रंशों के किनारों के स्तम्भ यथावत रहे एवं बीच का स्तम्भ ऊपर उठ जाये तो हॉर्स्ट पर्वत का निर्माण होता है। उदाहरण- जर्मनी का हॉर्ज पर्वत

 

 

 

 

 

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